कट्टरपंथी खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह पिछले 10 दिन से फरार है, बुधवार को फगवाड़ा-होशियारपुर मार्ग पर वह एक कार में फिर से भाग गया। पंजाब पुलिस ने उसे पकड़ने के लिए जाल बिछाया है और उसका पता लगाने के लिए ड्रोन का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। बुधवार को अमृतपाल ने एक वीडियो जारी कर 'सिख संगत' से 'सरबत खालसा' में शामिल होने का आह्वान किया। अमृतपाल ने दावा किया कि उसे गिरफ्तार नहीं किया गया है और कहा, 'मुझे कुछ भी नुकसान नहीं पहुंचा सकता।' वीडियो की तारीख और स्थान का पता नहीं चल सका है, लेकिन यह पाया गया कि वीडियो कनाडा, ब्रिटेन और दुबई के तीन आईपी एड्रेस से प्रसारित किया गया था। ऐसी खबरें थीं कि अमृतपाल बुधवार को स्वर्ण मंदिर सहित किसी भी बड़े गुरुद्वारे में सरेंडर कर सकता है। पुलिस की भारी तैनाती थी लेकिन भगोड़ा कहीं नजर नहीं आया। अमृतपाल को लेकर चार बातें बिल्कुल साफ हैं । एक, उसे अंदाज़ा है कि वो अब ज्यादा देर पुलिस से बच नहीं पाएगा, इसीलिए उसने अपना वीडियो जारी किया । दूसरी बात ये कि जिस दिन पहली बार पुलिस उसे पकड़ने आई थी, तो उसका जो वीडियो सामने आया था उसमें पुलिस का खौफ अमृतपाल के चेहरे पर साफ दिखाई दे रहा था। उसका घबराकर ये कहना कि ‘पुलिस आ गई, पुलिस आ गई’, दिखा रहा था कि वो गिरफ्तार होने से कितना डरा हुआ था । अमृतपाल का नया वीडियो इस इंप्रेशन को दूर करने के लिए भी है कि वो डरपोक है, इसीलिए वो कह रहा है कि वो गिरफ्तार होने से नहीं डरता, कोई उसका बाल भी बांका नहीं कर सकता । तीसरी बात ये कि अमृतपाल इतने दिनों तक इसलिए बचता रहा कि पंजाब के सिस्टम में उसका साथ देने वाले कई लोग मौजूद हैं, वो हुलिया बदलता रहा, गाड़ियां बदलता रहा, उसे छुपने की जगहें मिलती रहीं, सूचनाएं मिलती रही, ये बिना सिस्टम के सपोर्ट के संभव नहीं है । चौथी बात ये कि अमृतपाल और उसका इस्तेमाल करने वाले इस बात से परेशान हैं कि पुलिस एक्शन का पंजाब में कोई खास रिएक्शन नहीं हुआ, इसीलिए अमृतपाल अपने वीडियो में लोगों को भड़काने की कोशिश कर रहा है, धर्म के नाम पर, कौम के नाम पर लोगों को उकसाने की कोशिश में लगा है, पर मुझे लगता है कि पंजाब के लोगों ने ये सब बहुत बार देखा है । अब लोग अमन चैन से रहना चाहते हैं । इसलिए अमृतपाल के इरादे नाकाम होंगे । समस्या उन लोगों से हैं जो अपनी सियासत चमकाने के चक्कर में अमृतपाल जैसे लोगों का नाम लेते हैं। धर्म की आड़ लेकर लोगों को भड़काते हैं । मैं भगवंत मान की तारीफ करूंगा कि वो अमृतपाल और उसके साथियों के खिलाफ एक्शन लेने से डरे नहीं। पंजाब के मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार के साथ मिलकर एक्शन लिया। जब अकाल तख्त के जत्थेदार ने अमृतपाल के साथियों को सपोर्ट देने की कोशिश की तो भगवंत मान ने जत्थेदार को करारा जवाब दिया। ये बात इसलिए महत्वपूर्ण है कि शुरुआत में ये इंप्रेशन क्रिएट किया गया था कि पंजाब में आम आदमी पार्टी पर्दे के पीछे से खालिस्तानियों को सपोर्ट करती है। ये भी कहा गया था कि कनाडा में बैठे मिलिटेंट से इस पार्टी के रिश्ते हैं, पर भगवंत मान ने इस इंप्रेशन को गलत साबित कर दिया। कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसे नेताओं को तो लगता था कि पंजाब एक बॉर्डर स्टेट है, सेंसिटिव इलाका है। भगवंत मान इसे संभाल नहीं पाएंगे। लेकिन मैं कहूंगा कि भगवंत मान ने जबरदस्त हिम्मत दिखाई, चाहें उन्हें सरकार चलाने का अनुभव ना हो, लेकिन जब पहली बार देश के दुश्मनों से लड़ने का मौका आया तो वो पीछे नहीं हटे। मुझे यकीन है कि भगवंत मान आगे भी किसी प्रेशर में नहीं आएंगे और पंजाब के दुश्मनों को सबक सिखाएंगे।
यूपी में डर से कांप रहे अपराधी
यूपी के अपराधी डॉन अतीक अहमद को जहां साबरमती जेल में रखा गया है, वहीं उमेश पाल अपहरण मामले में बरी हुए उसके भाई अशरफ को बरेली जेल ले जाया गया है। एक इंटरव्यू में, अशरफ ने कहा, प्रयागराज में यूपी पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने उसे बताया कि उसे दो सप्ताह में मार दिया जाएगा, जब उसे फिर से जेल से बाहर ले जाया जाएगा। उसने अधिकारी का नाम नहीं लिया, लेकिन वह डरा हुआ लग रहा था। अशरफ 'मुख्यमंत्री जी' जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर रहा था और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से उसे बचाने की गुहार लगा रहा था। अशरफ ने कहा, वह पिछले तीन साल से जेल में है, अतीक की पत्नी शाइस्ता परवीन मेयर का चुनाव लड़ना चाहती थीं, लेकिन वह फंस गईं और अंडरग्राउंड हो गई। इंटरव्यू से साफ पता चलता है कि यूपी के बड़े अपराधी अब कानून से कितने डरे हुए हैं। यह वास्तव में दुखद है कि जो लोग हत्या, जबरन वसूली, जमीन हड़पने में लिप्त हैं, वे दावा करते हैं कि वे अपराधी नहीं हैं, बल्कि विधायक हैं। अशरफ के शब्द कि 'मेरा भाई सांसद और विधायक रहा है, और मैं भी विधायक था', हमारी राजनीतिक व्यवस्था पर काला धब्बा है। यह राजनीतिक भाईचारे का दुरुपयोग करने के बराबर है। यह उन राजनीतिक दलों द्वारा अतीत में की गई गलतियों का परिणाम है, जिन्होंने वोट और सत्ता की तलाश में अपराधियों की मदद ली। अब समय आ गया है कि सभी राजनीतिक दल अपराधियों और माफिया से दूर रहें।
क्या येदियुरप्पा कर्नाटक में बीजेपी का नेतृत्व करेंगे?
जब भाजपा ने पिछले साल कर्नाटक में विधानसभा चुनावों की तैयारी शुरू की, तो उसने दो महत्वपूर्ण कदम उठाए। एक, अनुभवी नेता बी एस येदियुरप्पा को दरकिनार कर दिया गया और बसवराज बोम्मई को अभियान का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। दूसरा, मुस्लिम लड़कियों द्वारा 'हिजाब' पहनने को एक मुद्दा बनाया गया और हिंदुत्व के एजेंडे को उजागर करने की कोशिश की गई। जब बुधवार को कर्नाटक विधानसभा के लिए चुनाव की तारीखों की घोषणा की गई, तो ऐसा लगता है कि बीजेपी ने दोनों मोर्चों पर अपना रुख बदल लिया है। बोम्मई मुख्यमंत्री बने रहे, लेकिन येदियुरप्पा को सत्ता बरकरार रखने के लिए भाजपा का नेतृत्व करने का काम सौंपा गया है। येदियुरप्पा अपनी राजनीतिक पारी खेल चुके हैं और वह अपने बेटे को कर्नाटक की राजनीति में स्थापित करना चाहते हैं। ऐसा लगता है कि बीजेपी नेतृत्व ने येदियुरप्पा की शर्त मान ली है। दूसरा, कर्नाटक में हिंदुत्व और 'हिजाब' अब ज्वलंत मुद्दे नहीं रह गए हैं, और आरक्षण नीति केंद्र में आ गई है। बीजेपी ने मुस्लिमों के लिए आरक्षण हटाकर और वोक्कालिगा और लिंगायत समुदायों के लिए आरक्षण कोटा बढ़ाकर एक बड़ा दांव खेला है। दूसरी ओर, कांग्रेस को उसी समस्या का सामना करना पड़ रहा है, जिसका सामना उसने पहले किया था। पार्टी में नेता ज्यादा हैं और कार्यकर्ता कम। पूर्व में भी मुख्यमंत्री पद की खींचतान पार्टी को डुबा चुकी है। कांग्रेस ने इस बार किसी को भी मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश नहीं करने का फैसला किया है।
देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 29 मार्च, 2023 का पूरा एपिसोड