नरेंद्र मोदी भारत के पहले नेता हैं, जिन्होंने दो बार अमेरिकी संसद को संबोधित करके इतिहास रचा है। अपने ऐतिहासिक संबोधन में मोदी ने चीन, रूस, पाकिस्तान के नाम तो नहीं लिये, लेकिन यूक्रेन युद्ध, ताइवान और आतंकवाद के मसले पर भारत की सोच को साफ तौर पर रखने में कोई संकोच नहीं किया। अमेरिकी सांसदों ने 15 बार खड़े होकर तालियां बजाई और 79 बार मोदी के भाषण के दौरान बैठ कर तालियां बजाई। मोदी ने कहा कि हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में दबाव और टकराव के घने काले बादल मंडरा रहे हैं। मोदी ने कहा कि हमें हिन्द-प्रशांत को एक ऐसा क्षेत्र बनाना है जहां छोटे-बड़े सभी देश आज़ाद और निडर होकर रहें, जहां भारी कर्ज़ इन मुल्कों की तरक्की में रुकावट न बनें, जहां कनेक्टिविटी की आड़ में सामरिक फायदे न उठाए जाएं और जहां सभी देश साझी समृद्धि के ज्वार में एक साथ तरक्की कर सकें। यूक्रेन युद्ध पर पुतिन का नाम लिये बगैर मोदी ने कहा कि मैं पहले ही सीधे और सार्वजनिक तौर पर कह चुका हूं कि ये जंग का ज़माना नहीं है, बातचीत और कूटनीति का ज़माना है और हम सब को मिल कर कुछ करना चाहिए ताकि खूनखराबा और इंसानी मुसीबतें खत्म हो। पाकिस्तान का नाम लिये बगैर मोदी ने कहा कि आतंकवाद मानव जाति का दुश्मन है और इस बुराई से निपटने में कोई किन्तु-परन्तु नहीं होना चाहिए। मोदी और बाइडेन के बीच शिखर वार्ता के बाद जारी साझा बयान में कहा गया कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित सभी आतंकवादी संगठनों जैसे अल-कायदा, आईएसआईएस, दाएश, जैशे मुहम्मद, लश्कर ए तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन के खिलाफ एकजुट होकर कार्रवाई होनी चाहिए। बाइडेन के साथ साझा प्रेस कांफ्रेंस में जब एक अमेरिकी पत्रकार ने भारत के अल्पसंख्यकों के बारे में सवाल किया तो मोदी ने उत्तर दिया – "मुझे आश्चर्य हो रहा है कि आप कह रही हैं कि लोग कहते हैं। लोग कहते हैं नहीं, भारत लोकतंत्र है, जैसा कि राष्ट्रपति बाइडेन ने कहा कि भारत और अमेरिका दोनों के डीएनए में लोकतंत्र है। लोकतंत्र हमारा आधार है। हमारी रगों में है। हम लोकतंत्र को जीते हैं। हमारे पूर्वजों ने लोकतंत्र को शब्दों में ढाला है, संविधान के रूप में। हमारी सरकार लोकतंत्र के मूलभूत मूल्यों को आधार लेकर के बने संविधान के आधार पर चल रही है। हमने सिद्ध किया है कि हम लोकतंत्र के ज़रिए डिलीवर कर रहे हैं। जब मैं डिलीवर कहता हूं। तब जाति, धर्म, लिंग किसी भी भेदभाव के लिए वहां जगह नहीं होती।” मोदी की अमेरिका यात्रा के बारे में सबसे सही बात अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने ट्विटर पर लिखी। उन्होने लिखा – “भारत-अमेरिका साझेदारी पहले से कहीं ज्यादा मजबूत है। यह 21वीं सदी की सबसे महत्वपूर्ण साझेदारियों में से एक है। यह यात्रा हमारी साझेदारी को एक ऊंचे स्तर तक ले जाएगी, अंतरिक्ष से लेकर रक्षा, नयी उभरती टेक्नोलोजी और सप्लाई चेन तक।” आखिर नरेंद्र मोदी ने वॉशिंगटन में अपने मेजबानों को कैसे साधा? हमने व्हाइट हाउस में मोदी की यात्रा की तस्वीरें देखीं। ये तो पूरी तरह सुनियोजित था। राजकीय यात्रा में एक-एक कदम नपा तुला होता है, लेकिन कल शाम प्रेसिडेंट बाइडेन और उनकी पत्नी जिल ने जिस गर्मजोशी से मोदी का स्वागत किया वो कमाल की बात है। बाइडेन परिवार ने मोदी के व्हाइट हाउस आगमन को घर पर आये अतिथि जैसा बनाया। पूरे आयोजन पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान दिया गया। जिस तरह से जिल बाइडेन ने नरेंद्र मोदी के शाकाहारी खाने का ध्यान रखा, वो भी एक बड़ी बात है। मोदी शराब नहीं पीते, पानी पी कर टोस्ट करते हैं, पर डिनर पर जो लोग आए थे उनके लिए पटेल वाइन सर्व की गई जो कैलिफॉर्निया में बनती है। व्हाइट हाउस में इतनी छोटी छोटी बात का ख्याल रखा गया, ये बड़ी बात है। मोदी ने भी अपनी तरफ से जिस तरह की गिफ्ट बाइडेन परिवार को दी उसमें उनका पर्सलन टच था। ये मोदी की संबंध बनाने की कला का एक नमूना है, लेकिन रिश्ते बनाना और उन्हें निभाना ये मोदी का स्वभाव है। मोदी दुनिया में अकेले ऐसे नेता हैं जिन्होंने पहले बराक ओबामा, फिर डोनाल्ड ट्रंप और अब जो बाइडेन के साथ तीनों के राष्ट्रपति रहते, उनके साथ पारिवारिक रिश्ते बनाए। मुझे याद है 2019 में चुनाव के मौके पर सलाम इंडिया शो के दौरान मैंने मोदी से पूछा था कि उन्होंने अमेरिका जैसे ताकतवर देश के राष्ट्रपति के साथ रिश्ते कैसे बनाए। उस दिन उन्होंने पूरी बात बताई। आज भी उन्होंने व्हाइट हाउस में अपने भाषण में जिक्र किया कि 30 साल पहले वे एक साधारण इंसान की तरह बाहर से व्हाइट हाउस को देखने गए थे और इसके बाद जब प्रधानमंत्री बनने के बाद वो बराक ओबामा से मिलने पहली बार व्हाइट हाउस के अंदर गए तो ओबामा ने जिस तरह का अपनापन दिखाया वो उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था। ओबामा के साथ पारिवरिक रिश्ते अपने आप नहीं बने, इसके लिए मोदी ने प्रयास किया। दूसरा उन्होंने बताया कि जब वो पहली बार ट्रंप से मिले तो वो व्हाइट हाउस में 9 घंटे ट्रंप के साथ रहे। डोनाल्ड ट्रंप ने उन्हें पूरा व्हाइट हाउस दिखाया। मोदी ने उस दिन मुझे बताया था कि अब्राहम लिंकन जिस कमरे में रहते थे, ट्रंप उन्हें वहां लेकर गए और बिना कोई कागज देखे अपनी याददाश्त के दम पर ट्रंप ने मोदी को बताया कि वहां क्या क्या हुआ था, कौन कौन से समझौते साइन हुए थे। इसके बाद ट्रंप मोदी को अपना कमरा दिखाने ले गए और दोनों के बीच पारिवारिक रिश्ता कायम हुआ। और मुझे याद है कि बाद में जब ट्रंप भारत आए और मोदी उन्हें क्रिकेट स्टेडियम में मौजूद 1 लाख लोगों के सामने ले गए उस नजारे को डोनाल्ड ट्रंप कभी नहीं भूल पाए। वो बार बार उसका जिक्र करते थे। दोस्त बनाने की, रिश्ते जोड़ने की मोदी की खासियत देश के काम आती है। रिश्तों में जब मजबूती होती है, गर्मजोशी होती है, तो इसका असर औपचारिक वार्ता के समय दिखाई देता है और आज बाइडेन और मोदी के बीच जो औपचारिक मुलाकात हुई उसमें इसका असर दिखाई दिया।
विपक्षी बैठक : ताना-बाना लालू ने बुना
2024 के लोकसभा चुनावों में मोदी और बीजेपी को हराने के इरादे से आज पटना में विपक्षी पार्टियों के बड़े नेताओं की बैठक हुई। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा आयोजित इस बैठक में मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी, ममता बनर्जी, लालू प्रसाद यादव, तेजस्वी यादव, अरविन्द केजरीवाल, भगवन्त मान, एम के स्टालिन, शरद पवार, उद्धव ठाकरे, हेमंत सोरेन, अखिलेश यादव, उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती, सीताराम येचुरी, डी. राजा और अन्य नेताओं ने शिरकत की। बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती को इस बैठक के लिए नहीं बुलाया जया, जबकि राष्ट्रीय लोक दल के जयन्त चौधरी बैठक में आ नहीं सके। बैठक में तय हुआ कि सभी पार्टियां मिल कर चुनाव लड़ेंगी और 10 या 12 जुलाई को शिमला में फिर एक बैठक होगी। बीजेपी नेताओं ने इसे ठगों का गठबंधन बताया, जबकि गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि ये तो महज एक फोटो सेशन था, और मोदी 2024 में फिर से प्रधानमंत्री बनेंगे और बीजेपी को 543 में से 300 से ज्यादा सीटें मिलेगी। बैठक से एक दिन पहले गुरुवार को ममता बनर्जी लालू प्रसाद यादव से मिलने उनके घर गईं। जब लालू यादव ममता बनर्जी से मिले तो एक लंबे अरसे के बाद लालू के चेहरे पर वही पुरानी शरारत वाली मुस्कान दिखाई दी जिसके लिए वो मशहूर हैं। पटना में विरोधी दलों के नोताओं की बैठक भले ही नीतीश कुमार ने बुलाई हो, पर इस मीटिंग का ताना बाना लालू यादव ने बुना है। जो नेता पटना में इकट्ठे हुए, उन सबके लालू यादव से पुराने और अच्छे रिश्ते हैं। सब जानते हैं कि लालू पहले दिन से मोदी विरोधी रहे हैं। उन्होंने कभी अपना स्टैंड नहीं बदला, लेकिन नीतीश कुमार के बारे में ये बात नहीं कही जा सकती। वो तो दो-दो बार मोदी के साथ हाथ मिलाकर अपनी सरकार बना चुके हैं। ज़ाहिर है, जो लोग मोदी के खिलाफ मोर्चा बनाने के लिए मिल रहे हैं वो नीतीश पर उतना भरोसा नहीं कर सकते। विरोधी दलों की इस एकता में एक और कमजोरी दिखाई दी अरविंद केजरीवाल के नाम पर। अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली और पंजाब में अकेले अपने दम पर चुनाव जीते, कांग्रेस और बीजेपी जैसी बड़ी पार्टियों को बिल्कुल उखाड़कर फेंक दिया। पिछले कुछ महीनों में केजरीवाल ने शरद पवार, केसीआर और ममता बनर्जी जैसे नेताओं से रिश्ते बनाए हैं, इसलिए कांग्रेस केजरीवाल पर भरोसा नहीं करती। लेकिन विरोधी दलों की एकता के मामले में चाहे जितनी समस्याएं हों, देश की राजनीति में ये बड़ा डेवलपमेंट हैं। 18 विरोधी दलों के जो नेता इकट्ठे हो रहे हैं उनमें आपस में कितने भी झगड़े हों वो मोदी को हराने के लिए एक साथ आए, ये बड़ी बात है। ये सब नेता जानते हैं, इस बार अस्तित्व की लड़ाई है। सबको लगता है कि एक बार मोदी से निपट लें, आपस के झगड़े बाद में सुलझा लेंगे। (रजत शर्मा)
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