महाराष्ट्र में बुधवार को शरद पवार और अजित पवार के बीच शक्ति परीक्षण हुआ. परिवार के इस युद्ध में छोटे पवार ने बड़े पवार को मात दे दी. इस मैच में भतीजे ने चाचा को हरा दिया. पार्टी के ज़्यादातर विधायक और नेता अजित पवार के साथ दिखाई दिए. दूसरी तरफ़ शरद पवार खड़े थे जिनके साथ 16 विधायक थे और बेटी सुप्रिया सुले मोर्चा संभाले हुए थीं. इस लड़ाई पार्टी से ज़्यादा परिवार टूटने का दर्द दिखाई दिया. दोनों तरफ़ से बरसों से क़ैद शिकायतें और इमोशन बाहर आ गए. अजित पवार ने कहा कि पवार साहब की उम्र 83 साल हो गई है, अब उन्हें रिटायर हो जाना चाहिए, मार्गदर्शक की भूमिका में आना चाहिए लेकिन वो मानने को तैयार नहीं हैं, इस्तीफा दिया और पलट गए. अजित पवार ने कहा कि पलटी मारना पवार साहब की आदत है, लेकिन अब ये नहीं चल पाएगा, अब उन्हें आराम करना चाहिए और छोटों को आशीर्वाद देना चाहिए. दूसरी तरफ सुप्रिया सुले ने कहा कि आशीर्वाद तो मिलेगा, लेकिन घर तोड़कर आशीर्वाद मांगने वालों को अपनी गिरेबां में झांकना चाहिए. शरद पवार ने अजित पवार और उनके साथ गए लोगों को खोटा सिक्का बता दिया. लेकिन अजित पवार ने पूछा कि क्या उनका कसूर ये था कि वो शरद पवार के बेटे नहीं हैं. इस पर सुप्रिया सुले ने कहा, ऐसा बेटा होना भी नहीं चाहिए. अब बेटी पिता के सम्मान के लिए लड़ेगी. बुधवार को अजित पवार, प्रफुल्ल पटेल, छगन भुजबल, सुनील तटकरे, धनंजय मुंडे जैसे तमाम NCP के बड़े नेताओं ने सालों की टीस बाहर निकाल दी. मौक़ा भी था, संख्या बल भी था. अजित पवार के साथ 31 विधायक दिखाई दिए. शरद पवार के साथ 16 विधायक खड़े हुए. हालांकि अजित पवार का दावा है कि उनके साथ 40 से ज्यादा विधायकों का समर्थन है, और कुछ विधायक जो आज संकोचवश शरद पवार के साथ दिख रहे हैं, कुछ दिनों बाद वे भी अजित पवार के साथ होंगे. कुल मिलाकर संख्या बल के खेल में अजित पवार ने अपने चाचा शरद पवार को मात दे दी. अब आंकड़ों के आधार पर अजित पवार ने NCP के नाम और चुनाव निशान पर दावा ठोक दिया है. चुनाव आयोग में अर्जी दे दी है. शरद पवार के खेमे ने चुनाव आयोग में कैविएट फाइल की, जिसमें कहा गया है कि बग़ावत करने वाले नौ विधायकों को NCP से निकाल दिया गया है, इसलिए उनकी अर्जी पर कोई भी फैसला लेने से पहले शरद पवार के खेमे की बात भी सुनी जाए. लेकिन इसके साथ-साथ महाराष्ट्र में जो राजनीतिक संदेश गया, वो बड़ी बात है. बुधवार को शरद पवार ने बार बार ये साबित करने की कोशिश की कि NCP में बगावत के पीछे बीजेपी है. सत्ता का लालच देकर पवार के परिवार और पार्टी को तोड़ा गया, लेकिन अजित पवार ने साफ-साफ दो टूक कह दिया कि इससे बीजेपी का कोई लेना देना नहीं है, जो हुआ, उसके लिए शरद पवार जिम्मेदार हैं. अजित पवार ने जबरदस्त इमोशनल स्पीच दी. करीब एक घंटे के भाषण में अजीत पवार ने 1978 से लेकर अब तक का पूरा इतिहास बता दिया. कहा कि शरद पवार ने जब भी जो कहा, उन्होंने वैसा ही किया, हर आदेश माना. कई बार शरद पवार ने उनके कंधे पर रखकर बंदूक चलाई, बाद में पलट गए और बदनाम उन्हें किया. अजित पवार ने कहा कि शरद पवार ने उन्हें विलेन बना दिया, उन्होंने कभी जुबान नहीं खोली लेकिन ये कब तक चलेगा.
अपने भाषण में शरद पवार ने विचारधारा की बात की. कहा, बीजेपी की विचारधारा NCP से अलग है. शरद पवार ने बीजेपी के हिन्दुत्व को विभाजनकारी, बांटने वाला और शिवसेना के हिन्दुत्व को सबको साथ लेकर चलने वाला बताया लेकिन प्रफुल्ल पटेल ने याद दिलाया कि शरद पवार की सबसे ज्यादा आलोचना बाला साहेब ठाकरे ने की थी, शरद पवार को सबसे ज्यादा बुरा भला शिवसेना ने कहा, इसलिए, अगर शरद पवार शिवसेना के साथ जा सकते हैं, तो बीजेपी में क्या बुराई है. प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि शरद पवार के मुंह से विचारधारा की बातें अच्छी नहीं लगतीं, अगर उनको विचारधारा की इतनी ही फ़िक्र थी तो शिवसेना के साथ सरकार क्यों बनाई थी. कुल मिला कर अजित पवार ने दिखा दिया, उनके पास विधायकों का समर्थन है, संगठन का सपोर्ट है, सरकार की ताक़त है, पार्टी का नाम और निशान भी उन्हें मिल जाएगा. इस ताक़त के बल पर, बुधवार को अजित पवार जीवन में पहली बार खुलकर बोले और शरद पवार की पूरी पोल खोल दी, चाचा को पलटूराम कह दिया. ऐसा लगा कि अजित पवार बरसों से शरद पवार के साये में घुट रहे थे. उनके भीतर की आग धधककर बाहर आ गई. ये देखकर दु:ख हुआ कि जिन शरद पवार का महाराष्ट्र की राजनीति में दबदबा था, वो आज अपने भतीजे के सामने बेबस खड़े थे, लेकिन, इसके लिए ख़ुद शरद पवार ही ज़िम्मेदार हैं. उन्होंने अजित पवार की महत्वाकांक्षा को नज़रअंदाज़ किया. अपने विधायकों की हसरतों को नहीं समझ पाए, अपने दोस्तों की सलाह की उपेक्षा करते रहे. चाचा पवार ये सोचकर बैठे थे कि किसकी हिम्मत है जो मेरे ख़िलाफ़ खड़ा होगा. मंगलवार की पूरी रात पवार साहब विधायकों को फ़ोन करके अपने यहां आने के लिए कहते रहे. बुधवार सुबह भी उन्होंने कई नेताओं को मनाने की कोशिश की. बुधवार को जब सिर्फ़ 16 विधायक वहां पहुंचे, तो उन्हें एहसास हुआ कि बाज़ी हाथ से निकल चुकी है. अगर वो प्रफुल्ल पटेल जैसे अपने शुभचिंतक की बात सुन लेते, तो आज शायद ये दिन नहीं देखना पड़ता. राजनीति संख्या बल का खेल है, ये शरद पवार से ज़्यादा और कौन जानता है. आज ये आंकड़ा अजित पवार और प्रफुल्ल पटेल के साथ हैं. मुझे लगता है कि पवार साहब को एक न एक दिन रिटायर तो होना ही है. अगर अजित और प्रफुल्ल की बात मानकर, सम्मानपूर्वक रिटायर हो जाते, तो अच्छा रहता. लेकिन मुझे इस बात पर आश्चर्य नहीं है कि इतना सब हो जाने के बाद भी शरद पवार ज़िद पर अड़े हैं. वो मानते हैं कि इन विधायकों को चुनाव मैंने जिताया, मैंने इन्हें नेता बनाया. अब मैं इन्हें फिर से हरा सकता हूं. मैं शरद पवार की इस हिम्मत की दाद दूंगा कि स्वास्थ्य उनका साथ नहीं देता, उम्र भी उनकी तरफ़ नहीं है, वो सारे नेता जिन्हें उन्होंने बनाया था साथ छोड़ गए, तो भी वो युद्ध के मैदान में उतरने के लिए तैयार हैं. हालांकि वो ये मानते हैं कि 2024 में मोदी की जीत होगी. महाराष्ट्र में बीजेपी- शिवसेना- NCP का गठबंधन अचूक बन जाएगा, तो भी न वो हार मानने को तैयार हैं, न पीछे हटने के लिए. इसीलिए उनका नाम शरद पवार है. और सुप्रिया सुले कहती हैं कि नाम ही काफ़ी है.
लालू यादव : क्या ताक़त अभी बाकी है ?
शरद पवार की तरह लालू यादव भी हार मानने वालों में नहीं हैं. बुधवार को लालू शरद पवार के समर्थन में उतरे. लालू ने कहा कि नरेन्द्र मोदी लोकतंत्र को खत्म कर रहे हैं, विधायकों को तोड़ कर राज्यों में सरकारें गिरायी जा रही हैं. लालू यादव ने कहा कि मोदी को गरीबों की फिक्र नहीं हैं क्योंकि वो तो विधायक खरीद कर सरकारें बनाने में लगे हैं. लालू ने कहा कि अब मोदी की विदाई तय है, विरोधी दल साथ मिलकर नरेन्द्र मोदी को उखाड़ फेंकेंगे. बुधवार को RJD के स्थापना दिवस के मौके पर पटना में कार्यक्रम हुआ. पार्टी अध्यक्ष के तौर पर लालू यादव ने नेताओं और कार्यकर्ताओं को बताया कि अगले लोकसभा चुनाव के लिए कैसे तैयारी करनी है. लालू ने कहा कि अब विरोधी दल एक हो गए हैं, 17 पार्टियां मिलकर मोदी को उखाड़ देंगी, उसके बाद एक-एक जुल्म का हिसाब लिया जाएगा. लालू यादव ने कहा कि विपक्ष को डराने के लिए सरकार झूठे केस लगा रही है लेकिन वो डरने वाले नहीं है, मोदी को सिर्फ ये सोचना चाहिए कि जब वो पद पर नहीं रहेंगे तो उनकी क्या गति होगी. जवाब में बीजेपी सांसद सुशील मोदी ने कहा कि लालू को मोदी को फिक्र छोड़कर अपनी चिंता करनी चाहिए क्योंकि उनकी पार्टी पिछले लोकसभा चुनाव में खाता भी नहीं खोल पाई थी. लालू यादव की हिम्मत भी कमाल की है. उनका स्वास्थ्य साथ नहीं देता, उम्र भी ज्यादा है, कई साल जेल में रह चुके हैं. कई मामलों में सजायाफ्ता हैं. उनके खिलाफ नए नए केस दर्ज हो रहे हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली थी. इसके बावजूद उनका जज्बा ये है कि आने वाले चुनाव में मोदी को उखाड़ फेंकना है. जो लोग सोचते थे लालू यादव का जमाना चला गया, वो खत्म हो गए, वो आजकल लालू यादव के तेवर देखकर हैरान हैं. लालू ने अपने जानी दुश्मन नीतीश के साथ हाथ मिलाकर सरकार बनाई. अब वो जल्दी से जल्दी तेजस्वी को बिहार का मुख्यमंत्री बनाने के लिए लालायित हैं और किसी को भी लालू यादव की राजनीतिक क्षमता को, उनकी चतुराई को कम करके नहीं आंकना चाहिए. लालू यादव आज भी चमत्कार कर सकते हैं. (रजत शर्मा)
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