22 जनवरी 2024 एक ऐसी तारीख है जो भारत के इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज़ रहेगा। पूरे देश में दिवाली मनाई गई, घर-घर गली-गली दीप जलाए गए, पांच सौ साल के बाद भगवान राम फिर अयोध्या में पधारे, भव्य राम मंदिर में विराजे, अयोध्या पूरी तरह जगमग है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूरे विधि विधान से, वैदिक परंपराओं के साथ रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की। राम जन्मभूमि पर दिव्य मंदिर का उद्घाटन किया। रामलला के स्वागत में देश भर के मंदिरों को सजाया गया। हर जगह जोश, उमंग, उत्साह, भक्ति है। हर जगह राम नाम का प्रताप, राम की शक्ति और प्रभु राम के प्रति आस्था का सागर दिखा। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही मोदी का 11 दिन का व्रत पूरा हुआ। रामलला को भोग लगाने, उनकी आरती और साष्टांग प्रणाम के बाद मोदी ने प्रसाद ग्रहण करके अपना अनुष्ठान पूरा किया। जब रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का अनुष्ठान अयोध्या में चल रहा था, उस वक्त पूरे देश के मंदिरों में करोड़ों रामभक्त इसका लाइव टेलीकास्ट देख रहे थे। उत्सव तो अयोध्या में हो रहा था लेकिन इसमें पूरी दुनिया के रामभक्त शामिल थे। अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, आस्ट्रेलिया, डेनमार्क, मारीशस, सिंगापुर, थाईलैंड, इंडोनेशिया और श्रीलंका समेत तमाम देशों में रामलला के स्वागत में प्रभात फेरियां निकाली गईं, दीवाली मनाई गई, आतिशबाज़ी हुई, मिठाइयां बांटी गईं। हमारे देश में तो हर गली चौराहे पर रामनाम का संकीर्तन हुआ, भंडारा हुआ।
मोदी ने कहा कि पांच सौ सालों की तपस्या, बलिदान और धैर्य का सुखद परिणाम मिला है। रामलला टेंट से भव्य राम मंदिर में पधारे हैं। मोदी ने कहा कि जो लोग कहते थे राम मंदिर बनेगा तो देश में आग लग जाएगी, भक्ति का ये सैलाब देखने के बाद उन्हें भी समझ आ जाना चाहिए कि राम आग नहीं, ऊर्जा हैं, राम देश की चिंता नहीं, चिंतन हैं, राम विवाद नहीं, समाधान है। राम अतीत नहीं, अनंत हैं, राम मंदिर सिर्फ देव मंदिर नहीं, राष्ट्र मंदिर है। सनातन संस्कृति का अमिट प्रमाण है। मोदी ने कहा कि एक यज्ञ तो पूरा हुआ, अब आगे क्या? अब प्रभु राम को परिश्रम का प्रसाद चढ़ाना है, भारत को विश्वगुरू बनाना है, भारत को विकसित राष्ट्र बनाना है। मोदी आस्था से ओत-प्रोत थे, भक्ति से भरे थे। प्राण प्रतिष्ठा के अगले दिन सुबह ही अयोध्या में करीब 3 लाख लोग रामलला का दर्शन करने के लिए मंदिर पहुंच गए।
रामलला का रूप दिव्य है, आंखों में बसने वाला है। ये विग्रह पांच वर्ष के बालक राम का है। 51 इंच लंबी श्यामल मूर्ति को जो मुकुट पहनाया गया है, वो उत्तर भारतीय परंपरा का प्रतीक है। सोने के इस मुकुट में पन्ना, माणिक्य, हीरा और दूसरे जवाहरात लगाए गए हैं। मुकुट के बीचो-बीच सूर्य भगवान की आकृति बनाई गई है। जो कुंडल पहनाए गए हैं, वो सोने के बने हुए हैं। इन कुंडलों में हीरा, पन्ना और माणिक्य लगे हैं। कुंडलों को मोर की आकृति में ढाला गया है। राम के गले में लगा कंठहार चंद्रमा की आकृति का है, जिसमें बारीक हीरे जवाहरात लगे हैं। रामलला के वक्ष स्थल पर कौस्तुभ मणि पहनाई गई है। इस कौस्तुभ मणि के बीच में एक बड़ा सा माणिक्य लगाया गया है और उसके चारों तरफ़ छोटे छोटे हीरे लगे हैं। ये परंपरा है कि भगवान विष्णु के अवतारों को कौस्तुभ मणि पहनाई जाती है। इसीलिए, रामलला को भी कौस्तभु मणि पहनाई गई। रामलला के गले में एक हार भी पहनाया गया है। सोने के पांच तारों से बने इस हार में भी पन्ने जड़े गए हैं और नीचे की ओर एक कर्णफूल भी हार में लगा हुआ है। एक और हार भी पहनाया गया है जिसका नाम वैजयंतिका है। ये रामलला के गले में डाला गया, सबसे लंबा हार है, जो वैष्णव परंपराओं के प्रतीक चिह्नों से आभूषित है। वैजयंतिका में सुदर्शन चक्र, कमल, शंख और मंगल कलश बनाए गए हैं। भगवान को प्रिय फूलों जैसे कि चंपा, पारिजात कुंड और तुलसी की आकृतियां भी इस हार में उकेरी गई हैं। प्रतिमा की कमर में करधनी पहनाई गई है, तरह तरह के हीरे जवाहरात इस करधनी में जड़े गए हैं। इनमें हीरे, पन्ना, मोती और माणिक्य शामिल हैं। राम के दोनों हाथों में भुजबंद पहनाए गए हैं, जो सोने के बने हैं और इनमें भी क़ीमती रत्न जड़े हैं। भगवान की कलाई में हीरे जवाहरात जड़े सोने के कंगन भी पहनाए गए हैं। इसके अलावा, रामलला की मूर्ति को हीरे और मोतियों से जड़ी अंगूठियां अथवा मुद्रिकाएं भी पहनाई गई हैं। रामलला के पैरों में पैजनियां पहनाई गई हैं, तो बाएं हाथ में सोने का धनुष और दाहिने हाथ में सोने का बाण है। भगवान के पैरों के नीचे कमल की आकृति बनाई गई है, जिसको सोने की माला से सजाया गया है। रामलला की इस ख़ूबसूरत प्रतिमा के ऊपर सोने का एक छत्र भी लगाया गया है। राम, बनारसी वस्त्र की पीताम्बर धोती तथा लाल रंग के अंगवस्त्रम से सुशोभित हैं। इन वस्त्रों पर शुद्ध सोने की ज़री और तारों से काम किया गया है जिनमें वैष्णव संप्रदाय के मंगल चिह्न, शंख, पद्म, चक्र और मोर अंकित हैं।
प्राण प्रतिष्ठा के लिए भारत की 150 से भी अधिक परंपराओं, धर्म, संप्रदाय, पूजा पद्धति और परंपराओं के संत, महामंडलेश्वर, मंडलेश्वर, श्रीमहंत, महंत इस कार्यक्रम में आमंत्रित किए गए थे। नागा साधुओं के साथ साथ 50 से अधिक आदिवासी, गिरिवासी, तातवासी, द्वीपवासी आदिवासी परंपराओं के प्रमुख व्यक्तियों को प्राण प्रतिष्ठा में बुलाया गया था। मोदी ने सबसे मुलाक़ात की,मोदी भव्य राममंदिर बनाने के काम में लगे श्रमजीवियों से भी मिले। उनपर फूल बरसाए। आज मोदी ने दिखाया कि साधना में कितनी शक्ति होती है, राम नाम का क्या प्रभाव है। ये भी पूरे देश में दिख रहा है। ये सही है कि आज सनातन संस्कृति के लिए ऐतिहासिक पल है। पांच सौ साल के बाद अयोध्या का पुनरुद्धार हुआ है। अयोध्या में एक बार फिर रामलला लौटे हैं। ये दिन तो प्रतिफल है, उस तपस्या का, जो अनगनित रामभक्तों ने अनवरत की।
मैंने योगी आदित्यनाथ से अयोध्या में हुए संघर्ष की, बलिदानों की गाथा सुनी तो कलेजा भर आया। उमा भारती और साध्वी ऋतंभरा को बरसों बाद गले मिलकर खुशी के आंसू बहाते देखा। स्वामी रामदेव और रामभद्राचार्य को रामलला के चरणों में बैठे देखा। मुकेश अंबानी, अमिताभ बच्चन, रजनीकांत जैसे प्रसिद्ध लोगों को रामलला के सामने शीश नवाते देखा। RSS प्रमुख मोहन भागवत से पूरे देश को आपसी झगड़े भूलकर भाईचारा लाने का संदेश सुना। फिर लगा कि आज सिर्फ राम मंदिर का उद्घाटन नहीं हुआ। सिर्फ भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा नहीं हुई। देश के लिए एक नए भविष्य का सूत्रपात हुआ। लेकिन ये अवसर पांच सौ साल बाद आया है। देश भर के रामभक्तों में उत्साह है, खुशी है। देशभर का जो माहौल है, देशवासियों में जो उत्साह है, वह उन सभी लोगों की आंखें खोलने वाला है जो अब तक राम मंदिर का विरोध कर रहे थे। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के मुहूर्त पर सवाल उठा रहे थे। इसीलिए जब देशभर के मंदिरों में भक्तों की भीड़ बढ़ी, देशभर में राम नाम के जयकारे गूंजने लगे, तो विरोधी दलों के बड़े बड़े नेता भी मंदिरों की तरफ गए। कोई रामनामी चोला ओढ़कर सड़क पर निकला तो किसी ने खुद को रामभक्त दिखाने के लिए रामनाम का जप शुरू कर दिया। जिस वक्त अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन हो रहा था, उस वक्त कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरामैया बेंगलुरु में भघवान राम के जयकारे लगा रहे थे, बैंगलूरू के के आर पुरम में राम मंदिर का उद्घाटन कर रहे थे, पिछले 10 साल से ये मंदिर बन रहा था, मंदिर को स्थानीय लोगों ने बनवाया है लेकिन उद्घाटन करने सिद्धारमैया पहुंच गए और इसके बाद उन्होंने कहा कि वो जल्दी ही अयोध्या जाकर भगवान के दर्शन जरूर करेंगे।
कांग्रेस के दूसरे नेता भी आज भक्ति रस में डूबे दिखे। दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने झज्जर के पटौदा गांव में राम मंदिर का उद्घघाटन किया और प्राण प्रतिष्ठा की। हुड्डा एक खुली जीप में सवार हुए, हाथ में भगवा झंडा था और जुबां पर सियावर रामचंद्र की जय के नारे थे। नोट करने वाली बात ये है कि कांग्रेस के बड़े नेताओं ने प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने से इंकार कर दिया था लेकिन कांग्रेस के कुछ नेता पार्टी की नाराजगी को नजरअंदाज करके अयोध्या गए, रामलला के दर्शन किए। हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बेटे और राज्य सरकार में मंत्री विक्रमादित्य सिंह भी अयोध्या के कार्यक्रम में शामिल हुए। उन्होंने कहा कि ये ऐतिहासिक दिन है, हर हिन्दू के लिए गर्व का मौका है, इसलिए वो अयोध्या आए हैं। जो लोग राजनीति के लिहाज से सोचते हैं, उनके मन में ये सवाल जरूर होगा कि राममंदिर बनने का का प्राण प्रतिष्ठा का, मोदी के मुख्य यजमान बनने का, आने वाले चुनाव पर क्या असर होगा? क्या मोदी को इसका फायदा होगा? मुझे लगता है कि यहां मामला साफ है। देश में जो वातावरण बना है। जिस तरह से पूरा देश राममय हो गया उससे नरेन्द्र मोदी को फायदा होगा ही होगा। मोदी ने माता शबरी की बात की, निषादराज से भगवान राम के रिश्तों का जिक्र किया। मोदी ने नौजवानों को राम का महत्व समझाया। मोदी ने मंदिर बनाने वाले श्रमिकों पर पुष्पवर्षा की। ये सारी बातें ऐसी हैं जिनका असर देश की जनता के दिलो दिमाग पर पड़ेगा, देश की राजनीति पर पड़ेगा, चुनाव पर पड़ेगा। इस बात को विरोधी दलों के नेता भी समझते हैं, इसलिए उन्होंने पहले दिन से ही कहना शुरू कर दिया ता कि बीजेपी ने राम पर कब्जा कर लिया है, चुनाव के मौके पर आधे अधूरे मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा क्यों की जा रही है? मोदी किस हैसियत से यजमान बने? शंकराचार्य भी प्राण प्रतिष्ठा का विरोध कर रहे हैं, लेकिन विरोधी दलों के नेताओं को दो चार दिन में समझ भी आ गया कि जनता पर ऐसी बातों का कोई असर नहीं हो रहा। जो शंकराचार्य दिग्विजिय सिंह के कहने पर मोदी विरोध करने के लिए मैदान में उतरे थे, वे भी घबरा कर पलट गए। बदला माहौल देखकर वो शंकराचार्य भी मोदी की गुणगान करने लगे।
सिद्धारमैया ने अपने राम मंदिर का उद्घाटन कर दिया। केजरीवाल ने रामलला की तस्वीर लगाकर अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा की बधाई दे दी। विरोधी दलों के ज्यादातर नेता आज मंदिर गए, भगवान राम की पूजा की। प्राण प्रतिष्ठा के बाद रामलला की मूर्ति की फोटो अपने सोशल मीडिया हैंडल पर शेयर की। सबको लगा कि पार्टी की लाइन कुछ भी हो, जनता के प्रकोप से बचना है तो राम की शरण में जाना ही पड़ेगा। लेकिन कहावत है ‘अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत’ । जब लोगों के पास ओरिजिनल रामभक्त मोदी मौजूद हैं, तो कोई किसी डुप्लीकेट के पास क्यों जाएगा? मुझे कोई संदेह नहीं कि आज राममंदिर में प्राण प्रतिष्ठा ने बीजेपी में भी नए प्राण फूंक दिए। राम का विरोध करने वाले नेताओं को अपने राजनीतिक प्राण को बचाना मुश्किल हो रहा है। और इसका सबसे ज्यादा नुकसान राहुल गांधी और उनकी कांग्रेस को होगा क्योंकि उन्होंने मोदी विरोध के चक्कर में राममंदिर का विरोध कर दिया। काँग्रेस में बड़ी संख्या में ऐसे नेता और कार्यकर्ता हैं जो राम भक्त हैं ।इनमें से कई नेता आज अयोध्या पहुंचे, बड़ी संख्या में काँग्रेस समर्थकों ने शाम को दिए जलाए। उन्हें लगता है सोनिया और खरगे को प्राण प्रतिष्ठा में जाना चाहिए था, ये बॉयकाट की नीति सही नहीं है। दूसरी तरफ बीजेपी की नीति साफ है। मोदी और योगी के अलावा बीजेपी का कोई बड़ा नेता प्राण प्रतिष्ठा के समारोह में दिखाई नहीं दिया। इसका मतलब भी समझने की जरूरत है। आने वाले दिनों में राजनाथ सिंह, अमित शाह, नितिन गड़करी, जे पी नड्डा जैसे बड़े बड़े नेता देश भर के अलग अलग कोनों से हजारों भक्तों के साथ अयोध्य़ा जाएंगे, रामलला के दर्शन करेंगे, और आज जो हुआ उसकी गूंज कई महीनों तक पूरे देश में सुनाई देगी। शायद इसीलिए मोदी ने कहा- राम जी समाधान हैं, अभी समय है, सही समय है। (रजत शर्मा)
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