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Rajat Sharma’s Blog: यूपी में मंत्री और विधायक क्यों बदल रहे हैं अपनी पार्टियां

अखिलेश यादव ज्यादातर छोटी पार्टियों और उनके नेताओं को अपने खेमे में शामिल करने की कोशिश में लगे हुए हैं।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Updated on: January 13, 2022 15:43 IST
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Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

उत्तर प्रदेश की सियासत में अब उबाल आ चुका है। नामांकन दाखिल करने की तारीखें नजदीक आने के साथ ही नेताओं ने अपनी पार्टियां और वफादारी बदलनी शुरू कर दी है। बीजेपी ने यूपी की 300 से ज्यादा विधानसभा सीटों के लिए उम्मीदवारों के नामों की स्क्रूटनी कर ली है, जिनमें से कम से कम 175 के नाम करीब-करीब तय हो चुके हैं। बीजेपी की केंद्रीय चुनाव समिति की मंजूरी मिलते ही उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी कर दी जाएगी।

अखिलेश यादव भी उन सीटों के लिए उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर सकते हैं जिन पर पहले 2 चरणों में मतदान होना है। इन दोनों बड़ी पार्टियों का टिकट हासिल करने के लिए नेता आखिरी जोर लगाना शुरू कर चुके हैं, और जैसा कि होता आया है, कई नेता तेजी से अपनी पार्टी और वफादारी बदलने लगे हैं।

बुधवार को उत्तर प्रदेश में बीजेपी के एक और मंत्री दारा सिंह चौहान ने अखिलेश यादव से मुलाकात के कुछ घंटे बाद कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया। मंगलवार को उनसे पहले एक अन्य मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी बीजेपी छोड़ दी थी। समाजवादी पार्टी के नेताओं का दावा है कि यह तो बस शुरुआत है और शुक्रवार को मकर संक्रांति के बाद धमाका होगा। उनका दावा है कि बीजेपी के करीब 18 मंत्री और विधायक इस्तीफा देने जा रहे हैं। बुधवार को बीजेपी के विधायक रवींद्र नाथ त्रिपाठी के इस्तीफे की भी खबर आ गई, लेकिन बाद में चिट्ठी फर्जी पाई गई और विधायक ने इस मामले में FIR करवाई है।

यूपी के वन मंत्री दारा सिंह चौहान के इस्तीफे की आशंका पहले से थी। बीजेपी नेताओं ने उन्हें रुकने के लिए मनाने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने सपा सुप्रीमो से मुलाकात के बाद अपना इस्तीफा भेज दिया।

दारा सिंह चौहान और स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे 2 पिछड़े वर्ग के नेताओं को बीजेपी के पाले से अपने पाले में खींचकर सपा खेमा उत्साहित नजर आ रहा है, लेकिन दिलचस्प बात यह है कि दोनों के इस्तीफे की चिट्ठियों का मजमून एक ही था। दोनों मंत्रियों ने आरोप लगाया कि बीजेपी के शासन के दौरान दलितों, पिछड़ों और अन्य वर्गों की अनदेखी की गई है। यह पूछे जाने पर कि अगर दलितों और पिछड़े वर्गों की उपेक्षा की जा रही थी तो वे 5 साल तक सरकार में क्यों रहे, चौहान ने कहा कि उन्हें पता था कि यह सवाल उठेगा। उन्होंने जवाब दिया, ‘दलितों और पिछड़ों के नाम पर सरकार में सिर्फ कुछ नेताओं और नौकरशाहों ने मलाई काटी। हमारी तो सुनी ही नहीं गई। हमारे जैसे कमजोर वर्ग के लोग तो वहीं के वहीं रह गए।’

चौहान ने जब कहा कि उन्होंने तय नहीं किया है कि वह किस पार्टी में शामिल होंगे, तब उन्होंने झूठ बोला। जैसे ही चौहान ने इस्तीफे का ऐलान किया, अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया पर उनके साथ मुलाकात की एक तस्वीर पोस्ट की। चौहान पिछड़ी जाति नोनिया से ताल्लुक रखते हैं। उन्होंने अपने सियासी सफर की शुरुआत बीएसपी से की थी, पहले एमएलसी और बाद में सांसद बने, इसके बाद वह सपा में शामिल हो गए और घोसी से लोकसभा सांसद चुने गए। लेकिन 2014 में लोकसभा चुनाव हारने के बाद वह बीजेपी में शामिल हो गए। वह बीजेपी के राज्य पिछड़ा वर्ग मोर्चा के प्रमुख थे। चौहान के धैर्य की तारीफ करनी होगी। उन्होंने कहा कि 5 साल तक उन्होंने दलितों और पिछड़ों के मुद्दों को उठाया, लेकिन अब चूंकि आचार संहिता लगने के बाद कुछ होने की उम्मीद खत्म हो गई है, इसलिए उन्होंने इस्तीफा दे दिया।

वहीं इस्तीफा देने वाले दूसरे मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा, वह शुक्रवार को अपने समर्थकों के साथ समाजवादी पार्टी में शामिल होने की घोषणा करेंगे। उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी सरकार पिछड़ों के लिए आरक्षण कोटा खत्म करने जा रही है। हैरान करने वाली बात यह है कि ये दोनों मंत्री कैबिनेट की हर बैठक में शामिल होते थे, लेकिन चुपचाप सब कुछ होते हुए देख रहे थे। पिछड़े वर्ग के एक अन्य नेता और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर ने दावा किया कि लगभग 18 ऐसे मंत्री और नेता हैं जो 20 जनवरी बीजेपी छोड़कर सपा में जाने वाले हैं।

ओमप्रकाश राजभर कम से कम ईमानदार तो हैं। वह 2017 में सीएम योगी की सरकार में मंत्री बनाए गए थे, लेकिन 2 साल बाद यह आरोप लगाते हुए सरकार और गठबंधन से किनारा कर लिया था कि बीजेपी उनसे किए गए अपने वादों को पूरा नहीं कर रही है। जब राजभर ने दावा किया कि अभी और नेताओं के इस्तीफे तैयार हैं, तो पता चला कि मौर्य और चौहान दोनों के इस्तीफों की चिट्ठी का मजमून एक जैसा ही था। यहां तक कि बीजेपी के विधायक रवींद्रनाथ त्रिपाठी के इस्तीफे की फर्जी चिट्ठी की भाषा भी इसी तर्ज पर तैयार की गई थी। त्रिपाठी ने आरोप लगाया कि उनके लैटरपैड का गलत तरीके से इस्तेमाल किया गया है और इसे लेकर उन्होंने पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई है। त्रिपाठी ने दावा किया कि उन्होंने विधानसभा में स्वामी प्रसाद मौर्य से केवल 2 मिनट के लिए मुलाकात की थी।

अखिलेश यादव के साथ यूपी के मंत्री डॉक्टर जी. एस. धर्मेश की एक और तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी। डॉ. धर्मेश को साफ करना पड़ा कि यह एक फोटोशॉप्ड तस्वीर थी। धर्मेश ने कहा, ‘मैं बीजेपी का सिपाही हूं और आगे भी रहूंगा।’

दूसरी पार्टियों के नेता भी पाला बदलने में लगे हुए हैं। कांग्रेस विधायक नरेश सैनी, सपा के विधायक हरिओम यादव और पूर्व विधायक धर्मपाल बुधवार को बीजेपी के शीर्ष नेताओं की मौजूदगी में पार्टी में शामिल हो गए। हरिओम यादव सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के रिश्तेदार हैं। वह तेज प्रताप यादव के नाना हैं। बीजेपी में शामिल होते हुए उन्होंने दावा किया कि समाजवादी पार्टी फिरोजाबाद जिले की सारी सीटें हारेगी। कांग्रेस विधायक नरेश सैनी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस नेताओं का जमीनी कार्यकर्ताओं से कोई संपर्क नहीं है और वे केवल ट्विटर पर नजर आ रहे हैं।

जो लोग चुनाव के ऐन मौके पर बीजेपी छोड़कर जा रहे हैं, उनके बारे में 2-3 बातें समझना जरूरी है। 2017 के विधानसभा चुनावों के दौरान, स्थानीय स्तर के करीब 100 नेता दूसरी पार्टियों से बीजेपी में शामिल हुए थे। इन नेताओं की पिछड़ी जातियों और दलितों के बीच अच्छी पकड़ थी। उनमें से ज्यादातर ने उस समय बसपा और सपा को छोड़कर बीजेपी का दामन थामा था। इन नेताओं और छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन कर बीजेपी विधानसभा चुनाव में तीन-चौथाई बहुमत हासिल करने में कामयाब रही। अब, बीजेपी राज्य की राजनीति में एक बड़ी ताकत बन चुकी है और पिछड़े वर्गों में इसका आधार तैयार हो चुका है। उसे इनमें से कई छोटी पार्टियों और उनके नेताओं की जरूरत नहीं है। पार्टी नेतृत्व को भरोसा है कि यूपी की जनता मोदी और योगी को वोट देगी। यही कारण है कि पार्टी नेतृत्व उन लोगों को टिकट देने से इनकार कर रहा है जिनके पाला बदलने की आशंका है। इस्तीफा देने वाले इन नेताओं को अब अहसास हो गया है कि बीजेपी नेतृत्व उन्हें और उनके रिश्तेदारों को टिकट नहीं देने वाला है।

दूसरी तरफ अखिलेश यादव ज्यादातर छोटी पार्टियों और उनके नेताओं को अपने खेमे में शामिल करने की कोशिश में लगे हुए हैं। उन्होंने इन नेताओं और उनके रिश्तेदारों को टिकट देने का वादा किया है। दरअसल, अखिलेश की मुश्किलें धीरे-धीरे बढ़ती ही जा रही हैं। उन्होंने जाति-आधारित कई छोटी-छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन किया है।

उत्तर प्रदेश में सिर्फ 403 विधानसभा सीटें हैं, और इन्हीं में उन्हें अपनी पार्टी का आधार को बचाए रखने के अलावा, अपने सहयोगियों को भी समायोजित करना है। अपनी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को खुश रखने के लिए अखिलेश को बहुत ही संतुलित ढंग से काम करना होगा। बुधवार को अखिलेश ने अपने सहयोगियों के साथ बैठक की थी। इनमें उनके अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव (प्रगतिशील समाजवादी पार्टी), ओम प्रकाश राजभर (सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी), केशवदेव मौर्य (महान दल), संजय चौहान (जनवादी पार्टी समाजवादी), कृष्णा पटेल (अपना दल-के) और मसूद अहमद (आरएलडी) शामिल थे। बाद में यह घोषणा की गई कि अधिकांश सीटों को अंतिम रूप दे दिया गया है लेकिन उम्मीदवारों की सूची फेज के हिसाब से जारी की जाएगी।

बीजेपी भी अपने कुनबे को इकट्ठा रखने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है। बुधवार की रात, केंद्रीय मंत्री और अपना दल की नेता अनुप्रिया पटेल और निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद ने अपने बेटे के साथ सीट समायोजन पर चर्चा के लिए दिल्ली में बीजेपी मुख्यालय में पार्टी के शीर्ष नेताओं अमित शाह और अन्य से अलग-अलग मुलाकात की। कम से कम 175 भाजपा उम्मीदवारों के नामों को अंतिम रूप दिया जा चुका है और केंद्रीय चुनाव समिति द्वारा इन नामों पर मुहर लगाई जानी है। ऐसी खबरें हैं कि केंद्रीय नेतृत्व अपने ज्यादातर विधायकों का टिकट काटने के मूड में नहीं है, लेकिन पार्टी ऐसी लगभग 90 सीटों पर उम्मीदवार बदल सकती है जहां वह पिछली बार चुनाव हार गई थी। इसके अलावा कुछ मंत्रियों की सीटें भी बदली जा सकती हैं। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 12 जनवरी, 2022 का पूरा एपिसोड

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