‘एक देश, एक चुनाव’ के मुद्दे पर विचार के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने गुरूवार को अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी। 191 दिन तक राजनीतिक दलों के नेताओं, विशेषज्ञों और नागरिक समाज के लोगों से बातचीत के बाद 18,626 पन्नों की ये रिपोर्ट तैयार हुई है। कमेटी ने देश में सभी चुनाव एक साथ कराने की सिफारिश की है। कमेटी ने चुनाव प्रक्रिया को दो चरणों में बांटने का सुझाव दिया है - पहले चरण में लोकसभा और देश के सारे राज्यों में विधानसभा के चुनाव एक साथ करा लिए जाएं, इसके बाद दूसरे चरण में स्थानीय निकायों यानि पंचायतों और नगर निगम, नगरपालिकाओं के चुनाव हों। दोनों चरणों के चुनाव 100 दिन के भीतर हों। कमेटी का कहना है कि सभी चुनावों में एक ही वोटर लिस्ट और वोटर आईडी का इस्तेमाल किया जाए। इससे समय, संसाधन और खर्च बचेंगे।
बहुत से लोगों के मन में ये सवाल उठेगा कि अगर देश में या किसी राज्य में सरकार वक्त से पहले गिर जाती है, तो क्या होगा? इसके जवाब में कमेटी ने कहा कि अगर कहीं मध्यावधि चुनाव की ज़रूरत पड़ती है तो वो पांच साल के लिए न हों। लोकसभा या विधानसभा का जितना कार्यकाल बचा हो, सिर्फ उतने वक्त के लिए चुनाव कराएं जाएं, जिससे देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने के चक्र पर कोई असर नहीं पड़ेगा। अभी यही फॉर्मूला राज्यसभा, लोकसभा और विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनावों में अपनाया जाता है। हांलाकि कमेटी ने देश की 62 राजनीतिक पार्टियों से राय मांगी थी, लेकिन 47 पार्टियों ने अपना जवाब भेजा। इनमें से 32 पार्टियों ने इस कदम का समर्थन किया जबकि 15 पार्टियों ने इसका विरोध किया। 6 राष्ट्रीय पार्टियों में सिर्फ दो - बीजेपी और कॉनराड संगमा की नेशनल पीपुल्स पार्टी ने इसका समर्थन किया जबकि चार राष्ट्रीय पार्टियां – कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और सीपीआई-एम इसके विरोध में हैं।
जैसे ही राष्ट्रपति को ये रिपोर्ट सौंपी गई तो सबसे पहली प्रतिक्रिया AIMIM चीफ असद्दुदीन ओवैसी की आई। ओवैसी ने कहा कि बीजेपी देश में सिंगल-पार्टी सिस्टम चाहती है, और एक देश, एक चुनाव की अवधारणा संघीय ढांचे के ताबूत में आखिरी कील साबित होगी। ओवैसी का कहना है कि अगर देश में चुनाव होते रहते हैं तो पार्टियां हर वक्त जनता के प्रति जबावदेह बनी रहती हैं। अगर सरकार का कार्यकाल पांच साल निर्धारित हो जाएगा तो सत्ता में आने वाली पार्टी पांच साल के लिए तनावमुक्त हो जाएगी, ये लोकतन्त्र के लिए खतरनाक है। कांग्रेस ने ओवैसी से ज्यादा तीखी प्रतिक्रिया दी। जयराम रमेश ने कहा कि एक देश,एक चुनाव तो महज़ दिखावा है, मोदी का मकसद वन नेशन, नो इलैक्शन है और मोदी इसी एजेंडा पर काम कर रहे हैं। एक देश, एक चुनाव पर बहस अभी से नहीं चल रही है। मोदी ने कम से कम 6 साल पहले देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एकसाथ कराने का सुझाव रखा था। फिर पिछले साल इस मुद्दे पर कमेटी बनाई।
मुझे लगता है कि ये सुझाव अच्छा है क्योंकि देश भर में साल भर किसी न किसी राज्य में चुनाव होते रहते हैं। अभी लोकसभा का चुनाव खत्म होगा, उसके तीन महीने बाद 6 राज्यों में चुनाव होंगे। वो चुनाव खत्म होंगे, तो तीन राज्यों में चुनावों का ऐलान हो जाएगा। उसके बाद 2026 में पांच राज्यों के चुनाव होंगे, फिर उसके अगले साल 6 राज्य़ों में चुनाव होंगे और 2029 में अगले लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले 2028 में दस राज्यों के विधानसभा चुनाव होंगे। चूंकि हर वक्त कहीं न कहीं देश में चुनाव आचार संहिता लगी रहती है, इससे विकास के काम रूकते हैं। चुनाव मशीनरी हर वक्त सक्रिय रहती है, सुरक्षा बल तैनात करने पड़ते हैं, हजारों करोड़ रूपए खर्च होते हैं।
अगर सारे चुनाव एक साथ हों तो लाखों करोड़ रूपए बचेंगे, वक्त बचेगा और ये संसाधन दूसरे कामों में लगाए जा सकते हैं, लेकिन एक देश, एक चुनाव का लक्ष्य फिलहाल आसान नहीं लगता क्योंकि संविधान में तमाम संसोधन करने होंगे। उनको संसद के दोनों सदनों में पास करना होगा। फिर कम से कम आधी विधानसभाओं से पास करना होगा। ये बहुत मुश्किल काम होगा। इसलिए अगर 2029 तक भी ये काम पूरा हो जाए तो ये बड़ी बात होगी। लेकिन मोदी की जो स्टाइल है, उसमें कुछ भी असंभव नहीं है। इसीलिए विरोधी दलों के नेता परेशान हैं। उन्हें लगता है कि अगर मोदी ने तय कर लिया है, तो वह इस काम को भी जरूर पूरा करेंगे, जैसे धारा 370 का खात्मा और नागरिकता संशोधन कानून।