सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के बारे में प्रतिपक्ष के कुछ नेताओं ने जो टिप्पणियां की हैं, वे वाकई चितंजनक है। सोमवार शाम को प्रधानमंत्री मोदी चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ के घर गणपति की पूजा करने क्या चले गए, कई लोगों की नींद उड़ गई, उन्हें मिर्ची लग गई। प्रधानमंत्री मोदी ने चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ के यहां सिद्धिविनायक के दर्शन किए। 30 सेकेंड के वीडियो पर कैसे 30 घंटे सियासत हुई, लोगों ने राई का पहाड़ बना दिया, ये हैरान करने वाली बात है। कई नेताओं ने तो चीफ जस्टिस की ईमानदारी पर सवाल उठा दिए। जो एक सामान्य-सा शिष्टाचार था, पूजा-पाठ था, उसे न्यायपालिका की आज़ादी से जोड़ दिया। उद्धव ठाकरे की शिवसेना को इस बात से समस्य़ा है कि उनका केस सुप्रीम कोर्ट में है, अब उन्हें न्याय कैसे मिलेगा? क्या वो ये कहना चाहते हैं कि चीफ जस्टिस के घर गणपति पूजा में प्रधानमंत्री के शामिल होने से मुख्य न्यायाधीश रातों रात पक्षपाती हो गए? पूजा की थाली क्या घुमाई, न्यायपालिका संदेह के दायरे में आ गई? ये तो कमाल की बात है।
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष कपिल सिब्बल राजनीति में हैं। उन्होंने इस मामले को सियासी मोड़ दे दिया। कहा, चीफ जस्टिस का पीएम को बुलाना तो ठीक है, उन्हें चीफ जस्टिस की ईमानदारी पर पूरा भरोसा है लेकिन प्रधानमंत्री ने वीडियो को सार्वजनिक क्यों किया? क्या प्रधानमंत्री ने पहली बार कोई वीडियो पोस्ट किया है? जब कांग्रेस के नेता बोले तो बीजेपी ने उन्हें याद दिलाया डॉ. मनमोहन सिंह के समय पीएम हाउस में इफ्तार पार्टी होती थी तो चीफ जस्टिस उस में जाते थे, तब किसी के पेट में दर्द क्यों नहीं हुआ? इस मामले में प्रशांत भूषण और इंदिरा जय सिंह जैसे वकील भी बोले। इन्हें बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनन मिश्रा ने करारा जवाब दिया। मनन मिश्रा ने कहा कुछ गिने-चुने वकील हैं जो हर बात का बतंगड़ बनाते हैं।
लेकिन ये सारा मामला इतना साधारण नहीं है जितना दिखाई देता है। भारत के चीफ जस्टिस को घेरने की ये साजिश बहुत सोच समझकर की गई है, पूरी योजना के साथ की गई है। इस तरह की बयानबाजी करने वाले अच्छी तरह जानते हैं कि न तो चीफ जस्टिस का पीएम को बुलाना गलत है और न पीएम का उनके घर जाकर गणपति पूजा करना गलत है, पर जानबूझकर इसे मुद्दा बनाया गया। ये वीडियो सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लगा। चीफ जस्टिस के घर पूजा में प्रधानमंत्री के शामिल होने को संविधान और न्यायपालिका की आज़ादी के लिए खतरा बताया गया, इंसाफ़ की उम्मीद लगाए बैठे लोगों का दिल तोड़ने वाला कहा गया। वीडियो को सोशल मीडिया पर घुमा-घुमाकर ये साबित करने की कोशिश की गई कि जैसे चीफ जस्टिस ने प्रधानमंत्री को अपने घर बुलाकर कोई बड़ा भारी अपराध कर दिया हो, जजों की आचार संहिता को तोड़ा हो।
सबसे पहले उद्धव ठाकरे की शिव सेना के नेता संजय राउत ने कहा कि अब उन्हें जस्टिस चन्द्रचूड़ से न्याय की उम्मीद नहीं है, चीफ जस्टिस को शिवसेना के मुक़दमे से ख़ुद को हट जाना चाहिए, अब अगर पीएम चीफ जस्टिस के घर जाकर पूजा कर रहे हैं, तो चीफ जस्टिस से निष्पक्ष फ़ैसले की उम्मीद कैसे की जा सकती है? सहयोगी पार्टी कांग्रेस के नेता विजय वडेट्टिवार ने कहा कि न्यायपालिका को कार्यपालिका से दूरी बनाकर रखनी चाहिए, न चीफ जस्टिस को प्रधानमंत्री को बुलाना चाहिए और न प्रधानमंत्री को चीफ जस्टिस के घर जाना चाहिए, जो हुआ, वो गलत था। सुप्रीम कोर्ट के कुछ वकीलों ने भी इसे मुद्दा बनाया। इंदिरा जय सिंह ने ट्विटर पर लिखा कि चीफ जस्टिस ने न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच की संवैधानिक दूरी का उल्लंघन किया है।
सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण ने कहा कि चीफ जस्टिस ने अपने घर की पूजा में प्रधानमंत्री को बुलाकर सुप्रीम कोर्ट की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाई है क्योंकि संविधान में साफ़ लिखा है कि न्यायपालिका को कार्यपालिका से दूरी बनाकर रखनी चाहिए। इन आरोपों का जवाब बार काउंसिल के अध्यक्ष मनन मिश्रा ने दिया। मनन मिश्रा ने कहा कि कुछ वकील हैं, जो इस मामूली बात को तिल का ताड़ बना रहे हैं, संविधान में ऐसा कहीं नहीं लिखा कि चीफ जस्टिस के निजी कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नहीं जा सकते। जिन लोगों ने चीफ जस्टिस के घर प्रधानमंत्री की गणेश पूजा को लेकर सवाल उठाए हैं, उन्होंने जस्टिस चंद्रचूड़ के साथ बहुत नाइंसाफी की है। जो लोग ये इल्ज़ाम लगा रहे हैं कि गणेश पूजन के बहाने मोदी ने चीफ जस्टिस के साथ setting कर ली, उनके कान में कोई मंत्र फूंक दिया, क्या ये लोग ये नहीं जानते कि अगर प्रधानमंत्री को चीफ जस्टिस से बात करनी हो, तो उन्हें पूजा का मौका ढूंढने की जरूरत नहीं है? ऐसे तमाम अवसर होते हैं, जब प्रधानमंत्री और चीफ जस्टिस एक साथ होते हैं।
ये कहना बेमानी है कि प्रधानमंत्री ने वीडियो क्यों जारी किया? अगर मोदी वीडियो जारी न करते तो यही लोग कहते कि मोदी की CJI से सीक्रेट मीटिंग हुई। यही लोग कहते कि जब मोदी हर जगह का वीडियो पोस्ट करते हैं तो पूजा का क्यों नहीं किया? क्या CJI का PM को पूजा के लिए बुलाना गैरकानूनी है? क्या ये संविधान के खिलाफ है? क्या ये कोई आधी रात को हुई कोई secret meeting थी जिसको लेकर इतना बड़ा बवाल खड़ा किया गया? जो लोग इस साधारण से शिष्टाचार को मुद्दा बना रहे हैं उनका असली मकसद चीफ जस्टिस पर दबाव बनाना है। ये लोग जानते हैं चीफ जस्टिस ऐसे मुद्दे पर बयान नहीं देंगे क्योंकि पद की अपनी मर्यादा है। प्रधानमंत्री इस पर कुछ नहीं कहेंगे क्योंकि उनकी भी सीमाएं हैं। इसीलिए बयानबाज़ी करने वालों ने जम कर फायदा उठाया। इनका इतिहास उठाकर देखिए, ये लोग हर चीफ जस्टिस के साथ यही करते आए हैं। ये वही लोग हैं जो चुनाव के नतीजे आने से पहले मुख्य चुनाव आयुक्त को बिका हुआ कहते थे, EVM की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते थे। ये वही लोग हैं जिन्होंने सेना की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए थे। ये वही लोग हैं जो बार बार मीडिया को बदनाम करने की कोशिश करते हैं। ये लोग ईमानदारी के ठेकेदार बन कर हर किसी पर कीचड़ उछालते हैं, सब को डराने की कोशिश करते हैं। अब इनकी बातों की उपेक्षा करने की बजाय उन्हें करारा जवाब देने की ज़रूरत है। (रजत शर्मा)
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