Sunday, December 22, 2024
Advertisement
  1. Hindi News
  2. भारत
  3. राष्ट्रीय
  4. Rajat Sharma’s Blog: नेशनल हेराल्ड केस की ED जांच को लेकर कांग्रेस परेशान क्यों है?

Rajat Sharma’s Blog: नेशनल हेराल्ड केस की ED जांच को लेकर कांग्रेस परेशान क्यों है?

हम सिलसिलेवार ढंग से समझने की कोशिश करते हैं कि AJL की संपत्ति सोनिया और राहुल गांधी के स्वामित्व वाली यंग इंडियन को कैसे दी गई।

Written By: Rajat Sharma
Published : Aug 05, 2022 18:23 IST, Updated : Aug 05, 2022 18:23 IST
Rajat Sharma Blog, Rajat Sharma Blog on National Herald Case, Rajat Sharma Blog on Sonia Gandhi
Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

नेशनल हेराल्ड मामले को लेकर गुरुवार को संसद में कांग्रेस और बीजेपी के बीच जमकर वार-पलटवार हुआ। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ED द्वारा पूछताछ और तलाशी को ‘डराने-धमकाने’ की रणनीति का हिस्सा बताया और कहा कि उनकी पार्टी नरेंद्र मोदी से नहीं डरती। कांग्रेस नेताओं ने आरोप लगाया कि ED के अधिकारियों ने दिल्ली में हेराल्ड हाउस के उस हिस्से को सील कर दिया है, जहां से अखबार निकाला जा रहा था, लेकिन ईडी के सूत्रों ने कहा कि कंपनी से जुड़े किसी भी शख्स के मौजूद न होने के चलते सिर्फ यंग इंडियन के दफ्तर में ताला लगाया गया था।

राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि इस समय जबकि संसद का सत्र चल रहा है, ED उन्हें समन कैसे जारी कर सकता है। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र विपक्ष की आवाज दबाने की कोशिश कर रहा है। वाणिज्य मंत्री और सदन के नेता पीयूष गोयल ने जवाब दिया कि सरकार कानून प्रवर्तन अधिकारियों के काम में हस्तक्षेप नहीं करती है। गोयल ने कहा, ‘शायद उनके (कांग्रेस) शासन में, ऐसा हुआ करता था। अब अगर कोई कुछ गलत करता है तो एजेंसियां अपना काम करेंगी। अगर किसी नेता को तलब किया गया है तो उसे जाना चाहिए. कानून सबके लिए बराबर है।’

खड़गे ने राज्यसभा में यह नहीं बताया कि उन्हें ईडी ने पूछताछ के लिए नहीं बुलाया था। चूंकि वह यंग इंडियन लिमिटेड के CEO थे, जिसके पास एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड का मालिकाना हक है, इसलिए उन्हें हेराल्ड हाउस में बुलाया गया था ताकि ED के अधिकारी उनकी मोजूदगी में अपनी तलाशी जारी रख सकें।

दूसरी बात, यंग इंडियन के दफ्तर को सील नहीं किया गया था। असल में हेराल्ड हाउस में उस समय कंपनी से जुड़ा कोई शख्स मौजूद नहीं था, इसलिए ED ने रिकॉर्ड्स और दस्तावेज सुरक्षित रखने के लिए ऑफिस में ताला लगा दिया था। यंग इंडियन कंपनी के CEO होने के नाते खड़गे को ED ने हेराल्ड हाउस बुलाया था। संसद से खड़गे सीधे हेराल्ड हाउस गए, ताला खोला गया और उनकी मौजूदगी में करीब 7 घंटे तक तलाशी चलती रही। इसके बाद खड़गे वापस लौट आए। ED के अधिकारियों ने उन्हें तलाशी के दौरान जब्त किए गए दस्तावेज दिखाए।

संसद के बाहर राहुल गांधी ने पत्रकारों को बताया, ‘ये धमकाने की कोशिश है। ये सोचते हैं कि थोड़ा सा दबाव डालकर हमें चुप करा देंगे, लेकिन हम चुप नहीं होने वाले हैं। नरेंद्र मोदी जी, अमित शाह जी इस देश में लोकतंत्र के खिलाफ जो कर रहे हैं उसके विरूद्ध हम खड़े रहेंगे, चाहे ये कुछ भी कर लें। हमें कोई फर्क नहीं पड़ता, हम डरने वाले नहीं हैं। हम नरेंद्र मोदी से नहीं डरते हैं। कर लें जो करना है। कुछ फर्क नहीं पड़ता। मेरा काम है देश की रक्षा करना, लोकतंत्र की रक्षा करना, देश में सद्भाव को बरकरार रखना, वह मैं करता रहूंगा।’

मौका कोई भी हो, मुद्दा कोई भी हो, जगह कोई भी हो, राहुल गांधी का एक डायलॉग फिक्स है, ‘मैं मोदी से नहीं डरता, मोदी मुझे नहीं डरा सकते।’ लेकिन मुझे लगता है कि जिस तरह राहुल गांधी अपना कर्नाटक दौरा बीच में छोडकर दिल्ली पहुंचे, वह कुछ और ही कहानी बयां करता है। कांग्रेस के नेता परेशान दिख रहे हैं और उनका डर साफ नजर आ रहा है।

मैंने कई अफसरों, नेताओं और कंपनी ऐक्ट एवं फाइनेंशल मुद्दों के एक्सपर्ट्स से बात की। मैंने राहुल और सोनिया गांधी के मालिकाना हक वाली यंग इंडियन कंपनी की संपत्तियों की जांच के लिए अलग-अलग शहरों में रिपोर्टर भेजे।

इससे मुझे कई सवालों के जबाव मिल गए। एक बड़ा सवाल यह है कि नेशनल हेराल्ड अखबार कांग्रेस का था, कंपनी एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड कांग्रेस की थी, पार्टी ने अपनी ही कंपनी को कर्ज दिया, लेकिन उस कर्ज की वसूली के लिए दूसरी कंपनी बनाने की क्या जरूरत थी?

दूसरा सवाल यह है कि क्या वाकई में नेशनल हेराल्ड की हालत ऐसी थी कि उसे कर्ज़ लेना पड़ा, वह भी ऐसे समय में जब उसके पास तमाम शहरों में करोड़ों की संपत्तियां थीं? क्या वाकई में नेशनल हेराल्ड की हालत ऐसी नहीं थी कि वह 90 करोड़ रुपये का लोन वापस करने की हैसियत रखता था?

नेशनल हेराल्ड के स्वामित्व वाली संपत्तियों की हालत जांचने के लिए मैंने अपने रिपोर्टर्स को लखनऊ, भोपाल, मुंबई और पंचकूला भेजा। उन्होंने पाया कि अभी भी नेशनल हेराल्ड के पास सैकड़ों करोड़ रुपये की संपत्तियां हैं।

हमारे संवाददाता अनुराग अमिताभ ने बताया कि भोपाल में नेशनल हेराल्ड के नाम पर जो जमीन AJL को एलॉट की गई थी, उस जमीन पर शॉपिंग कॉम्प्लेक्स बनाकर दुकानें बेच दी गईं। असल में भोपाल के एमपी नगर प्रेस कॉम्प्लेक्स में 1981 में नेशनल हेराल्ड को एक रुपये प्रति स्क्वेयर फीट के हिसाब से एक एकड़ से ज्यादा जमीन 30 साल की लीज पर दी गई थी।

2011 में लीज खत्म होनी थी लेकिन इससे पहले ही इस प्लॉट पर एक कमर्शल कॉम्प्लेक्स बनाकर दुकानें बेच दी गईं। लीज रद्द कर प्रॉपर्टी को कब्जे में लेने की कार्रवाई शुरू हुई तो नेशनल हेराल्ड के साथ-साथ वे दुकानदार भी कोर्ट चले गए, जिन्होंने यहां दुकानें खरीदी हैं, और मामला फिलहाल कोर्ट में है। भोपाल में नेशनल हेराल्ड, नवजीवन और कौमी आवाज का पब्लिकेशन 1992 में ही बंद हो गया। पिछले 30 साल से अखबार तो नहीं छपा लेकिन अखबार छापने के लिए बनी प्रॉपर्टी पर AJL का कब्जा बरकरार रहा।

मध्य प्रदेश के मंत्री कैलाश सारंग ने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने राज्य सरकार और आम लोगों, दोनों को गुमराह किया है। राज्य के शहरी विकास मंत्री भूपेंद्र सिंह ने कहा, कांग्रेस ने लीज एग्रीमेंट की शर्तों का उल्लंघन किया है और कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा कि इसमें शामिल अधिकारियों की भूमिका की भी जांच की जाएगी।

कांग्रेस सांसद विवेक तनखा ने कहा कि शायद ही कोई मीडिया हाउस होगा जिसने सरकार से मिली जमीन पर बनी प्रॉपर्टी को किराये पर नहीं दिया होगा, उसका व्यवसायिक इस्तेमाल नहीं किया होगा। उन्होंने कहा, ‘इसमें कुछ भी गलत नहीं है। नेशनल हेरल्ड को इसलिए निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि सराकर सोनिया गांधी और राहुल गांधी को बेवजह परेशान करना चाहती है, और कुछ नहीं।’

यह बात सही है कि अखबारों को राज्य सरकारों से जो जमीन मिलती है, उस पर वे बिल्डिंग बनाते हैं और उसका कुछ हिस्सा किराये पर देते हैं। इसमें कुछ गलत नहीं हैं क्योंकि अखबार निकालना आसान नहीं है, उसे चलाना मुश्किल है। इसलिए अगर प्रॉप्रटी के व्यावसायिक इस्तेमाल से अखबार चलाने में मदद मिलती है, तो इसमें कोई बुराई नहीं है। लेकिन पहली शर्त यह है कि अखबार निकलना चाहिए, अखबार छपना चाहिए, लोगों के पास पहुंचना चाहिए। भोपाल में तो नेशनल हेराल्ड और नवजीवन का पब्लिकेशन 1992 में ही बंद हो गया था। ऐसे में सवाल उठता है कि किसके फायदे के लिए प्रॉपर्टी को शॉपिंग कॉम्प्लेक्स बनाकर बेचा गया? जो पैसा मिला था, वह कहां गया?

ऐसा नहीं है कि प्रॉपर्टी सिर्फ भोपाल में बेची गई, आपको मुंबई की तस्वीर दिखाता हूं। मुंबई में नेशनल हेराल्ड अखबार के लिए प्राइम लोकेशन बांद्रा ईस्ट में जमीन दी गई थी। यह जमीन वेस्टर्न एक्सप्रेसवे के पास है। 1983 में महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकार थी, और सूबे के मुख्यमंत्री अब्दुल रहमान अंतुले ने यह जमीन अलॉट की थी। आज की तारीख में इस जमीन की कीमत 300 करोड़ रुपये से ज्यादा है। अब इस जमीन पर एक बड़ी बिल्डिंग बनकर तैयार है और इस पूरी प्रॉपर्टी की कीमत 500 करोड़ रुपये से ज्यादा है। इस प्रॉप्रटी 2 फ्लोर किराये पर दिए गए हैं, और बाकी के फ्लोर के लिए किराएदार ढूंढे जा रहे हैं।

बांद्रा ईस्ट में यह जमीन नेशनल हेराल्ड के नाम पर मिली थी, लेकिन अखबार का यहां भी कोई नामोनिशान नहीं है। वहीं दूसरी ओर कंपनी को हर महीने करीब 15 लाख रुपये किराया मिल रहा है। किराये की कैलकुलेशन 5,000 रुपये प्रति स्क्वेयर फुट की दर से की गई है, और हर फ्लोर का कार्पेट एरिया 6,500 स्क्वेयर फुट है। AJL कंपनी ने एक मल्टीनेशनल कंपनी JLL रियल एस्टेट को इस बिल्डिंग को किराये पर उठाने का ठेका दिया है। बिल्डिंग के बाहर इस ‘किराये के लिए उपलब्ध’ का बोर्ड लगा था, लेकिन जैसे ही इंडिया टीवी की कैमरा टीम बिल्डिंग से सामने पहुंची, कुछ लोग आए और बोर्ड को हटा दिया।

जिस कंपनी के पास 500 करोड़ रुपये की प्रॉपर्टी सिर्फ मुंबई में हो, 90 करोड़ रुपये का लोन न चुकाने की एवज में उस कंपनी की सारी प्रॉपर्टी को दूसरी कंपनी के हवाले कर दिया जाए जिसमें 76 फीसदी शेयर सोनिया गांधी और राहुल गांधी के पास हैं, तो इसे क्या कहेंगे?

लखनऊ में हेराल्ड हाउस है, जिसमें एक बड़ा-सा शॉपिंग कॉप्लैक्स भी बना, लेकिन इसकी सारी दुकानें बिक पाती या किराए पर दी जातीं, इससे पहले ही मामला बिगड़ गया। लखनऊ के कैसरबाग इलाके से ही 1938 में जवाहरलाल नेहरू ने नेशनल हेराल्ड, नवजीवन और कौमी आवाज अखबार का पब्लिकेशन शुरू किया। 1999 तक अखबार निकलते रहे, लेकिन इसके बाद इन तीनों अखबारों का छपना बंद हो गया। यानी करीब 23 साल से अखबार नहीं छप रहा है। हमारी संवाददाता रुचि कुमार लखनऊ के हेराल्ड हाउस कॉम्प्लैक्स में गईं, जहां प्रशासन ने काम रुकवा दिया था। अब इस शॉपिंग कॉम्प्लेक्स की हालत खराब है। कॉम्प्लेक्स में 6 अन्य दुकानों के साथ एक बीयर की दुकान भी खोली गई है।

हमारी रिपोर्टर ने दुकान के मालिकों से बात की। दुकानदारों ने बताया कि उन्होंने 2007 में AJL से दुकानें खरीदी थीं और कंपनी के चेयरमैन मोतीलाल वोरा थे। उन्हीं के अथॉरिटी लेटर से दुकान की रजिस्ट्री हुई। कुछ दुकानदार ऐसे भी थे जिन्होंने किराए पर दुकानें ली थीं। उनका भी कहा है कि दुकान का किराया सीधे AJL के बैंक अकाउंट में जाता है। कांग्रेस के नेता प्रमोद तिवारी ने कहा, ‘आज कौन-सी कंपनी है जो अपनी बिल्डिंग से सिर्फ अखबार निकालती है? अखबार चलाना बहुत महंगा काम है। अगर आय के अतिरिक्त साधन न हों तो अखबार निकालना मुश्किल हो जाएगा।’

ये तीनों अखबार पिछले 23 साल से नहीं छप रहे, लेकिन अखबार को चलाने के लिए दुकानें बनाकर बेचने, उन्हें किराए पर देने को कैसे जस्टिफाई किया जा सकता है? अखबार तो 1999 में प्रिंट होना बंद हो गया, और दुकानें 2007 में बेची गईं। पैसा किसकी जेब में गया?

2005 में जब भूपेंद्र सिंह हुड्डा हरियाणा के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने पंचकूला के सेक्टर-6 में ‘द एसोसिएट जर्नल लिमिटेड’ को करीब 3,500 स्क्वेयर मीटर का प्लॉट दिया था। यह एक पॉश लोकेशन है, इसके सामने पुलिस हैडक्वार्टर है। यहां शानदार बिल्डिंग बनी है, लेकिन यहां एक भी अखबार नहीं छपता। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि उनकी सरकार इस मामले की जांच करवाएगी।

अब हम सिलसिलेवार ढंग से समझने की कोशिश करते हैं कि AJL की संपत्ति सोनिया और राहुल गांधी के स्वामित्व वाली यंग इंडियन को कैसे दी गई। एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड यानी कि AJL को 1938 में जवाहरलाल नेहरू ने नेशनल हेरल्ड नाम का अखबार चलाने के लिए बनाया था। 1999 से लेकर 2008 के नेशनल हेरल्ड के सारे पब्लिकेशन भारी घाटे की वजह से बंद हो गए। कांग्रेस, जो कि तब केंद्र में सत्ता में थी, ने इसे चलाने की कोशिश शुरू की। पता चला कि कांग्रेस ने AJL को  90 करोड़ रुपया का लोन दिया हुआ था, और वह चुका नहीं सकी। इसके बाद AJL ने अपने सारे शेयर यंग इंडियन कंपनी को 50 लाख रुपये में बेच दिए। यंग इंडियन AJL से जुड़ी 3,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की प्रॉपर्टी का मालिक बन गया।

जब कांग्रेस के नेताओं से सवाल पूछे गए तो उन्होंने बड़ा सीधा-सा जवाब दिया। AJL और यंग इंडियन के बीच जो डीलिंग हुई, जो भी ट्रांजैक्शन हुए, उनकी जानकारी सिर्फ मोतीलाल वोरा के पास थी। अब मोतीलाल वोरा दुनिया में रहे नहीं तो कौन किसको क्या बताए। कांग्रेस के तरफ से दूसरी बात यह कही गई कि यंग इंडियन तो सेक्शन 25 की नो प्रॉफिट कंपनी है, इससे सोनिया गांधी और राहुल गांधी को एक रुपये का भी फायदा नहीं हुआ।

इस पर सवाल उठा कि अगर कोई फायदा नहीं था तो सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने कंपनी बनाई क्यों? अगर बनाई भी तो नेशनल हेरल्ड की मिल्कियत क्यों ली? अगर नेशनल हेरल्ड के पास अलग-अलग शहरो में 3,000 करोड़ रुपये की प्रॉपर्टी है तो इस ट्रांजैक्शन से किसका फायदा होगा? जानकार कहते हैं कि जिनके पास शेयर होंगे, प्रॉपर्टी का कंट्रोल भी उन्हीं के पास होगा। अगर कंट्रोल यंग इंडियन के पास है और इसके 76 फीसदी शेयर राहुल और सोनिया गांधी के पास हैं, तो फिर फायदा किसका होगा? ये सारी बातें जांच का विषय है।

व्यक्तिगत तौर पर मुझे लगता है कि आजादी की लड़ाई लड़ने वाले प्रमुख राजनीतिक दल होने के नाते, और देश पर 60 साल तक राज करने के नाते कांग्रेस को कंपनी खरीदने, उधार देने जैसे काम करने की कोई जरूरत नहीं थी। यह सब एक राजनीतिक पार्टी का काम नहीं है। अब न मोतीलाल वोरा रहे, और न ऑस्कर फर्नांडीज, इसीलिए सोनिया और राहुल गांधी पर इतने सारे सवाल खड़े हुए जिनका जवाब कांग्रेस को देना है। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 04 अगस्त, 2022 का पूरा एपिसोड

Latest India News

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। National News in Hindi के लिए क्लिक करें भारत सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement