कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आरएसएस की तुलना दुनिया भर में कट्टरपंथी हिंसा के लिए बदनाम संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड से करके एक नया विवाद पैदा कर दिया है। उनका कहना है 'आरएसएस फासिस्ट और कट्टरपंथी संगठन है जो लोकतन्त्र की मदद से सत्ता पर काबिज होकर लोकतन्त्र को ही खत्म करना चाहता है। आरएसएस को आप एक गोपनीय संगठन कह सकते हैं। इसे मुस्लिम ब्रदरहुड की तर्ज पर बनाया गया है।' इस मामले में यह समझना चाहिए कि ऐसा नहीं है कि राहुल गांधी ने इस तरह की बातें पहली बार कही है। आरएसएस, नरेंद्र मोदी, संसद और न्यायपालिका के बारे में वे इस तरह की बातें कहते रहते हैं। अगर राहुल ये बातें लंदन में नहीं दोहराते तो शायद इन पर कोई ज्यादा तवज्जो भी नहीं देता। क्योंकि जो लोग भारत में रहते हैं वे इतना तो जानते हैं कि आरएसएस क्या करता है और क्या कर सकता है।
भारत के लोग जानते हैं कि न्यायपालिका सरकार के नियंत्रण में नहीं है और राहुल गांधी को संसद में बोलने से कभी नहीं रोका जाता है। लोग जानते हैं कि राहुल ने संसद के अंदर और बाहर कितनी बार बोला। किसी ने उनका माइक बंद नहीं किया। मुझे याद है एक बार तो उन्होंने कहा था कि मुझे दस मिनट बोलने दो भूचाल आ जाएगा। इसके बाद वो आधा घंटा तक बोले लेकिन कोई भूचाल नहीं आया। हमने राहुल को राफेल, जीएसटी, किसान बिल पर बोलते सुना है। थोड़े दिन पहले हमने राहुल को पार्लियामेंट में आधा घंटे से ज्यादा कारोबारी गौतम अडानी पर बोलते देखा। अडानी के साथ मोदी की तस्वीरों को संसद में लहराते देखा लेकिन उन्हें किसी ने नहीं रोका। राहुल जब भी बोलना चाहा स्पीकर ने उन्हें बोलने का पूरा मौका दिया।
इसलिए ये समझना मुश्किल है कि राहुल ने लंदन में यह क्यों कहा कि उन्हें संसद में चर्चा नहीं करने दी जाती। उनकी जुबान बंद कर दी जाती है। या तो वो ये सोचते हैं कि लंदन में उनके सामने जो लोग बैठे थे उन्हें पता नहीं होगा कि असलिय़त क्या है? इसलिए कुछ भी बोल दो। हैरानी की बात यह है कि डिजिटल इंडिया के जमाने में कोई ऐसा कैसे सोच सकता है। लेकिन सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बात यह थी जब राहुल ने लंदन के एक कार्यक्रम में मौजूद एक सिख भाई की तरफ इशारा करके कहा कि नरेन्द्र मोदी सिखों को दूसरे दर्जे का नागरिक समझते हैं। मोदी विरोध में राहुल को यह नहीं भूलना चाहिए था कि ऐसे बयानों का फायदा भारत विरोधी ताकतें उठाएंगी। ऐसे बयान का इस्तेमाल वे भारत में लोगों की भावनाओं को भड़काने के लिए करेंगे। राहुल गांधी को ऐसी बातें बोलने से बचना चाहिए।
सीबीआई और लालू प्रसाद
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो लालू प्रसाद से मंगलवार को सीबीआई आधिकारियों ने दिल्ली में करीब पांच घंटे तक पूछताछ की। यह पूछताछ 'नौकरी के बदले जमीन' लेने के केस में हुई। लालू यादव बीमार हैं। हाल में वे सिंगापुर से किडनी ट्रांसप्लांट करवा कर लौटे हैं और डॉक्टरों ने मिलनेवालों पर पाबंदिया लगाई हुई हैं। ऐसे में उनसे पूछताछ कुछ दिन बाद होती तो बेहतर होता। लेकिन इस केस के बारे में यह कहना गलत होगा कि बिहार में नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड के साथ गठबंधन की सरकार बनने के कारण मोदी सरकार ने लालू को घेरने की कोशिश की। यह मामला तब सामने आया जब जद (यू) नेता ललन सिंह ने सीबीआई से इसकी शिकायत की। उस वक्त डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे। अब ना तेजस्वी ललन सिंह से पूछेंगे कि उन्होंने लालू के खिलाफ यह शिकायत क्यों की थी और न ललन सिंह अब लालू यादव पर भ्रष्टाचार का इल्जाम लगाएंगे। क्योंकि दोनों दल अब हाथ मिला चुके हैं। इसके उलट ललन सिंह अब कहेंगे कि लालू के साथ ज्यादती हो रही है और सरकार जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है।
अशोक गहलोत और शहीदों की वीरांगनाओं
राजस्थान में अशोक गहलोत की सरकार पुलवामा के शहीदों की विधवाएं (वीरांगनाओं) के साथ बदसलूकी को लेकर घिर गई है। रक्षा मंत्रालय ने इस मामले को गंभीरता से लिया है। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने इस मामले में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से बात करके दोषी पुलिस वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने को कहा है और शहीदों के परिवारों से किए गए वादों को तुरंत पूरा करने का आग्रह किया है। बड़ी बात यह है कि कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने भी वही बात कही जो राजनाथ सिंह कह रहे हैं। सचिन पायलट ने पुलवामा के शहीदों के परिवार वालों से मुलाकात की और मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखकर शहीदों के परिजनों के साथ मारपीट करने वाले पुलिस अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की।
वीरांगनाओं के साथ, शहीदों के परिजनों के साथ राजस्थान की पुलिस ने जिस तरह का सलूक किया वो शर्मनाक था। इस तरह की हरकत करने वाले पुलिस अफसरों के खिलाफ कार्रवाई होनी ही चाहिए। जहां तक वीरांगनाओं की मांगों का सवाल है तो शहीदों के परिवार वालों ने कोई नई मांग नहीं रखी है। वे तो सिर्फ उन वादों को पूरा करने की मांग कर रहे हैं जो सरकार ने पुलवामा हमले में शहीदों को लेकर किए थे। इसमें गलत क्या है? सरकार ने चार साल पहले जो वादे किए थे वो अब तक पूरे क्यों नहीं हुए? हमारे सीआरपीएफ के जवानों ने देश के लिए अपनी प्राणों की आहुति दे दी। क्या सरकार की जिम्मेदारी नहीं है कि शहीदों के परिवारों का ख्याल रखे? नौकरी की मांग को लेकर, शहीदों की मूर्ति लगवाने के लिए वीरांगनाओं को आंदोलन करना पड़े, धरना देना पड़े और पुलिस उन्हें दौड़ा-दौड़ा कर पीटे। ये पूरे समाज के लिए शर्मनाक है। (रजत शर्मा)
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