
बिहार में चुनाव से पहले मुस्लिम वोटों को गोलबंद करने की बड़ी कोशिश हुई। बहाना बनाया गया वक्फ संशोधन बिल को। पटना के गर्दनीबाग में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने बिल के खिलाफ बड़े धरने का आयोजन किया। इस धरने को RJD, कांग्रेस, वामपंथी दल, AIMIM और प्रशान्त किशोर की जनसुराज पार्टी ने समर्थन दिया। लालू यादव समेत सभी पार्टियों के नेता इसमें शामिल हुए। मंच से एलान किया गया कि अगर वक्फ बिल संसद में पास होता है, तो देश भर के मुसलमान NDA में शामिल पार्टियों से दूरी बना लें। खासतौर से बिहार चुनाव में नीतीश कुमार, चिराग पासवान, जीतन राम मांझी की पार्टियों का बॉयकॉट करें। JD-U, लोकजनशक्ति पार्टी और मांझी की HAM पार्टी के नेताओं का हुक्का पानी बंद करें। बिहार के मुसलमानों से कहा गया कि ईद से पहले बीजेपी की तरफ से मुसलमानों के घर में जो सौगात-ए-मोदी भेजी जा रही है, उसे कबूल न करें क्योंकि मोदी वक्फ बिल लाकर मुसलमानों की संपत्तियों को हड़पने की साजिश कर रहे हैं। वक्फ बिल का विरोध करने वालों की मीटिंग पटना में क्यों हुई, मीटिंग करने वालों ने इसकी वजह छुपाने की ज़रा भी कोशिश नहीं की। उन्होंने बता दिया कि वक्फ बोर्ड की हिमायत करने वाले मौलाना नीतीश कुमार, जीतनराम मांझी और चिराग पासवान को डराने गए थे। ये धमकी देने गए थे कि इन नेताओं ने वक्फ बिल का विरोध नहीं किया, BJP का साथ नहीं छोड़ा तो उन्हें मुसलमानों के वोट नहीं मिलेंगे। बिहार में मुस्लिम वोटर 18 प्रतिशत से ज्यादा हैं। 243 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर हार-जीत तय करता है। नीतीश कुमार के लिए महादलित और मुस्लिम कॉम्बिनेशन कई चुनावों से काम करता रहा है। बीजेपी के साथ गठबंधन के बावजूद मुसलमान उन्हें समर्थन देते आए हैं। इसीलिए नीतीश कुमार, मांझी और चिराग पासवान ने मुस्लिम बोर्ड की धमकी की कोई परवाह नहीं की। बीजेपी के नेता मुसलमानों को ये समझा रहे हैं कि वक्फ प्रॉपर्टी गिने-चुने अमीर मुसलमानों का मसला है। गरीब मुसलमानों का वक्फ की प्रॉपर्टी से कोई लेनादेना नहीं है। इसीलिए आग दोनों तरफ बराबर लगी है और बिहार में जबतक चुनाव है, इसकी गूंज हर रोज़ सुनाई देगी।
पंजाब में ड्रग्स सेंसस : एक अच्छा कदम
भगवंत मान की सरकार अब पंजाब में ड्रग्स सेंसस कराएगी। सरकारी कर्मचारी घर-घऱ जाएंगे और पता लगाएंगे कि परिवार का कोई सदस्य ड्रग एडिक्ट तो नहीं है। पंजाब में नशे के आदी लोगों का पूरा ब्यौरा जुटाया जाएगा, उसके बाद उनके पुनर्वास का इंतजाम भी सरकार करेगी। मान की सरकार ने विधानसभा में जो बजट पेश किया है उसमें ड्रग्स सेंसस के लिए 150 करोड़ रुपए रखे हैं। पंजाब के वित्त मंत्री हरपाल चीमा ने कहा कि ड्रग सेंसस से सरकार को पता चलेगा कि पंजाब में कितने ड्रग एडिक्ट हैं, सेंसस से मिले डेटा की मदद से ड्रग्स की समस्या से निपटने की असरदार रणनीति बनाई जाएगी। पाकिस्तान से ड्रग्स की स्मगलिंग रोकने के लिए पंजाब सरकार पांच हज़ार होमगार्ड्स की भर्ती करेगी। भगवन्त मान सरकार ने बजट में इसके लिए 110 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं। पंजाब में ड्रग माफिया के खिलाफ अगर एक्शन होता है तो ये अच्छी बात है। देर आए, दुरुस्त आए। पिछले हफ्ते राज्यसभा में अमित शाह ने ड्रग्स के बारे में जो बताया था, वो चौंकाने वाला है।अमित शाह ने 2004 से 2014 के कांग्रेस राज और 2014 से 2025 की मोदी सरकार के काम का तुलनात्मक ब्यौरा दिया। कांग्रेस के 10 साल में 25 लाख किलो ड्रग्स जब्त हुआ था जिसकी कीमत 40 हजार करोड़ रु. थी। जबकि पिछले 10 साल में एक करोड़ किलो से ज्यादा ड्रग्स जब्त हुआ, जिसकी कीमत 1.5 लाख करोड़ रु.थी। अमित शाह ने बताया ये जांच के तरीके में बदलाव का नतीजा है। कांग्रेस के 10 साल में तीन लाख 36 हजार किलो ड्रग्स जलाए गए थे। पिछले 10 साल में 31 लाख किलो ड्रग्स जलाया गया। अमित शाह का कहना है कि कांग्रेस के समय ड्रग माफिया के खिलाफ 1 लाख 73 हजार मामले दर्ज हुए थे जबकि पिछले 10 साल में 6 लाख 56 हजार मामले दर्ज हुए। बात सिर्फ आंकड़ों की नहीं है। अमित शाह ने जो नीति बनाई है, उसमें जो ड्रग्स लेता है, उसे विक्टिम माना जाता है...और ड्रग का व्यापार करने वाले को गुनहगार माना जाता है। पहले जिसके पास ड्रग की पुड़िया मिलती थी, उसे पकड़ा जाता था। अब पुड़िया बनाकर सप्लाई करने वाले को पकड़ा जाता है। मुझे लगता है कि ये..एक वेलकम चेंज है.जिसकी तारीफ होनी चाहिए।
पुलिस ने जज के घर से मिले कैश के मामले में देरी क्यों की?
दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवन्त वर्मा के केस में पुलिस की एंट्री हो गई। दिल्ली पुलिस की एक टीम जस्टिस वर्मा के घर पहुंची और उस स्टोर रूम को सील कर दिया जिसमें 14 मार्च को आग लगी थी और भारी मात्रा में जले हुए नोटों की बोरियां मिली थी। पुलिस ने उन कमरे की वीडियोग्राफ़ी कराई और फिर स्टोर रूम को सील कर दिया। बताया गया कि इस केस में पुलिस की एंट्री और स्टोर रूम की सीलिंग सुप्रीम कोर्ट की तरफ से गठित जांच समिति के निर्देश पर हुई। बुधवार को जब जज के घर पुलिस ने उस स्टोर को सील किया जहां जले हुए नोट मिले थे तो सबने पूछा कि पुलिस ने इतनी देर क्यों की, ये काम तो पहले दिन होना चाहिए था। लेकिन इस मामले में पुलिस की मजबूरी समझनी चाहिए। अगर किसी जज के खिलाफ कार्रवाई करनी हो तो पुलिस के हाथ वाकई बंधे हुए हैं। ये बंधन लगाया था, जस्टिस वैंकटचलैया ने 1994 में। इसके मुताबिक, पुलिस न तो किसी जज के खिलाफ FIR कर सकती है, न मुकदमा दर्ज कर सकती है। अगर जज हाईकोर्ट का है, तो हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से अनुमति लेनी पड़ेगी और अगर सुप्रीम कोर्ट का जज है, तो भारत के मुख्य न्यायाधीश से पूछना पड़ेगा। जजों के मामले में पुलिस पर और भी पाबंदियां हैं। नियमों के मुताबिक, पुलिस किसी जज को गिरफ्तार नहीं कर सकती, जज से न बयान लिया जा सकता है, न पंचनामा किया जा सकता है, न ही मेडिकल टेस्ट कराया जा सकता है, जबतक कि उनका लीगल एडवाइजर मौजूद न हो और जबतक ऐसा करने की अनुमति न हो। तो मोटी बात ये है कि किसी भी जज के खिलाफ एक्शन लेने से पहले पुलिस को दस बार सोचना पड़ता है, अनुमति लेनी पड़ती है। इसीलिए जब जज साहब के घर में कैश मिलने की बात आई, जले हुए नोट का वीडियो दिखाई दिया, तो मौके पर पुलिस कुछ नहीं कर पाई। न बयान ले पाई, न पंचनामा कर पाई। अब भी पुलिस जो एक्शन ले पा रही है, वो सुप्रीम कोर्ट के नियुक्त किए गए तीन जजों के निर्देश पर है, उनकी सहायता करने के लिए है। इसीलिए इस मामले में पुलिस को दोष कैसे दिया जा सकता है? (रजत शर्मा)
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