पिछले चार दिनों से श्रीलंका में अराजकता की स्थिति बनी हुई है। किसी गुप्त स्थान पर छिपे हुए राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने अपना इस्तीफा भेज दिया है, और कोलंबो में राष्ट्रपति भवन पर प्रदर्शनकारियों की भीड़ का कब्जा है।
श्रीलंकाई मीडिया के मुताबिक, बुधवार को एक कार्यवाहक राष्ट्रपति शपथ लेंगे और एक सर्वदलीय सरकार का गठन किया जाएगा। स्पीकर महिंदा अभयवर्धने और पार्टी के नेताओं ने 20 जुलाई को संसद में वोटिंग के जरिए एक नए राष्ट्रपति का चुनाव करने का फैसला किया है। विपक्ष के नेता सजित प्रेमदासा इस पद के प्रबल दावेदार हैं। पूर्व राष्ट्रपति, पूर्व प्रधानमंत्री और सरकार के अन्य मंत्रियों को श्रीलंका छोड़ने से रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है।
श्रीलंका में जो हो रहा है उसे पूरी दुनिया हैरत भरी निगाहों से देख रही है। श्रीलंका के राष्ट्रपति गायब हैं, प्रधानमंत्री के घर को प्रदर्शनकारियों ने जला दिया, और राष्ट्रपति भवन उनके लिए पिकनिक की जगह बन गया है जहां वे स्विमिंग पूल में नहा रहे हैं और किचन में खाना बनाकर खा रहे हैं। यानी कि एक तरह से देखा जाए तो श्रीलंका में कोई सरकार ही नहीं है। प्रदर्शनकारियों ने कहा है कि नई सरकार के सत्ता में आने के बाद वे राष्ट्रपति भवन को खाली कर देंगे।
लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि क्या नई सरकार के सत्ता में आने के बाद श्रीलंका सामान्य स्थिति में वापस आ सकता है? क्या लोगों को सस्ता खाना, पेट्रोल, डीजल, एलपीजी और अन्य ईंधन मिलना शुरू हो जाएगा? क्या आर्थिक स्थिति में सुधार होगा और क्या जरूरी चीजों के दाम कम होंगे?
अफवाहें तब उड़ीं जब श्रीलंका की संसद के स्पीकर ने घोषणा की कि राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे एक पड़ोसी देश में हैं, लेकिन जल्द ही सेना ने इसका खंडन कर दिया। राष्ट्रपति सुरक्षा बलों की सुरक्षा में श्रीलंकाई नेवी के एक जहाज में रुके हुए हैं। राजपक्षे सरकार के अन्य बड़े नेता अंडरग्राउंड हो गए हैं। राष्ट्रपति भवन की रखवाली कर रहे सेना और पुलिसकर्मी गायब हो गए हैं। प्रदर्शनकारियों ने सोशल मीडिया पर जो वीडियो पोस्ट किए, उन्हें देखकर आम जनता की नाराजगी और बढ़ गई है। जनता यह देखकर हैरान है कि जिस वक्त उन्हें दो वक्त की रोटी के भी लाले हैं, उस वक्त राष्ट्रपति और अन्य नेता पूरी शान-ओ-शौकत से रह रहे थे। इस विरोध प्रदर्शन को सिंहली में 'अरगलया' नाम दिया गया है जिसका मतलब 'संघर्ष' होता है। प्रदर्शनकारियों ने लाखों श्रीलंकाई रुपये के नोट पुलिस को सौंपे हैं।
यह स्थिति कैसे बनी? दो महीने के लगातार विरोध के बाद इसका क्लाइमेक्स नौ जुलाई को हुआ जब सोशल मीडिया पर लोगों को गॉल फेस पर इकट्ठा होने के लिए कहा गया। इसका मुख्य आयोजक इंटर यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स फेडरेशन था। पुलिस ने पहले उन्हें तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले दागे, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। जल्द ही आसपास के इलाकों के हजारों लोग श्रीलंका का राष्ट्रध्वज लेकर विरोध प्रदर्शन में शामिल हो गए और पुलिसकर्मी नदारद होने लगे। कुछ ही घंटों के अंदर हजारों प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति भवन में जबरन घुस गए और उस पर कब्जा कर लिया।
कैमरे पर बात करते समय आम श्रीलंकाई लोगों का गुस्सा साफ नजर आया। लोगों के पास बच्चों के दूध के पैसे नहीं है और राष्ट्रपति भवन में केक खाए जा रहे थे। जिस वक्त आम नागरिक 5 लीटर पेट्रोल के लिए 5 दिन लाइन में खड़े रहते हैं, उसी समय श्रीलंका के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और अन्य मंत्रियों को न ईंधन की कोई कमी है और न खाने की। श्रीलंका की आम जनता जहां 2O-20 घंटे की बिजली कटौती झेल रही है, वहीं राष्ट्रपति भवन में न सिर्फ चौबीसों घंटे बिजली की व्यवस्था है बल्कि पावर बैक-अप का भी इंतजाम है।
सोमवार की रात अपने प्राइम टाइम शो 'आज की बात' में हमने आम लोगों को यह कहते हुए दिखाया कि वे पहली बार राष्ट्रपति आवास में आए हैं, और उन्हें ईंधन, गैस, बिजली और खाने की कोई कमी नजर नहीं आई। एक शख्स ने कहा, ‘इस स्थिति में बदलाव होना चाहिए।’ एक महिला ने कहा, ‘हम 3 किलोमीटर पैदल चले, और फिर यहां आने के लिए बस ली। हमें यह सरकार नहीं चाहिए। हमें एक नई सरकार चाहिए।’ एक अन्य व्यक्ति ने कहा, ‘हमारा विरोध अहिंसक है, हम शांति चाहते हैं। युवा और आम लोग यह संदेश देना चाहते हैं कि वे शांतिपूर्ण बदलाव चाहते हैं। फिर भी हमें बलिदान के लिए तैयार रहना चाहिए।’
श्रीलंका की आर्थिक स्थिति अचानक नहीं बिगड़ी। राजपक्षे सरकार की गलत नीतियों के कारण खजाना खाली हो गया। गोटबाया राजपक्षे ने टैक्स में जबरदस्त कटौती की, और ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के नाम पर केमिकल फर्टिलाइजर्स के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी। इससे कृषि उत्पादन में भारी गिरावट आई। देश के आयात में वृद्धि हुई, जबकि निर्यात घट गया।
श्रीलंका का विदेशी मुद्र भंडार धीरे-धीरे खत्म होने लगा और इसी साल मार्च में हालत यह हो गई कि सरकार के पास कर्ज का ब्याज चुकाने के पैसे भी नहीं बचे। दवाएं खत्म हो गईं, राशन कम हो गया और हालत यह हो गई कि श्रीलंका की सरकार ने हर चीज की राशनिंग शुरू कर दी। पेट्रोल और डीजल आम जनता को देना बंद कर दिया, गैस सिलेंडर और चावल-दाल जैसी जरूरी चीजों की भी सरकार ने राशनिंग शुरू कर दी। जनता राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे से पद छोड़ने की मांग करने लगी।
श्रीलंका के पूर्व क्रिकेटर सनथ जयसूर्या ने कहा, ‘मुझे लगता है कि 9 जुलाई का दिन जनता का दिन था, और उस दिन जनता ने जो किया उसे देखकर मैं हैरान हूं। कोई भी हिंसा नहीं करना चाहता था। हम सब अहिंसक आंदोलन के पक्ष में थे। हमने यह सुनिश्चित किया कि राष्ट्रपति इस्तीफा दे दें। यह हमारे लिए दूसरी आजादी है।’
श्रीलंका की आबादी लगभग 2.25 करोड़ है। पिछली सरकारों ने इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के निर्माण के लिए चीन से बेहिसाब कर्ज लिया। श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में चीन का दखल काफी ज्यादा था, और जैसे-जैसे आर्थिक स्थिति में गिरावट आती गई, लोगों का गुस्सा बढ़ता गया। जनता के बढ़ते गुस्से को काबू में करने के लिए सरकार ने टैक्स कम कर दिया और नतीजा यह हुआ कि खजाना खाली हो गया। फर्टिलाइजर्स के इस्तेमाल पर पाबंदी लगने से कृषि उपज भी कम हो गई।
श्रीलंका की मुद्रास्फीति की दर 54 प्रतिशत से ज्यादा है, जबकि भारत की मुद्रास्फीति दर 6 से 7 फीसदी है। दूध 200 रुपये प्रति लीटर बिक रहा है, पेट्रोल सिर्फ जरूरी सेवाओं से जुड़े लोगों को दिया जा रहा है और वह भी 350 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से। लोगों को ब्लैक में एक लीटर पेट्रोल 2000 रुपये में मिल रहा है।
चीन ने श्रीलंका इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में अरबों डॉलर का निवेश किया था, लेकिन जब श्रीलंका की अर्थव्यवस्था चरमरा गई तो उसने और मदद देनी बंद कर दी। चीन की कंपनियों ने श्रीलंका के संसाधनों को जमकर लूटा। मुश्किल की इस घड़ी में भारत यथासंभव श्रीलंका की मदद कर रहा है। भारत ने श्रीलंका को चावल, चीनी, दवाएं, पेट्रोल-डीजल, कोरोना के टीके और खेती करने के लिए केमिकल फर्टिलाइजर जैसे सामान बड़ी मात्रा में भेजे हैं। इतना ही नहीं, भारत ने श्रीलंका को कर्ज चुकाने में भी काफी मदद की है। विदेशी कर्ज चुकाने में मदद के लिए भारत अब तक श्रीलंका को 3 अरब डॉलर की मदद दे चुका है। श्रीलंका के लोग मुश्किल वक्त में मदद के लिए भारत को शुक्रिया कह रहे हैं। पूर्व क्रिकेटर सनथ जयसूर्या ने कहा, ‘भारत और सारे मित्र देश हमारी मदद कर रहे हैं। भारत तो इस संकट की शुरुआत से ही हमारी काफ़ी मदद कर रहा है। मैं इस बात के लिए भारत का शुक्रगुजार हूं।’
ऐसे वक्त में जब श्रीलंका के लोग मदद करने के लिए भारत को धन्यवाद कह रहे हैं, कुछ लोग सोशल मीडिया पर सवाल उठा रहे हैं। वे पूछ रहे हैं कि भारत अपने पड़ोसी देश की मदद क्यों कर रहा है। वे साथ ही चेतावनी भी दे रहे हैं कि भारत का हाल भी श्रीलंका जैसा होने वाला है। वॉट्सऐप मैसेज में कहा जा रहा है कि भारत में भी लोगों के पास खाने को नहीं होगा, दवाओं की कमी हो जाएगी, लोग सड़कों पर उतरेंगे। हमारे देश में कुछ विरोधी दलों ने भी इन मैसेज को हवा देने की कोशिश की है। विरोधी दलों ते तमाम नेता ऐसा माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं जैसे देश की अर्थव्यवस्था डूबने वाली है। कुछ रोजगार का आंकड़ा बता रहे हैं, कोई रुपये की गिरती कीमत और महंगाई का हवाला दे रहे हैं, तो कुछ किसानों की हालत की बात कह रहे हैं।
तेलंगाना राष्ट्र समिति के मुखिया और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने तो यहां तक कह दिया, ‘मोदी जी लोगों को न तो पानी दे पा रहे हैं, न खाना दे पा रहे हैं और न काम दे पा रहे हैं। अब उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए।’ KCR खुद को विपक्ष का नेता और मोदी का विकल्प बताने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन कांग्रेस के नेता राहुल गांधी का मानना है कि देश तो वही चला सकते हैं। कांग्रेस के नेता किसी विरोधी दल के नेता को बढ़ावा देने के लिए राजी नहीं है। कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा, ‘नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत भी श्रीलंका जैसी हालत की तरफ बढ़ रहा है। रुपया गिर रहा है, महंगाई और बेरोजगारी बढ़ रही है।’
राहुल गांधी और केसीआर के अलावा ममता बनर्जी विपक्ष की तीसरी ऐसी नेता हैं, जो मोदी विरोधी मोर्चे की लीडर बनना चाहती हैं। उनकी पार्टी के विधायक इदरीस अली ने कहा, ‘जो हाल श्रीलंका का हुआ, वही हाल भारत का भी हो सकता है। जो हाल श्रीलंका के राष्ट्रपति का हुआ, वैसा ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ भी होगा। पब्लिक उन्हें भी कुर्सी से हटा देगी और मोदी को भागना पड़ेगा।’
इदरीस अली के इस बयान का जवाब बंगाल से BJP के सांसद सौमित्र खान ने दिया। उन्होंने कहा, ‘इदरीस अली के खिलाफ कई केस दर्ज हैं। वह खुद कानून से भागे-भागे फिर रहे हैं, इसीलिए प्रधानमंत्री के बारे में ऊटपटांग बयान दे रहे हैं।’ बीजेपी के प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने विरोधी दलों को जबाव देते हुए कहा, ‘नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता से विपक्ष पूरी तरह से हताश हो चुका है। विरोधियों को अपने लिए कोई रास्ता नजर नहीं आता। इसलिए जब भी कहीं कोई संकट दिखता है, तो विपक्षी दल उसमें अपने लिए मौका तलाशने लगते हैं।
आजकल अफवाहें फैलाना आसान है। सोशल मीडिया पर नेगेटिव न्यूज जल्दी वायरल होती है। इसी का फायदा उठाकर कुछ लोग सोशल मीडिया पर भविष्यवाणी कर रहे हैं कि भारत का हाल भी श्रीलंका जैसा हो जाएगा। असल में यह मोदी विरोधियों की दबी हुई इच्छा है जिसको वे जाहिर कर रहे हैं। ये वे लोग हैं जो किसी भी तरह मोदी को हराना चाहते हैं। ये वे लोग हैं जो 2-2 बार लोकसभा के चुनाव में और कई-कई बार विधानसभा के चुनाव में मोदी को हरा नहीं पाए। कभी उन्हें लगता था कि नागरिकता संशोधन कानून यानी कि CAA का आंदोलन पूरे देश में फैल जाएगा। कभी उन्हें लगा था कि भारत के मुसलमान सड़कों पर उतर आए हैं और अब मोदी के लिए सर्वाइव करना मुश्किल होगा। कभी उन्हें यह भी लगता था कि किसान आंदोलन से मोदी सरकार गिर जाएगी।
कोविड महामारी ने जब भारत को अपनी चपेट में लिया, तब इन लोगों को लगा था कि इतने बड़े देश में कमजोर हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर के चलते बड़ी संख्या में लोगों की मौत होगी, तबाही मचेगी और मोदी इससे पैदा हुए गुस्से का सामना नहीं कर पाएंगे। कभी इन्हें लगता है कि चीन मोदी को हराएगा, कभी लगता है कि अमेरिका मोदी को वैसे हटा देगा जैसे इमरान खान को हटा दिया। जब नौजवान सड़कों पर उतरे, रेलें फूंक दीं तो इन लोगों की उम्मीद फिर जागी। अब श्रीलंका में लोग सड़कों पर उतरे, राष्ट्रपति के घर में घुसे तो मोदी के इन विरोधियों को फिर से सपना देखने का मौका मिला है। इनकी उम्मीद फिर जाग गई है।लेकिन जैसे CAA का सपना टूटा, किसान आंदोलन का सपना टूटा, कोरोना के महामारी से विनाश की जो उम्मीद थी वो टूटी वैसे ही श्रीलंका वाला सपना भी टूटेगा।
मैं कुछ और देशों की हालत बताता हूं। चीन के 6 बैंक डूब गए हैं, क्योंकि वहां के सेंट्रल बैंक ने इन बैंकों को पैसे की सप्लाई बंद कर दी। ऐसे में जिन लोगों का पैसा इन बैंकों में जमा था, वे अब सड़कों पर उतर आए हैं। चीन के झेंघझोऊ शहर में अपनी लाखों की जमापूंजी गंवा चुके हजारों लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया और पुलिस पर पत्थर बरसाए। एक बड़ी रेटिंग एजेंसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका को अगले 12 महीनों में एक बड़ी मंदी का सामना करना पड़ेगा। फेडरल रिजर्व मंदी से बचने के लिए लगातार ब्याज दरें बढ़ा रहा है, लेकिन अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अमेरिका धीरे-धीरे मंदी की ओर बढ़ रहा है। बैंक ऑफ इंग्लैंड ने भी चेतावनी दी है कि मुद्रास्फीति की ऊंची दरों के कारण दुनिया भर में लोगों की आमदनी घट रही है। मुद्रास्फीति के दबाव के कारण ब्रिटेन की जीडीपी विकास दर घट रही है। यूक्रेन युद्ध के कारण कई यूरोपीय देश भी महंगाई की भयंकर मार झेल रहे हैं।
मैंने कई अर्थशास्त्रियों से बात की और उनसे भारत की अर्थव्यवस्था के बारे में पूछा। ज्यादतर एक्सपर्ट्स ने कहा कि इन बातों में कोई दम नहीं है कि भारत की अर्थव्यवस्था बहुत बुरी हालत में हैं। जब मैंने पूछा कि मंहगाई तो बढ़ रही है. तो उन्होंने कहा कि मंगहाई अर्थव्यवस्था का बहुत बड़ा इंडिकेटर नहीं हैं, और अगर इसे इंडिकेटर मान भी लिया जाए तो यूक्रेन युद्ध के कारण जरूरी चीजों की कीमतों पर असर पूरी दुनिया में पड़ा है। अमेरिका में मंहगाई दर 11 फीसदी है, यूरोप में 12 फीसदी है जबकि हमारे देश में यह 6-7 फीसदी है। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि अर्थव्यवस्था मुश्किल में है।
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 601 अरब डॉलर है, और इसके अलावा 40 अरब डॉलर का गोल्ड रिजर्व भी है। महंगाई दर काबू में है। यह सही है कि चीजों की कीमतें बढ़ी हैं, बेरोजगारी की दर भी बढ़ी है, लेकिन कोरोना के कारण पूरी दुनिया में यह दिक्कत है। हमारे देश का हाल फिर भी बेहतर है। इसलिए सोशल मीडिया पर डरावने मैसेज पर यकीन करने की बजाय हमें अपने अर्थशास्त्रियों की बातों पर भरोसा करना चाहिए। (रजत शर्मा)
देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 11 जुलाई, 2022 का पूरा एपिसोड