Friday, November 22, 2024
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Rajat Sharma's Blog | ममता और मान बाहर : इंडी अलायंस में टूट

भगवंत मान ने कहा कि बंगाल में हो सकता है ममता बनर्जी तो शायद मान भी जाएं लेकिन पंजाब में ये तय है कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का गठबंधन नहीं होगा।

Written By: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Updated on: January 26, 2024 6:21 IST
Rajat sharma,India tv- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ रजत शर्मा।

मोदी विरोधी मोर्चा कई जगहों से टूट गया है। गठबंधन में बड़ी-बड़ी दरारें दिखने लगी हैं। ममता बनर्जी ने ऐलान कर दिया कि बंगाल में तृणमूल कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ेगी, कांग्रेस के साथ कोई गठबंधन नहीं होगा। भगवंत मान ने कह दिया कि पंजाब में आम आदमी पार्टी सभी तेरह लोकसभा सीटों पर लड़ेगी और अपने दम पर जीतेगी। यानी पंजाब में भी विपक्षी गठबंधन का कोई वजूद नहीं होगा। बिहार में नीतीश कुमार के तेवर और कलेवर देखकर कांग्रेस और RJD में खलबली है। नीतीश के भविष्य को लेकर संदेह है कि क्या वो गठबंधन में रहेंगे और अगर रहेंगे, तो कब तक? खबर है कि नीतीश बीजेपी की चौखट पर दस्तक  दे रहे हैं, बस दरवाजा खुलने का इंतजार है। उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव ने कांग्रेस को उसकी हैसियत बता दी है। उन्होंने जयन्त चौधरी के साथ गठबंधन का ऐलान कर दिया है, सीटों की संख्या भी तय कर दी है लेकिन कांग्रेस से साफ साफ बता दिया है कि कांग्रेस के लिए सिर्फ दो, अमेठी और रायबरेली की सीट छोड़ी जा सकती है। कांग्रेस के नेता परेशान हैं, शरद पवार से मदद मांगी गई है, पवार ने ममता से फोन पर बात की है।  कांग्रेस के नेता अभी भी दावा कर रहे हैं कि ममता से बात हो जाएगी, जो विवाद हैं, उनको सुलझा लिया जाएगा। उनका कहना है कि ममता गठबंधन के साथ रहेंगी क्योंकि सभी का लक्ष्य एक ही है  - बीजेपी को हराना, मोदी को हटाना। लेकिन ममता ने साफ कह दिया कि कांग्रेस देश भर में तीन सौ लोकसभा सीटों पर अकेले लड़ ले, वहां वो कांग्रेस की मदद करेंगी लेकिन बंगाल में उन्हें कांग्रेस के साथ की ज़रूरत नहीं है। बंगाल में तृणमूल कांग्रेस अकेले ही बीजेपी को हराने का दम-खम रखती है। इसके बाद कोई गुंजाइश बचती नहीं है। लेकिन फिर कांग्रेस के नेता किस आधार पर दावा कर रहे हैं कि ममता को मना लेंगे? ममता की नाराज़गी की असली वजह क्या है? अधीर रंजन चौधरी आग में घी डालने का काम क्यों कर रहे हैं? लेफ्ट फ्रंट का इस सबमें क्या रोल है? पंजाब और दिल्ली में केजरीवाल क्या करेंगे? नीतीश का प्लान क्या है? 

बंगाल में गुरुवार को राहुल गांधी की न्याय यात्रा पहुंचने से एक दिन पहले ही ममता ने ‘एकलो चलो’ का नारा दे दिया। ममता ने ये कहकर कांग्रेस के नेताओं को टेंशन में डाल दिया कि राहुल की यात्रा बंगाल में कब आ रही है, यात्रा का क्या रूट है, राहुल का क्या प्रोग्राम है, इसकी उन्हें कोई जानकारी नहीं है। ममता ने कहा कि कांग्रेस ने इसके बारे में उनसे कोई बात नहीं की है, न उन्हें यात्रा में शामिल होने का न्योता दिया है। ममता ने बता दिया कि वो ‘ एकला चलो’ के रास्ते पर चलने को मजबूर क्यों हुईं। ममता ने कहा कि वो कांग्रेस के रवैए से नाराज़ हैं। कांग्रेस नेतृत्व ने उनका कोई सुझाव नहीं माना, गठबंधन में उनकी कोई बात नहीं सुनी गई। ममता की रणनीति बिल्कुल स्पष्ट है। वो जानती हैं कि बंगाल में मुकाबला बीजेपी से है, कांग्रेस और वाम मोर्चा की बंगाल में कोई ताकत नहीं है। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और सीपीएम का तो खाता ही नहीं खुला। इसलिए ममता को लगता है कि इन दोनों पार्टियों से हाथ मिलाने का कोई फायदा नहीं हैं। वैसे भी साथ-साथ लड़ने पर भी लेफ्ट का वोट किसी कीमत पर ममता को नहीं मिलेगा। इसलिए ममता लेफ्ट को गठबंधन में शामिल नहीं करना चाहती थी। उन्होंने ये बात कांग्रेस को बता दी थी। दूसरी बात, ममता ने कांग्रेस को दो सीटें देने का ऑफर दिया लेकिन कांग्रेस कम से कम पांच सीटें चाहती हैं। अधीर रंजन चौधरी इसीलिए ममता पर दबाव बना रहे थे। कांग्रेस नेतृत्व को उन्होंने समझाया कि दो सीटें तो कांग्रेस अपने दम पर जीत जाती  है, अगर कांग्रेस को दो ही सीटें मिलनी है तो ममता के साथ गठबंधन की ज़रूरत क्या है? इसीलिए कांग्रेस के नेता दिल्ली में तो दीदी के सम्मान के दावे करते थे और कोलकाता में अधीर रंजन को ममता के खिलाफ बयान देने की छूट दे रखी थी। ममता इससे नाराज थी। उन्होंने कांग्रेस के नेताओं को अधीर रंजन को पार्टी से बाहर करने की मांग की, उनके खिलाफ एक्शन लेने की मांग की। लेकिन अगर कांग्रेस अधीर रंजन के खिलाफ एक्शन लेगी तो उसके पास बंगाल में नेतृत्व के नाम पर बचेगा क्या? और इन हालात में जो होना था, वही हुआ। ममता ने फैसला कर लिया। वो ‘एकला चलो’ के मंत्र पर चलेंगी। और अब कांग्रेस कितनी भी कोशिश कर ले, ममता अपना रास्ता नहीं बदलेंगी। अब बस इतना हो सकता है कि कांग्रेस ममता की शर्तों पर चले, ममता की बात माने तो शायद ममता कांग्रेस के लिए दो सीटें छोड़ दें। 

कांग्रेस के लिए बुरी खबर पंजाब से भी आई। मुख्यमंत्री भगवन्त मान ने साफ साफ कह दिया कि पंजाब में आम आदमी पार्टी सभी 13 लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी, अकेले लड़ेगी और जीतेगी। भगवंत मान ने कहा कि बंगाल में हो सकता है ममता बनर्जी तो शायद मान भी जाएं लेकिन पंजाब में ये तय है कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का गठबंधन नहीं होगा। मान ने कहा कि उनकी पार्टी ऩे अपनी तैयारी पूरी कर ली है, अब तो बस उम्मीदवारों का ऐलान होना ही बाकी है। चूंकि भगवंत मान ने दो टूक बात कह दी और ये भी सब जानते हैं कि जो कुछ कहा, वह अपने नेता अरविंद केजरीवाल से पूछकर ही कहा होगा, इसलिए इस मामले में कांग्रेस के पास इस बात को मानने के अलावा कोई रास्ता नहीं था कि पंजाब में कोई गठबंधन नहीं होगा। पंजाब में समझौता होगा नहीं, बंगाल में ममता ने समझौते से इंकार कर दिया, केरल में भी यही स्थिति है, वहां भी कांग्रेस और वाम मोर्चा आमने सामने होंगे। उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव कांग्रेस को भाव देने के मूड में हैं नहीं, तो फिर गठबंधन कहाँ होगा?  कैसे होगा? असल में गठबंधन की पहल लालू यादव ने की थी। कांग्रेस और नीतीश कुमार दोनों को अपना-अपना फायदा समझाया था, शरद पवार को आगे किया था, नीतीश को प्रधानमंत्री पद का सपना दिखाया था और कांग्रेस को देशभर में फिर मजबूत होने का मौका दिखाया था। कांग्रेस को लगा कि जिन राज्यों में उसका बीजेपी से सीधा मुकाबला है, वहां तो सीधी लड़ाई होगी, गठबंधन में शामिल छोटी पार्टियों के उम्मीदवार नहीं होंगे, तो वोटों का बंटवारा नहीं होगा और इसका फायदा कांग्रेस को मिलेगा। बंगाल, बिहार, झारखंड, यूपी, पंजाब और दिल्ली में जहां कांग्रेस साफ हो चुकी है, जहां क्षेत्रीय दल मजबूत हैं, वहां राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर मोलभाव करके जितनी सीटें मिल जाएं, वो कांग्रेस के लिए बोनस होगा। लेकिन ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, हेमंत सोरेन, अरविन्द केजरीवाल जैसे नेता अपने अपने राज्य में कांग्रेस को सहारा देकर मजबूत नहीं होने देना चाहते। इसीलिए गठबंधन में दरारे दिख रही हैं। 

बिहार में लालू यादव तो जी-जान से लगे हैं कि किसी तरह से बात बन जाए, नीतीश गद्दी छोड़ें, तेजस्वी का रास्ता साफ हो, लेकिन अब नीतीश को समझ आ गया कि न उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया जाएगा, न गठबंधन का संयोजक। इसलिए अब वो इधर-उधऱ की बातें कर रहे हैं। पिछले चौबीस घंटे में नीतीश कुमार ने जिस तरह के बयान दिए हैं, उसके बाद ये चर्चा जोरों पर हैं कि नीतीश कभी भी पाला बदल सकते हैं, फिर से पलटी मार सकते हैं।  नीतीश कुमार, जो कभी मोदी का नाम नहीं लेते, वह घूम-घूम कर नरेन्द्र मोदी को थैंक्यू कहते सुनाई दे रहे हैं। कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित करने पर नीतीश कुमार ने सिर्फ केन्द्र सरकार और नरेन्द्र मोदी को धन्यवाद नहीं दिया, इशारों-इशारों में कांग्रेस और लालू यादव पर हमले भी शुरू कर दिए। इसीलिए चर्चा तेज हुई कि परदे के पीछे कुछ तो हो रहा है। नीतीश का रुख़ बदल रहा है। मोदी को धन्यवाद कहा, वहां तक तो ठीक था लेकिन इसके बाद नीतीश ने कांग्रेस और RJD को भी लपेट लिया। कहा कि केन्द्र में कांग्रेस की सरकार रही, उस वक्त भी वह कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की मांग करते रहे लेकिन कांग्रेस सरकार कर्पूरी ठाकुर को ये सम्मान नहीं दे पाई।  इसके बाद नीतीश ने परिवारवाद के सवाल पर बिना नाम लिए लालू को लपेटा।  नीतीश ने कहा कि कर्पूरी ठाकुर ने अपने जीते जी परिवार के लिए कुछ नहीं किया, कभी परिवार को आगे नहीं बढ़ाया, वो भी कर्पूरी की राह पर चल रहे हैं, उन्होंने भी परिवारवाद को बढ़ावा नहीं दिया। नीतीश ने कहा कि आज के नेता परिवार को, बेटे बेटी को आगे बढ़ाते हैं लेकिन कर्पूरी ठाकुर परिवारवाद के सख़्त ख़िलाफ़ थे। 

कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री अगर प्रधानमंत्री को धन्यवाद दें, इसमें कुछ अटपटा नहीं लगना चाहिए। लेकिन नीतीश के धन्यवाद देने के कई मतलब लगाए जा रहे हैं। क्योंकि उनके दो सहयोगी दलों, कांग्रेस और आरजेडी ने तो कर्पूरी बाबू को भारत रत्न देर से देने के लिए मोदी की आलोचना की। नीतीश कुमार जब ये कहते हैं कि कर्पूरी ठाकुर ने अपने बेटे को कभी आगे नहीं बढ़ाया तो इसमें भी कोई गलत बात नहीं देखी जानी चाहिए लेकिन बिहार की राजनीति में इसका मतलब लगाया जाएगा। क्योंकि सब जानते हैं कि लालू यादव अपने बेटे तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाने के काम में लगे हैं। इसीलिए वह नीतीश को गठबंधन के नाम पर दिल्ली डिस्पैच करना चाहते हैं। दूसरी तरफ नीतीश  पिछले कई दिनों से इस तरह के संकेत दे रहे हैं कि वो मोदी विरोधी गठबंधन से पीछा छुड़ाना चाहते हैं, मोदी को रोकने के लिए जो नया गठबंधन बना है, उससे उन्होंने दूरी बनाई है। जेडीयू पार्टी की अध्यक्षता अपने हाथ में ले ली। लालू के करीबी ललन सिंह की छुट्टी कर दी। मंत्रियों के विभागों में बदलाव किया। नीतीश कुमार का एक इतिहास है। तेजस्वी के लिए वह पलटू चाचा हैं, कभी भी पलटी मार सकते हैं, उन्होंने संकेत पूरे-पूरे दे दिए हैं लेकिन बीजेपी की तरफ से अभी कोई इशारा नहीं आया है। बीजेपी के लोग अभी ये पक्के तौर पर पता लगा रहे हैं कि क्या नीतीश वाकई में मोदी के साथ आना चाहते हैं, या ऐसे संकेत देकर लालू पर दबाव बनाना चाहते हैं। इसलिए बिहार में गठबंधन का क्या होगा, कौन किसके साथ रहेगा, ये कंफर्म होने में अभी कुछ वक्त लगेगा। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 24 जनवरी, 2024 का पूरा एपिसोड

 

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