17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्मदिन है। इस साल अपने जन्मदिन के मौके पर वह देश को एक बेहतरीन तोहफा देने वाले हैं। वह मध्य प्रदेश के कुनो नेशनल पार्क में अफ्रीकी मुल्क नामीबिया से लाये गये 4 से 6 साल की उम्र के 8 जंगली चीते छोड़ेंगे। यहां इन चीतों को सबसे पहले 500 हेक्टेअर के इलाके में क्वारंटीन वाले बाड़े में रखा जाएगा।
इन चीतों को, जिनमें 3 नर और 5 मादा हैं, नामीबिया की राजधानी विंडहोक से ग्वालियर तक एक विशेष विमान में लाया जाएगा। यह विमान 10 घंटे की उड़ान के दौरान अफ्रीकी महाद्वीप से भारत तक 8 हजार किलोमीटर की दूरी तय करेगा। इसके बाद इन चीतों को हेलीकॉप्टर से कुनो नेशनल पार्क ले जाया जाएगा। यात्रा के 2 दिन पहले इन चीतों को नामीबिया में भोजन दिया गया है और फ्लाइट में 3 पशु चिकित्सक उनके साथ रहेंगे। पूरे सफर के दौरान इन्हें बेहोश नहीं किया जाएगा। 3 महीने तक चीतों के व्यवहार में हुए बदलावों पर नजर रखने के बाद इन्हें 75,000 हेक्टेयर में फैले राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ा जाएगा।
चीतों को खास तौर से परिवर्तित बोइंग-747 विमान में नामीबिया से ग्वालियर लाया जा रहा है। विमान के अगले हिस्से पर बाघ का चेहरा पेंट किया गया है। ग्वालियर से इन्हें भारतीय वायुसेना के 2 चिनूक हैवीलिफ्ट हेलीकॉप्टरों से मध्य प्रदेश में श्योपुर के पास कुनो नेशनल पार्क लाया जाएगा। भारतीय वायुसेना के जवान इस ऑपरेशन को एक घंटे के अंदर पूरा कर लेंगे।
नामीबिया के अलावा अगले महीने साउथ अफ्रीका से 12 और चीते लाए जाने वाले हैं। भारत में African Cheetah Introduction Project की कल्पना 2009 में की गई थी। सत्तर के दशक में गुजरात के गीर जंगल से एशियाई शेरों के बदले ईरान से चीतों को लाने का प्रस्ताव था, लेकिन यह कोशिश नाकाम रही। 2009 में नए प्रोजेक्ट के शुरू होने के बाद 2010 और 2012 के बीच भारत में 10 स्थानों पर नए सिरे से सर्वे कराया गया और अंत में कुनो नेशनल पार्क को चुना गया। जनवरी 2020 में, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को नामीबिया और साउथ अफ्रीका से चीतों को लाने की इजाजत दे दी। चीतों को भारत लाने के लिए इस साल जुलाई में नामीबिया के साथ एक समझौते पर दस्तखत किए गए थे।
पिछले साल नवंबर में इन चीतों के भारत आने की उम्मीद थी, लेकिन कोविड महामारी के कारण इसे स्थगित कर दिया गया था। इस प्रोजेक्ट पर 70 करोड़ रुपये खर्च होंगे, जिसमें से 50 करोड़ रुपये इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन द्वारा वहन किए जाएंगे। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने इंडियी ऑयल के साथ इस आशय के एक MoU पर दस्तखत किया है। चीतों के गले में हाई फ्रीक्वेंसी वाले सैटेलाइट रेडियो कॉलर पहनाये जाएंगे, और इन्हें शिकार के लिए बाड़ों के अंदर चीतल हिरण छोड़े जाएंगे।
चीता कंजर्वेशन फंड की एक स्टडी के मुताबिक, 1965 और 2010 के बीच पूरे अफ्रीकी महाद्वीप में 727 चीतों को 64 जगहों पर फिर से बसाया गया था, लेकिन जन्म के मुकाबले मृत्यु दर के अनुपात के आधार पर यह कवायद 64 में से सिर्फ 6 जगहों पर ही कामयाब रही थी।
भारत की सरज़मीं पर एक बार फिर इन चीतों के आने से इनके संरक्षण के एक नए युग का सूत्रपात होगा। चीता दुनिया का सबसे तेज़ जानवर है जो 80 से 128 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ने में सक्षम है। चीते का बदन हल्का है, उसकी टांगें लम्बी और पतली हैं, इसके कारण जब वह दौड़ता है, तो उसकी रफ्तार देखते बनती है। मध्ययुगीन भारत में हजारों चीते थे, लेकिन बेतहाशा शिकार किए जाने की वजह से वे विलुप्ति की कगार पर पहुंच गए।
भारत में चीते तटीय क्षेत्रों, ऊंचे पहाड़ी इलाकों और उत्तर-पूर्व में पाए जाते थे। भोपाल और गांधीनगर के पास नवपाषाण युग के गुफा चित्रों में चीतों के चित्र हैं। बीसवीं सदी की शुरुआती में इनकी संख्या में तेजी से गिरावट आई। 1918 और 1945 के बीच, लगभग 200 चीतों को भारत लाया गया था, लेकिन फिर भी उनकी संख्या घटती गई। अंतिम तीन चीतों का शिकार छत्तीसगढ़ के कोरिया के स्थानीय शासक राजा रामानुज प्रताप सिंह ने 1947 में किया था। 1952 में सरकार ने चीतों के भारत से विलुप्त होने की घोषणा कर दी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की सरज़मीं पर चीतों को फिर से लाकर एक बड़ा कदम उठाया है। इन चीतों को अफ्रीका से भारत लाने की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए उनकी जितनी सराहना की जाय, कम है। (रजत शर्मा)
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