प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को सीबीआई अधिकारियों से कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में किसी को भी न बख्शें, चाहें वह कोई भी हो। पीएम मोदी ने सीबीआई के डायमंड जुबली समारोह में कहा, 'आरोपी कितने भी शक्तिशाली क्यों न हों, वे अपने काम से विचलित करने के लिए जांच एजेंसियों को निशाना बनाते हैं। आप लोग अपने काम पर ध्यान दें। देश, कानून और सरकार आपके साथ है।' आम तौर पर मोदी जनसभाओं में इस तरह की टिप्पणी करते हैं, लेकिन यह पहली बार था जब वह सीबीआई अधिकारियों की एक सभा में ऐसा कह रहे थे। मोदी ने बताया कि कैसे आर्थिक भगोड़ों ने बैंकों से 22,000 करोड़ रुपये उड़ा लिए, लेकिन उनकी जब्त संपत्तियों से 20,000 करोड़ रुपये बरामद कर लिए गए। मोदी ने जो कहा वो बड़ी बात है। सीबीआई जैसी जांच एजेंसी को फ्री हैंड देना छोटी बात नहीं है। ये काम वही कर सकता है, जिसके दामन में दाग न हो, जिसकी नीयत साफ हो। मोदी ने ये भी कहा कि जैसे-जैसे टेक्नोलॉजी बदल रही है, वैसे-वैसे सीबीआई के अफसरों को खुद को भी अपडेट करने की जरूरत है। इसमें तो कोई दो राय नहीं है कि सीबीआई बहुत अच्छा काम करती है। लोगों का उसके ऊपर भरोसा है। लेकिन ये भी सही है कि सीबीआई केसेज में कन्विक्शन का रेट बहुत कम है। भ्रष्टाचार के मामलों में एक्शन लेना अलग बात है और भ्रष्टाचारियों को सजा दिलाना दूसरी बात है। ये सही है कि देश का पैसा लेकर विदेश भागे नीरव मोदी और मेहुल चौकसी की संपत्ति सरकार ने जब्त की है, लेकिन ये भी सही है कि इन दोनों भगोड़ों को अब तक वापस लाने में सीबीआई नाकाम रही है और इसका राजनीतिक नुकसान सरकार को झेलना पड़ता है।
कोर्ट में राहुल
अपनी बहन प्रियंका गांधी और कांग्रेस के तीन मुख्यमंत्रियों, भूपेश बघेल, अशोक गहलोत और सुखविंदर सिंह सुक्खू के साथ, कांग्रेस नेता राहुल गांधी सोमवार को सूरत में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश रॉबिन मोगेरा के सामने पेश हुए। अदालत ने उनकी जमानत अवधि बढ़ा दी और 23 मार्च को उनके दोषसिद्धि के आदेश को चुनौती देने वाली उनकी अपील को 13 अप्रैल को सुनवाई के लिए स्थगित कर दिया। राहुल कांग्रेस नेताओं की बस में सवार होकर कोर्ट पहुंचे। कानून मंत्री किरण रिजिजू ने इसे ड्रामा बताया और कहा कि न्यायपालिका पर प्रेशर बनाने के लिए राहुल गांधी कांग्रेस के तमाम नेताओं को लेकर कोर्ट में पहुंचे। अगर देखा जाए तो असल में कोर्ट का फैसला राहुल को राहत नहीं, बल्कि उनकी टेंशन बढ़ाने वाला है। क्योंकि जिन मामलों में तीन साल से कम की सजा होती है, उनमें दोषी को तुंरत जमानत मिल जाती है। इसीलिए राहुल को जमानत मिलना तय था। असल में कांग्रेस के नेता चाहते थे कि सेशन कोर्ट राहुल गांधी की लोअर कोर्ट से मिली सजा को स्टे कर दे। अगर ऐसा होता तो राहुल गांधी की लोकसभा की मेंबरशिप बहाल होने का रास्ता खुल सकता था, लेकिन कोर्ट ने ये अपील नहीं मानी और 13 अप्रैल को इसके बारे में सुनवाई करने को कहा। इसका मतलब है कि फिलहाल राहुल गांधी की लोकसभा की मेंबरशिप बहाल होने का चांस नहीं है। अगर कोर्ट 13 अप्रैल के बाद भी लोअर कोर्ट के फैसले को स्टे नहीं करता और ये मामला लंबा खिंचता है तो राहुल न तो वायनाड से बाईइलेक्शन लड़ पाएंगे और न ही अगला लोकसभा इलेक्शन। कांग्रेस के नेता चाहते हैं कि इस मामले में सेशन कोर्ट को जो भी फैसला लेना है, जल्दी ले जिससे वो दूसरे लीगल ऑप्शन्स को एक्सप्लोर कर सकें। कांग्रेस के नेता चाहते हैं कि ये मुद्दा जल्दी से जल्दी निपटे लेकिन राहुल गांधी के तेवरों से लगता है कि वो इस मामले को लंबा खींचना चाहते हैं, जिससे वो ये दिखा सकें कि वही अकेले हैं जो मोदी से नहीं डरते हैं। वही हैं जो मोदी के खिलाफ लड़ सकते हैं। कम से कम राहुल ने कोर्ट के फैसले के बाद जो ट्वीट किया, उससे तो यही लगता है। उन्होंने ट्वीट किया था, 'ये मित्रकाल के खिलाफ लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई है और इस संघर्ष में सत्य मेरा अस्त्र है और सत्य ही मेरा आसरा है।'
बंगाल में हिंसा
हुगली के पास रिषड़ा रेलवे स्टेशन पर पथराव की ताजा घटनाओं के बाद पश्चिम बंगाल में हावड़ा-बर्धमान लाइन पर ट्रेन सेवाएं सोमवार रात से मंगलवार सुबह तक चार घंटे के लिए रोकनी पड़ी । तनाव के कारण हुगली जिले के हुगली और श्रीरामपुर में धारा 144 लगाई गई । राज्यपाल सी वी आनंद बोस ने दार्जिलिंग में चल रहे जी-20 कार्यक्रम को बीच में छोड़ कर सीधे रिषड़ा के हिंसा प्रभावित इलाकों में पहुंचे। रिषड़ा में सोमवार शाम को पिर हिंसा हुई, दंगाइयों ने रेल फाटक तोड़ दिया, देसी बम फेंके और गाड़ियों पर ईंटें बरसाईं । बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार के नेतृत्व में पार्टी के कई नेता दंगा प्रभावित क्षेत्रों में जाना चाहते थे, पर उन्हें रोका गया। अस्पताल में घायल भाजपा विधायक बिमान घोष से मिलने के बाद शुभेंदु अधिकारी ने आरोप लगाया कि रिषड़ा और हावड़ा में दंगाई खुलेआम घूम रहे हैं। ममता बनर्जी का दावा है कि बंगाल में दंगे बीजेपी ने करवाए, शोभा यात्रा निकालने वालों ने रूट बदला । लेकिन दंगों के जो वीडियो हावड़ा से सामने आए हैं वो दूसरी कहानी कहते हैं। पहले दिन रामनवमी के जुलूस पर पत्थर फेंके गए, आगजनी हुई। दूसरे दिन जुमे की नमाज के बाद मस्जिद से निकले लोगों ने पुलिस के सामने घरों पर पत्थरबाजी की, दंगा किया। इसके सैकड़ों वीडियो हैं, लेकिन जो लोग पकड़े गए उनमें 31 हिन्दू हैं और सिर्फ सात मुस्लिम हैं। क्या ये देखकर बंगाल के हिन्दुओं के मन में नाराजगी नहीं होगी? क्या इससे गुस्सा और नहीं भड़केगा? क्या इससे बंगाल की पुलिस और सरकार पर हिन्दुओं का भरोसा कम नहीं होगा? इससे सरकार की नीयत पर शक होता है। अगर ममता की सरकार ने बिना किसी भेदभाव के एक्शन लिया होता, तो दंगाइयों के हौसले न बढ़ते और न बीजेपी को सियासत करने का मौका मिलता।
बिहार में हिंसा
बिहार के कुछ हिस्सों में अभी भी स्थिति तनावपूर्ण है। नालंदा में स्थिति नियंत्रण में है, लेकिन सोमवार सुबह सासाराम में धमाका हुआ। बिहार पुलिस प्रमुख ने सोमवार रात दंगा प्रभावित बिहारशरीफ का दौरा किया और आला अधिकारियों के साथ बैठक की। नालंदा के डीएम ने चेतावनी दी है कि सरेंडर न करने पर दंगाइयों की संपत्ति कुर्क की जाएगी। अर्धसैनिक बलों की नौ कंपनियां अब बिहारशरीफ में डेरा डाले हुए हैं। बिहारशरीफ में 31 मार्च को एक आवासीय परिसर में दंगाइयों द्वारा आग लगाने का वीडियो सामने आया है। अकेले बिहारशरीफ में 130 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया है। मंगलवार को AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की आलोचना की। ओवैसी ने कहा, बिहारशरीफ में मदरसा अजीजिया को आग के हवाले कर दिया गया और दंगाइयों ने हजारों किताबें और कई दुकानें जला दी, लेकिन नीतीश कुमार वहां जाने की बजाय इफ्तार पार्टी में गए। नालंदा नीतीश कुमार का गृह जिला है, फिर भी मुख्यमंत्री अभी तक वहां नहीं गए हैं। वह सोमवार को एक इफ्तार पार्टी में पहुंच गए। स्वाभाविक रूप से, भाजपा के नेता आरोप लगा रहे हैं कि मुख्यमंत्री मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति पर चल रहे हैं। मुख्यमंत्री के तौर पर नीतीश कुमार की ये जिम्मेदारी है कि पहले वो दंगा पीड़ितों के घावों पर मरहम लगाते, फिर इफ्तार में जाते। इससे उनका कद भी बढ़ता और बिहार के लोगों में उनके प्रति भरोसा भी।
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