Friday, November 22, 2024
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Rajat Sharma’s Blog: मान सरकार ने अमृतपाल को सात महीने तक खुली छूट क्यों दी ?

जब पिछले महीने अमृतपाल और उसके समर्थकों ने अजनाला थाने का घेराव किया, पुलिसकर्मियों को घायल किया और अपने साथियों को छुड़ाया, तब पंजाब सरकार क्यों सो रही थी? अमृतपाल के खिलाफ कार्रवाई करने में पंजाब पुलिस को एक महीना लग गया।

Written By: Rajat Sharma
Updated on: March 23, 2023 6:15 IST
Rajat Sharma - India TV Hindi
Image Source : INDIA TV इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ रजत शर्मा

खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह अभी भी छिपा हुआ है, पंजाब पुलिस ने उसके खिलाफ लुक आउट सर्कुलर और गैर-जमानती वारंट जारी करवाया है । उसकी अलग-अलग लुक में 7 तस्वीरें जारी की गई हैं । पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए पूछा कि 80 हजार पुलिस वाले क्या कर रहे थे, जब वे हथियार लेकर घूम रहे थे ? न्यायमूर्ति एन एस शेखावत की टिप्पणी पंजाब पुलिस के खिलाफ नहीं,  बल्कि यह पंजाब सरकार की राजनीतिक इच्छाशक्ति के बारे में है । दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की यह टिप्पणी कि 'जो कोई भी भारत माता के खिलाफ आंख उठाएगा उसे बख्शा नहीं जाएगा' सुनने में अच्छी तो लगती  है लेकिन कांग्रेस की ओर से सवाल उठाए जा रहे  हैं । अमृतपाल कब पंजाब आया? किसने उसे बड़ी हस्ती बनायी? जब पिछले महीने अमृतपाल और उसके समर्थकों ने अजनाला थाने का घेराव किया, पुलिसकर्मियों को घायल किया और अपने साथी को छुड़ाया, तब पंजाब सरकार क्यों सो रही थी? अमृतपाल के खिलाफ कार्रवाई करने में पंजाब पुलिस को एक महीना क्यों लग गया ? अमृतपाल और उसके चेले पिछले सात महीनों से पंजाब में अंडर ग्राउंड होकर काम नहीं कर रहे थे । वे खुलेआम सभाएं कर रहे थे, खालिस्तान की बात कर रहे थे, पर्चे और पोस्टर बांट रहे थे और पंजाब के नौजवानों को भड़का रहे थे । उस समय आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने भारत माता के खिलाफ लगाये जा रहे नारे क्यों नहीं सुने ? ये ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब देने की जरूरत है । यह राजनीतिक तकरार का समय नहीं है। देश के दुश्मन अमृतपाल सिंह को पकड़ना पहली प्राथमिकता है । इस मकसद को हासिल करने के लिए पंजाब पुलिस और राज्य सरकार को पूरा जोर लगाना चाहिए । मैंने पंजाब में कई लोगों से बात की । ज्यादातर ने कहा, पंजाब में इस वक्त हालात सामान्य है, क्योंकि पंजाब के लोग देशभक्त हैं, वे अपनी जन्मभूमि से प्यार करते हैं और वे नहीं चाहते कि पंजाब में दुबारा दुश्मन अपने सिर उठाएं ।

दिल्ली के बजट पर विवाद

राजनीतिक तकरार के कारण दिल्ली बजट एक दिन के लिए टालना पड़ा और बुधवार को वित्त मंत्री कैलाश गहलोत ने इसे विधानसभा में पेश किया। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस देरी के लिए उपराज्यपाल और केंद्रीय गृह मंत्रालय को जिम्मेदार ठहराया, लेकिन बीजेपी ने केजरीवाल को केंद्र के सवालों के जवाब देने में देरी के लिए जिम्मेदार ठहराया। चाहे दिल्ली का बजट हो, एमसीडी के मेयर का चुनाव हो, अधिकारियों की नियुक्ति  का सवाल हो, दिल्ली सरकार और केंद्र दोनों ही हमेशा से आमने-सामने रहे हैं । केजरीवाल केंद्र पर दिल्ली के लोगों को परेशान करने का आरोप लगाते हैं । इसका एक कारण यह है कि केजरीवाल दिल्ली को एक निर्वाचित विधायिका वाले केंद्र शासित प्रदेश के रूप में स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं । दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिला है । यही मूल समस्या है । ऐसा पहली बार नहीं हुआ कि दिल्ली सरकार का बजट उपराज्यपाल के जरिए केंद्र के पास मंजूरी के लिए भेजा गया हो । एलजी के हस्ताक्षर के बाद बजट को विधानसभा में रखा जाता है । इससे पहले अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के बजट को 8 बार मंजूरी के लिए केंद्र के पास भेजा और हर बार नरेंद्र मोदी की सरकार ने इसे मंजूरी दी । इस दौरान कोई विवाद नहीं हुआ था । इस बार मंजूरी में देरी क्यों हुई ? दरअसल, केंद्र और केजरीवाल सरकार के बीच भरोसे की कमी है। दोनों एक दूसरे पर भरोसा नहीं करते। जब भी भरोसे की कमी होती है, तो आरोप तो लगते ही हैं। 

'मीर जाफर और जय चंद'

संसद में भी  भाजपा और विपक्ष के बीच भरोसे की कमी है । नारेबाजी के कारण मंगलवार को भी गतिरोध जारी रहा । भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने विदेशी हस्तक्षेप की मांग करने के आरोप में राहुल गांधी को भारतीय राजनीति का 'मीर जाफर' कह दिया । बदले में कांग्रेस नेताओं ने भाजपा नेताओं को 'जयचंद' बताया। मीर जाफर वह सेनापति था जिसने पलासी की लड़ाई में बंगाल के नवाब सिराज उद-दौला को धोखा दिया और ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत में पैर जमाने में मदद की । इस पर पलटवार करते हुए कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने बीजेपी को जयचंद बतायाय़ जयचंद ने  पृथ्वीराज चौहान के खिलाफ लड़ाई में मुहम्मद गौरी की मदद की थी। इस जुबानी जंग में राजनीतिक दलों को कुछ फायदा तो हो सकता है, लेकिन आम आदमी को फायदा तभी होगा जब संसद का कामकाज फिर से शुरू होगा। अभी ऐसी संभावनाएं धूमिल हैं।

मेहुल चौकसी और इंटरपोल

पिछले साल नवंबर में इंटरपोल फाइलों के नियंत्रण आयोग (CCF) ने भगोड़े भारतीय व्यापारी मेहुल चोकसी का नाम रेड नोटिस सूची से हटा दिया, ऐसा खुलासा होने के बाद भाजपा और विपक्ष के बीच राजनीतिक बयानबाजी शुरू हो गई । चोकसी 13,000 करोड़ रुपये के पंजाब नेशनल बैंक धोखाधड़ी वाले मामले में वांछित है और 2018 में भारत से भागने के बाद इस समय एंटीगुआ और बारबूडा में छिपा हुआ है । सीबीआई ने अपने बयान में कहा, " इंटरपोल को बता दिया गया है कि वांछित अपराधी मेहुल चोकसी एंटीगुआ और बारबूडा में चल रही प्रत्यर्पण कार्यवाही को पटरी से उतारने की हर संभव कोशिश कर रहा है, ताकि वह भारत में कानून की प्रक्रिया से बच सके। लेकिन  काल्पनिक और अप्रमाणित अनुमानों के आधार पर, पांच सदस्यीय सीसीएफ (Commission for Control of Interpol Files) ने रेड कॉर्नर  नोटिस को हटाने का निर्णय कर लिया , जिसकी सूचना नवंबर, 2022 में दी गई ।... सीबीआई ने इस निराधार और लापरवाह निर्णय तक पहुंचने में सीसीएफ द्वारा की गई गंभीर खामियों, प्रक्रियात्मक उल्लंघनों, और गलतियों की तरफ सीसीएफ का ध्यान आकर्षित है । सीबीआई का बयान अपने आप में विरोधाभासी है। एक तरफ उसका कहना है कि वह चोकसी के प्रत्यर्पण के लिए एंटीगुआ और बारबूडा की सरकार से बातचीत कर रही है और दूसरी ओर, उसने इंटरपोल की संस्था से चोकसी का नाम फिर से रेड कॉर्नर सूची में डालने के लिए कहा है । सीबीआई को अपनी गलती माननी चाहिए और तत्काल सुधार करना चाहिए। जब जांच एजेंसियां और उनके अधिकारी गलती करते हैं तो इसका खामियाज़ा सरकार को भुगतना पड़ता है।

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 21 मार्च, 2023 का पूरा एपिसोड

 

 

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