मणिपुर में दो बेकसूर महिलाओं को बेशर्मी से निर्वस्त्र करके घुमाने का भयानक वीडियो देखकर पूरा देश गुस्से से उबल रहा है, पूरा देश शर्मसार है, लोग खून के आंसू रो रहे हैं. इस तरह की हरकत करने वाले वहशियों को पकड़कर सरेआम फांसी पर लटकाने की मांग कर रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि इस घटना ने 140 करोड़ों लोगों का सिर शर्म से झुका दिया. इस तरह की हरकत करने वालों को किसी कीमत पर नहीं बख्शा जाएगा. भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि वीडियो देखकर वो सन्न रह गए, समझ में नहीं आया कि ऐसा कैसे हो सकता है. कोई इंसानियत को इस तरह कैसे तार-तार कर सकता है. जस्टिस डी. वाई. चन्द्रचूड़ ने कहा कि मणिपुर सरकार और केन्द्र सरकार बताए कि अपराधियों को पकड़ने के लिए क्या कदम उठाए गए. चीफ जस्टिस ने कहा कि अगर सरकार कदम उठाने में नाकाम रही तो सुप्रीम कोर्ट खुद एक्शन लेगा. चीफ जस्टिस ने जो कहा, जो महसूस किया, उसी तरह का दर्द हर देशवासी के दिल में है. सबकी भावनाएं इसी तरह आहत हुईं है. मैंने भी वीडियो देखा है. उसके बाद जो गुस्सा, दुख और पीड़ा मेरे दिल ने महसूस की, उसे शब्दो में बयान करना मुश्किल है. आंखों में आंसू थे और शरीर में सिहरन, इस घटना ने आत्मा पर चोट पहुंचाई. मणिपुर में दो महिलाओं को हत्या की धमकी देकर सरेआम कपड़े उतारने पर मजबूर किया गया. फिर सैकड़ों लोगों की भीड़ के सामने 21 साल की लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ. ये सब 4 मई को हुआ, ढाई महीने पहले, अब उसका वीडियो सामने आया क्योंकि मणिपुर में इंटरनेट बंद था. 78 दिन तक पुलिस सोई रही. अगर ये वीडियो सामने न आता तो क्या मणिपुर की सरकार और पुलिस कुछ न करती, वीडियो सामने आया तो कुछ ही घंटों के भीतर पुलिस ने चार आरोपियों को कैसे पकड़ लिया. वीडियो में अपराधियों के चेहरे साफ-साफ दिख रहे हैं, पहचाने जा सकते हैं. सैकड़ों स्थानीय लोगों की भीड़ थी. इस तरह की घटना के बाद क्या मुख्यमंत्री को एक पल के लिए भी कुर्सी पर बैठने का हक है ? अपराधियों को इतने दिनों तक पुलिस ने क्यों खुलेआम घूमने दिया? मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि उन्हें वीडियो से घटना की जानकारी मिली, ये सफेद झूठ है. ये मामला इंसनियत की हत्या का है, समाज के लिए कलंक है, देश को शर्मसार करने वाला है. मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह इस वक्त भी सच को छुपा रहे हैं, गलतबयानी कर रहे हैं. ये घटना 4 मई को हुई, उसके 14 दिन के बाद 18 मई को इसकी शिकायत पुलिस से की गई, पुलिस ने कुछ नहीं किया. घटना के 48 दिन के बाद यानी 21 जून को पुलिस ने इस मामले में FIR दर्ज की. उसके बाद भी पुलिस ने आरोपियों को नहीं पकड़ा. घटना के 77 दिन के बाद यानि 19 जुलाई को ये वीडियो अचानक पूरे देश में फैला. प्रधानमंत्री ने नाराज़गी जाहिर की, तब पुलिस एक्शन में आ गई और कुछ ही घंटों में मख्य आरोपी को पकड़ लिया. इसलिए अगर एन. बीरेन सिंह ये कह रहे हैं कि उन्हें पता नहीं था, तो ये सिर्फ अपनी कुर्सी बचाने के लिए बोला गया झूठ है, इसके सिवाय कुछ नहीं, लेकिन हैरानी इस बात की है कि आज भी एन बिरेन सिंह गलती मानने को तैयार नहीं हैं.
ये बिल्कुल साफ़ है कि बीरेन सिंह को सब पता था, मुख्यमंत्री मणिपुर को बचाने की बजाय, अपनी कुर्सी बचाने में लगे थे. मणिपुर की निर्दोष बेटियों को बचाने के बजाय, अपनी सत्ता की गोटियां बिठाने में व्यस्त थे. ऐसा कैसे हो सकता है कि इतनी भयानक घटना हो जाए, पुलिस FIR दर्ज करे और मुख्यमंत्री को पता भी न चले. और अगर वाक़ई में मुख्यमंत्री को पता नहीं था, वीडियो आने के बाद पता चला, तो ये तो और भी शर्म की बात है. अगर बीरेन सिंह के प्रशासन का ये हाल है, तो उन्हें एक पल भी अपने पद पर बने रहने का अधिकार नहीं है. संसद में पिछले दो दिन से मणिपुर की घटना को लेकर कामकाज नहीं हो पा रहा है. मुझे लगता है कि मणिपुर में जो हुआ, वो इतना दर्दनाक, इतना अमानवीय है कि वो राजनीतिक दांव-पेंच खेलने का विषय तो नहीं होना चाहिए. सियासत के लिए बहुत सारे मुद्दे मिल जाएंगे. लेकिन मणिपुर की दुखदायी घटना तो पूरे सिस्टम की विवशता पर सवाल उठाती है. अगर मोबाइल कैमरे में ये घटना क़ैद न हुई होती, तो ये भयानक सच इतिहास के किसी पन्ने में दफ़न हो जाता. अगर मणिपुर में इंटरनेट बंद न होता, तो शायद दिल को चीरने वाली ये तस्वीरें, दो महीने पहले बाहर आ जातीं. मणिपुर में हमारी बेटियों के साथ दरिंदगी के गुनहगार, कई हफ़्तों पहले पकड़ लिए गए होते. अगर पुलिस इस केस पर पर्दा डालने की कोशिश न करती, पुलिस ने आज जो एक्शन लिया वो आठ हफ़्ते पहले ले लेती, अगर मुख्यमंत्री अपनी कुर्सी बचाने के चक्कर में पर्चियां न फड़वा रहे होते. लेकिन इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि शर्मनाक घटना दो महीने पहले हुई, या दो महीने बाद. वीडियो में अपराधी साफ़ दिखाई दे रहे हैं. सारे देश की भावना तो ये है कि उन्हें ऐसी सज़ा मिले, जो इस तरह के कुकृत्य करने वाले अपराधी के दिल में ख़ौफ़ पैदा कर दे. ऐसा डर पैदा कर दे कि इसके बाद ऐसा वीभत्स कांड करने की, किसी की हिम्मत न हो. अब मैं एक और बात कहना चाहता हूं. ऐसी घटना के ख़िलाफ़ कार्रवाई आज के क़ानून के दायरे में करने की मजबूरी न हो, तो बेहतर होगा सुप्रीम कोर्ट इस मामले को गंभीरता से ले. क्या सुप्रीम कोर्ट क़ानून के दायरे से बाहर जाकर इस केस में सज़ा मुक़र्रर कर सकता है? गुनाह कैमरे पर है, गुनहगार कैमरे पर हैं, गवाह कैमरे पर है, क्या अब भी सालों तक ट्रायल चलेगा? अपराध का एक एक सबूत मौजूद है, पर क्या एक बार फिर गवाहियां रिकॉर्ड की जाएंगी? क्या एक बार फिर इन बेटियों को अपनी त्रासदी कोर्ट में बयान करनी होगी? क्या उन्हें एक बार फिर अपमान की आग में झुलसना पड़ेगा? क्या ये डर बना रहेगा कि गवाह बदल न जाएं, वहशी छूट न जाएं? क्या एक बार फिर फांसी की सज़ा देने में बरसों लग जाएंगे? और जब फांसी का समय आएगा, तो माफ़ी की अपील खारिज होने में कई साल और लग जाएंगे. क्या एक बार फिर इस सारी प्रक्रिया से होकर गुज़रना ज़रूरी है? क्या इस बार देश के आंसुओं का मान रखने के लिए, केस चलाने और सज़ा दिलाने का तरीक़ा बदला जा सकता है? या हमारे क़ानून से बंधे हाथ, हमारी विवशता, हमारी आत्मा को इसी तरह बार बार भड़काती रहेगी? क्या इस बार भी कुछ नहीं बदलेगा? ये सारे सवाल पूरे देश के सामने हैं, पूरी व्यवस्था के सामने हैं. (रजत शर्मा)
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