ये बात तो सही है कि तिरुपति बालाजी दुनिया का सबसे वैभवशाली देवस्थान है। भगवान वेंकटेश्वर के ट्रस्ट के पास पैसे की कोई भी कमी नहीं है। तो फिर घी का रेट कम कराने की क्या जरूरत थी? कौन मानेगा कि भगवान को चढ़ाने वाले शुद्ध घी के लिए पैसे कम पड़ गए? अगर कोई एक बार कह देता कि शुद्ध घी के लिए धनराशि कम पड़ रही है तो एक दिन में करोड़ों रुपये का दान आ जाता।
मैं आपको कुछ आंकड़े बताता हूं- तिरुपति बालाजी ट्रस्ट के पास 11 हजार 329 किलो सोना है, जिसकी कीमत करीब साढ़े 8 हजार करोड़ रुपये है। इस धनवान देवस्थान के पास 18 हजार 817 करोड़ रुपये का कैश बैलैंस है। हर साल 1200 करोड़ रुपये की आय होती है। मंदिर के रखरखाव के लिए पांच हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का सालाना बजट है। हर रोज भगवान वेंकटेश के प्रसाद के लिए साढ़े 3 लाख लड्डू बनाए जाते हैं। अगर लड्डुओं का हिसाब लगाया भी जाए कि घी का रेट कम कराने से कितना फायदा हुआ, तो ये आंकड़ा 9-10 करोड़ रुपये से ज्यादा नहीं आएगा।
क्या 9-10 करोड़ रुपये बचाने के लिए घटिया क्वॉलिटी की घी का इस्तेमाल किया गया? क्या दुनिया के सबसे अमीर देवस्थान में 10 करोड़ रुपये बचाने के लिए घी का सप्लायर बदला गया? और ऐसी घी खरीदी गई जिसमें गाय की चर्बी और फिश ऑयल मिला। इस पर कोई यकीन नहीं करेगा। सवाल ये है कि क्या घी के सप्लायर को बदलने के लिए रेट का बहाना ढूंढा गया? क्या घी का टेंडर देने में पैसा खाया गया? वो कौन हैं जिनकी वजह से भक्तों की भावनाएं आहत हुईं, लड्डू बनाने वाले घी में चर्बी मिलाई गई?
जिसने भी ये पाप किया है, उसे कड़ी सजा मिलनी चाहिए। पवन कल्याण ने अच्छा सुझाव दिया है। भारत के मंदिरों से जुड़ी सारी समस्याओं पर विचार करने के लिए सनातन धर्म रक्षा बोर्ड का गठन किया जाना चाहिए। (रजत शर्मा)
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