बहुत से लोग सोच सकते हैं कि माफिया अतीक अहमद और अशरफ की हत्या दर्जनों कैमरों के सामने हुई, पूरी घटना का लाइव टेलिकास्ट हुआ, ऐसे में गुरुवार को यूपी पुलिस ने प्रयागराज में क्राइम सीन को नाटकीय ढंग से दोबारा रीक्रिएट क्यों किया। दर्जनों कैमरों में तीनों आरोपियों द्वारा अतीक और अशरफ पर फायरिंग से लेकर सरेंडर तक की तमाम तस्वीरें कैद हैं। तीनों पुलिस की गिरफ्त में हैं। सबकी कुंडली पुलिस के पास है। इसके बाद भी सीन को रीक्रिएट करने, इतना सारा ड्रामा करने की जरूरत क्या है? जब सारे सबूत सामने हैं, सब कुछ ऑरिजनल है तो फिर क्राइम सीन को दोबारा शूट करने से क्या मिलेगा? दरअसल, हमारे क्रिमिनल लॉ में एक तय प्रक्रिया है, जिसका पालन प्रॉसिक्यूशन को करना होता है। न्यायिक जांच आयोग और SIT ने भी इसी प्रोटोकॉल का पालन किया। इसकी रिपोर्ट अदालत में काम आएगी। क्राइम सीन रीक्रिएट करने से यह समझ में आता है कि उस वक्त क्या हुआ होगा। पुलिस ने कस्टडी में मौजूद गैंगस्टरों की सुरक्षा व्यवस्था में कोई लापरवाही तो नहीं की थी? क्या पुलिस वालों के पास इतना वक्त था कि वे हत्यारों को रोक सकते थे? और सबसे बड़ी बात यह कि हत्यारों ने पूछताछ में जो बताया, उसको मौके पर जाकर देखा जाता है कि हत्यारे जो कह रहे हैं वह वाकई में मुमकिन था या नहीं, वैसा हुआ या नहीं। आमतर पर क्राइम सीन रीक्रिएट करने से जांच में तो बहुत मदद नहीं मिलती है, लेकिन अदालत में आरोपों को साबित करने में इसकी रिपोर्ट मदद करती है। ये तो सबको पता है कि हत्या किसने की, और किस हथियार से की। पुलिस के सामने सबसे बड़ा चैलेंज यह है कि वह इन सवालों के जवाब खोजे कि हत्या के पीछे मकसद क्या था। हत्यारों की अतीक से क्या दुश्मनी थी? अतीक की हत्या से उन्हें क्या फायदा हुआ? क्या हत्यारे सिर्फ मोहरे या कॉन्ट्रैक्ट किलर हैं? अगर यह सही है तो फिर अतीक और अशरफ की सुपारी देने वाला कौन है? अब पुलिस इन्ही सवालों के जवाब खोजने में ताकत लगा रही है। पिछले 24 घंटों में हत्यारों ने पूछताछ में कुछ खुलासे किए भी हैं, लेकिन अभी और खुलासों की उम्मीद है। अतीक की हत्या करने वाले तीनों शूटर्स रटा-रटाया जवाब दे रहे हैं। इससे यह पता नहीं लग रहा कि अतीक की हत्या का मसकद क्या था, उन्हें इससे क्या हासिल हुआ। तीनों शूटर्स की अतीक से कोई पुरानी दुश्मनी नहीं है, उनका कोई लंबा-चौड़ा आपराधिक इतिहास नहीं है जिसके जरिए पुलिस उनके बारे में कुछ पता लगा सके। अतीक की हत्या से शूटर्स को कोई फायदा हुआ हो या न हुआ हो, लेकिन इससे पुलिस का बहुत बड़ा नुकसान हुआ है। अतीक और अशरफ जिंदा रहते तो काले कारनामे करने वाले तमाम सफेद लोगों का चेहरा उजागर होता, क्राइम के पूरे सिंडिकेट का खुलासा होता। अतीक ने अपने धंधों में किन किन लोगों की काली कमाई लगाई है, यह पता लगता। अतीक और अशरफ की हत्या के बाद वे सारे राज दफन हो गए।
कर्नाटक चुनावों में उछला अतीक का नाम
बीजेपी गुरुवार को कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के एक पुराने वीडियो को लेकर सामने आई, जिसमें वह कई साल पहले प्रयागराज के एक 'मुशायरे' में अतीक अहमद की तारीफ करते नजर आ रहे हैं। कर्नाटक से बीजेपी की सांसद शोभा करंदलाजे ने इस पर कांग्रेस से स्पष्टीकरण की मांग की। इसके जवाब में कांग्रेस ने भी एक कई साल पुराना वीडियो जारी किया जिसमें यूपी के मंत्री नंदगोपाल नंदी अतीक अहमद के साथ बैठकर हंसते हुए दिखाई दे रहे हैं। वक्त-वक्त की बात है। एक वक्त वह था जब समाजवादी पार्टी हो, बहुजन समाज पार्टी हो या कांग्रेस हो, इसके नेता चुनाव में अतीक अहमद को राजनीतिक समर्थन देते थे और बदले में प्रयागराज के इलाके में अतीक से सपोर्ट लेते थे। लेकिन आज वक्त बदल गया है। अब अतीक अहमद मारा जा चुका है, उसका साम्राज्य मिट्टी में मिल चुका है। अब उसका नाम किसी के काम का नहीं, इसलिए यही पार्टियां अतीक का नाम लेने से भी बच रही हैं। सारे नेता अतीक के नाम से दूरी बना रहे हैं। स्वच्छ राजनीति के लिए यह बदलाव अच्छा है। बस जरूरत इस बात की है कि राजनीतिक दलों का इस तरह का रवैया सिर्फ अतीक अहमद के लिए नहीं, बल्कि सभी अपराधियों के लिए होना चाहिए। कर्नाटक में अतीक अहमद का नाम इसलिए आया क्योंकि वहां विधानसभा चुनाव है, और गुरुवार को नामांकन दाखिल करने का आखिरी दिन था।
राहुल की अर्जी हुई खारिज
गुरुवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी को उस समय झटका लगा, जब सूरत की एक डिस्ट्रिक्ट सेशन कोर्ट ने मानहानि के एक मामले में 2 साल कैद की सजा पर रोक लगाने की उनकी अर्जी को खारिज कर दिया। अगर सूरत की कोर्ट से राहुल को राहत मिल जाती, उनकी सजा पर रोक लग जाती तो कांग्रेस इसे अपने नेता की एक बड़ी जीत के रूप में प्रोजेक्ट करती। कर्नाटक के चुनाव में इसे मोदी की हार बताया जाता। हालांकि गुरुवार को जो हुआ वह कोर्ट का फैसला है, इसका राजनीति से कोई सीधा कनेक्शन नहीं है, लेकिन दोनों तरफ से इसका सियासी इस्तेमाल किया गया। बीजेपी ने कहा कि देश का पिछड़ा वर्ग खुशी मना रहा है क्योंकि राहुल को पिछड़े वर्ग को अपमानित करने का दोषी पाया गया है, और JKPDP सुप्रीमो महबूबा मुफ्ती ने कहा कि यह लोकतंत्र के लिए काला दिन है। बीजेपी ने कहा कि यह गांधी परिवार के अहंकार पर चोट है तो कांग्रेस ने कहा कि राहुल गांधी खामोश नहीं होंगे। इसलिए मेरा कहना है कि फैसला चाहे जो भी हो, इसका इस्तेमाल सियासी मकसद के लिए होगा और दोनों तरफ से होगा।
2002 नरोडा गाम हत्याकांड पर आया फैसला
अहमदाबाद में एक विशेष अदालत ने गुरुवार को 2002 के नरोदा गाम हत्याकांड मामले में पूर्व मंत्री माया कोडनानी, बजरंग दल के नेता बाबू बजरंगी और वीएचपी नेता जयदीप पटेल सहित सभी 68 आरोपियों को बरी कर दिया। हिंसा की इस घटना के दौरान 11 लोग मारे गए थे। 2017 में बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह गवाह के तौर पर कोर्ट के सामने पेश हुए थे। यह नौवां मामला था जिसकी जांच सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त SIT ने की थी। इस केस में कुल 86 अभियुक्त थे, जिनमें से 18 की सुनवाई के दौरान मौत हो गई थी। यह मामला 2002 का है, 21 साल हो चुके, केस सुप्रीम कोर्ट तक गया था। सुप्रीम कोर्ट ने SIT का गठन किया था। SIT ने जांच की, केस की सुनवाई 2009 में शुरू हुई और 14 साल के बाद अब कोर्ट का फैसला आया है। अब इसे हायर कोर्ट में चैलेंज किया जाएगा, और जब तक केस चलेगा तब तक इस पर सियासत होती रहेगी, और जब-जब बयानबाजी होगी, तब-तब दंगा पीड़ितों के घाव हरे होंगे। (रजत शर्मा)
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