Thursday, November 21, 2024
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Rajat Sharma’s Blog : अब दुनिया देखेगी कि भारत की नारी देश की तकदीर कैसे बदलती है

इसमें तो कई शक नहीं है कि आरक्षण लागू होने के बाद देश के फ़ैसलों में महिलाओं की भूमिका अहम होगी, महिलाओं की ताक़त बढ़ेगी, इसीलिए देश की आधी आबादी में इस विधेयक लेकर जबरदस्त उत्साह और जोश है. और यही वजह है कि सभी राजनीतिक पार्टियां इसका श्रेय लेने की कोशिश कर रही है

Written By: Rajat Sharma
Updated on: September 21, 2023 6:30 IST
इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ रजत शर्मा।- India TV Hindi
Image Source : इंडिया टीवी इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ रजत शर्मा।

गणेश चतुर्थी  के पवित्र मौके पर देश के नये संसद भवन का श्रीगणेश हुआ और विघ्नहर्ता विनायक ने महिला आरक्षण के रास्ते की सारी बाधाएं भी दूर कर दी.  पहले ही दिन महिला आरक्षण बिल पेश किया गया.  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के नीति निर्माताओं में महिलाओं को उनका वाजिब हिस्सा देने का ऐलान किया. मोदी ने कहा कि उनकी सरकार लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं की तैंतीस प्रतिशत भागीदारी सुनिश्चित करेगी. महिला आरक्षण के लिए जो बिल पेश किया गया है, उसका नाम है, नारी शक्ति वंदन अधिनियम. कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने बिल लोकसभा में पेश किया. बुधवार को लोकभा में दिन भर महिला सांसदों ने बढ चढ़ कर बहस में भाग लिया. अब ये तय है कि ये विधेयक संसद के दोनों सदनों में लगभग सर्वसम्मति से पारित हो जाएगा. संविधान संशोधन होने के कारण इसे आधे से ज्यादा राज्य विधानसभाओं में पास कराना होगा. उसके बाद गनगणना होगी, और फिर परिसीमन का कार्य होगा, और तभी संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित हो पाएंगी. 

अब महिला आरक्षण का विरोध मुद्दा नहीं है. अब तो राजनीतिक दलों में इस बात की होड़ लगी है कि वो महिलाओं को आरक्षण देने के लिए कितने बेताब हैं.  अब सब यही कह रहे हैं कि महिला आरक्षण का तो वो शुरू से समर्थन कर रहे थे. मोदी ने कहा कि ये ईश्वर की इच्छा है, ईश्वर की कृपा है कि लंबे समय से लटके, बड़े बड़े मुद्दों को, बड़े बड़े कामों के लिए भगवान ने उन्हें ही चुना है. अब ये साफ दिख रहा है कि महिला आरक्षण पर अब श्रेय लेने की होड़ शुरू हो गयी है. सब ये कह रहे हैं कि ये बिल मेरा है. जो बिल पेश किया गया उसमें साफ  कहा गया है कि लोकसभा और  विधानसभाओं के साथ साथ केन्द्र शासित प्रदेश दिल्ली की विधानसभा में भी महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें रिजर्व की जाएगी. अनुसूचित जाति, जनजाति की जो सीटें आरक्षित हैं,  उनमें भी एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी. 

फिलहाल लोकसभा की 543 सीटों में से 181 सीटें महिलाओं के लिए रिज़र्व हो जाएंगी. इस 181 में से 28 सीटें अनुसूचित जाति और 15 सीटें अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के लिए आरक्षित होगी. जब संसद की सीटों का परिसीमन होगा, तो महिलाओं के लिए रिज़र्व सीटों की संख्या और बढ़ जाएगी. पहले आरक्षण 15 साल के लिए लागू होगा. पंद्रह साल बाद इसकी समीक्षा होगी  और महिलाओं के लिए रिज़र्व सीटों को रोटेट किया जाएगा. इस समय लोकसभा और विधानसभाओं में महिला सांसदों और विधायकों की संख्या बहुत कम है. लोकसभा में इस समय 543 में से केवल 78 सांसद महिला हैं. ये आंकड़ा भी आजादी के बाद से अब तक सबसे ज्यादा है, लेकिन महिला आरक्षण लागू होने के बाद ये संख्या कम से कम 181 हो जाएगी. 

उत्तर प्रदेश विधानसभा में 403 विधायकों में सिर्फ केवल 48 महिलाएं हैं,  लेकिन महिला आरक्षण लागू होने के बाद  महिलाओं की संख्या कम से कम 132 हो जाएगी. इसी तरह  243 सदस्यों वाली बिहार विधानसभा में फिलहाल केवल 26 महिलाएं हैं, लेकिन अब ये बढकर कम से कम 80 होगी. पश्चिम बंगाल विधानसभा में 295 विधायकों में सिर्फ 40 महिलाएं है. उनकी संख्या अब बढ़ कर कम से कम 98 होगी. महाराष्ट्र की 288 सदस्यों वाली विधानसभा में  इस समय 23 विधायक महिला हैं. ये बढ़ कर 96 हो जाएगी. मध्य प्रदेश की 230 सदस्यों वाली विधानसभा में  महिलाओं की संख्या बढ़कर 76 हो जाएगी जबकि अभी सिर्फ 17 महिला विधायक हैं. दिल्ली विधानसभा में कुल 70 में से सिर्फ 8 महिला विधायक हैं. अब 24 सीटें महिलाओं के लिए रिज़र्व होंगी. 

इसमें तो कई शक नहीं है कि आरक्षण लागू होने के बाद देश के फ़ैसलों में महिलाओं की भूमिका अहम होगी, महिलाओं की ताक़त बढ़ेगी, इसीलिए देश की आधी आबादी में इस विधेयक लेकर जबरदस्त उत्साह और जोश है. और यही वजह है कि सभी राजनीतिक पार्टियां इसका श्रेय लेने की कोशिश कर रही है. महिला आरक्षण बिल की आलोचना करने वाले कई तरह की बातें कह रहे हैं. किसी ने कहा कि ये बिल वोटों के लिए लाया गया. महिलाएं मोदी को वोट दें, इसीलिए ये कानून बनाया जा रहा है. मेरा कहना है कि इसमें तकलीफ किस बात की है?  क्या राजनीतिक दल चुनाव लड़ने के लिए नहीं बनते? क्या पार्टियां वोट पाने के लिए काम नहीं करती?  और अगर कोई अच्छा काम करके, महिलाओं के सशक्तिकरण के नाम पर वोट मांगता है, तो इसमें बुरा क्या है? कांग्रेस भी जो दावा कर रही है कि ऐसा बिल पहले वो लेकर आई थी, ममता बनर्जी अगर कहती हैं कि ये उनका आइडिया था, तो ये सब भी तो वोटर का दिल जीतने के लिए कह रहे हैं. 

कुछ Cynics कहते हैं कि आरक्षण से कुछ नहीं होगा. पंचायतों में भी 50 प्रतिशत आरक्षण हैं. महिलाएं चुनाव जीततीं हैं, लेकिन पति उनके नाम पर पंचायत चलाते हैं. गाड़ी पर लिखते हैं ‘पति सरपंच’, लेकिन ये पुराने जमाने की बातें हैं. अब वक्त बदल गया है. अगर आंकड़े देखें, तो पत्नी के नाम पर पंचायत चलाने वाले मामले अब गिने चुने हैं. ज्यादातर जगहों पर महिलाएं पंचायत चलाती हैं, फैसले लेती हैं और लोकसभा और विधानसभा में जो महिलाएं चुन कर आईं, वहां एक भी ऐसा मामला नहीं मिला, जहां महिलाओं ने स्वतंत्र हो कर अपना काम ना किया हो. ये महिलाएं सशक्तिकरण की मिसाल हैं. एक तर्क ये दिया जा रहा है कि कानून तो बन जाएगा, पर इसे लागू करने में कई साल लग जाएंगे, जनसंख्या की गिनती होगी, फिर सीटों का परिसीमन होगा. तब कहीं जाकर ये कानून लागू हो पाएगा. मेरा कहना ये है कि महिला आरक्षण कानून का इरादा सिर्फ इसीलिए तो नहीं छोड़ा जा सकता कि इसमें वक्त लगेगा. महिलाओं ने 27 साल इंतजार किया है.अब कम से कम ये प्रॉसेस तो शुरू होगा. और मोदी का पिछले साढे़ 9 साल का रिकॉर्ड बताता है कि वो हर काम को जल्दी करने का रास्ता निकाल लेते हैं. मुझे लगता है कि छोटी मोटी बातों के फेर में न पड़कर सबको मानना चाहिए कि आज का दिन नारी शक्ति के लिए ऐतिहासिक है. एक अच्छा कानून बन रहा है. ज्यादा महिलाओं को कानून बनाने वालों में शामिल किया जाए और फिर दुनिया देखेगी कि भारत की नारी, भारत की तकदीर कैसे बदलती है. इसीलिए  राजनीतिक पार्टियां भले ही महिला आरक्षण को लेकर अपने अपने हिसाब से बात कर रही हों, लेकिन देश की महिलाओं को इसकी कोई चिन्ता नहीं है क्योंकि जैसे ही संसद में नारी शक्ति वंदन विधेयक पेश हुआ, देश भर में महिलाओं ने जश्न मनाया.  (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 19 सितंबर, 2023 का पूरा एपिसोड

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