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Rajat Sharma's Blog | वक़्फ कानून में बदलाव : इसकी ज़रूरत क्या है?

कांग्रेस ने 2013 में वक्फ एक्ट में जो बदलाव किए, वक्फ बोर्ड को जो ज्यादा अधिकार दिए, उसका असर ये हुआ कि वक्फ की प्रॉपर्टीज की संख्या 4 लाख 69 हजार से बढ़कर 8.5 लाख से ज्यादा हो गई।

Written By: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Updated on: August 10, 2024 6:20 IST
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Image Source : INDIA TV इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ रजत शर्मा।

सरकार ने वक्फ अधिनियम में बदलाव का बिल लोकसभा में पेश कर दिया। इस कानून का असर 8.5 लाख जायदाद की मिल्कियत, प्रबंध और कब्जे पर होगा। बिल को सरकार ने संयुक्त संसदीय समिति के पास भेज दिया है। पता ये लगा है कि तेलुगु देशम पार्टी, जनता दल-यूनाइटेड और लोकतांत्रिक जनता पार्टी (चिराग) ने बीजेपी के नेताओं से कहा था कि इस बिल को लेकर भ्रम फैलाया गया है। इसलिए इसे जल्दीबाजी में पास कराने के बजाए स्टैंडिंग कमेटी या संयुक्त संसदीय समिति के पास विचार के लिए भेज दिया जाए। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, शरद पवार की एनसीपी, DMK, नेशनल कॉन्फ्रेंस, मुस्लिम लीग और असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM सबने मुसलमानों की हिमायत की, वक्फ एक्ट में बदलाव का खुलकर विरोध किया। विपक्ष ने इस मुद्दे पर एकजुट होकर कहा कि बदलाव के पीछे सरकार की नीयत साफ नहीं हैं, सरकार वक्फ की जायदाद हड़पना चाहती है, इसलिए वक्फ एक्ट में कोई बदलाव मंजूर नहीं होगा। किसी ने इसे संविधान के खिलाफ बताया, किसी ने कहा कि वक्फ एक्ट में बदलाव, सरकार के अधिकार क्षेत्र के बाहर है। सरकार इस तरह का बिल लाकर संघीय ढांचे को तोड़ रही है। किसी ने कहा कि ये हिन्दू राष्ट्र की दिशा में सरकार का अगला कदम है। इस तरह के तमाम आरोप लगाए गए। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजीजू ने वक्फ बोर्ड को लेकर दो बिल सदन में पेश किए। पहला बिल था वक्फ संशेधन बिल 2024 और दूसरा था, मुसलमान वक्फ रिपील बिल 2024।

चर्चा की शुरुआत की कांग्रेस सांसद के सी वेणुगोपाल ने कहा कि जब मंदिरों का प्रबंधन हिन्दू करते हैं, उनके बोर्ड में कोई मुसलमान नहीं होता, तो वक्फ प्रॉपर्टी के मैनेजमेंट में दूसरे धर्मों के लोगों क्यों घुसाया जा रहा है, ये मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है। असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि संसद को वक्फ पर कानून बनाने का अधिकार ही नहीं है, ये बिल संविधान के अनुच्छेद 14,15 और 25 का उल्लंघन है। ये बिल मनमाना और बांटने वाला है, ये बिल संविधान की मूल भावना के खिलाफ है और न्यायिक आजादी का उल्लंघन करता है। तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी ने भी कहा कि वक्फ एक्ट में संशोधन केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र के बाहर है। वो ये बिल नहीं ला सकती क्योंकि जमीन राज्यों का विषय है, और इसका फैसला सिविल कोर्ट ही कर सकती है। कल्याण बनर्जी ने आरोप लगाया कि वक्फ की जायदाद पर कब्जा करने के लिए ये बिल लाया गया है।  ममता बनर्जी की पार्टी के नेता कल्याण बनर्जी वकील हैं, उन्हें ये पता है कि वक्फ एक्ट 1954 में संसद ने ही बनाया था, उस वक्त वक्फ बोर्ड के फैसले को सिविल कोर्ट में चैलेंज करने का प्रावधान था लेकिन 1963 में कांग्रेस की सरकार ने ही ये अधिकार खत्म करके वक्फ ट्रिब्यूनल का सिस्टम लागू किया। क्या वो गैरकानूनी था? क्या उस वक्त की कांग्रेस सरकार ने ये काम मुसलमानों को खुश करने के लिए किया था? ये सवाल NDA के नेताओं ने कांग्रेस और इंडी अलायन्स के नेताओं से पूछे।

एकनाथ शिंदे की शिवसेना के सांसद श्रीकांत शिंदे ने संघीयवाद और सेक्यूलरवाद खत्म करने के आरोप पर कहा कि जब केंद्र में यूपीए की सरकार थी तब महाराष्ट्र के कई मंदिरों के प्रशासन में दखलंदाजी की गई लेकिन तब न किसी को संघीयवाद याद आया, न किसी को सेक्यूलरवाद की याद आई। श्रीकांत शिंदे ने कहा कि जो लोग इस बिल का विरोध कर रहे हैं उनका मकसद मुस्लिमों को भलाई नहीं बल्कि वोट बैंक की राजनीति है। अखिलेश यादव ने इस बात पर आपत्ति जताई कि जब वक्फ बोर्ड के सदस्य लोकतांत्रिक तरीके तरीके से चुने जाते हैं तो इसमें महिलाओं और पिछड़े मुसलमानों को अलग से मनोनीत करने का क्या औचित्य है। अखिलेश यादव ने कहा कि चुनाव नतीजों के बाद बीजेपी अपने कट्टरपंथियों को खुश करने के लिए वक्फ बोर्ड को खत्म करना चाहती है। दो बातें समझने वाली हैं। पहली ये कि वक्फ बोर्ड कोई मजहबी संस्था नहीं हैं, ये कानून से बना बोर्ड है जो सिर्फ वक्फ की प्रॉपर्टी की देखरेख और उसकी हिफाजत के लिए है। इसलिए इसे मजहबी मामलों में दखलंदाजी कहना सही नहीं हैं। ये बात जनता दल-यू के नेता लल्लन सिंह ने लोकसभा में कही। लल्लन सिंह ने कहा कि विपक्ष भ्रम फैला रहा है, वक्फ बोर्ड के मौजूदा ढांचे में कई खामियां है, इस बिल के जरिए वक्फ बोर्ड को जवाबदेह और पारदर्शी बनाया जाएगा।

बहस के जवाब में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि वक्फ कानून में संशोधन पहली बार नहीं हो रहा है। 1995 के वक्फ एक्ट में 2013 में भी संशोधन किया गया था लेकिन कांग्रेस की सरकार ने जो संशोधन किए थे, वो सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के उलट थे। के. रहमान खान की अध्यक्षता में बनी JPC के सुझावों के विपरीत थे। किरेन रिजिजू ने कहा कि देश में करीब साढ़े 8 लाख वक्फ प्रॉपर्टीज है, उनका बेजा इस्तेमाल हो रहा है, उसे ठीक करने का कोई सिस्टम नहीं है। इसलिए सरकार मुसलमानों की भलाई के लिए सिस्टम को ठीक करने की कोशिश कर रही है। किरेन रिजिजू ने जो बात इशारों में, संक्षेप में कही, वो पूरी बात बताता हूं। असल में वक्फ एक्ट जब से बना है, तब से इसमें सुधार की जरूरत कई बार बताई गई। 1976 में एक कमेटी बनी थी। उसकी रिपोर्ट में कहा गया कि सारा वक्फ बोर्ड मुतवल्लियों (केयरटेकर) के कब्जे में हैं, इसे दुरूस्त करने की जरूरत है। इसके अलावा वक्फ बोर्ड के अकाउंट्स में भारी गड़बड़ी है, इसके ऑडिट का इंतजाम होना चाहिए। इसके बाद 1995 में कांग्रेस की सरकार ने इस एक्ट में कुछ बदलाव किए। फिर 2005 में सच्चर कमेटी बनाई गई। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया कि वक्फ की जो 4 लाख 69 हजार प्रॉपर्टीज है। उनसे सिर्फ 162 करोड़ रुपये की आमदनी हो रही है, जबकि मार्केट रेट के हिसाब से आमदनी कम से कम 12 हजार करोड़ रुपये की होनी चाहिए। ये पैसा कहां जा रहा है, इसकी जांच की जरूरत है। वक्फ बोर्ड की प्रॉपर्टीज को पारदर्शी तरीके से मैनेज करने की जरूरत है।

सच्चर कमेटी ने अपनी सिफारिश में कहा था कि वक्फ बोर्ड का बेस बढ़ाया जाना चाहिए। सेन्ट्रल और स्टेट वक्फ बोर्ड में कम से कम 2 महिलाएं होनी चाहिए। पिछड़े मुसलमानों को भी जगह मिलनी चाहिए और सारी गतिविधियों को कानूनी तरीके से चलाने के लिए बोर्ड में कम से कम एक क्लास वन अफसर की नियुक्ति होनी चाहिए। फिर कांग्रेस की सरकार के वक्त ही के रहमान खान की अध्यक्षता में JPC का गठन हुआ। उस JPC ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा कि वक्फ बोर्ड की सारी ताकत मुतवल्ली को नियुक्त करने और हटाने के खेल में ही लग रही है, इसे खत्म करने की जरूरत है। वक्फ प्रॉपर्टी का सर्वे होना चाहिए। इसके लिए एक्सपर्ट्स को बोर्ड में होना चाहिए। वक्फ बोर्ड का कम्प्यूटराइजेशन होना चाहिए। सारा रिकॉर्ड और खर्चे-आमदनी का सारा रिकॉर्ड पारदर्शी तरीके से कंप्यूटर में दर्ज होना चाहिए। JPC ने कहा था कि 1995 के वक्फ एक्ट पर फिर से गौर करने की जरूरत है लेकिन उस वक्त डॉक्टर मनमोहन सिंह की सरकार ने न सच्चर कमेटी की सिफारिश मानी, न JPC की। 2013 में वक्फ एक्ट में बदलाव जरूर किया, लेकिन वक्फ बोर्ड को और ज्यादा अधिकार दे दिए। पहले किरायेदार और लीज़ से जुड़े मामले सिविल कोर्ट से निबटाये जाते थे लेकिन कांग्रेस की सरकार ने वक़्फ़ प्रॉपर्टी विवाद के अलावा वक़्फ़ के किरायेदार से जुड़ा विवाद, वक़्फ़ प्रॉपर्टी के लीज़ से जुड़े विवाद के निबटारे के हक भी वक्फ बोर्ड को दे दिया।

पहले वक़्फ़ प्रॉपर्टी के सर्वे का खर्च वक़्फ़ बोर्ड को देना होता था लेकिन कांग्रेस की सरकार ने 2013 में कानून में संशोधन करके वक़्फ़ प्रॉपर्टी के सर्वे का खर्च राज्य सरकार पर डाल दिया गया। 2013 से पहले वक्फ बोर्ड में अध्यक्ष, सदस्य दूसरे धर्मों के लोग भी हो सकते थे लेकिन 2013 में कांग्रेस की सरकार ने कानून बदल कर ये सुनिश्चित किया गया कि वक्फ बोर्ड के सदस्य सिर्फ मुसलमान ही होंगे। ये सारे कदम सच्चर कमेटी और JPC की सिफारिशों के खिलाफ थे, लेकिन कांग्रेस ने ये कदम उठाए। अब सरकार ने उन्ही गलतियों को दुरुस्त  किया है। हालांकि अब ये बिल JPC के पास भेज दिया गया है और सरकार इसके लिए भी इसलिए नहीं मानी कि विरोधी दलों का दबाव था, असल में JD-U, LJP और TDP तीनों पार्टियां ऐसा चाहती थी, इसलिए सरकार इसके लिए तैयार हुई। LJP के अध्यक्ष और केन्द्र सरकार में मंत्री चिराग पासवान ने कहा कि विपक्ष ये भ्रम फैला रहा है कि ये बिल मुसलमान विरोधी है। इस भ्रम को दूर करने के लिए ही उनकी पार्टी ने बिल को संसदीय समिति को भेजने की मांग की थी। चिराग पासवान ने कहा कि अब इस बिल पर JPC में चर्चा होगी और सारी गलतफहमियां दूर हो जाएगी। चिराग पासवान भले ही गलतफहमियों की बात कहें लेकिन हकीकत ये है कि JD-U, LJP या TDP, तीनों पार्टियों को मुस्लिम वोट की चिंता है। बिहार में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। इसलिए नीतीश कुमार और चिराग पासवान की मजबूरी है। दोनों पार्टियों ने बीच का रास्ता निकाला। बिल पेश होने पर उसका समर्थन किया और फिर उसे जेपीसी  के पास भेजने की मांग कर दी।

सरकार ने भी इसे मान लिया क्योंकि बीजेपी को जो राजनीतिक संदेश देना था, वो तो चला गया, यानि विपक्ष का विरोध भी राजनीतिक है, और सरकार का कदम भी नपा-तुला है। लेकिन मेरा मानना है कि वक्फ एक्ट में जरूरी बदलाव होने चाहिए और जल्दी होने चाहिए। मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं। इसकी वजह बताता हूं। कांग्रेस ने 2013 में वक्फ एक्ट में जो बदलाव किए, वक्फ बोर्ड को जो ज्यादा अधिकार दिए, उसका असर ये हुआ कि वक्फ की प्रॉपर्टीज की संख्या चार लाख उन्हत्तर हजार से बढ़कर साढ़े आठ लाख से ज्यादा हो गई। ऐसा कैसे हुआ, ये भी समझ लीजिए। पिछले साल गुजरात में सरकार ने द्वारका में समुद्र के किनारे सरकारी जमीनों पर कब्जों को खाली कराने के लिए बुलडोजर चलाया। उस वक्त जामनगर और द्वारका में कुल 142 प्रॉपर्टीज वक्फ में रजिस्टर थी। एक मजार भीमा नाम के किसान की जमीन पर बनी थी लेकिन उस जमीन को वक्फ की प्रॉपर्टी के तौर पर रजिस्टर कर दिया गया था। कानूनी तौर पर उस पर कार्यवाही नहीं हो सकती थी। इसलिए उस मजार पर बुलडोजर नहीं चला। इसके बाद लोगों ने यही फॉर्मूला अपनाया। पिछले दो सालों में 341 नई प्रॉपर्टीज को वक्फ बोर्ड में रजिस्टर करवा दिया गया जबकि पांच सौ से ज्यादा प्रॉपर्टीज की एप्लीकेशन अभी भी पेंडिंग हैं। इसी तरह लखनऊ में अन्नपूर्णा मंदिर 1962 के रेवेन्यू रिकॉर्ड में मंदिर के तौर पर दर्ज है लेकिन 2016 में इसे वक्फ प्रॉप्रटी घोषित कर दिया गया। ऐसे एक नहीं, हजारों मामले हैं और बहुत सारी धार्मिक जगहों पर विवाद मजहबी झगड़े का कारण बनते हैं। इसलिए इस तरह की मनमानी को रोकने के लिए कानून में बदलाव की जरूरत तो है और सरकार को इस मामले को वोट के चक्कर में लटकाना नहीं चाहिए। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 08 अगस्त, 2024 का पूरा एपिसोड

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