नये संसद भवन का उद्घाटन होने में 24 घंटे से भी कम समय बचे हैं। नया संसद भवन इतना भव्य, खूबसूरत और आधुनिक बना है कि विरोधी दलों के नेता भी उसकी तारीफ किए वगैर नहीं रह पाए, लेकिन अब इतिहास को लेकर नया विवाद शुरू हो गया। कांग्रेस ने लोकसभा में सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक सैंगोल को स्थापित करने का विरोध किया है। कांग्रेस का कहना है कि सैंगोल का 1947 के सत्ता हस्तांतरण से कोई लेना देना नहीं है।। ये प्रतीक तमिलनाडु के संतों ने पंडित नेहरू को गिफ्ट किया था, अंग्रेजों ने आजादी के वक्त सैंगोल के जरिए पावर ट्रांसफर नहीं किया था, इसलिए इसे इतना महत्व देने की जरूरत नहीं है। जवाब में बीजेपी ने कहा कि चूंकि सैंगोल हिन्दू शैव परंपरा का प्रतीक है, शिव के उपासकों की तरफ से उपहार दिया गया था, सैंगोल पर नंदी विराजमान हैं, इसीलिए कांग्रेस इसका विरोध कर रही है, क्योंकि कांग्रेस हिन्दू विरोधी है। सेंगोल को लेकर कांग्रेस का ऐतराज ये है कि इसका सत्ता के हस्तांतरण से कोई लेना देना नहीं है, सेंगोल पंडित नेहरू को तमिलनाडू के साधु संतों ने दिया था, न कि अंग्रेज वायसराय माउंटबैटन ने। मुझे लगता है कि मुद्दा ये नहीं है कि नेहरू जी को सेंगोल किसने दिया था? मुद्दा ये है कि 1947 में आजादी के वक्त नेहरू जी को सेंगोल क्यों दिया गया था? कांग्रेस के नेता इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि सैंगोल चोल साम्राज्य में सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक था, नए राजा को दिया जाता था। इस बात से भी कांग्रेस के नेता इंकार नहीं कर सकते कि 14 अगस्त 1947 को सेंगोल लेकर आए साधु संतों को ट्रेन से दिल्ली बुलाया गया था, अगले दिन भगवान को जिस जल से स्नान करवाया गया था, वो जल भी स्पेशल प्लेन से दिल्ली मंगवाया गया था। ये भी इतिहास में दर्ज है कि साधु संतों ने नेहरू जी को सौंपने से पहले गलती से सेंगोल को माउंटबैटन के हाथ में दे दिया, इसलिए उसे फिर गंगाजल से शुद्ध करके नेहरू जी के हाथ में आजाद भारत पर निष्ठा के साथ शासन करने के प्रतीक के तौर पर दिया गया। इसलिए ये कहना कि इसका इतिहास से कोई मतलब नहीं है, ये तो गलत है। सवाल ये भी है कि इतनी पवित्र वस्तु को नेहरू जी की वॉकिंग स्टिक बता कर 75 साल तक इलहाबाद के संग्राहलय में क्यों रखा गया? अब अगर नरेन्द्र मोदी ने इस सेंगोल को फिर से गरिमा लौटाई है, लोकतन्त्र के सबसे बड़े मंदिर में स्पीकर के आसान के बगल में स्थापित करने का फैसला किया है, तो इसमें गलत क्या है? इसका विरोध क्यों? मुझे लगता है कि प्रोटेस्ट हो गया, विरोधी दलों ने अपनी बात दर्ज कर दी। अब बेहतर होगा इस तरह की सियासत को किनारे रखकर इस एतिहासिक मौके पर सभी को शामिल होना चाहिए, इससे पूरी दुनिया में अच्छा संदेश जाएगा।
केजरीवाल को कांग्रेस का झटका
अरविन्द केजरीवाल शुक्रवार को दिन भर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी से मिलने का इंतजार करते रहे लेकिन कांग्रेस ने उन्हें वक्त ही नहीं दिया। सुबह-सुबह केजरीवल ने ट्विटर पर लिखा था कि केन्द्र सरकार के अध्यादेश के खिलाफ वो कांग्रेस का सपोर्ट चाहते हैं ।इसी सिलसिले में वो राहुल गांधी और खरगे से मिलेंगे, उन्होंने इसके लिए वक्त मांगा है। दोपहर में खबर आई कि खरगे ने केजरीवाल को शाम साढ़े पांच बजे का वक्त दिया है। खरगे के घर पर शाम चार बजे कर्नाटक में मंत्रिमंडल विस्तार पर चर्चा के लिए मीटिंग शुरू हुई। राहुल गांधी भी पहुंच गए, तो लगा कि इस मीटिंग के बाद केजरीवाल को बुलाया जाएगा। लेकिन मीटिंग खत्म होने के बाद कांग्रेस महासचिव के सी वेणुगोपाल से पूछा गया कि केजरीवाल की खरगे और राहुल गांधी से मुलाकात कब होगी, तो वेणुगोपाल ने कहा- कौन सी मीटिंग? उन्हें तो इस बात की जानकारी नहीं है कि केजरीवाल ने किसी मीटिंग के लिए औपचारिक अनुरोध किया है। वेणुगोपाल ने कहा कि कांग्रेस के दरवाजे खुले हैं। लेकिन पहले तो केजरीवाल की तरफ से बातचीत का औपचारिक प्रस्ताव आए, उसके बाद मुलाकात का वक्त तय होगा, और कांग्रेस केजरीवाल के समर्थन के मुद्दे पर दिल्ली और पंजाब यूनिट के लीडर्स से बात करके ही कोई फैसला लेगी। केजरीवाल के समर्थन के मुद्दे पर दिल्ली और पंजाब के कांग्रेस नेताओं की राय क्या है, ये अजय माकन, संदीप दीक्षित, प्रताप सिंह बाजवा और सुखजिंदर सिंह रंधावा कई बार बता चुके हैं। पवन खेड़ा ने कहा कि केजरीवाल कांग्रेस के नेताओं से वक्त मांगने से पहले माफी मांगें। उन्होंने कांग्रेस के नेताओं को लेकर पिछले कई सालों में जो उल्टे सीधे बयान दिए, उनपर खेद जताएं। अगर मल्लिकार्जुन खरगे ने दिल्ली और पंजाब के कांग्रेस के नेताओं की बात को तवज्जो दी, तो केजरीवाल को मुलाकात का वक्त तो देंगे, लेकिन केजरीवाल को कांग्रेस का सपोर्ट मिलेगा, इसकी उम्मीद कम है। न केजरीवाल माफी मांगेंगे और न कांग्रेस सपोर्ट करेगी। ये बात केजरीवाल भी जानते हैं। लेकिन वो मुलाकात का वक्त इसलिए मांग रहे हैं जिससे वो बाद में इल्जाम लगा सकें कि कांग्रेस विपक्ष की एकता में रोड़ा है। कांग्रेस की वजह से बीजेपी मजबूत हो रही है।
ममता ने किया 'द डायरी ऑफ वेस्ट बंगाल' फिल्म का विरोध
पश्चिम बंगाल में एक नया विवाद शुरू हो गया है। द डायरी ऑफ वेस्ट बंगाल नाम की फिल्म का शुक्रवार को ट्रेलर जारी हुआ। उसके थोड़ी देर के बाद ही बंगाल की पुलिस ने फिल्म के डायरैक्टर प्रोड्यूसर को नोटिस भेज दिया। ये फिल्म पश्चिम बंगाल में हिन्दुओं पर हुए अत्याचार के इश्यू पर बनी है। फिल्म के प्रोडयूसर वसीम रिजवी का दावा है कि उन्होंने सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्म बनाई है। इसमें किसी तरह की कोई सियासत नहीं है। फिल्म के डायरेक्टर सनोज मिश्रा का कहना है कि उन्होंने तो बस सच दिखाया है, लेकिन बंगाल की पुलिस उनके साथ आतंकवादियों जैसा बर्ताव कर रही है, हो सकता है उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाए या उनकी हत्या हो जाए, लेकिन वो डरने वाले नहीं है। फिल्म के ट्रेलर को लेकर ममता की पार्टी में जबरदस्त गुस्सा है। पार्टी के नेता कुणाल घोष ने कहा कि ये फिल्म बीजेपी का प्रोपेगैंडा टूल है। फिल्म के जरिए बीजेपी बंगाल में नफरत का माहौल बनाना चाहती है। ऐसी फिल्म बनाने वाले को तो जेल में बंद कर देना चाहिए। फिल्म अभी रिलीज नहीं हुई है, सिर्फ ट्रेलर जारी किया है। फिल्म को सेंसर बोर्ड ने मंजूरी दी है, इसलिए फिल्म रिलीज होने से पहले ही उसके प्रोड्यूसर डारेक्टर को नोटिस भेजना ठीक नहीं है। ममता ने इससे पहले द केरला स्टोरीज पर बैन लगाया था। सुप्रीम कोर्ट ने उनके इस फैसले को गैरकानूनी बताया था। मुझे लगता है कि कम से कम सुप्रीम कोर्ट के फैसले से तो ममता को सीखना चाहिए। (रजत शर्मा)
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