सारी दुनिया ये देख कर हैरान है कि जिस फौज का पाकिस्तान में खौफ था, लोग उस पर हमला कर रहे हैं. लोग जानते हैं कि इमरान खान की गिरफ़्तारी फौज और आई. एस. आई. का काम है. मुझे लगता है कि पाकिस्तान में फौज, आई. एस. आई . और शहबाज़ शरीफ की सरकार ने इमरान खान को पाकिस्तान में एक बार फिर हीरो बना दिया है. जब इमरान खान प्रधानमंत्री थे, तो लोग उनसे नाराज रहते थे, वो जनता से किए गए वादों को पूरा नहीं कर पाए थे. उन्होंने भी सत्ता में आने से पहले बड़ी बड़ी बातें की थी. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को लेकर बेसिर पैर की तरक़ीबें बताई थी, भ्रष्टाचार दूर करने के वादे किए थे, लेकिन ये सब कुछ करना पाकिस्तान में व्यावहारिक रूप से संभव नहीं था. इसलिए प्रधानमंत्री के तौर पर इमरान खान असफल होते दिखाई दे रहे थे. अगर वो सरकार में बने रहते, तो शायद अगला चुनाव न जीत पाते. लेकिन पाकिस्तान में बड़े सियासी फैसले जनमत के दम पर नहीं होते. न तो इमरान खान का तख्ता पलटने का फैसला सियासी तौर पर सही था, और न ही उन्हें उठा कर जेल में पटकने का फैसला सही है.
इमरान खान सरकार से हटने के बाद पब्लिक के बीच उतरे और सही मायने में लीडर बने. गिरफ्तार होने से पहले उन्होंने वीडियो में जो कहा, वो बात पाकिस्तान के लोगों के दिलों में उतर गई. लोग इमरान खान के लिए मरने मारने को तैयार हो गए. इस एक वीडियो ने इमरान को पाकिस्तान का मसीहा बना दिया. पाकिस्तान की सड़कों पर उतरे लाखों लोग इसका सबूत हैं. जो लोग फौज से टकराने को तैयार हों, जिनके चेहरों पर कोई खौफ न हो, वे सब लोग आने वाले वक्त में इमरान के लिए बहुत बड़ी ताकत बन जाएंगे. ये लोग आने वाले दिनों में इमरान खान के बहुत काम आएंगे, और अचरज की बात ये है कि ये बात न तो पाकिस्तान की फौज को दिखाई दे रही है और न सरकार में बैठे शहबाज शरीफ और उनके दोस्तों को.
कर्नाटक : कहना मुश्किल है, ऊंट किस करवट बैठेगा
कर्नाटक के मामले में ये कहना मुश्किल है कि एग्ज़िट पोल कितने सही साबित होंगे. जब किसी चुनाव में कांटे की टक्कर होती है, तो, किसी के लिए भी अंदाज़ा लगाना मुश्किल होता है. 2018 में भी कर्नाटक में कांटे की टक्कर थी, किसी को बहुमत नहीं मिला था और सारे ओपिनियन पोल ग़लत साबित हुए थे. इस बार भी ऐसा हो, तो हैरानी नहीं होनी चाहिए. हालांकि, इस बार के चुनाव में कुछ बातें नई हैं. एक तो पहले जेडी(एस) बड़ा फैक्टर होती थी, मुकाबले त्रिकोणीय होते थे, इस बार वो इतना बड़ा फैक्टर नहीं है. इस बार ज़्यादातर सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस की टक्कर है.पिछली बार के मुक़ाबले, कांग्रेस में इस बार बदलाव दिखाई दिया. इस चुनाव में कांग्रेस ने अपने नेताओं की आपसी लड़ाई को ठीक से मैनेज किया. लेकिन, बीजेपी इस बार अपने नेताओं को मैनेज नहीं कर पाई.. उसकी लड़ाई खुलकर सामने आई.. दूसरी बात, कांग्रेस का नज़रिया पहले ही दिन से साफ था कि स्थानीय मुद्दों पर चुनाव लड़ना है. कांग्रेस में, शुरुआती दौर में कोई भ्रम नहीं था. लेकिन, बाद के दौर में बीजेपी ने बाज़ी पलटी. जैसे ही कांग्रेस ने PFI और बजरंग दल को एक ही तराजू में तोलने की ग़लती की, चुनाव में बजरंग बली की एंट्री हुई और कांग्रेस बुरी तरह कनफ्यूज़ हुई. चुनाव का मुख्य मुद्दा बदल गया.
कांग्रेस की दूसरी बड़ी समस्य़ा ये है कि उसके पास न तो नरेंद्र मोदी जैसा कैंपेनर है, न उनके जैसा करिश्मा. जब मोदी चुनाव प्रचार में उतरते हैं, तो रैली करें या रोड शो, वह हवा बदल देते हैं. मोदी ने इस चुनाव में भी जी-तोड़ मेहनत की, लेकिन कांग्रेस के मुख्य कैंपेनर राहुल गांधी, अनिच्छुक नज़र आए. इसीलिए कोई नहीं कह सकता कि ऊंट किस करवट बैठेगा. 13 मई का इंतजार करें .शनिवार को सुबह 6 बजे से आप इंडिया टीवी पर कर्नाटक चुनाव के शुरुआती रूझान और नतीजे देख सकते हैं. इंडिया टीवी के सभी रिपोर्टर ग्राउंड से आप तक रिपोर्ट पहुंचाएंगे. जाने-माने एक्सपर्ट हमारे साथ होंगे. 224 सीटों के पल-पल का हाल आप तक पहुंचे, इसके लिए हमने विशेष इंतजाम किये हैं. 13 मई नतीजे का दिन है. सुबह 6 बजे से आप कर्नाटक के रूझान और नतीजों का एक-एक अपडेट सबसे पहले देख पाएंगे इंडिया टीवी पर.
अब फिर प्रचार में मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को नाथद्वारा में साढ़े पांच हजार करोड़ की योजनाओं का उद्घाटन औऱ शिलान्यास किया. इस सरकारी कार्यक्रम के बाद एक रैली की. सरकारी प्रोग्राम में प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत एक मंच पर थे. इसके बाद माउंट आबू में हुई बीजेपी की रैली में मोदी और वसुन्धरा राजे एक मंच पर थे. दोनों जगह मोदी ने मौके और माहौल के हिसाब से बात की. नाथद्वारा में जैसे ही गहलोत बोलने के लिए खड़े हुए तो पब्लिक ने ‘मोदी, मोदी’ के नारे लगाने शुरू कर दिए. .ये देखकर मोदी थोड़ा असहज हुए.. उन्होंने लोगों को रोका. फिर मंच पर बैठे सीपी जोशी से कहा कि नारेबाजी बंद करवाइए. मोदी के हावभाव देखकर नारेबाजी बंद हो गई . लेकिन ये नारेबाजी अशोक गहलोत को चुभ गई. गहलोत ने कहा कि लोकतंत्र में विपक्ष का सम्मान भी जरूरी है, विपक्ष के बिना सत्ता पक्ष का क्या मतलब है. गहलोत ने प्रधानमंत्री से अपील की कि वह राजस्थान की लम्बित परियोजनाओं को जल्द मंजूरी दें.
मोदी ने माउंट आबू की रैली में कांग्रेस पर सीधा हमला बोला. मोदी ने कहा कि राजस्थान की सरकार के पास जनता की भलाई के काम करने की फुर्सत ही नहीं है, क्योंकि मुख्यमंत्री को न अपने विधायकों पर भरोसा है, और न ही विधायकों को अपने मुख्यमंत्री पर विश्वास है. मोदी ने कहा कि जिस राजस्थान में एक दूसरे को नीचा दिखाने का कंपटीशन चल रहा है, वहां की सरकार को पब्लिक की चिंता कैसे हो सकती है. मोदी जब सरकारी कार्यक्रम में होते हैं, तो वो प्रधानमंत्री की भूमिका में रहते हैं, और जब बीजेपी के कार्यक्रम में पहुंचते हैं, तो कैंपेनर के रोल में तब्दील हो जाते हैं. राजस्थान में भी यही देखने को मिला. सरकारी कार्यक्रम में उन्होंने मुख्यमंत्री गहलोत को अपने पास बिठाया, अपना दोस्त बताया और उनकी तारीफ़ भी की, लेकिन थोड़ी देर बाद, जब वो बीजेपी की रैली में पहुंचे, तो मोदी ने सचिन पायलट और गहलोत की तकरार को मुद्दा बनाया, कांग्रेस को फ्रॉड बताया. यही नरेंद्र मोदी की ख़ासियत है. एक चुनाव का प्रचार पूरा होता है, और वो दूसरे की तैयारी में जुट जाते हैं. राजस्थान के बाद, अब उनका अगला दौरा मध्य प्रदेश में होगा. (रजत शर्मा)
देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 10 मई, 2023 का पूरा एपिसोड