Friday, June 28, 2024
Advertisement

Rajat Sharma's Blog | स्पीकर का चुनाव : NDA एकजुट, विपक्ष में दरार के कारण हुई हार

राहुल गांधी प्रतिपक्ष के नेता की कुर्सी पर बैठे लेकिन विपक्ष के नेता के तौर पर पहला ही दिन चुनौतियों से भरा साबित हुआ। विपक्षी गठबंधन की एकता तार-तार हो गई।

Written By: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published on: June 27, 2024 17:17 IST
Rajat Sharma Blog, Rajat Sharma Blog Latest, Rajat Sharma- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ रजत शर्मा।

ओम बिरला ध्वनि मत से 18वीं लोकसभा के अध्यक्ष चुन लिए गए। 10 साल बाद कांग्रेस को प्रतिपक्ष के नेता की कुर्सी मिल गई। राहुल गांधी प्रतिपक्ष के नेता बन गए। स्पीकर के चुनाव में वोटिंग की नौबत ही नहीं आई। विपक्ष ने ओम बिरला के खिलाफ के. सुरेश को मैदान में उतारा था लेकिन ऐन वक्त पर क़दम पीछे खींच लिए, वोटों की गिनती की मांग नहीं की। इसलिए ओम बिरला को ध्वनि मत से चुन लिया गया। ओम बिरला आजादी के बाद छठे ऐसे अध्यक्ष हैं जो लगातार दूसरी बार इस कुर्सी पर बैठे हैं। बड़ी बात ये है कि अध्यक्ष के चुनाव के दौरान पूरा NDA न सिर्फ एक एकजुट रहा बल्कि सरकार के उम्मीदवार को जगन मोहन रेड्डी की YSR कांग्रेस और अकाली दल जैसी पार्टिय़ों से भी समर्थन मिला। इस दौरान विपक्षी गठबंधन में साफ तौर पर फूट पड़ती नज़र आई। तृणमूल कांग्रेस ने दावा किया कि वो वोटों की गिनती चाहती थी लेकिन प्रोटेम स्पीकर ने उसकी मांग को अनसुना कर दिया। कांग्रेस ने वोटिंग न करवाने का फैसला तृणमूल कांग्रेस से बात किए बगैर लिया। कांग्रेस के नेताओं ने कह दिया कि हर पार्टी की अपनी अपनी राय है। कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार उतार कर जो संदेश देना था, दे दिया लेकिन कांग्रेस तो सर्वसम्मति से अध्यक्ष के चुनाव की परंपरा को कायम रखना चाहती थी, इसलिए वोटिंग से पीछे हटी। विपक्षी गठबंधन में शामिल JMM की महुआ मांझी ने कहा कि बहुमत तो सरकार के पास है, हमारे पास संख्या नहीं थी, तो फिर हारने के लिए वोटिंग की मांग क्यों करते? विपक्ष की तरफ से इस तरह के तमाम अलग-अलग बयान आए।

प्रतिपक्ष के नेता के तौर पर लोकसभा में राहुल गांधी का पहला दिन था। राहुल गांधी प्रतिपक्ष के नेता की कुर्सी पर बैठे लेकिन विपक्ष के नेता के तौर पर पहला ही दिन चुनौतियों से भरा साबित हुआ। विपक्षी गठबंधन की एकता तार-तार हो गई। असल में अध्यक्ष के चुनाव में उम्मीदवार के नाम का एलान कांग्रेस ने ममता बनर्जी से पूछे बग़ैर किया था, इसलिए तृणमूल कांग्रेस के नेता नाराज थे। राहुल गांधी ने सदन में आने से पहले ममता बनर्जी से फोन पर बात की थी, उन्हें मनाने की कोशिश की, इसके बाद ममता बनर्जी ने अपनी पार्टी के सांसदों से बात की लेकिन उनके कान में ऐसा मंत्र फूंक दिया जो कांग्रेस और राहुल गांधी के लिए परेशानी का सबब बन गया। लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ओम बिरला को अध्यक्ष चुने जाने का प्रस्ताव रखा, जबकि विपक्ष की तरफ से शिवसेना (उद्धव) के अरविन्द सावंत ने के. सुरेश को अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव रखा। प्रोटेम स्पीकर ने प्रधानमंत्री के प्रस्ताव को ध्वनि मत के लिए रखा और प्रस्ताव पारित हो गया। कांग्रेस और दूसरे विरोधी दलों ने इस पर वोटिंग की मांग नहीं की। लेकिन प्रस्ताव पारित होने के बाद तृणमूल कांग्रेस के कुछ सांसदों ने वोटिंग की मांग की जिसे प्रोटेम स्पीकर भर्तृहरि महताब ने खारिज कर दिया और ओम बिरला को अध्यक्ष घोषित कर दिया। अध्यक्ष का चुनाव तो हो गया लेकिन यहां से कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस की तनातनी बढ़ गई। ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी ने साफ़ कहा कि वो स्पीकर के चुनाव में वोटिंग चाहते थे लेकिन प्रोटेम स्पीकर ने उनकी बात नहीं सुनी, ये संसदीय परंपरा और नियमों के खिलाफ है।

लेकिन कांग्रेस ने इसके ठीक उलट बात कही। कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने कहा कि  के. सुरेश को उम्मीदवार बनाने का मकसद सिर्फ सरकार की तानाशाही पर विरोध जताना था जो पर्चा भरने के साथ पूरा हो गया। इसके बाद वोटिंग की ज़रूरत नहीं थी। प्रमोद तिवारी ने कहा कि अध्यक्ष को सर्वसम्मति से चुने जाने की परंपरा को कांग्रेस निभाना चाहती थी इसीलिए पार्टी के सांसदों ने वोटिंग की मांग नहीं की। तारिक अनवर ने कहा कि तृणमूल कांग्रेस गठबंधन का हिस्सा जरूर है लेकिन वो एक अलग पार्टी है, उसकी अपनी राय है। तारिक़ अनवर ने कहा कि तृणमूल कांग्रेस  वोटिंग कराना चाहती है, ये कांग्रेस को मालूम नहीं था। मजे की बात ये है कि कांग्रेस के सांसद के. सुरेश को स्पीकर चुने जाने का प्रस्ताव उद्धव ठाकरे की शिवसेना के सांसद अरविन्द सावंत ने रखा था लेकिन उद्धव ठाकरे की पार्टी ने भी वोटिंग की मांग नहीं की। संजय राउत ने कहा कि कहा कि ओम बिरला का विरोध सांकेतिक था और परंपराओं का ख़्याल करते हुए विपक्ष ने मत विभाजन नहीं कराया। लेकिन असली बात JMM की सासंद महुआ माझी ने कही। महुआ माझी ने कहा कि बहुमत सरकार के पास है, विपक्ष के पास जीतने लायक़ वोट नहीं थे, इसलिए मत विभाजन नहीं कराया गया।

राहुल गांधी की एक बात ज़बरदस्त है। हार में भी जीत खोज लेते हैं। चुनाव से पहले दावा कर रहे थे, हम जीतेंगे, मोदी प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे। अध्यक्ष के चुनाव से पहले कहा कि विपक्ष को डिप्टी स्पीकर की कुर्सी दे, तभी स्पीकर के पद के लिए ओम बिरला का समर्थन करेंगे। सरकार ने शर्त नहीं मानी तो के. सुरेश को मैदान में उतार दिया। जब संख्या बल में हार साफ दिखी तो वोटिंग कराने से पीछे हट गए। और कहने लगे कि सर्वसम्मति से स्पीकर चुना जाए इस परंपरा को बचाने के लिए वोटिंग नहीं कराई। अब कोई पूछे कि परंपरा का इतना ही ख्याल था तो उम्मीदवार  मैदान में उतारा क्यों? दूसरी बात अध्यक्ष का चुनाव प्रतिपक्ष के नेता के तौर पर राहुल का पहला इम्तिहान था। इसमें भी राहुल फेल हो गए। वह विपक्ष को एकजुट नहीं रख पाए। पहले कहा कि सभी पार्टियों से बात करके के. सुरेश को मैदान में उतारा है, लेकिन अब साफ हो गया कि कांग्रेस का ये फैसला इकतरफा था। ममता से इस बारे में कोई बात नहीं की गई। आज पहला दिन था, पहला मुद्दा था, पहले ही दिन फूट पड़ गई। और तृणमूल कांग्रेस का जो रुख़ है, उससे लगता है कि वक्त-वक्त पर ममता बनर्जी, राहुल को इस तरह के झटके देती रहेंगी।

ओम बिरला के चुने जाने के बाद राहुल गांधी और अखिलेश यादव ने जो कहा, वह सुनने लायक है। राहुल ने कहा कि इस बार विपक्ष ज़्यादा ताक़तवर है, विपक्ष के पास पिछली लोकसभा से ज़्यादा सांसद हैं, इसलिए स्पीकर को उनको भी बराबर का मौक़ा देना चाहिए, विपक्ष भी देश की जनता की आवाज़ है, इसलिए वो उम्मीद करते हैं कि स्पीकर विपक्ष की आवाज़ को दबाएंगे नहीं। अखिलेश यादव ने राहुल की लाइन को अलग अंदाज में आगे बढ़ाया। अखिलेश यादव ने कहा कि ओम बिरला के पिछले कार्यकाल में विपक्ष के 150 सांसद एक साथ सस्पेंड कर दिए गए थे, ऐसा फिर नहीं होना चाहिए, स्पीकर सिर्फ़ विपक्ष ही नहीं, सत्ता पक्ष के सांसदों पर भी अंकुश लगाएं।  संसद में विरोधी दलों की तकरार अब रोज़ दिखाई देगी। असल में जिस दिन से नरेन्द्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने हैं, विरोधी दलों के नेता ये मानने को तैयार ही नहीं हैं कि मोदी को जनता ने फिर से चुन लिया। वो फिर से प्रधानमन्त्री बन गए। चुनाव के दौरान राहुल गांधी कहते थे, ‘लिख कर ले लो। 4 जून के बाद मोदी देश के प्रधानमंत्री नहीं रहेंगे’। चुनाव के नतीजे आए, NDA ने  बहुमत हासिल किया। लेकिन राहुल गांधी कहते रहे कि देश की जनता ने मोदी को नकार दिया है।

फिर विरोधी दलों ने कहा नीतीश कुमार पलट जाएंगे, चंद्रबाबू साथ छोड़ जाएंगे, मोदी सरकार नहीं बना पाएंगे। जब ये तय हो गया कि मोदी प्रधानमंत्री बनेंगे, NDA की सरकार बनेगी, तो कहा कि अब मंत्रालय पर झगड़ा होगा, चंद्रबाबू ने 10 मंत्रालय मांगे हैं, नीतीश कुमार ने डिप्टी पीएम का पद मांगा है। लेकिन ये सब बातें बेकार की साबित हुईं। फिर कहा गया कि चंद्रबाबू नायडू स्पीकर के पद के लिए अड़ गए हैं। ये बात भी कोरी अफ़वाह निकली। मोदी की सरकार बन गई। बड़े आराम से बन गई। जिस दिन सरकार बनी, मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि ये सरकार गलती से बन गई, कभी भी गिर सकती है। लेकिन आज जिस अंदाज़ में स्पीकर का चुनाव हुआ, उसने इस तरह के बयान देने वालों को करारा जवाब दे दिया। स्पीकर के चुनाव ने साबित कर दिया कि पूरा NDA मोदी के साथ है। मोदी की सरकार मज़बूत है और सिर्फ़ NDA नहीं, कम से कम 2 पार्टियां जिन्होंने NDA के साथ चुनाव नहीं लड़ा था, YSR कांग्रेस और अकाली दल ने मोदी का समर्थन किया। दूसरी तरफ विरोधी दलों में स्पीकर के लिए वोटिंग के सवाल पर दरार दिखाई दी। और फिर जब इमरजेंसी के खिलाफ प्रस्ताव पास करने की बात आई तो भी अलग-अलग स्वर सुनाई दिए। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 26 जून, 2024 का पूरा एपिसोड

Latest India News

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। National News in Hindi के लिए क्लिक करें भारत सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement