महाराष्ट्र में पिछले रविवार से जो कुछ नाटकीय घटनाक्रम हुआ, उस बारे में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे का एक कथन उद्धृत करना चाहता हूं। राज ठाकरे ने कहा – “शरद पवार कहते हैं कि उनको इन बातों के बारे में कुछ भी पता नहीं था, ऐसा हो नहीं सकता। ये सब पवार का ही पॉलिटिकल ड्रामा है। दिलीप वल्से पाटिल, प्रफुल्ल पटेल और छगन भुजबल जैसे बड़े नेताओं का वहां जाना कोई सामान्य बात नहीं है। आज समझ में ही नहीं आ रहा है कि राज्य में कौन किसका दुश्मन है? कल को अगर पवार साहब की बेटी सुप्रिया सुले को केंद्र में कैबिनेट मंत्री बनाया जाता है, तो मुझे आश्चर्य नहीं होगा।” राज ठाकरे ने जो कहा उस पर बहुत सारे लोग यक़ीन करेंगे। अजित पवार ने नीचे से ज़मीन खिसका दी, लेकिन चाचा ने भतीजे के ख़िलाफ़ एक लफ़्ज़ नहीं कहा। ये समस्य़ा इस बात की नहीं है कि प्रफुल्ल पटेल ने और अजित पवार ने क्या किया, क्या नहीं किया? उनकी आलोचना करना बहुत आसान है। आप कह सकते हैं कि जिस शरद पवार ने इन्हें बनाया, उनके साथ इन्होंने धोखा किया, पर सवाल ये है कि इन्होंने ये सब सीखा कहां से? इनके गुरु कौन हैं ?
मैंने वो वक्त देखा है जब शरद पवार ने 45 साल पहले, जुलाई 1978 में वसंत दादा पाटिल की सरकार गिराई थी। वसंत दादा शरद पवार के गुरु, मेंटोर, पैट्रॉन सब कुछ थे। वसंतदादा पाटिल मुख्यमंत्री थे। यशवंत राव चव्हाण ने कांग्रेस से अलग होकर कांग्रेस-यू बनाई थी। शरद पवार कांग्रेस-यू में थे। विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा सीटें जनता पार्टी ने जीती थीं, लेकिन जनता पार्टी को सरकार से दूर रखने के लिए कांग्रेस और कांग्रेस-यू ने हाथ मिलाया। शरद पवार मंत्री थे. फिर शरद पवार ने वही किया जो आज अजीत पवार ने किया है। कुछ ही महीनों के बाद शरद पवार ने कांग्रेस-यू के विधायकों को साथ लेकर बगावत कर दी, सरकार से अलग हो गए। जनता पार्टी से हाथ मिलाया और 38 साल की उम्र में महाराष्ट्र के सबसे कम उम्र के चीफ मिनिस्टर बन गए। शरद पवार राजनीति में रोटी पलटने के मास्टर रहे हैं और ऐसा लग रहा है कि अजीत पवार ने उनसे ये कला अच्छी तरह सीख ली है।
मुझे दो साल पहले वाले वो दिन भी याद हैं जब शरद पवार ने ही अजित पवार को बीजेपी से हाथ मिलाने की अनुमति दी थी और फिर शरद पवार ऐन मौके पर पीछे हट गए तो अजित दादा क्या करते? अजित पवार कैसे भूल सकते हैं कि शरद पवार ने उद्धव को बीजेपी को धोखा देने के लिए उकसाया था? खुद रिमोट कंट्रोल से सरकार चलाएंगे, ये सोचकर उद्धव से हाथ मिलाया था। इसी से सीखकर एकनाथ शिन्दे ने उद्धव को धोखा दे दिया। तो महाराष्ट्र की राजनीति में धोखा देना, सरकार गिराना, पार्टी तोड़ना, अपने मेंटर की पीठ में छुरा घोंपना कोई नई बात नहीं है। सबके घर शीशे के बने हैं और सबके हाथ में पत्थर है, लेकिन इसके पीछे क्या है, ये भी समझने की कोशिश करनी चाहिए। सच तो ये है कि शरद पवार अपने बाद अपनी पार्टी, अपनी बेटी को सौंपना चाहते हैं, तो फिर बगावत होना लाज़मी था। अगर लालू तेजस्वी को बनाएंगे, सोनिया राहुल को बनाएंगी, उद्धव ठाकरे आदित्य को पार्टी सौंपने की तैयारी करेंगे तो पार्टी के दूसरे नेताओं को लगेगा कि उनके रास्ते बंद हैं. तो बग़ावत तो होगी ही।
दूसरी बड़ी समस्या ये है कि चाहे शरद पवार हों, लालू यादव हों, सोनिया हों, उद्धव हों, सब चाहते हैं कि जैसी इज़्ज़त पार्टी में उनको मिली, पार्टी के नेता और कार्यकर्ता उनके बच्चों को भी वैसी ही इज्जत दें लेकिन वास्तविक जीवन में ये होता नहीं है। मैंने मुलायम सिंह यादव, शरद पवार और लालू यादव को गांव गांव घूमते देखा है। चल-चल कर उनके पैर की एड़ियों में छाले पड़ जाते थे। उन्होंने जिंदगी खपा दी, पार्टी खड़ी की, कार्यकर्ताओं से रिश्ते बनाए, उनकी मदद की, सुख दुख में उनके साथ खड़े रहे लेकिन अगली पीढ़ी के लोग ये सब नहीं कर पाए। इसीलिए आप देखिए कि आज भी बगावत करने वाले प्रफुल्ल पटेल और अजित पवार, शरद पवार के बारे में पूरे मान सम्मान से बात कर रहे हैं। पवार को अपना गुरु बताया. गुरु पूर्णिमा पर उन्हें प्रणाम किया और ये कहा कि NCP को पावर में लाकर उन्होंने शरद पवार को गुरु दक्षिणा दी है।
पिछले 48 घंटों में महाराष्ट्र की राजनीति में जो हुआ, उसका सबसे ज़्यादा फ़ायदा बीजेपी को हुआ है। बीजेपी ने पहले उद्धव से बदला लिया था, अब शरद पवार से भी हिसाब बराबर कर लिया। राज्य में बीजेपी की सरकार पर एकनाथ शिंदे की निर्भरता कम कर दी। बीजेपी को लगता है कि उसने 2024 के चुनाव में महाराष्ट्र की 48 में से 40-45 सीटें पाने का इंतज़ाम कर लिया और राष्ट्रीय स्तर पर विरोधी दलों की एकता पर सवाल खड़े कर दिए। दूसरी तरफ राजनीति के सबसे बड़े सूरमा को उनके भतीजे ने चित कर दिया। उनके सबसे क़रीबी, सबसे भरोसेमंद प्रफुल्ल पटेल ने पवार की बनाई पार्टी पर अपना क़ब्ज़ा घोषित कर दिया।
मैं पिछले 40 साल से पवार साब को जानता हूं। पहली बार वो इतने अकेले, इतने असहाय नज़र आए। इसके बावजूद, शरद पवार और उनकी बेटी सुप्रिया सुले ने अब तक अजित पवार पर खुलकर हमला नहीं किया है, उनके ख़िलाफ़ एक लफ़्ज़ नहीं कहा, इसलिए लोग पूछ रहे हैं - क्या अजित पवार और प्रफुल्ल पटेल को बीजेपी के पास भेजना, पवार का कोई नया गेम प्लान है? क्या वाकई में अजित पवार ने शरद पवार को धोखा दिया? या फिर जो कुछ हुआ, उसकी स्क्रिप्ट शरद पवार ने लिखी थी? सच तो ये है कि महाराष्ट्र की राजनीति में जो कुछ हुआ उसमें सबसे बड़े loser शरद पवार रहे. जिन्हें महाराष्ट्र की राजनीति का मास्टरमाइंड माना जाता था, उन्हें पता ही नहीं चला कि कब उनके नीचे से उनकी पूरी पार्टी खिसक गई। शरद पवार ने अपनी बेटी सुप्रिया को पार्टी की कमान सौंपने का प्लान बनाया, उसे लागू भी कर दिया, जब वो सोच रहे थे कि मैंने कितना कमाल कर दिया, जब लोग कह रहे थे, वाह पवार साब... वाह, तभी अजित पवार ने दिखा दिया कि असली उत्तराधिकारी कौन है। अब 83 साल की उम्र में कई तरह की बीमारियों से जूझ रहे पवार साब को फिर से मैदान में उतरना पड़ेगा, फिर से पार्टी खड़ी करनी पड़ेगी। विचारधारा तो उसी दिन चली गई थी, जब शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाई। सत्ता उस दिन चली गई, जब शिंदे ने बग़ावत की और पवार साब कुछ नहीं कर पाए। अब पार्टी का कारवां सामने से गुज़र गया, और पवार साब ग़ुबार देखते रह गए।
शरद पवार को सबसे बड़ा नुक़सान ये होगा कि वो मोदी के ख़िलाफ़ मोर्चा बनाने में बड़ी भूमिका अदा कर रहे थे, अब कांग्रेस उनकी क्षमता पर सवाल उठाएगी। पवार साब की भूमिका को सीमित करने की कोशिश करेगी। कांग्रेस के नेता कहेंगे कि जब आप अपना घर नहीं इकट्ठा रख पाए, तो पार्टियों को इकट्ठा कैसे करेंगे? सबसे बड़ी बात ये है कि पवार साब का इतना नुक़सान हुआ, इसके बाद भी लोग कह रहे हैं कि जो कुछ हुआ वो सब शरद पवार के गेम प्लान का हिस्सा है, थोड़े दिन बाद वो भी बीजेपी के साथ आ जाएंगे। ये सवाल तो सबके मन में है कि क्या अजित पवार और प्रफुल्ल पटेल शरद पवार को धोखा दे सकते हैं?
मैं इन दोनों नेताओं को करीब से जानता हूं, मुझे भी इस बात पर शक है कि ये दोनों शरद पवार की मंजूरी के बग़ैर कुछ कर सकते हैं। राजनीतिक गलियारों में जो लोग सक्रिय रहते हैं, उन्हें मालूम है कि अजित पवार और प्रफुल्ल पटेल पहले से बीजेपी के साथ जाने के पक्ष में थे। उन्होंने शरद पवार से ये बात कही थी और शरद पवार ने उन्हें मंजूरी दी थी। ये बात शरद पवार ने सार्वजनिक तौर पर मानी भी थी कि जो नेता बीजेपी के साथ जाना चाहते हैं., उनसे उन्होंने कहा है कि वो जो चाहें करें, लेकिन वो फिलहाल बीजेपी के साथ नहीं जाएंगे। यानि शरद पवार ने उन्हें इशारा दे दिया था। इसके बाद पवार ने इस्तीफा दिया। उस वक्त तय ये हुआ था कि अजित पवार को NCP की कमान सौंपी जाएगी, शरद पवार सिर्फ मार्गदर्शक की भूमिका में रहेंगे, सुप्रिया सुले केन्द्र की राजनीति करेंगी और अजित पवार महाराष्ट्र में सक्रिय रहेंगे, लेकिन ऐन मौके पर शरद पवार पलट गए। उन्होंने इस्तीफा वापस ले लिया, इसके बाद बेटी सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया। इस बात से अजीत पवार नाराज थे क्योंकि उनके साथ धोखा हो गया था। अब अजीत पवार ने फिर रोटी पलट दी और इस बार तवा ही उल्टा कर दिया, इसलिए इतनी हायतौबा मची है। मुंबई से लेकर दिल्ली तक पार्टी पर कब्जे की जोर आइजमाइश चल रही है। NCP में इतना कुछ होने के बाद भी शरद पवार बिल्कुल कूल दिख रहे हैं। पवार ने कह दिया कि वो कोर्ट कचहरी के चक्कर में नहीं पड़ेंगे. वो जनता की अदालत में जाएंगे और दिखाएंगे कि जनता किसके साथ है? (रजत शर्मा)
देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 3 जुलाई, 2023 का पूरा एपिसोड