योगी आदित्यनाथ के चक्कर में कांग्रेस के नेताओं में झगड़ा शुरू हो गया। हिमाचल के लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने ऐलान किया कि योगी आदित्यनाथ ने यूपी में खाने पीने की दुकानों में नेम प्लेट और मालिक का नाम पता लिखने को जिस तरह अनिवार्य बनाया है, उसी तरह हिमाचल प्रदेश में भी खाने पीने के दुकानदारों और रेहड़ी पटरी वालों को नेमप्लेट लगाना जरूरी होगा। विक्रमादित्य सिंह के इस फैसले को लेकर कांग्रेस के तमाम नेताओं को आपत्ति है, जैसे टीएस सिंह देव, तारिक अनवर और इमरान प्रतापगढ़ी। तमाम नेताओं ने कांग्रेस हाईकमान से शिकायत की और हिमाचल सरकार से अपना फैसला वापस लेने की मांग की। हालत ये हो गई शाम होते होते हिमाचल प्रदेश सरकार की तरफ से ऐलान हो गया कि इस तरह का कोई फैसला नहीं हुआ है, इस मामले में विधानसभा की कमेटी बनी है, वही जो तय करेगी, वही होगा। इसके बाद विक्रमादित्य सिंह को भी कहना पड़ा कि फिलहाल कोई फैसला नहीं लिया गया है। कमेटी रेहड़ी पटरी और दुकानदारों को आईकार्ड जारी करेगी, और वही आईकार्ड सबको डिस्प्ले करना होगा। लेकिन कांग्रेस के नाराज नेताओं को सिर्फ इतने से संतोष नहीं हैं, वे चाहते हैं कि कांग्रेस हाईकमान इस मामले में दखल दे, ये पता लगाए कि आखिर विक्रमादित्य सिंह ने बिना सलाह मशविरे के इस तरह के नाज़ुक मसले पर बयान क्यों दे दिया। लेकिन सवाल ये है कि क्या विक्रमादित्य सिंह ने वाकई में बिना सोचे विचारे फैसला सुना दिया। अगर वह कुछ करना ही चाहते थे तो फिर योगी आदित्यनाथ का नाम लेकर उन्हें श्रेय देने की जरूरत क्या थी?
शहरी विकास, लोक निर्माण और नगर निगम के अधिकारियों की मीटिंग में विक्रमादित्य सिंह ने कहा था कि शिमला में हुए विरोध प्रदर्शन, अपराधों की बढ़ती संख्या को देखते हुए सरकार ने फैसला किया है कि रेहड़ी पटरी वालों और दुकानदारों को अपना नाम और पहचान ऐसी जगह लिखकर रखनी होगी, जो सबको आसानी से दिखे। चूंकि यूपी में योगी आदित्यनाथ ने भी दो दिन पहले ही खाने पीने की दुकानों के मालिकों को अपना नाम पता और फोन नंबर डिस्प्ले करने का निर्देश दिया था, खाने पीने का सामान बेचने वाले हर दुकानदार और वहां काम करने वालों का वेरिफिकेशन कराने, दुकान में CCTV कैमरे लगाने और साफ सफाई के मानक पूरे करने के आदेश दिए थे, विक्रमादित्य सिंह ने कहा कि जो फैसला यूपी सरकार ने किया है, उसी तर्ज पर उन्होंने भी हिमाचल में दुकानदारों का वेरिफिकेशन, उनके नाम पते डिस्प्ले करने को अनिवार्य बनाने का आदेश दिया है ताकि हिमाचल के लोगों के हितों की रक्षा की जा सके। विक्रमादित्य सिंह ने सीधी और साफ बात की लेकिन उनकी ये साफगोई कांग्रेस के नेताओं को बुरी लग गई। सबसे ज्यादा बुरा ये लगा कि उन्होंने अपने आदेश को यूपी से जोड़ दिया, योगी का नाम ले लिया, ये कह दिया कि जिस तरह यूपी में हुआ, वैसा वो हिमाचल में भी करेंगे। इसी बात पर कांग्रेस के नेता भड़क गए। विक्रमादित्य के एलान को बीजेपी की नकल करार दिया।
कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने राहुल गांधी से बात करके विक्रमादित्य सिंह की शिकायत की, फैसला वापस लेने की मांग की। कांग्रेस के एक और सांसद तारिक अनवर ने कह दिया कि वो कांग्रेस अध्यक्ष को चिट्ठी लिख कर इस मामले में दखल देने की मांग करेंगे। छत्तीसगढ़ के पूर्व उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव ने भी विक्रमादित्य सिंह के फैसले पर आपत्ति जताई। टीएस सिंहदेव ने कहा कि अगर पहचान जरूरी है, तो इसके लिए नियम कानून पहले से ही हैं, दुकानदारों को नगर निगम से लाइसेंस मिलता है। सिंहदेव ने कहा कि ऐसा लगता है कि किसी एक वर्ग को अलग-थलग करने की नीयत से इस तरह की बातें हो रही हैं। जब विवाद बढ़ा तो विक्रमादित्य सिंह की मां और हिमाचल कांग्रेस की अध्यक्ष प्रतिभा सिंह उनके बचाव में सामने आईं। प्रतिभा सिंह ने कहा कि वो सरकार के फ़ैसले के साथ हैं। लेकिन पार्टी हाईकमान की तरफ से संदेश पहुंच गया। विक्रमादित्य सिंह और प्रतिभा सिंह दोनों को दिल्ली तलब किया गया। विक्रमादित्य सिंह से कहा गया कि वो ऐसे बयान न दें कि विपक्षी दलों को मौक़ा मिले, पार्टी के नेता नाराज़ हों। इसके बाद विक्रमादित्य सिंह अपने बयान से पीछे हट गए। उन्होंने कहा कि उनके आदेश का यूपी से कोई लेना देना नहीं है, हिमाचल प्रदेश एक अलग राज्य है। वह तो हाई कोर्ट के ऑर्डर का ही अनुपालन कर रहे हैं। विक्रमादित्य सिंह ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में किसी से भी भेदभाव नहीं होगा, देश का कोई भी नागरिक हिमाचल में आकर दुकान लगा सकता है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने भी सफ़ाई दी। कहा कि अभी तो इस मामले पर सिर्फ़ बातचीत हो रही है। एक सर्वदलीय कमेटी बनाई गई है। कमेटी सभी से बात करके कैबिनेट को अपनी सिफ़ारिश देगी।
हिमाचल प्रदेश के मुख्य संसदीय सचिव संजय अवस्थी ने अपनी सरकार के मंत्री विक्रमादित्य सिंह के बयान को उनकी निजी राय बताई। संजय अवस्थी ने कहा कि विक्रामदित्य सिंह के बयान को गंभीरता से लेने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि अभी तो सरकार ने इस पर कोई चर्चा ही नहीं की। हिमाचल में कांग्रेस ने अपने मंत्री का आइडिया ड्रॉप क्यों करवाया? क्या सिर्फ इसीलिए कि ये आइडिया योगी का था? क्या सिर्फ इसीलिए कि खाने पीने की दुकानों पर नाम लगाने की स्कीम यूपी में लागू हुई थी? कांग्रेस को तो ये शिकायत नहीं होनी चाहिए क्योंकि कांग्रेस हमेशा से ये कहते रही है कि मोदी कांग्रेस की योजनाओं को लागू करते हैं सिर्फ नाम बदलते हैं। कांग्रेस का तो दावा है, स्वच्छ अभियान भी हमारा, जनधन भी हमारा, मेक इन इंडिया भी हमारा और यूपी में तो अखिलेश यादव योगी सरकार की हर योजना पर अपना कॉपीराइट जताते हैं। तो फिर शिमला में तूफान खड़ा करने की क्या जरूरत थी? इसकी असली वजह है, मुस्लिम वोटों के खोने का डर। कांग्रेस के जिन नेताओं ने सबसे पहले आवाज उठाई, इमरान प्रतापगढ़ी और तारिक अनवर जैसे नेता मुस्लिम वोटों के चैंपियन हैं। उन्हें लगता है कि योगी के रास्ते पर चले तो मुसलमान कांग्रेस से नाराज हो जाएंगे। इसीलिए मंत्री को अपने बयान से पलटवा दिया। पहले भी शिमला की मस्जिद को कांग्रेस के मंत्री ने ही गैरकानूनी बताया था। विधानसभा में खड़े होकर कांग्रेस के मंत्री ने ही शिमला की शांति पर खतरे को लेकर आगाह कराया था लेकिन अगले दिन वो भी अपनी बात से पलट गए। विक्रमादित्य के बयानों और फिर सुक्खू सरकार की सफाई से इतना तो साफ है कि दुकानों पर साफ सफाई कराने और नेमप्लेट लगाने का ये आदेश लागू नहीं होगा। (रजत शर्मा)
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