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Rajat Sharma’s Blog | कुदरत का क़हर : बचने के उपाय

खतरा बड़ा है, इससे बचाने का काम सिर्फ सरकारें नहीं कर सकती, हम सबको इस खतरे को समझना होगा और ग्लोबल वॉर्मिंग को कम करने के लिए अपना योगदान करना होगा.

Written By: Rajat Sharma
Published on: July 11, 2023 17:56 IST
इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ रजत शर्मा।- India TV Hindi
Image Source : इंडिया टीवी इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ रजत शर्मा।

देश के कई हिस्सों से बारिश से हुई तबाही की जो तस्वीरें आईं, वो दिल दहलाने वाली हैं. प्रकृति का सबसे ज्यादा क़हर हिमाचल में दिखाई दिया. हिमाचल प्रदेश में पिछले सत्तर साल में इतनी बारिश कभी नहीं हुई, यहां भयंकर बारिश, बादल फटने की घटनाएं, भूस्खलन और बाढ़ के कारण बेइंतहा तबाही हुई है. दिल्ली का भी बुरा हाल है, यहाँ  पिछले चालीस साल में इतनी बारिश कभी नहीं हुई, जितना पानी मॉनसून के पूरे मौसम में बरसता है, उतनी बारिश सिर्फ 12 घंटे में हो गई. यमुना खतरे के निशान को पार कर गई है. हरियाणा के हथिनीकुंड बैराज से लगातार पानी छोड़ा जा रहा है, इसलिए आने वाले दिनों में दिल्ली के हालात और खऱाब होने के आसार है. दिल्ली के इंडिया गेट और कनॉट प्लेस जैसे इलाकों में पानी भर गया. मंत्री और सांसदों के घरों में भी तीन-तीन फीट पानी भर गया. प्रगति मैदान पर जो नई टनल बनी है उसमें इतना पानी भर गया कि उसे बंद करना पड़ा. दिल्ली के अलावा कई ऐसे शहर, जैसे चंडीगढ़, मोहाली, गुड़गांव में भी चारों तरफ पानी भर गया. लोगों का जीना मुश्किल हो गया. चंडीगढ़ में BMW और मर्सिडीज कारें पानी में तैरती दिखाई दी. उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात में भी भारी बारिश मुसीबतों की बाढ़ लेकर आई.

चिंता की बात ये है कि मौसम विभाग ने हिमाचल प्रदेश में अगले 48 घंटे में भारी बारिश का रेड एलर्ट जारी किया है. चम्बा, कुल्लू, शिमला, सिरमौर, सोलन और मंडी ज़िलों में तूफ़ानी बारिश और बाढ़ की चेतावनी दी गई है. हिमाचल प्रदेश की सभी नदियां लोगों के लिए मुसीबत बन गई हैं. ऐसा लग रहा है कि सतलुज, रावी और ब्यास अपने आसपास की हर चीज को बहाकर ले जाना चाहती हैं. ये हालात इसलिए पैदा हुए क्योंकि हिमाचल में पिछले दो दिनों में इतनी बारिश हो चुकी है, जितनी लोगों ने कभी नहीं देखी. सोलन ज़िले में तो बारिश ने पिछले 52 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. रविवार को सोलन ज़िले में 135 मिलीमीटर बारिश हुई थी. इससे पहले सोलन ज़िले में 1971 में एक दिन में 105 मिलीमीटर बारिश का रिकॉर्ड बना था. कुछ घंटों की रिकॉर्ड बारिश से सोलन ज़िले में ऐसा सैलाब आया कि बहुत सी सड़कें और पुल बह गए. पूरा पहाड़ कीचड़ की शक्ल में पूरे इलाके में आ गया और हर चीज तिनके की तरह बह गई. पानी के तेज़ बहाव में बड़ी-बड़ी गाड़ियां खिलौनों की तरह बहने लगीं.

सवाल ये है कि पूरी दुनिया में और खास तौर पर हमारे देश में इतना पानी क्यों बरस रहा है, जो पिछले 40 साल में या कहीं 70 साल में कभी नहीं बरसा ? बारिश से इतनी तबाही क्यों हो रही है? इसके 2 मेन कारण हैं -पहला क्लाईमेट चेंज, यानी जलवायु परिवर्तन, और दूसरा- शहरों में अनियंत्रित निर्माण. पिछले 10 साल से  वैज्ञानिक बार-बार चेतावनी दे रहे हैं, रेड अलर्ट का सिग्नल दे रहे हैं कि सबको मिलकर ग्लोबल वॉर्मिंग रोकने की कोशिश करनी चाहिए, पर कम लोग उनकी बात सुनते हैं. वैज्ञानिक कहते हैं कि अगर गर्मी बढे़गी तो ज्यादा बारिश होगी, बाढ़ आएगी और तबाही होगी. वो समझाते हैं कि अगर एक परसेंट टेम्परेचर बढ़ता है तो समुद्र का 7 परसेंट ज्यादा पानी भाप बनकर निकलता है. बादल बनकर बरसता है, अगर समंदर पर तापमान 2-3 परसेंट बढ़ता है तो पानी 15-20 परसेंट ज्यादा भाप बन जाता है, और जब बादल बनेंगे तो कहीं न कहीं तो बरसेंगे ही. आजकल पहाड़ में इतनी ज्यादा बारिश इसलिए हो रही है क्योंकि वहां हर वक्त हवा चलती रहती है, ये हवा जब पहाड़ से टकराती है तो बादल बरसते हैं, कभी-कभी बादल फटते हैं, इसलिए हिमालय की तलहटी, वेस्टर्न घाट की तलहटी में आजकल इतनी जबरदस्त बारिश हो रही है. इसीलिए हिमाचल और उत्तराखंड में इतनी ज्यादा बाढ़ आई है. इसी तरह के हालात असम और पूर्वोत्तर राज्यों में भी हैं.

वैज्ञानिकों का कहना है कि ये खतरा और बढ़ेगा, आने वाले साल में बादल और बरसेंगे और बाढ़ आएगी, ये खतरा इसलिए है क्योंकि जलवायु परिवर्तन की वजह से कार्बन डाइ ऑक्साइड और मीथेन गैस का उत्सर्जन बढ़ रहा है. आज इस वक्त का जो अनुमान है, उसके मुताबिक सन् 2050 तक  दक्षिण एशिया में आज के मुकाबले 14 गुना ज्यादा गर्मी की लहर का सामना करना पड़ेगा. आप सोच सकते हैं कि अगर गर्मी 14 गुना ज्यादा बढ़ जाएगी, तो आज जितनी बाढ़ आ रही है, उससे ढाई से तीन गुना ज्यादा ज्यादा बाढ़ आएगी. आज जितने तूफान आते हैं, उससे चार से पांच गुना ज्यादा तूफानी हालात का सामना करना पड़ सकता है. खतरा बड़ा है, इससे बचाने का काम सिर्फ सरकारें नहीं कर सकती, हम सबको इस खतरे को समझना होगा और ग्लोबल वॉर्मिंग को कम करने के लिए अपना योगदान करना होगा. इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं है. हम कितने पेड़ काटते हैं, कितने पेड़ लगाते हैं, हम कितना प्लास्टिक का इस्तेमाल करते हैं, हम कितना पानी बर्बाद करते हैं, हम कॉन्क्रीट के कितने जंगल खड़े करते हैं, ये सारी बातें इस खतरे को बढ़ाती हैं. अगर इससे बचना है, तो सावधानी तो बरतनी पड़ेगी.

हिंसा : बंगाल की छवि के लिए ठीक नहीं

पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव में हिंसा के बाद सोमवार को 697 पोलिंग बूथ्स पर दोबारा वोट डाले गए. मंगलवार को वोटों की गिनती शुरू हुई, और शुरुआती रुझानों के मुताबिक तृणमूल कांग्रेस सबसे आगे हैं, और बीजेपी दूसरे स्थान पर है. चुनावों में अब तक 41 लोगों की मौत हो चुकी है. बीजेपी ने पंचायत चुनाव के दौरान हुई हिंसा के लिए ममता बनर्जी की सरकार को जिम्मेदार ठहराया है, तृणमूल कांग्रेस पर खून खऱाबे का इल्जाम लगाया. बंगाल में विपक्ष के नेता शुभेन्दु अधिकारी ने चुनाव आयोग को चिट्ठी लिखकर छह हजार पोलिंग बूथ्स पर रीपोल कराने की मांग की है. शुभेन्दु अधिकारी ने कहा कि बंगाल में जिस तरह के हालात हैं, उसके बाद केन्द्र सरकार को संविधान के अनुच्छेद 355 का इस्तेमाल कर राष्ट्रपति शासन लगाने की चेतावनी देनी चाहिए. बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा ने रविशंकर प्रसाद की अगुवाई में चार सदस्यों की तथ्यान्वेषी कमेटी को बंगाल भेजने का फैसला किया है. तृणमूल कांग्रेस के नेताओं का दावा है कि बंगाल को बदनाम करने के लिए बीजेपी ही हिंसा करवाती है और उसके बाद शोर भी मचाती है. कलकत्ता हाई कोर्ट ने सीमा सुरक्षा बल के आई जी से कहा है कि वह सुरक्षा बलों की तैनाती के बारे में रिपोर्ट पेश करें. बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने हाई कोर्ट से आग्रह किया है कि मारे गये लोगों को मुआवज़ा दिया जाय और एक हाई कोर्ट जज की अध्यक्षता में हिंसा की घटनाओं की न्यायिक जांच करायी जाय. राज्यपाल सी वी आनन्द बोस ने सोमवार को गृह मंत्री अमित शाह से दिल्ली में मुलाकात की और बाद में घुमा फिरा कर केवल इतना कहा कि जब अंधेरा घना होता है तो समझो सुबह होने वाली है.

ऐसा नहीं है कि पंचायत चुनाव के दौरान हुई हिंसा में सिर्फ बीजेपी के कार्यकर्ताओं की मौत हुई. हिंसा के शिकार तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस और लेफ्ट के कार्यकर्ता भी हुए हैं. इसलिए नाराजगी तो सभी पार्टियों में हैं. जांच की मांग सभी कर रहे हैं. ये बात तो सही है कि बंगाल के पंचायत चुनाव में हिंसा होगी, ये सब जानते थे. इसलिए इसे रोकने के कदम तो उठाए जाने चाहिए थे. सवाल ये भी है कि तमाम रिपोर्ट्स और पुराना रिकॉर्ड सामने होने के बाद भी सेन्ट्रल फोर्सेस की तैनाती वक्त रहते क्यों नहीं की गई? इसके लिए भी कोर्ट को दखल देना पड़ा. फिर जब तैनाती हुई तो उन इलाकों में ठीक से नहीं हुई, जिनमें हिंसा की आशंका ज्यादा थी. नतीजा ये हुआ कि कई सालों के बाद देश ने पोलिंग बूथ लुटते हुए देखे, लोग बूथ में मतपेटियां छीनकर मत पत्रों पर धड़ाधड़ अपनी पार्टी का ठप्पा लगाते हुए दिखे. इसीलिए राज्य चुनाव आयोग की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं. मुझे लगता है कि बंगाल में चुनाव चाहे पंचायत का हो, नगर निगम का हो, विधानसभा का हो, लोकसभा का हो, हर बार हिंसा की खबरें आती हैं, गोली चलती है, बम चलते हैं, हत्याएं होती है, ये न लोकतन्त्र के लिए अच्छा है, और न बंगाल की छवि के लिए. ममता बनर्जी को सोचना चाहिए कि वो वामपंथी शासन के खिलाफ लड़कर आईं. इसी तरह की हिंसा से बंगाल को मुक्त करने का वादा करके मुख्यमंत्री बनीं. कम से कम उन्हें बंगाल के लोगों से किए गए वादे को तो याद करना चाहिए. (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 10 जुलाई, 2023 का पूरा एपिसोड

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