पाकिस्तान में प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार खतरे में है । सरकार के खिलाफ लगभग सभी विपक्षी दलों ने हाथ मिला लिया है। 100 से ज्यादा विपक्षी सांसदों ने नेशनल असेंबली में इमरान सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है। इमरान खान को अपनी सरकार बचाने के लिए 342 सदस्यों की नेशनल असेंबली में 172 वोटों की जरूरत है। लेकिन सेना द्वारा नियंत्रित कई छोटी पार्टियां और इमरान की अपनी ही पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के 24 सांसदों ने सरकार के खिलाफ वोट देने की धमकी दी है।
सूत्रों का कहना है कि मुख्य विपक्षी दल पूर्व पीएम नवाज शरीफ के भाई और विपक्ष के नेता शहबाज शरीफ को अगला पीएम चुनने पर राजी हो गए हैं। नवाज शरीफ इन दिनों लंदन में हैं। खबरें हैं कि इमरान खान सेना का समर्थन खो चुके हैं। लेकिन दिखावा के तौर पर सेना ने अभी अपने को तटस्थ रखा है। कागजी तौर पर देखें तो इमरान खान के पास संसद में 176 वोट हैं जो कि एक मामूली बहुमत है। इन 176 सांसदों में से 155 सांसद तो उनकी अपनी पार्टी के हैं, लेकिन इनमें से भी कई सांसद दल बदल चुके हैं। इमरान खान की सरकार को छह छोटी-छोटी पार्टियों के 23 सांसदों का भी समर्थन मिला हुआ है।
अब इस बड़ी चुनौती से निपटने के लिए इमरान खान इन दिनों देश भर में बड़ी-बड़ी रैलियां कर रहे हैं। इन रैलियों में इमरान अपने समर्थकों से यह अपील कर रहे हैं कि वे 27 मार्च को संसद के बाहर होनेवाली रैली में बड़ी संख्या में शामिल हों। इसके जवाब में विपक्ष ने भी 25 मार्च को इस्लामाबाद में मार्च निकालने और धरना देने का ऐलान किया है। इमरान खान मुख्य विपक्षी दलों के गुट पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) का मुकाबला करने के लिए जनता का मूड अपनी ओर करने की कोशिश कर रहे हैं।
इमरान खान ने अपनी रैलियों में नवाज शरीफ को गीदड़ और भगोड़ा बताया, साथ ही वे सभी विपक्षी नेताओं को भ्रष्ट और देशद्रोही बता रहे हैं। इमरान खान ने कहा, 'भगोड़ा और उसकी बेटी सेना के बारे में गलत बातें कहते हैं और शहबाज तो हर किसी की बूट पॉलिश में लगा रहता है।' उधर इन आरोपों का जवाब नवाज शरीफ की बेटी मरियम अपनी रैलियों में देती हैं। मरियम कहती हैं कि इमरान खान नियाजी का 'खेल खत्म हो चुका है', उनकी सरकार नाकाम साबित हुई है।
लेकिन मजे की बात यह है कि जब सरकार जाने वाली है उस वक्त इमरान खान मोदी के मुरीद बन गए हैं। रविवार को अपने खैबर पख्तूनख्वा के मालाकंद इलाके में एक जनसभा को संबोधित करते हुए इमरान ने जो बात कही, उसने बरबस भारतीयों का ध्यान आकर्षित कर लिया। इमरान ने अपने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश नीति की तारीफ की।
उन्होंने कहा, 'मैं अपने पड़ोसी मुल्क हिंदुस्तान की विदेश नीति के लिए उसकी तारीफ करना चाहूंगा। भारत की विदेश नीति आजाद है और इसका एकमात्र उद्देश्य अपनी अवाम की भलाई करना है। हालांकि भारत ने अमेरिका के साथ गठबंधन किया है, और क्वाड ग्रुप का भी हिस्सा है, फिर भी भारत रूस-यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर तटस्थ है। पाकिस्तान के वजीरे आजम ने कहा कि इस वक्त जब दुनिया के ताक़तवर पश्चिमी मुल्कों ने रूस पर तमाम आर्थिक पाबंदियां लगा रखी हैं, उसके बावजूद भारत रूस से सस्ता तेल ख़रीदने जा रहा है। यह भारत की आजाद विदेश नीति का नतीजा है।
सोमवार को भारत के विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने इमरान खान की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा-'भारत की विदेश नीति की बहुत से मुल्कों ने तारीफ की है और ये सब रिकार्ड पर है। ये कहना गलत होगा कि केवल एक नेता ने भारत की विदेश नीति की तारीफ की है।'
एक वक्त था, जब इमरान खान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर नरेंद्र मोदी को हिटलर और नाजी नेता बता रहे थे और अब उनकी विदेश नीति की तारीफ कर रहे हैं, और वो भी ऐसे वक्त जब उनकी सरकार गिरने के कगार पर है। रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने तटस्थ विदेश नीति अपनाई और भारत के हित को सर्वोपरि रखा। मोदी की विदेश नीति को बताने के लिए इतना ही काफी है। नरेंद्र मोदी अमेरिका और पश्चिमी देशों के दबाव में नहीं आए।
यूक्रेन जंग के समय भारत ने अपनी नीति को काफी सन्तुलित रखा। भारत ने न तो रूस का खुलकर विरोध किया और न ही खुले तौर पर रूसी हमले का समर्थन किया। इसी तरह, भारत ने सार्वजनिक रूप से पश्चिम द्वारा उठाए गए कदमों का भी विरोध नहीं किया। भारत ने रूस और यूक्रेन दोनों से लड़ाई खत्म करने और बातचीत की टेबल पर आने की अपील की। एक ग्लोबल लीडर के रूप में नरेंद्र मोदी की छवि ने अब चमक गई है, जिसे इमरान खान जैसे मोदी के प्रखर विरोधी भी नजरअंदाज नहीं कर सकते थे।
सार्वजनिक मंच पर हजारों लोगों की भीड़ के सामने अपने प्रधानमंत्री के मुंह से भारत की विदेश नीति की तारीफ सुनकर पाकिस्तान की अवाम और वहां के नेता हैरान हैं।
मैंने पिछले कुछ समय से देखा है कि जब से इमरान खान प्रधानमंत्री बने हैं, उन्होंने नरेन्द्र मोदी को कॉपी करने की हरसंभव कोशिश की। मोदी के नक्शे कदम पर चल कर इमरान ने पाकिस्तान में भी स्वच्छता अभियान चलाया, फिर भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग शुरू की। फिजूलखर्ची से बचने के लिए मंत्रियों को रैगुलर फ्लाइट से सफर करने को कहा और इसके बाद वज़ीरे आज़म को मिले तमाम कीमती तोहफों की उसी तरह नीलामी की, जिस तरह 2014 में मोदी ने किया था। लेकिन इमरान खान मोदी के काम और उनकी योजनाओं की नकल करके भी मोदी जैसे लोकप्रिय नहीं हो पाए।
ऐसा भी नहीं है कि इमरान ख़ान दिल से मोदी की तारीफ कर रहे हैं। हकीकत यह है कि मोदी की विदेश नीति की तारीफ इमरान खान ने मजबूरी में की है। उनके देश की आर्थिक हालत बहुत ख़राब है और इमरान की कुर्सी खतरे में है। पाकिस्तान पिछले कुछ सालों से चीन के पीछे खड़ा है। अमेरिका से मदद पाने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार है। जब अमेरिका से बात नहीं बनी तो इमरान रूस का चक्कर भी लगा आए। रूस के राष्ट्रपति पुतिन से भी मिले लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। जिस वक्त इमरान पुतिन से मिलने रूस पहुंचे थे उसी वक्त रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया था। इमरान को खाली हाथ लौटना पड़ा।
वहीं हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी न किसी के दबाव में आए और न किसी की मिन्नतें कीं। यहां तक कि अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद रूस से S-400 मिसाइलें खरीदीं। मोदी ने उन देशों के साथ भी बेहतर संबंध कायम किए जो कभी पाकिस्तान के करीबी हुआ करते थे। सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, ओमान, जॉर्डन, ये सारे मुल्क आज भारत के करीब हैं। सऊदी अरब ने पाकिस्तान को क़र्ज़ देना बंद कर दिया है। संयुक्त अरब अमीरात अब पाकिस्तान के कहने पर कश्मीर का मुद्दा नहीं उठाता है।
भारत के प्रति बहुत से इस्लामिक देशों का दृष्टिकोण अब बदल चुका है। हालात यह है कि अब पाकिस्तान के विपक्ष के नेता भी यह कह रहे हैं कि इमरान ख़ान मोदी की नजीर न दें। पहले ये बताएं कि उन्होंने खुद पाकिस्तान का क्या हश्र कर दिया कि अब दुनिया पाकिस्तान पर हंस रही है।
इमरान खान को इस बात का अहसास हो गया है कि उनकी कियादत के खिलाफ बगावत हो चुकी है और अब सरकार बचाना मुश्किल है। इमरान कभी फौज से मदद मांगते हैं तो कभी बगावत करने वाले सांसदों को डराने की कोशिश करते हैं, कभी अदालत से उम्मीद करते हैं कि वह दलबदल करने वालों से संसद में वोट देने का हक छीन ले। लेकिन पाकिस्तान मामलों के जानकार कहते हैं कि पाकिस्तान में फौज ने अगर एक बार फैसला कर लिया कि वजीरे आजम को हटाना है तो फिर उन्हें कोई नहीं बचा सकता।
पाकिस्तान 75 साल पहले आजाद हुआ था लेकिन वहां एक भी निर्वाचित प्रधानमंत्री पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सका। पाकिस्तान में सरकार फौज के जनरल बनाते हैं औऱ जब चाहें हटा देते हैं। इमरान इस बात की भी शिकायत नहीं कर सकते क्योंकि वह भी फौज की मदद से वजीरे आजम बने थे। अब जनरल बाजवा नाराज हैं इसलिए इमरान का बचना नामुमकिन है। अब सिर्फ चर्चा इस बात को लेकर है कि क्या फौज एक और कठपुतली सरकार बनाएगी या फिर जनरल बाजवा सीधे सरकार का कंट्रोल अपने हाथ में लेंगे। (रजत शर्मा)
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