उत्तर प्रदेश में बाबा का बुलडोज़र फिर चला। फतेहपुर में 185 साल पुरानी नूरी जामा मस्जिद के अवैध हिस्से को जमींदोज़ कर दिया गया लेकिन न पत्थर चले, न गोलियां चलीं, न लाठीचार्ज हुआ, न विरोध प्रदर्शन हुआ। पूरे शहर में शान्ति रही। पांच बुलडोजर पहुंचे, DM, SP, SDM, तहसीलदार समेत सारे अफसर मुस्तैद थे। पूरी पैमाइश हुई। मस्जिद का जो हिस्सा सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करके बनाया गया था, उसे तोड़ दिया गया। बड़ी बात ये है कि इलाके के मुस्लिम भाइयों ने भी कहा कि पहले छोटी मस्जिद थी, धीरे-धीरे बढ़ती गई, मस्जिद का नया हिस्सा सरकारी जमीन पर बना था, इसीलिए उसे तोड़ा गया।
हालांकि कुछ लोगों ने ये भी कहा कि मस्जिद कमेटी की तरफ से हाईकोर्ट में अपील की गई थी लेकिन प्रशासन ने अदालत का फैसला आने से पहले ही बुलडोजर चला दिया, ये ठीक नहीं हैं। मंगलवार को जब बुलडोज़र चले, तो उस इलाके में पुलिस का जबरदस्त बंदोबस्त था। पुलिस की सख्ती के कारण लोगों ने दुकानें नहीं खोलीं। करीब पांच घंटे की कार्रवाई के बाद मस्जिद के अवैध हिस्से को गिराने का काम पूरा हो गया। नूरी मस्जिद के अवैध हिस्से सरकारी जमीन पर कब्जा करके बनाये गए थे।
पहले इस इलाके में जंगल था, इसलिए किसी ने ध्यान नहीं दिया लेकिन अब यहां स्टेट हाइवे बन रहा है और नूरी मस्जिद का अवैध हिस्सा उसी जमीन में पड़ रहा है जहां से हाइवे को गुजरना है, इसीलिए मस्जिद कमेटी को अगस्त में मस्जिद के अवैध हिस्से को हटाने के लिए नोटिस दिया गया लेकिन मस्जिद कमेटी ने कोर्ट में अपील कर दी। कमेटी को लोअर कोर्ट से कोई राहत नहीं मिली तो सितंबर में प्रशासन ने मस्जिद के आसपास जो दुकाने बनाई गई थी उन्हें गिरा दिया। इसी बीच मस्जिद कमेटी ने हाईकोर्ट में अर्जी दी, जिस पर 13 दिसंबर को सुनवाई होनी थी।
प्रशासन का कहना है कि फतेहपुर में बुलडोजर एक्शन सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन्स का पालन करते हुए लिया गया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश की कोई अवहेलना नहीं हुई है। लेकिन नूरी मस्जिद कमेटी का इल्ज़ाम है कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को तोड़ा है।
फतेहपुर में जो बुलडोजर चला, उसमें तीन बातें साफ हैं। पहली, मस्जिद के मूल ढांचे को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया गया, वो पहले की तरह बरकरार है। दो, जिन दुकानों और मीनारों को तोड़ा गया, वो सरकारी जमीन पर कब्जा करके बनाई गई थीं। तीन, मस्जिद कमेटी को पर्याप्त नोटिस दिया गया था। हाई कोर्ट से भी मस्जिद कमेटी को राहत नहीं मिली। कोर्ट ने डिमोलिशन पर स्टे नहीं दिया था। अब विवाद सिर्फ इस बात पर है कि प्रशासन थोड़ा और वक्त दे देता, तो कौन-सा पहाड़ टूट जाता? लेकिन निर्माण गैरकानूनी था, सरकारी जमीन पर कब्जा करके बनाया गया था, तोड़ा इसीलिए गया क्योंकि इसकी वजह से हाईवे बनाने का काम रुक रहा था।
मुझे लगता है कि ऐसी परिस्थिति में मस्जिद कमेटी को खुद आगे आकर गैरकानूनी निर्माणों को तोड़ना चाहिए था। हाइवे बनेगा तो इसका फायदा सभी लोगों को होगा। बुलडोजर चलाने की नौबत न आती तो बेहतर होता क्योंकि जहां मामला मस्जिद से जुड़ा होता है, वहां अफवाहें फैलने का मौका होता है। लेकिन इस बार अच्छी बात ये है कि प्रशासन ने सावधानी से काम लिया। सारी बातें खुलकर लोगों के सामने रखीं, इसीलिए विवाद ज्यादा नहीं हुआ। (रजत शर्मा)
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