मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में कांग्रेस नेता कमल नाथ ने गुरुवार को कहा कि 'अयोध्या में बन रहा राम मंदिर केवल बीजेपी का नहीं, यह हमारे देश का मंदिर है। हर भारतीय का है। यह हमारे सनातन धर्म का बहुत बड़ा चिह्न है। ये मंदिर किसी पार्टी का नहीं है। ये तो ऐसे बात कर रहे हैं जैसे ये मंदिर बीजेपी का है। ' कमलनाथ ने कहा, ' प्रभु राम पर बीजेपी का कॉपी राइट थोड़े है, राम तो सबके हैं, राम मंदिर भी सबका है, इसलिए इस मामले में बीजेपी की नहीं चलेगी।' दरअसल, जब से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्विटर पर लिखा कि वो 22 जनवरी को अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम में शामिल होंगे, इस मुद्दे पर सियासत शुरू हो गई। रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की तरफ से प्रधानमंत्री को प्राण प्रतिष्ठा के समारोह का न्योता दिया गया। उसके बाद से ही विरोधी दलों के नेताओं ने पूछना शुरू कर दिया कि मंदिर सिर्फ बीजेपी का नहीं है, तो फिर सिर्फ बीजेपी के नेताओं को ही आमंत्रित क्यों किया जा रहा है?
कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने कहा कि 'भगवान राम को एक ही पार्टी तक सीमित क्यों किया जा रहा है, न्योता सभी को भेजना चाहिए।' सलमान खुर्शीद के अलावा अधीर रंजन चौधरी, नाना पटोले, संजय राउत जैसे तमाम नेताओं ने यही सवाल उठाया। सबने एक जैसी ही बात कही। बीजेपी का कोई नेता मुद्दे पर कुछ नहीं बोला लेकिन विपक्ष को जबाव दिया विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष आलोक कुमार ने। उन्होंने याद दिलाया कि कांग्रेस ने 2007 में राम सेतु मामले में 'सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर भगवान राम को काल्पनिक चरित्र बताया था और उन्हें ऐतिहासिक मानने से इनकार कर दिया था, उनके अंदर रामभक्ति अचानक कैसे जाग गई।'
रामजन्म भूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने कहा कि उन्होंने किसी पार्टी के नेताओं को न्योता नहीं भेजा है, इस ऐतिहासिक मौके पर देश भर के चार हज़ार से ज्यादा साधु-संत और समाज के अलग-अलग क्षेत्रों के जाने-माने लोग मौजूद रहेंगे। जब चंपत राय से पूछा गया कि विरोधी दलों के नेता कह रहे हैं कि इस कार्यक्रम को बीजेपी का प्रोग्राम बना दिया गया है, तो चंपत राय ने कहा, "जिसके घर में लड़के की शादी है, बारात में किसे बुलाना है, ये वही तय करेंगे, कोई और नहीं।" अब किसी को इस बात पर हैरानी नहीं होती कि कांग्रेस के नेता मांग कर रहे हैं, उन्हें भी रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के समारोह में आमंत्रित किया जाए। कांग्रेस के नेता कह रहे हैं कि मोदी राम मंदिर को चुनाव का मुद्दा बना रहे हैं जबकि राम तो सब के हैं लेकिन शायद कांग्रेस के लोग इतिहास भूल गए हैं। राजीव गांधी ने शाहबानो के केस में मुसलमानों की नाराजगी दूर करने के लिए कानून बनाकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला बदला। फिर हिन्दुओं को मनाने के लिए रामलला का ताला खुलवाया। ये चुनावी पैंतरा ही था।
मुझे अच्छी तरह याद है कि 1989 में चुनाव से पहले वी पी सिंह ने कांग्रेस समर्थक शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के ज़रिए राममंदिर का शिलान्यास करवाने की कोशिश की थी। शंकराचार्य अयोध्या के लिए निकल चुके थे लेकिन मुलायम सिंह यादव धर्मनिरपेक्षता के पक्षधर बनना चाहते थे। उन्होंने मुस्लिम वोट के चक्कर में स्वरूपानंद सरस्वती को गिरफ्तार करा लिया। इसके बाद लालू प्रसाद यादव ने भी वोट के चक्कर में रथयात्रा पर निकले लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार करने का आदेश दिया था। इसके बाद वो वक्त भी आया जब कांग्रेस ने कोर्ट में प्रभु राम को काल्पनिक चरित्र बता दिया था। इसीलिए अब ये देखकर हैरानी होती है कि उन्हीं पार्टियों के सारे नेता रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम में शामिल होने को आतुर हैं। इस बात की चर्चा भी गर्म है कि राहुल गांधी के सहयोगी अयोध्या की रेकी कर आए हैं। अब किसी दिन राहुल भी अयोध्या में राम मंदिर के दर्शन करते दिखाई देंगे। ये राजनीतिक सोच में बड़ा बदलाव है। एक ज़माने में यही नेता भगवान राम का नाम लेने से कतराते थे, उन्हें लगता था कि उनके मुस्लिम वोटर नाराज़ हो जाएंगे। अब ज़माना बदल गया है। सब राम का नाम लेते हैं। अब तो सबको लगता है कि बीजेपी राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा के अवसर को भव्य बनाएगी। प्रधानमंत्री मोदी की उपस्थिति में रामलला मंदिर में विराजमान होंगे, इसकी गूंज पूरे देश में सुनाई देगी। अब विरोधी दलों को लगता है कि बीजेपी को चुनाव में इससे फायदा होगा। इसीलिए उनके सुर बदले हैं और कमलनाथ जैसे नेता कह रहे हैं, 'राम मंदिर तो सबका है, सिर्फ बीजेपी का नहीं'। ज़माना वाकई में बदल गया है।
क्या महुआ की संसद की सदस्यता जाएगी?
पैसे लेकर सवाल पूछने के केस में संसद की एथिक्स कमेटी ने तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा के खिलाफ जांच शुरू कर दी। शिकायत करने वाले बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे और वकील जय अनंत गुरुवार को कमेटी के सामने पेश हुए और अब महुआ को कमेटी ने 31 अक्टूबर को पेश होने को कहा है। एथिक्स कमेटी के अध्यक्ष विनोद सोनकर ने कहा कि महुआ को उनका पक्ष रखने का मौका दिया जाएगा। इसके साथ ही कमेटी ने गृह और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालयों से महुआ मोइत्रा, दर्शन हीरनंदानी और जय अनंत के बीच हुई बातचीत का ब्यौरा मांगा है। महुआ मोइत्रा पर फेवर लेकर पार्लियामेंट में सवाल पूछने के जो आरोप अब तक मीडिया में थे, अब वो संसद की Ethics कमेटी के सामने गवाह समेत पेश कर दिए गए हैं। Ethics कमेटी को अगर इस बात के सबूत मिल गए कि महुआ के नाम पर संसद के पोर्टल पर पार्लियामेंट के लिए सवाल दुबई से पोस्ट किए गए थे, अगर इस बात के सबूत मिले कि महुआ को एमपी के तौर पर मिला लॉगिन दुबई में बैठे दर्शन हीरानंदानी ने ऑपरेट किया था, तो उनके खिलाफ कमेटी कार्रवाई कर सकती है। महुआ की पार्टी तृणमूल कांग्रेस अभी 'देखो और इंतज़ार करो' की नीति अपना रही है, अगर कमेटी ने महुआ को दोषी पाया तो उनकी संसद की सदस्यता भी जाएगी और तृणमूल कांग्रेस भी उन्हें बाहर कर देगी। (रजत शर्मा)
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