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Rajat Sharma’s Blog: राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ करना क्यों जरूरी था?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 दिन पहले स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले की प्राचीर से किए गए अपने वादे को पूरा कर दिया है।

Written By: Rajat Sharma
Published : Sep 09, 2022 18:59 IST, Updated : Sep 09, 2022 18:59 IST
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Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को दिल्ली में ऐतिहासिक 'राजपथ' (किंग्सवे) का नाम बदलकर 'कर्तव्य पथ' कर दिया। इसके साथ ही गुलामी का एक और प्रतीक इतिहास के गर्त में चला गया। मोदी ने इंडिया गेट के पास नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 28 फुट ऊंची प्रतिमा भी स्थापित की। यहां कभी ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम की मूर्ति हुआ करती थी। इसके साथ ही गुलामी के एक और प्रतीक का अंत हो गया।

राजपथ को ब्रिटिश शासन के दौरान किंग्सवे नाम दिया गया था, और आजादी के बाद इसका नाम बदलकर राजपथ कर दिया गया था। औपनिवेशिक शासन की अंतिम निशानियों को मिटाने के लिए मोदी ने राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ कर दिया। इंडिया गेट के पास आयोजित एक इन्द्रधनुषी समारोह में मोदी ने कहा, ‘गुलामी का प्रतीक किंग्सवे यानि राजपथ, आज से इतिहास की बात हो गया है, हमेशा के लिए मिट गया है। आज कर्तव्य पथ के रूप में नए इतिहास का सृजन हुआ है।’

इंडिया गेट पर नेताजी की प्रतिमा का अनावरण करते हुए मोदी ने कहा, ‘आज इंडिया गेट के समीप हमारे राष्ट्रनायक नेताजी सुभाषचंद्र बोस की विशाल प्रतिमा भी स्थापित हुई है। गुलामी के समय यहाँ ब्रिटिश राजसत्ता के प्रतिनिधि की प्रतिमा लगी हुई थी। आज देश ने उसी स्थान पर नेताजी की मूर्ति की स्थापना करके आधुनिक और सशक्त भारत की प्राण प्रतिष्ठा भी कर दी है। वाकई ये अवसर ऐतिहासिक है, ये अवसर अभूतपूर्व है। हम सभी का सौभाग्य है कि हम आज का ये दिन देख रहे हैं, इसके साक्षी बन रहे हैं।’

मोदी ने नेताजी को ‘महामानव’ बताते हुए कहा, ‘सुभाषचंद्र बोस ऐसे महामानव थे जो पद और संसाधनों की चुनौती से परे थे। उनकी स्वीकार्यता ऐसी थी कि, पूरा विश्व उन्हें नेता मानता था। उनमें साहस था, स्वाभिमान था। उनके पास विचार थे, विज़न था। उनके नेतृत्व की क्षमता थी, नीतियाँ थीं। नेताजी सुभाष कहा करते थे- भारत वो देश नहीं जो अपने गौरवमयी इतिहास को भुला दे। भारत का गौरवमयी इतिहास हर भारतीय के खून में है, उसकी परंपराओं में है। नेताजी सुभाष भारत की विरासत पर गर्व करते थे और भारत को जल्द से जल्द आधुनिक भी बनाना चाहते थे। अगर आजादी के बाद हमारा भारत सुभाष बाबू की राह पर चला होता तो आज देश कितनी ऊंचाइयों पर होता! लेकिन दुर्भाग्य से, आजादी के बाद हमारे इस महानायक को भुला दिया गया। उनके विचारों को, उनसे जुड़े प्रतीकों तक को नजर-अंदाज कर दिया गया।’

मोदी ने कहा, ‘आज देश का प्रयास है कि नेताजी की वो ऊर्जा देश का पथ-प्रदर्शन करे। कर्तव्य पथ पर नेताजी की प्रतिमा इसका माध्यम बनेगी। देश की नीतियों और निर्णयों में सुभाष बाबू की छाप रहे, ये प्रतिमा इसके लिए प्रेरणास्रोत बनेगी। नेताजी सुभाष, अखंड भारत के पहले प्रधान थे जिन्होंने 1947 से भी पहले अंडमान को आजाद कराकर तिरंगा फहराया था। उस वक्त उन्होंने कल्पना की थी कि लालकिले पर तिरंगा फहराने की क्या अनुभूति होगी। इस अनुभूति का साक्षात्कार मैंने स्वयं किया, जब मुझे आजाद हिंद सरकार के 75 वर्ष होने पर लाल किले पर तिरंगा फहराने का सौभाग्य मिला।’

मोदी ने कहा, ‘तो ये गुलामी की मानसिकता के परित्याग का पहला उदाहरण नहीं है। ये न शुरुआत है, न अंत है। ये मन और मानस की आजादी का लक्ष्य हासिल करने तक, निरंतर चलने वाली संकल्प यात्रा है।’

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘ये बदलाव केवल प्रतीकों तक ही सीमित नहीं है, ये बदलाव देश की नीतियों का भी हिस्सा बन चुका है। आज देश अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे सैकड़ों क़ानूनों को बदल चुका है। भारतीय बजट, जो इतने दशकों से ब्रिटिश संसद के समय का अनुसरण कर रहा था, उसका समय और तारीख भी बदली गई है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के जरिए अब विदेशी भाषा की मजबूरी से भी देश के युवाओं को आजाद किया जा रहा है। यानी, आज देश का विचार और देश का व्यवहार दोनों गुलामी की मानसिकता से मुक्त हो रहे हैं। ये मुक्ति हमें विकसित भारत के लक्ष्य तक लेकर जाएगी।’

मोदी ने 25 दिन पहले स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले की प्राचीर से किए गए अपने वादे को पूरा कर दिया है। उन्होंने न केवल उपनिवेशवाद की अंतिम निशानियों को हटा दिया,  बल्कि देश के लोगों को इंडिया गेट से लेकर बोट क्लब तक एक ऐसी हरी-भरी मनोरम वीथिका दी है जिसके दोनों ओर नहर और फव्वारे हैं। 

477 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित यह पैदल पथ 16.5 किलोमीटर लंबा है, मुख्य सड़क को पार करने के लिए 4 अंडरपास बनाए गए हैं, बिजली के 74 पुराने खंभों की मरम्मत की गई है और 900 नए खंभे लगाए गए हैं। इसके अलावा 400 से ज्यादा नई बेंच, 150 से ज्यादा डस्टबिन और 650 से ज्यादा साइनबोर्ड लगाए गए हैं। इंडिया गेट से बोट क्लब तक पूरे इलाके में विभिन्न राज्यों के पकवानों के स्टॉल, शौचालय और पीने के पानी के फाउंटेन लगाए गए हैं। हरे-भरे पेड़ों वाले लॉन के बीचों-बीच लाल बलुआ पत्थर से बनी बेंचें लगाई गई हैं।

नेताजी की इस 28 फुट ऊंची प्रतिमा का वजन 65 मीट्रिक टन है। इसे 280 मीट्रिक टन वाली काली ग्रेनाइट की एक ही चट्टान को तराश कर बनाया गया है। नेताजी की इस प्रतिमा को बनाने में करीब 26,000 घंटे का वक्त लगा। इस प्रतिमा को मैसुरू के शिल्पकार अरुण योगीराज और उनकी टीम ने बनाया है। इस मूर्ति को तेलंगाना के खम्मम से दिल्ली तक 100 फुट लंबे और 140 पहियों वाले स्पेशल ट्रक में लाया गया।

नया संसद भवन, केंद्रीय सचिवालय, उपराष्ट्रपति भवन और प्रधानमंत्री आवास अब अगले चरण में बनकर तैयार होंगे। गुरुवार को मोदी ने लाल बलुआ पत्थर की बेंच, पगडंडियों और नहरों से भरे इस विशाल पथ को बनाने वाले मजदूरों से मुलाकात की। उन्होंने मजदूरों से वादा किया कि वह अगले साल गणतंत्र दिवस परेड में उन्हें बतौर स्पेशल गेस्ट बुलाएंगे।

राजपथ को कर्तव्य पथ का नाम देना जरूरी था। नेताजी सुभाश चंद्र बोस की प्रतिमा की स्थापना करना जरूरी था। गुलामी की मानसिकता के प्रतीकों को मिटाना जरूरी था। यह देश की भावना है, यह हमारे राष्ट्र का आत्म गौरव है। लेकिन इसके साथ इस पूरे निर्माण कार्य का एक व्यावहारिक पक्ष भी है। राजपथ के दोनों तरफ स्थित जिन सरकारी भवनों में बरसों से दफ्तर चल रहे थे, वे पुराने हो चुके थे। वहां सुरक्षा और एयर कंडिशनिंग से लेकर पार्किंग की समस्याएं बढ़ती जा रही थी।

नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने पाया कि इन सरकारी भवनों के गलियारों में पुरानी फाइलों के अंबार लगे हुए हैं। उन्होंने विभिन्न मंत्रालयों के दफ्तरों को नया स्वरूप देने के लिए, उन्हें ज्यादा चुस्त और कुशल बना कर नई अत्याधुनिक तकनीक से लैस करने के लिए एक प्लान पर काम किया, ताकि नए भारत को एक नई पहचान मिल सके। सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर तेजी से काम चल रहा है और अब यह अंतिम चरण में है। दुनिया जल्द ही एक सशक्त भारत और इसकी गौरवशाली विरासत के प्रतीकों को देखेगी। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 08 सितंबर, 2022 का पूरा एपिसोड

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