सुप्रीम कोर्ट में जिस दिन कोलकाता आर. जी. कर अस्पताल में हुई रेप-हत्या के मामले को लेकर लम्बी सुनवाई चल रही थी, उसी दिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक चिट्ठी लिख कर सुझाव दिया कि देश में प्रतिदन औसतन बलात्कार की तकरीबन 90 घटनाएं होती है, और इसे रोकने के लिए विशेष फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाया जाए, जहां 15 दिन के अंदर सुनवाई पूरी करके सज़ा सुना दी जाए। ममता बनर्जी चिट्ठी लिखकर अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकती। स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट बनने चाहिए, ये बात उन्हें इतनी देर से याद क्यों आई? बलात्कार के मामलों में हत्या कर दी जाती है, ये उन्हें इतना बड़ा कांड हो जाने के बाद क्यों समझ में आया? अभिषेक बनर्जी ये गिनती गिनाकर नहीं बच सकते कि पिछले 10 दिन में देश भर में बलात्कार की 900 घटनाएं हुई। उन्हें अभी याद आया कि देश में सख्त कानून की जरूरत है? और वो ये भी ज्ञान दे रहे हैं कि ये काम तो केंद्र सरकार को करना है। वो ये क्यों भूल गए कि कानून और व्यवस्था राज्य सरकार की जिम्मेदारी है? जिस हॉस्पिटल में ये घिनौनी वारदात हुई, वह भी राज्य सरकार के अधीन है।
इस मामले में कोलकाता पुलिस ने लापरवाही की इसीलिए ये केस इतना बड़ा बना। इस केस में राज्य सरकार ने प्रिंसिपल को बचाने की कोशिश की, इसीलिए डॉक्टर्स को इतना ज्यादा गुस्सा आया। जब ये केस कलकत्ता हाईकोर्ट ने CBI को सौंपा, तो भीड़ भेजकर सबूत मिटाने की कोशिश की गई, इसीलिए आक्रोश बढ़ा। सुप्रीम कोर्ट ने जब स्वत: संज्ञान लेते हुए इस केस पर सुनवाई की, तो रातों रात 4 डॉक्टर्स को बर्खास्त करके मामले पर पानी डालने की कोशिश की गई, इसीलिए शक और बढ़ा। और जब ममता बनर्जी और अभिषेक बनर्जी को लगा कि राजनीतिक रूप से उन्हें नुकसान हो रहा है, तो सारी जिम्मेदारी मोदी सरकार पर डालने की कोशिश की। लेकिन इस बात को भूलना नहीं चाहिए कि उन्होंने ही ये केस CBI को सौपने पर नाराजगी जाहिर की थी। जब तक नेता इस तरह के दोहरे मापदंड रखेंगे, जब तक ये सोच नहीं बदलेगी, तब तक बेटियों को न्याय मिलना मुश्किल है। जब तक अपराधियों को ये लगता रहेगा कि कोई उन्हें बचाने आएगा, तब तक उनके दिलों में खौफ पैदा करना मुश्किल है। जब तक पुलिस के काम करने का तरीका नहीं बदलेगा, तब तक बेटियों को न्याय मिलना और बेटियों पर बुरी नजर रखने वालों को जल्दी सजा मिलना मुश्किल होगा।
जहां तक आर. जी. कर अस्पताल में हुई वीभत्स घटना का सवाल है, इस पूरे मामले के अब तीन पहलू हैं। पहला, हॉस्पिटल में हुई निर्मम हत्या के बाद सबूत मिटाने की कोशिश, अपराधियों को बचाने की कोशिश, प्रोटेस्ट करने वालों को धमकाने की कोशिश। ये मामला अब CBI की जांच का हिस्सा है, सुप्रीम कोर्ट की निगाह इस पर है। जरूरत इस बात की है कि जांच जल्दी पूरी हो, कोर्ट अपराधियों को जल्दी से जल्दी सजा दे। दूसरा पहलू है, हॉस्पिटल में लेडी डॉक्टर्स और महिला स्टाफ की सुरक्षा। इस पर ध्यान देना और भी जरूरी है। आज हर डॉक्टर बेटी के माता पिता को चिंता है कि क्या उनकी बेटी सुरक्षित रहेगी? कोई नहीं चाहता कि उनकी बेटी नाइट ड्यूटी करे। हॉस्पिटल में काम करने वाली बेटियां डर कर, सहम कर अपनी जिंदगी नहीं गुजार सकती। इस हालत को तुरंत बदलना जरूरी है।
तीसरा पहलू है, आए दिन हॉस्पिटल्स में डॉक्टर्स के साथ होने वाली गाली गलौज और मारपीट। आम तौर पर ये देखने को मिलता है कि जब भी किसी मरीज की मौत हो जाती है, अगर उसके परिवार वालों को लापरवाही दिखे, उन्हें ये शक हो जाए कि इलाज ठीक से नहीं हुआ, तो वो सीधे डॉक्टर पर हमला करते हैं। डॉक्टर्स इस डर के वातावरण में काम नहीं कर सकते हैं। नैशनल टास्क फोर्स को वर्किंग कंडीशन के साथ-साथ इन पहलुओं पर भी विचार करना चाहिए। इसके लिए सबसे जरूरी ये होगा कि टास्क फोर्स के सदस्य हॉस्पिटल्स में काम करने वाली लेडी डॉक्टर, नर्सेज, रेजिडेंट डॉक्टर्स और सीनियर डॉक्टर्स से खुलकर बात करें और फिर अपने सुझाव सुप्रीम कोर्ट को दें। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वो इस मामले सिर्फ सलाह नहीं देना चाहती, बल्कि आदेश जारी करना चाहती है। इसीलिए जरूरी है कि सारे पहलू सुप्रीम कोर्ट के सामने व्यवस्थित और विज्ञान सम्मत तरीके से पेश किए जाएं। (रजत शर्मा)
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