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Rajat Sharma’s Blog: क्या पटाखों पर पाबंदी लगाने से प्रदूषण कम हो जाएगा?

दिल्ली सरकार शुक्रवार को कनॉट प्लेस के सेंट्रल पार्क में 51,000 दीये जलाकर 'दीये जलाओ, पटाखे नहीं' अभियान शुरू करेगी।

Written By: Rajat Sharma
Published : Oct 21, 2022 17:53 IST, Updated : Oct 21, 2022 17:53 IST
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Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

दीवाली के मौके पर एक तरफ जहां दिल्ली के बाजारों में भरपूर रौनक है, वहीं दूसरी तरफ दिल्ली सरकार ने पटाखों के इस्तेमाल और उनकी बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। यह प्रतिबंध ग्रीन पटाखों पर भी लागू होगा।

दिल्ली में 1 जनवरी तक पटाखे फोड़ने वाले को 200 रुपये का जुर्माना और 6 महीने तक की जेल हो सकती है, जबकि पटाखों की बिक्री, स्टोरेज और उत्पादन पर 5,000 रुपये का जुर्माना और विस्फोटक अधिनियम की धारा 9बी के तहत 3 साल तक की जेल की सजा होगी।

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को प्रतिबंध के खिलाफ बीजेपी सांसद मनोज तिवारी की याचिका पर तत्काल सुनवाई करने से इनकार कर दिया। जस्टिस एम. आर. शाह और एम. एम. सुंदरेश की बेंच ने कहा: ‘दिल्ली के लोगों को साफ हवा में सांस लेने दें। लोगों को पटाखों पर पैसे खर्च नहीं करना चाहिए। इसके बजाय उन्हें मिठाई खानी चाहिए।’

गुरुवार को ही दिल्ली हाई कोर्ट ने पटाखों पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। जस्टिस यशवंत वर्मा ने दो व्यापारियों द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि यह मुद्दा पहले ही सुप्रीम कोर्ट के सामने है।

इधर, दिल्ली सरकार ने एक 15 सूत्री ‘विंटर ऐक्शन प्लान’ तैयार किया है। इसके तहत 1,800 टीमें बनाई गई हैं, जिनमें से 408 टीमें प्रतिबंध को लागू करवाएंगी। राजस्व विभाग की 165 टीमें बनेंगी,  जबकि दिल्ली पुलिस की 210 टीमें और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति की 33 टीमें प्रतिबंध लागू करवाने का काम करेंगी।

दिल्ली सरकार शुक्रवार को कनॉट प्लेस के सेंट्रल पार्क में 51,000 दीये जलाकर 'दीये जलाओ, पटाखे नहीं' अभियान शुरू करेगी। दिल्ली सरकार ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव से पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रतिबंध लागू करने का आग्रह किया है, जिसमें पड़ोसी राज्य हरियाणा और उत्तर प्रदेश भी शामिल हैं।

गुरुवार को आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने ही पटाखे फोड़कर प्रतिबंध की धज्जियां उड़ा दीं। जैसे ही इस बात का ऐलान हुआ कि राजेंद्र पाल गौतम के इस्तीफे के बाद राजकुमार आनंद को मंत्री बनाया जाएगा, उनके समर्थकों ने जश्न मनाना शुरू कर दिया। दिल्ली बीजेपी के नेता तेजिंदर पाल सिंह बग्गा ने राजकुमार आनंद के आवास के बाहर समर्थकों की आतिशबाजी का एक वीडियो पोस्ट किया।

बग्गा ने ट्वीट किया, ‘हिन्दू दिवाली पर पटाखे जलाते हैं तो प्रदूषण होगा, अरविंद केजरीवाल उन्हें जेल भेजेगा। लेकिन केजरीवाल का मंत्री बनने की खुशी में अगर पटाखे जलाए जाते हैं तो उसमें से ऑक्सीजन निकलेगा। केजरीवाल, तुम्हारा हिन्दू विरोधी चेहरा आज फिर सामने आ गया। तुम्हें दिक्कत दीवाली से है, पटाखों से नहीं।’

दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने कहा कि केजरीवाल सरकार कम से कम दीवाली की रात लोगों को ग्रीन पटाखे फोड़ने की इजाजत दे सकती है, लेकिन ‘केजरीवाल को हिंदुओं और हिंदू त्योहारों से नफरत है, इसलिए पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है।’

बुधवार को जब मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने, तब कांग्रेस दफ्तर में भी पटाखे चलाए गए थे। इस पर भी सवाल पूछे जा रहे हैं कि जनता पर तो बैन लगा हुआ है लेकिन नेता खुलेआम पटाखे चला रहे हैं। उन पर कोई बैन क्यों नहीं है? कुछ लोग कह रहे है कि दिल्ली सरकार को इस तरह के फैसले लेने से पहले यह तो पता लगाना चाहिए कि पटाखों से कितना प्रदूषण बढ़ता है। बढ़ता भी है या नहीं? क्योंकि अभी तो पटाखे नहीं चल रहे हैं, दीवाली भी 3 दिन दूर है, लेकिन इसके बाद भी दिल्ली में प्रदूषण का स्तर खतरनाक लेवल तक बढ़ गया है।

पिछले हफ्ते तक दिल्ली का एयर क्वॉलिटी इंडेक्स (AQI) लेवल 45 था। कई सालों के बाद दिल्ली की आबोहवा इतनी साफ सुथरी थी, लेकिन गुरुवार को आनंद विहार में AQI लेवल 405 तक पहुंच गया, जो काफी खतरनाक है। इसी तरह आर. के. पुरम, रोहिणी, विवेक विहार और द्वारका में भी AQI लेवल 250 के आसपास दर्ज किया गया।  इसलिए यह सवाल उठा कि जब पटाखे चले नहीं तो फिर उन्हें दिल्ली में प्रदूषण के लिए जिम्मेदार क्यों ठहराया जा रहा है? इसका जवाब पटाखों में नहीं, बल्कि आम आदमी पार्टी के शासन वाले पंजाब में बड़े पैमाने पर धान की पराली जलाने में छिपा है।

दीवाली के मौके पर पटाखे फोड़ने की सदियों पुरानी परंपरा है। खासतौर पर बच्चे बड़े उत्साह से आतिशबाजी चलाकर दिवाली मनाते हैं, लेकिन इस बार भी पटाखों पर पाबंदी है। क्योंकि पटाखों पर, आतिशबाजी पर बैन लगाना आसान है, लेकिन पराली जलाने के बारे में क्या? पंजाब सरकार पराली को जलाए जाने से रोकने की कोशिश क्यों नहीं कर रही है?

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने धान की कटाई के बाद बची पराली पर बायो डीकंपोजर केमिकल छिड़कवाने का वादा किया था, लेकिन पंजाब में उसका कोई असर नहीं दिखा। आम आदमी पार्टी ने पंजाब में पराली की समस्या के समाधान के लिए किसानों को हैपी सीडर मशीन बांटने का वादा किया था, लेकिन ज्यादातर किसानों की शिकायत है कि उन्हें न तो मशीनें मिली हैं और न ही राज्य सरकार से कोई मदद पहुंची है। चूंकि बुवाई का सीजन शुरू हो गया है, इसलिए किसानों के पास पराली को जलाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है।

इंडिया टीवी के रिपोर्टर पुनीत पंरीजा पंजाब के कई जिलों में गए, और हर जगह एक ही तस्वीर थी। पराई जलाई जा रही थी और हर तरफ इसका धुआं दिख रहा था। वहीं, पराली जलाने के पीछे किसानों, खासकर छोटे किसानों की अपनी दलीलें हैं। उनका कहना है कि वे लोग 2-4 एकड़ जमीन पर खेती करते हैं, और इसमें लागत मूल्य निकालना ही मुश्किल पड़ जाता है, ऐसे में पराली जलाने की बजाए अगर केमिकल या मशीन का इस्तेमाल करना भी चाहें तो पैसे कहां से आएंगे। इसलिए मजबूरी में पराली जलानी पड़ती है।

कुछ किसान यह तर्क भी दे रहे हैं कि पराली तो साल में बस 10-15 दिन ही जलती है, जबकि गाड़ियों और फैक्ट्रियों के धुएं से तो साल भर प्रदूषण होता है। ऐसे में सरकार दिल्ली में गाड़ियों का चलना क्यों नहीं बंद कर देती? वायु प्रदूषण में पराली के धुएं का हिस्सा मुश्किल से 5 फीसदी है, जबकि 95 फीसदी धुआं कारखानों और गाड़ियों से निकलता है।

पराली के मामले में पंजाब की AAP सरकार ने एक तरह से हाथ खड़े कर दिए हैं। पंजाब के कृषि मंत्री कुलदीप धालीवाल ने अकाल तख्त के जत्थेदार से मुलाकात करके उनसे अपील की थी कि वे किसानों को पराली ना जलाने के लिए समझाएं, लेकिन इसका कोई असर नहीं पड़ा।

मजे की बात यह है कि पराली जलाने की सबसे ज्यादा घटनाएं कृषि मंत्री के शहर अमृतसर में ही हो रही हैं। अमृतसर में पराली जलाने की 600 घटनाएं हुईं। इसके बाद दूसरे नंबर पर तरनतारन हैं, जहां 391 जगह पराली जलाई गई। राज्य सरकार ने इस बार किसानों को हैपी सीडर मशीन भी नहीं दी है। जब इस पर सवाल पूछे गए तो पंजाब के कृषि मंत्री ने कहा कि पिछली सरकार में हैपी सीडर मशीन खरीदने में 150 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ था, इसलिए उनकी सरकार इसकी खरीद में जल्दबाजी नहीं करना चाहती।

यह एक गजब का विरोधाभास है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री के तौर पर अरविंद केजरीवाल पिछले साल तक NCR में प्रदूषण का मुख्य कारण पराली जलाने की घटनाओं को बताते थे। वह पंजाब की तत्कालीन कांग्रेस सरकार को इसके लिए जिम्मेदार ठहराते थे। लेकिन अब पंजाब में उनकी अपनी पार्टी की सरकार है, तो जाहिर सी बात है कि अब सवाल पूछने की बारी कांग्रेस की है।

कांग्रेस के सांसद रवनीत बिट्टू ने कहा कि पहले तो केजरीवाल बड़े-बड़े दावे करते थे, लेकिन जब जनता ने मौका दिया तो वह पंजाब में वादे पूरे करने के बजाए गुजरात में कैंपेन करने में व्यस्त हैं। पंजाब बीजेपी के नेता राजकुमार वेरका ने कहा कि जनता ने केजरीवाल की पार्टी को काम करने का मौका दिया है, लेकिन सरकार के मंत्री काम करने के बजाए अकाल तख्त के भरोसे बैठे हैं। उन्होंने कहा कि इससे किसानों का भला नहीं होगा।

पहले हरियाणा और पश्चिमी यूपी में भी काफी पराली जलती थी लेकिन अब इन दोनों राज्यों में ऐसे मामले कम हो रहे हैं। दावा ये भी किया गया है कि पंजाब में भी इस बार पराली जलाने के मामले 54 फीसदी कम हुए हैं। इस साल अब तक पंजाब में पराली जलाने की 1,238 घटनाएं सामने आई है, जबकि हरियाणा में 186 और यूपी में महज 91 मामले सामने आए हैं। पर्यावरणविद भी कह रहे हैं कि सरकारों को एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालने की बजाए इससे निपटने के लिए मिलकर काम करना चाहिए, वर्ना वायु प्रदूषण के चलते हालात बिगड़ते जाएंगे।

मुझे लगता है कि NCR में प्रदूषण का कोई एक कारण नहीं है। इसकी कई वजहें हैं। यह सही है कि पराली का धुआं हवा को जहरीला बना देता है, इसलिए पराली जलाने से बचना चाहिए, लेकिन इसका तरीका यह नहीं हो सकता कि पराली जलाने वाले किसानों को जेल में डाल दिया जाए या उन पर जुर्माना लगाया जाए। यह सरकार की जिम्मेदारी है कि किसानों की मदद करें और उन्हें विकल्प प्रदान करे, जैसे कि या तो उन्हें मुआवजा दे या फिर उनसे पराली खरीदे। अगर ऐसा नहीं होगा तो सरकार कितने भी किसानों को जेल में डाल दे, चाहे जितने भी किसानों के खिलाफ केस दर्ज कर ले, पराली जलाने की घटनाएं बंद नहीं होंगी। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 20 अक्टूबर, 2022 का पूरा एपिसोड

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