राहुल गांधी की कोर कमेटी के सदस्य और डॉ मनमोहन सिंह की कैबिनेट में मंत्री रह चुके आरपीएन सिंह का इस्तीफा उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका है। कांग्रेस को उसके नेता और कार्यकर्ता एक-एक कर छोड़ते चले जा रहे हैं। पार्टी का साथ छोड़ने वालों में विधानसभा चुनावों में टिकट पाने वाले कुछ उम्मीदवार भी शामिल हैं। इन उम्मीदवारों ने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी या समाजवादी पार्टी जॉइन कर ली। आरपीएन सिंह 32 साल तक कांग्रेस में रहे, लेकिन गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर उन्होंने यह कहते हुए बीजेपी में शामिल होने का फैसला किया कि वह एक नई राह पर चलना चाहते हैं।
आरपीएन सिंह कुशीनगर के राजपरिवार से आते हैं और OBC में आने वाली सैंथवार कुर्मी जाति से ताल्लुक रखते हैं। वह पडरौना सीट से 3 बार विधायक भी रह चुके हैं। सिंह लोकसभा चुनाव में कुशीनगर सीट से पिछड़े वर्ग के कद्दावर नेता स्वामी प्रसाद मौर्य को हरा चुके हैं। अब संभावना यह जताई जा रही है कि बीजेपी छोड़कर सपा में शामिल हुए मौर्य का सामना विधानसभा चुनाव में आरपीएन सिंह से होगा। गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात के बाद सिंह बीजेपी में शामिल हो गए। वह यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, दोनों डिप्टी सीएम और राज्य बीजेपी प्रमुख स्वतंत्र देव सिंह की उपस्थिति में पार्टी में शामिल हुए।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, जो यूपी बीजेपी के प्रभारी भी हैं, ने खुलासा किया कि वह 2004 से ज्योतिरादित्य सिंधिया और आरपीएन सिंह को बीजेपी में शामिल होने के लिए मनाने में लगे हुए थे, और आखिरकार उनकी कोशिशें सफल हुईं। एक दिन पहले ही कांग्रेस ने आरपीएन सिंह को अपना स्टार प्रचारक बनाया था, लेकिन उनके अचानक इस्तीफा देने से पार्टी को बड़ा झटका लगा है। कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने आरपीएन सिंह पर निशाना साधते हुए उन्हें कायर कहा। यूपी कांग्रेस प्रमुख अजय कुमार लल्लू ने कहा कि सिंह ‘हैवीवेट’ नहीं बल्कि ‘डेडवेट’ थे और उनके जाने से कोई खास प्रभाव नहीं पड़ेगा। स्वामी प्रसाद मौर्य ने दावा किया कि उन्होंने एक बार आरपीएन सिंह की मां को हराया था और उनके करीबी उम्मीदवारों को भी 2 बार हरा चुके हैं।
कांग्रेस के नेता आरपीएन सिंह को भले ही 'डेडवेट' कहें, लेकिन हकीकत यही है कि वह राहुल गांधी की मंडली के 4 मुख्य स्तंभों में से एक थे। जब राहुल गांधी ने 2016 में देवरिया जिले से अपनी ‘खाट यात्रा’ शुरू की थी, तब आरपीएन सिंह ने आगे बढ़कर मोर्चा संभाला था। वह राहुल की कोर टीम के सदस्य थे, जिसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद शामिल थे। अब ये तीनों युवा नेता बीजेपी में हैं।
राहुल अब अपने पूर्व साथियों को डरपोक कह सकते हैं, कायर कह सकते हैं, लेकिन आम आदमी तो पूछेगा ही कि इन ‘कायरों’ को केंद्र में मंत्री क्यों बनाया गया? कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को आज आत्ममंथन करना चाहिए कि पंजाब के कैप्टन अमरिंदर सिंह और असम के हिमंत बिस्वा सरमा जैसे उनके पुराने दिग्गज बीजेपी में क्यों शामिल हो गए? जहां तक बीजेपी नेतृत्व का सवाल है, वह निश्चित रूप से आरपीएन सिंह नाम की मिसाइल का इस्तेमाल स्वामी प्रसाद मौर्य पर हमला करने के लिए करेगा, क्योंकि मौर्य लगातार ये दावा कर रहे हैं कि वह यूपी के चुनावों में बीजेपी को हराकर ही दम लेंगे।
मुझे नहीं लगता कि कांग्रेस नेतृत्व कुछ भी सबक सीखना चाहेगा। मंगलवार की रात जब यह घोषणा की गई कि पार्टी के नेता गुलाम नबी आजाद को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया है, तो पार्टी के एक अन्य नेता जयराम रमेश ने ट्विटर पर कटाक्ष किया। जयराम रमेश ने लिखा, ‘यही सही चीज थी करने के लिए। वह आजाद रहना चाहते हैं गुलाम नहीं।’ अब यह पाठकों के ऊपर है कि वे एक कांग्रेसी नेता के गुलाम नबी आजाद, जो कि आंतरिक-पार्टी लोकतंत्र का आह्वान करने वाले ग्रुप के दिग्गजों में से एक हैं, के बारे में किए गए इस ट्वीट का क्या मतलब निकालते हैं। (रजत शर्मा)
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