संसद में बुधवार को जो हुआ, वो निश्चित रूप से 4-6 लोगों का काम नहीं है। ये गहरी और बड़ी साजिश का हिस्सा है। सरकार को बदनाम करने के लिए पूरी प्लानिंग के साथ किया गया कारनामा है। 13 दिसंबर का दिन चुना गया, जिस दिन 22 साल पहले पुराने संसद भवन पर लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मुहम्मद के आतंकवादियों ने हमला किया था। पकड़े गए चारों लोग एक-दूसरे को चार साल से जानते थे। उन्हें भेजने वालों ने नये संसद भवन की सुरक्षा प्रणाली की पहले से टोह ले ली थी। ये पता था कि दर्शकों के जूतों की तलाशी नहीं होती। इसीलिए कलर कैनेस्टर्स जूतों में छिपाकर लाए गए। चारों लोगों के मोबाइल पहले से लेकर रख लिए गए थे। जिस के पास मोबाईल थे, जिसने वीडियो बनाया, वो गायब है। प्लानिंग तो पूरी तैयारी के साथ की गई थी। पास भी बीजेपी के सांसद से बनवाए गए थे। नए संसद भवन को निशाना बनाया गया। एक तो ये संदेश देने के लिए कि संसद आज भी सुरक्षित नहीं है और अगर संसद सुरक्षित नहीं है तो फिर बाकी जगह कैसे सुरक्षित हो सकती है? चार लोगों से नारे भी वो लगाए गए जो लेफ्ट इकोसिस्टम के लोग लगाते हैं। लेकिन ये बात भी सही है कि ये बड़ी सुरक्षा चूक थी। जिस संसद भवन की दर्शक दीर्घा तक पहुंचने के लिए सुरक्षा के तीन-तीन स्तरों से गुजरना पड़ता है, जहां कोई पेन, सिक्का और मोबाइल तक नहीं ले जा सकता, वहां 2-2 शख्स गैस कैनेस्टर्स लेकर कैसे पहुंच गए? ये खतरा बहुत बड़ा है। रासायनिक हथियारों का ज़माना है। इन लोगों के पास कैनेस्टर्स में ज़हरीली गैस हो सकती थी। प्लास्टिक एक्स्प्लोसिव हो सकता था। इस घटना से देश के दुश्मनों का हौसला बढ़ेगा। इसलिए इस साजिश की तह तक पहुंचना जरूरी है। इन चार लोगों के पीछे कौन है? किसने प्लानिंग की? किसने फाइनेंस किया? इस पूरी साजिश का पता लगाना ज़रूरी है। (रजत शर्मा)
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