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Rajat Sharma’s Blog : दिल्ली में अभूतपूर्व बाढ़

सवाल ये है कि देश की राजधानी में ऐसे हालात कैसे बने? क्या सिर्फ हथिनीकुंड बैराज से छोड़ा गया पानी इसके लिए जिम्मेदार है? या फिर सिस्टम की कमियों का खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है?

Written By: Rajat Sharma
Published : Jul 13, 2023 17:39 IST, Updated : Jul 14, 2023 6:11 IST
इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ रजत शर्मा।
Image Source : इंडिया टीवी इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ रजत शर्मा।

हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के बाद अब दिल्ली में बाढ़ आई है. इस बार की बाढ़ अभूतपूर्व है.  यमुना खतरे के निशान से काफी ऊपर बह रही है . पैंतालीस साल का रिकॉर्ड टूट गया है.  1978 में इस तरह की बाढ़ आई थी, जब यमुना का जलस्तर 207.49 मीटर तक पहुंचा था....लेकिन इस वक्त यमुना का जलस्तर 208.62 मीटर पर है. चिंता की बात ये है कि हरियाणा के हथिनीकुंड बैराज से लगातार पानी छोड़ा जा रहा है, जिसके कारण दिल्ली में बाढ़ आ गई है. लाल किले के पास रिंग रोड पर, आई टी ओ पर, और यमुना के आसपास तमाम इलाकों में पानी भर गया है. मुख्यमंत्री निवास सिविल लाइन्स में है और वहां भी बाढ का पानी पहुंच गया है. यमुना बैंक मेट्रो स्टेशन को बंद कर दिया गया है. दिल्ली में स्कूल-कॉलेज रविवार तक बंद कर दिये गये हैं.  दिल्ली में यमुना का स्ट्रेच करीब 22 किलोमीटर का है, इसलिए यमुना के आसपास बसे इलाके, जैसे, यमुना बाजार, मॉनेस्ट्री मार्केट, उस्मानपुर, यमुना खादर, ISBT, मयूर विहार, गढ़ी मांडू, ओखला, वजीराबाद, मजनूं का टीला और पूर्वी दिल्ली में यमुना के किनारे बसे तमाम गांव डूब चुके हैं. कई जगह घरों में कमर तक पानी भरा है, कहीं कहीं दस फीट तक पानी है. सवाल ये है कि देश की राजधानी में ऐसे हालात कैसे बने? क्या सिर्फ हथिनीकुंड बैराज से छोड़ा गया पानी इसके लिए जिम्मेदार है? या फिर सिस्टम की कमियों का खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है? ये अच्छी बात है कि दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल आपसी समन्वय के साथ काम कर रहे हैं. केन्द्र  और दिल्ली सरकार मिलकर काम कर रही है, लेकिन सवाल ये है कि दिल्ली में यमुना का जल स्तर हर साल खतरे के निशान को पार करता है, हर साल हरियाणा के हथिनीकुंड बैराज से पानी छोड़ा जाता है, फिर इस समस्या से निपटने के पुख्ता और स्थायी इंतजाम क्यों नहीं किए जाते? ये सही है कि इस बार हिमाचल में ज्यादा बारिश  हुई है, उसकी वजह से भी  यमुना में भी ज्यादा पानी आया, लेकिन यमुना खादर, यमुना बाजार से लेकर ओखला बैराज तक पानी तो हर साल भरता है. इसकी एक ही वजह है - नालों की सफाई न होना, यमुना की डीसिल्टिंग न होना, यमुना की गंदगी को साफ न करना. अगर नदी की डीसिल्टिंग की जाती तो यमुना की जल वहन क्षमता  बढ़ती. नदी का पानी आसपास के इलाकों में न जाता. इस मुद्दे पर दावे हर साल होते हैं. 1993 में यमुना एक्शन प्लान बना था, जिसे 2003 में पूरा होना था. नहीं हुआ. फिर 2003 में यमुना एक्शन प्लान का फेज टू आ गया, जिसे 2020 में पूरा होना था. वो भी नहीं हुआ. पहले बीजेपी और कांग्रेस एक दूसरे पर इल्जाम लगाते रहते थे, फिर केजरीवाल आए. उन्होंने पांच साल में यमुना को साफ करने, डीसिल्टिंग करने का वादा किया, लेकिन वो भी बार बार समय सीमा बढ़ाते रहे. इसी चक्कर में दिल्ली में यमुना के आसपास रहने वालों को हर साल बाढ़ की मुसीबत का सामना करना पड़ता है.

हिमाचल, उत्तराखंड में खतरा अभी टला नहीं

हिमाचल प्रदेश के शिमला, कुल्लू और सोलन में मौसम विभाग ने फिर भारी बारिश का रेड एलर्ट जारी किया है, जिसके कारण लोगों में दहशत है. कई इलाकों में हल्की-हल्की बारिश अभी भी हो रही है लेकिन अब नदियों का पानी उतर गया है. राज्य सरकार का कहना है कि अब तक 88 लोगों की जानें गई, 16 लोग अभी भी लापता हैं, 873 सड़कें अभी भी बंद हैं, 1193 रूटस पर सरकारी बस सेवा बंद है. चूंकि नदियों का जलस्तर कम हो गया है, इसलिए अब तबाही के निशान साफ दिख रहे हैं. कई-कई किलोमीटर तक सड़क गायब है. मनाली को जोड़ने वाली सड़क नदी के दोनों तरफ से बह गई है, इसलिए न कोई शहर से बाहर आ सकता है, न कोई शहर में जा सकता है. लोग एक पुराने लकड़ी के पुल के जरिए अपनी जान खतरे में डालकर मनाली से निकल रहे हैं. लोगों ने कहा कि उन्होंने पिछले तीन दिन में जो कुछ झेला, वो किसी बुरे सपने जैसा था. हमारे संवाददाता पवन नारा टीचर्स के एक ग्रुप से मिले. ये लोग अपने होटल में फंस गए, तीन दिन के बाद बुधवार को निकल पाए तो राहत की सांस ली. इन टीचर्स ने बताया कि वहां न बिजली है, न खाना है, न पानी है, और सबसे बड़ी बात, इन लोगों के पास पैसे भी नहीं है. .इन लोगों ने कहा कि कुदरत ने जरूर इम्तेहान लिया, लेकिन मनाली के लोगों ने सैलानियों की जिस तरह मदद की, उसे वे जिंदगी भर नहीं भूलेंगे. होटल वाले ने किराया नहीं लिया, आस पास के लोगों ने खाने-पीने का इंतजाम किया और चलते वक्त रास्ते के लिए होटल वाले ने बीस हजार रूपए भी दिए. लाहौल-स्पीति जिले के चंद्रताल में अभी भी 300 लोग फंसे हैं, यहां तीन से चार फीट बर्फ है, प्रशासन ने 12 किलोमीटर का रास्ता तो क्लीयर कर लिया है, लेकिन जहां टूरिस्ट के कैंप हैं, उससे अभी  25 किलोमीटर का फासला है.  मुख्यमंत्री सुखविन्दर सिंह सुक्खू ने हवाई सर्वे किया. चन्द्रताल में बर्फ के बीच टूरिस्ट के टैंट आसमान से दिख रहे हैं, लेकिन मौसम खराब होने के कारण उन्हें एयरलिफ्ट नहीं किया जा सकता.  प्रशासन इन लोगों तक खाने-पीने का सामान और गर्म कपड़े पहुंचा रहा है, लेकिन इन टूरिस्ट को वहां से हटाने में अभी वक्त लगेगा. उत्तराखंड में बीते 24 घंटे में कुल 341 सड़कें बंद हुई हैं। इनमें से 193 सड़कें एक दिन पहले से बंद थीं, जबकि 148 सड़कें सोमवार को बंद हुईं। रविवार देर शाम तक 68 सड़कों को खोला जा सका था, जबकि 273 सड़कें अब भी बंद हैं। कुल 26 राज्य मार्ग बंद हैं इससे यात्री जगह-जगह फंसे हुए बताए जा रहे हैं। मौसम विभाग ने 13 जुलाई का ऑरेंज अलर्ट जारी किया है। पिछले कई दिनों से लगातार बारिश हो रही है, कई जगह भूस्खलन और भूधंसाव की वजह से मार्ग बंद हो गए हैं। उत्तराखंड के 11 जिलों में भारी बारिश की आशंका जताई गई है। इनमें रुद्रप्रयाग, चमोली, पिथौरागढ़, उत्तराकाशी, टिहरी, नैनीताल, देहरादून, हरिद्वार समेत जिलों में अलर्ट जारी किया गया है।  सुखविन्दर सिंह सुक्खू का दावा है कि सरकार मुश्किल में लोगों की मदद कर रही है, लेकिन हर टूरिस्ट ने कहा कि हिमाचल में प्रशासन नाम की चीज नहीं दिखी, कोई सरकारी मदद नहीं मिली, लेकिन इन्हीं लोगों ने हिमाचल के आम लोगों की तारीफ की. कहा, आम लोगों ने उन्हें सिर छुपाने की जगह दी, खाना पीना दिया, और सबसे बड़ी बात मुश्किल वक्त में हौसला दिया. ये हिमाचल की सरकार के लिए शर्मनाक है. मैं हिमाचल के लोगों के जज्बे की तारीफ करना चाहता हूं क्योंकि जो काम सरकार का था, वो आम लोगों ने करके दिखाया, इंसानियत की मिसाल पेश की. उत्तराखंड में हालात अभी भी ठीक नहीं हैं. कई इलाकों में जोरदार बारिश हो रही है, भूस्खलन का खतरा बना हुआ है. अब तक 15 लोगों की मौत हो चुकी है. भारी बारिश की वजह से पहले ही कई नदियां और पहाड़ी नाले उफान पर हैं, टौंस और यमुना नदी खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं. हरिद्वार में सोलानी नदी के खतरे के निशान से ऊपर पहुंचते ही कई गांवों में पानी घुस गया. धौली और काली नदी का बहाव इतना तेज है, इसका अंदाज़ा पिथौरागढ़ के धारचूला से आई तस्वीरों को देखकर लगाया जा सकता है. उत्तराखंड में 341 सड़कें बंद हैं, इसकी वजह से जगह-जगह टूरिस्ट फंसे हुए हैं. लोग जान जोखिम में डालकर वहां से गुजर रहे हैं क्योंकि वो जल्द से जल्द वहां से निकलना चाहते हैं.

वैज्ञानिकों की चेतावनी

अब सवाल ये है कि इतनी भारी बारिश क्यों हुई? क्या ये सिलसिला हर साल होगा? क्या इस बारिश का ग्रीन हाउस इफैक्ट से कोई लेना देना है? क्या ये मौसम में हो रहे बदलाव का सबूत है? ये सवाल हमारे संवाददाता निर्णय कपूर ने IIT गांधीनगर के वैज्ञानिकों से पूछे. प्रोफेसर विमल मिश्रा ने कहा कि IIT गांधीनगर ने इस विषय पर शोध किया है. नतीजा ये आया कि इस तरह के extreme weather conditions के लिए अब देश के लोगों को तैयार रहना चाहिए. ये हर साल होगा, बार-बार होगा. विमल मिश्रा ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से बचने के लिए दुनिया भर के मुल्क मिलकर कोशिश कर रहे हैं, कदम उठा रहे हैं, लेकिन उनका असर तीस-चालीस साल के बाद दिखेगा. इसलिए अभी कई सालों तक तो इसी तरह की प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने की आदत डालनी होगी. सरल भाषा में समझें तो वैज्ञानिक ये कह रहे हैं कि अब गर्मी में बहुत ज्यादा गर्मी होगी और बारिश में बहुत ज्यादा बारिश होगी. सर्दी भी ज्यादा पड़ेगी. इसका मतलब ये हुआ कि गर्मी में सूखा और बारिश में बाढ़ का सामना करना होगा. ये बात सुनने में छोटी लग सकती है लेकिन ये खतरा बहुत बड़ा है क्योंकि इससे फसलों का चक्र गड़बड़ाएगा, न रबी की फसल होगी, न खरीफ की. इससे पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर असर होगा, खाने का संकट होगा, बीमारियां बढ़ेंगी. इसलिए वैज्ञानिक कह रहे हैं कि कुदरत तो बार-बार संदेश दे रही है, संभल जाओ, अगर पूरी दुनिया ने मिलकर कदम न उठाए, तो कुदरत का क़हर सहने के लिए तैयार रहना पड़ेगा. (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 12 जुलाई, 2023 का पूरा एपिसोड

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