गैंगस्टर से नेता बने मुख्तार अंसारी के शव को गाजीपुर के कब्रिस्तान में शनिवार को सुपुर्द-ए-खाक किया गया। मुख्तार की मौत किन परिस्थितयों में हुई, इसकी जांच होनी चाहिए। मौत की असली वजह पता लगनी चाहिए। ये नैसर्गिक न्याय का सिद्धान्त है। और हमारे कानून में इसका प्रावधान है..इसलिए जांच हो रही है। लेकिन जांच के बहाने मुख्तार अंसारी के प्रति सहानुभूति जताना, वोटों की राजनीति करना ये ठीक नहीं हैं क्योंकि चाहे अखिलेश यादव हों, या मायावती, दोनों के राज में मुख्तार अंसारी को संरक्षण मिला और उसने नियम कानून की जरा भी परवाह नहीं की। वो तस्वीरें कौन भूल सकता है कि जब 2005 में मऊ में दंगे हुए और मुख्तार अंसारी खुली जीप में बैठकर हथियार लहराता हुआ पूरे शहर में घूम रहा था? उस वक्त तो मुलायम सिंह की सरकार थी। जब 2007 में मुख्तार जेल में था, तो दर्जनों गाड़ियों के काफिले के साथ मूंछों पर ताव देता हुआ डीजीपी के दफ्तर में पहुंचता था। उस वक्त मायावती मुख्यमंत्री थीं। तब किसी को न्याय की फिक्र क्यों नहीं हुई ? आज कांग्रेस के नेता मुख्तार अंसारी की मौत पर बयानबाजी कर रहे हैं लेकिन आज जो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हैं अजय राय, 1991 में उनके भाई अवधेश राय की हत्या मुख्तार अंसारी ने की थी। 32 साल तक न्याय नहीं मिला, तब किसी ने आवाज क्यों नहीं उठाई? इस केस में 32 साल के बाद योगी आदित्यनाथ की सरकार के वक्त पिछले साल मुख्तार अंसारी को उम्रकैद की सजा हुई। उसी केस में वो सजा काट रहा था।
2005 में मुख्तार जेल में था और उसके गुंडों ने एक- 47 से धुंधाधार फायरिंग कर के बीजेपी के विधायक कृष्णांनंद राय समेत सात लोगों की हत्या की। इस केस का एक मात्र गवाह बचा था, शशिकांत राय उसकी भी 2006 में हत्या करवा दी। ठेकेदार मन्ना सिंह की हत्या करवाई। फिर इस केस में गवाह राम सिंह मौर्य की हत्या करवा दी। 1988 में दो पुलिस वालों पर फायरिंग करके हिरासत से भागा। एएसपी पर जानलेवा हमला किया। जिस पुलिस अफसर ने मुख्तार अंसारी के गुंडों के कब्जे से ऑटोमैटिक राइफल जब्त की, उसने मुख्तार के खिलाफ पोटा कानून लगाया लेकिन मुख्तार का कुछ नहीं हुआ। उल्टे पुलिस अफसर को नौकरी छोड़नी पड़ी। मुख्तार जेल से बैठ कर मर्डर करवाता था। जेल में उसका राज चलता था। उसके लिए बैडमिन्टन कोर्ट और तमाम तरह की सुविधाएं थी। उसके खिलाफ 37 साल में हत्या, अपहरण, जमीनों पर कब्जे, वसूली के 66 मुकदमे दर्ज हुए। लेकिन किसी भी मामले में सजा नहीं हुई।
जब योगी आदित्यनाथ की सरकार आई तो एक मामले में पंजाब पुलिस उसे ले गई। और कांग्रेस की सरकार ने मुख़्तार को यूपी सरकार को सौंपने से इंकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट तक केस लड़ना पड़ा। उसके बाद उसे बांदा जेल लाया गया लेकिन बांदा जेल में भी उसने अपना कारोबार शुरू कर दिया। तब पुलिस वालों पर भी एक्शन हुआ। पिछले पांच साल में मुख्तार अंसारी को तीस तीस साल पुराने 8 मामलों में सजा हुई है। न्याय का सिलसिला शुरू हुआ था। उसे मालूम था कि वो जेल से छूटने वाला नहीं है और जेल में मिलने वाली सुविधाएं बंद हो गई हैं। इसीलिए परेशान, बीमार था। मुख्तार 63 साल का था, शुगर का मरीज था, हार्ट की समस्या थी। इसलिए उसकी मौत चौंकाने वाली नहीं हैं। मुझे नहीं लगता कि इस तरह के हार्डकोर क्रिमिनल की मौत पर ज्यादा आंसू बहाने की जरूरत है। लेकिन फिर भी जो लोग उसकी मौत की असली वजह जानना चाहते हैं। उन्हें इस मसले पर सियासत करने की बजाए ज्यूडिशियल मजिस्ट्रैट की जांच रिपोर्ट का इंतजार करना चाहिए। (रजत शर्मा)
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