सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस अर्ज़ी को सुनने से इंकार कर दिया जिसमें गुज़ारिश की गयी थी कि 28 मई को नये संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति महोदया से कराने का निर्देश जारी किया जाय। दो अवकाशकालीन न्यायाधीशों जे के माहेश्वरी और पी एस नरसिम्हा ने कहा कि उन्हें पता है ये याचिका क्यों और कैसे दाखिल की गयी है। कोर्ट के इंकार करने के बाद याचक ने अपनी अर्ज़ी वापिस ले ली। नये संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई को करेंगे। 20 विपक्षी दलों ने समारोह का बहि,कार करने का ऐलान किया है, जबकि दूसरी तरफ 25 दलों ने कहा है कि उनके प्रतिनिधि समारोह में आएंगे। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने विपक्ष से अपील की कि वह बहिष्कार के अपने फैसले को वापस ले, क्योंकि नया संसद भवन भारतीय लोकतंत्र का और सभी देशवासियों की अपेक्षाओं का प्रतीक है। नये संसद भवन को लेकर जो विवाद खड़ा किया गया है, उसके बारे में मैं तीन बातें साफ कहना चाहता हूं। पहली तो ये कि वर्तमान संसद भवन को बदलना जरूरी था, ये बात लोकसभा के दो पर्व अध्यक्षों, मीरा कुमार और शिवराज पाटिल ने कही थी। मोदी ने इस बात को समझा और एक नया अत्याधुनिक संसद भवन रिकॉर्ड समय के अंदर तैयार करवाया। ये अपने आप में किसी चमत्कार से कम नहीं है।
दूसरी बात ये कि संसद भवन लोकसभा अध्यक्ष के अधिकार क्षेत्र में आता है, लोकसभा लोगों के सीधे वोट से बनती है, जनता की भावनाओं की प्रतीक है।, अध्यक्ष ओम बिड़ला ने उद्घाटन करने के लिए प्रधानमंत्री को आमंत्रित किया, इसमें कुछ भी गलत नहीं है। संसदीय व्यवस्था में सबसे ज्यादा अधिकार प्रधान मंत्री को दिये गये हैं। तो क्या प्रधानमंत्री एक बिल्डिंग का उद्घाटन नहीं कर सकते ? तीसरी बात ये कि इसमें राष्ट्रपति के अपमान का तो दूर दूर तक कोई सवाल ही नहीं उठता है। प्रधानमंत्री को बुलाना राष्ट्रपति का निरादर कैसे हो सकता है? ऐसा नहीं है कि विरोधी दलों के नेता इन बातों को नहीं समझते, वो सब जानते है, पर चुनाव सिर पर हैं। विरोधी दलों के ज्यादातर नेता मोदी से परेशान हैं, मोदी के आगे बेबस भी हैं। निजी बातचीत में सब मानते हैं कि 2024 में मोदी फिर जीतेंगे। यही परेशानी का सबब है। सबकी कोशिश है कि किसी तरह मोदी की छवि बिगाड़ी जाए, मोदी को दलित-आदिवासी विरोधी कहो, अमीरों का दोस्त कहो, लोकतंत्र का हत्यारा कहो, शायद कुछ चिपक जाए। दुनिया के सबसे बड़े, सबसे जीवन्त लोकतन्त्र में अगर कोई ये कहे कि देश में लोकतन्त्र मर चुका है।, तो उसकी नासमझी पर क्या कहा जाए? ये मोदी के प्रति नफरत की पराकाष्ठा है, ये स्वस्थ लोकतन्त्र के लिए घातक है। मुझे सबसे अच्छी बात पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा की लगी। देवेगौड़ा की पार्टी जेडीएस भी विपक्ष में है। NDA के खिलाफ है, नरेन्द्र मोदी की विरोधी है, लेकिन देवेगौड़ा ने कहा कि नयी संसद का जो भवन बना है, वह कोई बीजेपी का दफ्तर नहीं है, जिसका विरोध किया जाए या जिसके उद्घाटन का बॉयकॉट किया जाए। नया संसद भवन बीजेपी का नहीं, पूरे देश का है, इसलिए इसके उद्घाटन में सबको शामिल होना चाहिए, उनकी पार्टी इसका हिस्सा बनेगी। देवेगौड़ा ने बीजेपी के प्रति विरोध भी जता दिया और लोकतान्त्रिक परंपराओं का सम्मान भी कर दिया। लोकतन्त्र में यही होना चाहिए लेकिन कांग्रेस और उसके साथ खड़े दूसरे दल ये नहीं कर पाएंगे, क्योंकि उनका मकसद राष्ट्रपति का सम्मान नहीं, मोदी का विरोध है। नरेन्द्र मोदी से उन्हें इतनी नफरत है कि वो किसी भी हद तक जा सकते हैं। कभी कभी लगता है कि कांग्रेस वाकई में प्रधानमंत्री के पद को अपनी विरासत अपनी संपत्ति मानती है , उस कुर्सी पर कोई और बैठे, ये एक परिवार को रास नहीं आता।
क्या राहुल गांधी विपक्ष के पीएम उम्मीदवार बनेंगे?
लगता है कांग्रेस अब इस जल्दी में हैं कि किसी तरह राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित कर दिया जाए। गुरुवार को इसकी शुरुआत हुई । कांग्रेस के सांसद मणिकम टैगोर ने कहा है कि यही सही वक्त है जब विपक्ष की तरफ से राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर देना चाहिए, ।क्योंकि विरोधी दलों में जो प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं, लोकप्रियता के मामले राहुल गांधी उन सबसे बहुत आगे हैं। अपनी बात को साबित करने के लिए मणिकम टैगोर ने CSDS के सर्वे का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने राहुल गांधी को पीएम उम्मीदवार घोषित नहीं किया लेकिन फिर भी CSDS के सर्वे में उन्हें 27 परसेंट लोग पीएम उम्मीदवार के तौर पर देखना चाहते हैं। मणिकम टैगोर ने कहा, हमें ये बात समझनी चाहिए क्योंकि नयी पीढी 30 साल से कम उम्र की है, वो अब पीएम उम्मीदवार को लेकर च्वाइस चाहती है, 2019 में हमने किसी को पीएम उम्मीदवार के तौर पर पेश न करके गलती की थी। मणिकम टैगोर ने कहा कि ममता बनर्जी को सिर्फ 4 परसेंट लोग पीएम उम्मीदवार के तौर पर पसंद करते हैं , और नरेंद्र मोदी को 41 परसेंट लोग पसंद करते हैं। राहुल को 27 परसेंट लोग हसंद करते हैं, इसमें सिर्फ 14 परसेंट का अंतर है, अगर राहुल गांधी को पीएम उम्मीदवार घोषित कर दिया जाय, तो ये अन्तर कम किया जा सकता है। महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष नाना पटोले ने मणिकम टैगोर की बात का समर्तन किया। नाना पटोले ने कहा कि बीजेपी ने राहुल गांधी की छवि बिगाड़ने की बहुत कोशिश की लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिली, उल्टे राहुल गांधी की लोकप्रियता बढ़ी है।, इसलिए उन्हें पीएम उम्मीदवार घोषित करने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए।
कांग्रेस की तरफ से इस तरह की बयानबाजी को मोदी विरोधी मोर्चे में शामिल पार्टियों ने कोई तवज्जोह नहीं दी। एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार ने कहा कि फिलहाल इन सब बातों का कोई मतलब नहीं है क्योंकि अभी फोकस इस पर है कि बीजेपी के खिलाफ सभी विरोधी दलों को एक साथ एक मंच पर लाया जाए, पहले इस पर सहमति बन जाए, प्रधानमंत्री पद का चेहरा कौन होगा, ये तो बाद की बात है। विरोधी दलों के नेता भले ही कांग्रेस की तरफ से छोड़े गए इस शिगूफे से थोड़े अहसज हों, लेकिन बीजेपी के नेता इससे खुश हैं। बीजेपी के नेताओं का कहना है कि अगर कांग्रेस की ये मुराद पूरा हो जाती है।, तो 2024 में बीजेपी के लिए इससे अच्छा कुछ नहीं होगा, क्योंकि एक तरफ नरेन्द्र मोदी का चेहरा होगा, दूसरी तरफ राहुल गांधी का। फिर तो लोगों को फैसला करने में कोई दिक्कत नहीं होगी। मज़े की बात ये है कि बीजेपी के नेता अपनी बात को सही साबित करने के लिए ममता बनर्जी और शरद पवार के पुराने बयानों का हवाला दे रहे हैं, क्योंकि इन दोनों नेताओं ने कहा था कि राहुल गांधी में वो परिपक्वता नहीं है, राहुल गांधी की वैसी स्वीकार्यता नहीं है। राहुल के नेतृत्व में मोदी का मुकाबला नामुमकिन है लेकिन शरद पवार से राहुल गांधी की दावेदारी को लेकर जब सवाल किया गया तो वो इस बात को टाल गए क्योंकि उनके पास अरविन्द केजरीवाल बैठे थे, जो दिल्ली संबंधी केन्द्र के अध्य़ादेश के खिलाफ अपनी मुहिम में पवार का समर्थन मांगने आये थे। (रजत शर्मा)
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