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Rajat Sharma’s Blog: नूंह में हुई हिंसा को रोका जा सकता था

पिछले कई दिनों से सोशल मीडिया पर नूंह में मोनू मानेसर का नाम लेकर विश्व हिन्दू परिषद की शोभायात्रा में शामिल लोगों को सबक सिखाने की बात हो रही थी।

Written By: Rajat Sharma
Published : Aug 03, 2023 16:35 IST, Updated : Aug 03, 2023 16:35 IST
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Image Source : INDIA TV इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ रजत शर्मा।

ये समझने की ज़रूरत है कि हरियाणा के नूंह में इतने बड़े पैमाने पर साज़िश हुई, तो इंटेलिजेंस बेख़बर कैसे रही? दूसरी बात ये है कि इतनी बड़ी तादाद में पुलिसवाले घायल हुए, थानों पर हमले हुए, तो पुलिस ने एक्शन क्यों नहीं लिए? पुलिस पिटती क्यों रही? सारी बातों को देखने के बाद मुझे लगता है कि हरियाणा सरकार ने इस पूरी सिचुएशन को समय रहते नहीं समझा, गंभीरता से नहीं लिया। मुस्लिम पक्ष की तरफ से मोनू मानेसर को इस पूरे मामले का ‘की पॉइंट’ बनाया गया था। ये बात सही है कि पिछले कई दिनों से सोशल मीडिया पर नूंह में मोनू मानेसर का नाम लेकर विश्व हिन्दू परिषद की शोभायात्रा में शामिल लोगों को सबक सिखाने की बात हो रही थी। सैकड़ों वीडियो सर्कुलेट हो रहे थे। मोनू मानेसर का वीडियो भी वायरल था, लेकिन हिन्दू पक्ष का कहना है कि इस तरह तो मेवात इलाके से कांग्रेस के विधायक मामन खान, चौधरी आफताब और मोहम्मद इलियास ने 22 फरवरी को विधानसभा में खड़े होकर कहा था कि अगर पुलिस मोनू मानेसर और उसके साथी बिट्टू बजरंगी के खिलाफ एक्शन नहीं लेगी, तो हम खुद सबक सिखाएंगे। मेवात में मोनू मानसेर और उसके समर्थकों को प्याज जैसा फोड़ देंगे। इसलिए पुलिस को वक्त रहते सुरक्षा के इंतजाम तो करने चाहिए थे।

नूंह में जो हुआ वो पुलिस की नाकामी है, स्टेट इंटैलीजेंस की विफलता है, उन्हें अंदाजा ही नहीं था कि अंदर ही अंदर कितनी आग सुलगाई गई थी, हालांकि विश्व हिन्दू परिषद के नेताओं ने अपनी तरफ से मोनू मानेसर और गोरक्षा दल के आक्रामक लोगों को शोभा यात्रा में शामिल होने से रोका था। इसके बाद सरकार ये मान कर बैठ गई कि अब कोई गड़बड़ी नहीं होगी। पुलिस का बंदोबस्त साधारण था। हर चौराहे 5-10 पुलिस जवान तैनात थे, जो किसी सामान्य स्थिति में होते हैं।  चिंता इतनी कम थी कि इलाक़े के डिप्टी कमिश्नर और एसपी छुट्टी पर चले गए। पुलिस पर गोली चली, पत्थर बरसे, थानों पर क़ब्ज़ा हुआ, पर पुलिस को निर्देश था कि गोली नहीं चलानी है, इसलिए दंगाइयों की हिम्मत बढ़ती गई। पॉलिटिकल थिंकिंग यह थी कि अगर एक भी मुसलमान को गोली लग गई तो हालात को संभालना मुश्किल हो जाएगा। नूंह की 11 लाख की आबादी में से करीब 9 लाख मुसलमान हैं। दूसरी तरफ़, विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल को शोभा यात्रा निकालते समय इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि उन पर हमला हो सकता है। उनकी शोभा यात्रा में लड़ने-भिड़ने वाले गोरक्षक दल के लोग शामिल नहीं थे। उन्हें घर बैठने को कहा गया था। उन्होंने सोचा कि जब कोई प्रोवोकेशन नहीं है, तो गड़बड़ कैसे होगी, अपनी सरकार है, कुछ नहीं होगा, लेकिन जो हुआ वो सब के सामने है।

सबसे ज़्यादा हालत तब ख़राब हुई जब विश्व हिंदू परिषद के सुरेंद्र जैन और हज़ारों श्रद्धालु मंदिर में फंस गए। चारों तरफ़ पहाड़ियों से गोलियां चलनी शुरू हुईं, तब जाकर सरकार जागी, और पुलिस का एक्शन हुआ। अब FIR तो दर्ज हो रही है, जांच तो हो रही है, लेकिन आज भी हालत ये है कि इतने सुरक्षा बल  के बावजूद कई मुस्लिम इलाक़ों में पुलिस का घुसना मुश्किल हो रहा है। लोगों में अविश्वास इतना ज़्यादा है कि लोग इन इलाक़ों से पलायन कर रहे हैं। नूंह में रहने वाले हिंदू कहते हैं कि अगर पड़ोसी, पड़ोसी को मारेगा तो फिर अपने बच्चों के साथ हम यहां कैसे रह सकते हैं। लेकिन इतना सब होने के बावजूद राजनीतिक दलों के नेता और हिंदू मुस्लिम संगठनों के लोग ज़ोर आज़माइश में लगे हैं। नुक़सान हिंदुओं का भी हुआ है और मुसलमानों का भी, लेकिन हर कोई इसको अपने अपने तरीक़े से पेश कर रहा है। राजनीतिक दलों के नेता मौके के हिसाब से, हालात और सियासी माहौल को देखकर बयानबाजी करते हैं। आज जो बयान आए उनसे तो ऐसा लगता है कि हरियाणा सरकार को खतरे की हवा तक नहीं थी। सरकार मान बैठी थी कि कुछ नहीं होगा।

कांग्रेस और दूसरे दलों के नेताओं की बातें सुनी तो ऐसा लगा जैसे उन्हें अभी भी हालात की गंभीरता का अंदाजा नहीं हैं। इतनी भंयकर हिंसा के बाद भी सरकार अपनी खाल बचाने में लगी है और विरोधी दल सरकार की खाल नोंचने में लगे हैं। ये ठीक नहीं हैं। मुझे लगता है कि नूंह में जो हुआ वो न हिन्दुओं के लिए ठीक है और न मुसलमानों के लिए अच्छा है। इससे हिन्दुओं और मुसलमानों के मन में एक दूसरे के प्रति जो शक पैदा हुआ है, वह देश के लिए खतरनाक है। अब ये पुलिस की जिम्मेदारी है कि दंगा करने वाले असली अपराधियों को पकड़ें, साजिश रचने वालों को बेनकाब करें और राजनीतिक दलों और संगठनों के नेता कुछ वक्त तक खामोश रहें, तभी हालात ठीक हो सकते हैं। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 02 अगस्त, 2023 का पूरा एपिसोड

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