उत्तर प्रदेश में कानपुर देहात की मैथा तहसील के मड़ौली गांव में सोमवार को बेदखली की कार्रवाई के दौरान एक मां और बेटी की मौत की नृशंस घटना ने देश के लोगों में जबरदस्त आक्रोश भर दिया है।
झोपड़ी को सरकारी बुलडोजर से बचाने के लिए दोनों पीड़ितों के खुद को अंदर बंद करने, झोपड़ी में अचानक आग लगने और जलती झोपड़ी पर बुलडोजर चलने का वीडियो देखकर लोगों का दिल दहल गया। यह सब कुछ पुलिसकर्मियों, महिला कांस्टेबलों, तहसीलदार, लेखपाल और एसडीएम की मौजूदगी में हुआ।
यह झोपड़ी कृष्ण गोपाल दीक्षित की थी जो इस घटना में बुरी तरह झुलस गए, जबकि उनकी पत्नी प्रमिला (41 वर्ष) और बेटी नेहा (21 वर्ष) की आग में जलकर मौत हो गई। वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि प्रमिला उनकी झोपड़ी गिराने आए सरकारी अमले का विरोध करती हैं और फिर अपनी बेटी के साथ झोपड़ी के अंदर चली जाती हैं। पुलिसवाले इसके बाद झोपड़ी का दरवाजा तोड़ देते हैं और इसी दौरान उसमें आग लग जाती है। दीक्षित और उनका बेटा शिवम जलती हुई झोपड़ी से किसी तरह बाहर निकलने में कामयाब रहे। प्रमिला और उनकी बेटी अंदर ही फंसी रह जाती हैं और तभी झोपड़ी के बचे-खुचे हिस्से पर भी बुलडोजर चल जाता है। यह तोड़फोड़ लेखपाल द्वारा दायर शिकायत के आधार पर की गई जिसका कहना था कि झोपड़ी ग्राम सभा की जमीन पर बनी थी।
यह किसी को नहीं मालूम की झोपड़ी में आग किसने लगाई। वीडियो में एक अधिकारी की आवाज सुनाई दे रही थी जो बुलडोजर के ड्राइवर को आगे बढ़ने और झोपड़ी को गिराने के लिए कह रहे थे। यह झोपड़ी सिर्फ एक महीने पहले ही एक पक्के घर की जगह पर बनाई गई थी जिसे स्थानीय अधिकारियों ने तुड़वा दिया था। परिवार का दावा है कि उनका घर पुश्तैनी जमीन पर बना है।
चश्मदीदों का कहना है कि कार्रवाई के दौरान लेखपाल ने ही झोपड़ी में आग लगाई थी। घटना के बाद आग भड़कती देख लेखपाल, एसडीएम और उनके साथ आए दूसरे सरकारी कर्मचारी मौके से भाग खड़े हुए।
मामला बिगड़ने के बाद यूपी सरकार के वरिष्ठ अधिकारी मड़ौली गांव पहुंचने लगे। कानपुर मंडल के कमिश्नर राजशेखर, ADG आलोक कुमार और कानपुर देहात के एसपी बीएस मूर्ति समेत तमाम बड़े अधिकारी मड़ौली गांव गए और लोगों को शवों का दाह संस्कार करने के लिए मनाने की कोशिश की। उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने प्रमिला के बेटे से फोन पर बात की और सभी अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई का वादा किया। आखिरकार बुधवार की सुबह शवों का अंतिम संस्कार कर दिया गया।
कानपुर मंडल के कमिश्नर राजशेखर के मुताबिक, मैथा तहसील के एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद को सस्पेंड कर दिया गया है, जबकि बुलडोजर के ड्राइवर दीपक कुमार और लेखपाल अशोक सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया है। पुलिस ने एसडीएम, लेखपाल, रुरा थाने के थानाध्यक्ष दिनेश कुमार गौतम, 3 अन्य अधिकारियों, 12 से 15 पुलिसकर्मियों और 3 स्थानीय निवासियों (सभी ब्राह्मणों) के खिलाफ IPC की धारा 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास), 436, 429 और 34 के तहत FIR दर्ज की है।
राज्य मंत्री प्रतिभा शुक्ला ने इस दर्दनाक घटना के लिए डीएम नेहा जैन को सीधे-सीधे जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने और प्रमिला के बेटे शिवम दीक्षित ने कहा कि परिवार के लोगों ने जनवरी में डीएम से मिलने की कोशिश की थी, लेकिन उन्होंने उनकी दलीलें सुनने से इनकार कर दिया था और उल्टा अधिकारियों को उनके खिलाफ ही केस दर्ज करने को कह दिया। शिवम ने कहा, ‘यह बेदखली का मामला नहीं था, बल्कि पूरे परिवार की हत्या करने की एक सोची समझी साजिश थी।’
जिस दिन गांव में हाहाकार मचा हुआ था, उस दिन डीएम कानपुर महोत्सव में मंच पर झूमकर नाच रही थीं। राज्य मंत्री प्रतिभा शुक्ला ने डीएम को 'असंवेदनशील' कहा।
समाजवादी पार्टी और कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने कानपुर की घटना को लेकर विरोध प्रदर्शन किया। समाजवादी पार्टी के नेताओं को पुलिस ने गांव जाने से रोक दिया। उन्होंने मौजूदा सरकार को ‘ब्राह्मण विरोधी’ करार देते हुए आरोप लगाया कि राज्य सरकार डीएम को बचाने की कोशिश कर रही है।
कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने अपने ट्वीट में कहा, ‘बीजेपी सरकार के बुलडोजर पर लगा अमानवीयता का चश्मा इंसानियत व संवेदनशीलता के लिए खतरा बन चुका है। कानपुर की हृदयविदारक घटना की जितनी निंदा की जाए उतनी कम है। हम सबको इस अमानवीयता के खिलाफ आवाज उठानी होगी। कानपुर के पीड़ित परिवार को न्याय मिले एवं दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो।’
उनके भाई राहुल गांधी ने ट्वीट किया, ‘जब सत्ता का घमंड लोगों के जीने का अधिकार छीन ले, उसे तानाशाही कहते हैं। कानपुर की घटना से मन विचलित है। ये ‘बुलडोजर नीति’ इस सरकार की क्रूरता का चेहरा बन गई है। भारत को ये स्वीकार नहीं।’
एक परिवार की दो महिलाएं जिंदा जल गईं, लेकिन राजनीतिक दल लाशों की जाति देख रहे हैं, इससे ज्यादा दुखद बात और कोई नहीं हो सकती। यह निहायत ही घटिया दृष्टिकोण है।
हमें इस मामले की हकीकत को समझना होगा। पहली बात यह है कि जिस परिवार की झोपड़ी पर बुलडोजर चलाया गया, वह ब्राह्मण परिवार है। दूसरी बात यह है कि जिस शख्स पर पीड़ित परिवार हत्या का इल्जाम लगा रहा है, जिसकी शिकायत पर यह सब हुआ, वह भी ब्राह्मण है। ऐसे में इसे ब्राह्मणों पर जुल्म कैसे करार दिया जा सकता है? जब दोनों ब्राह्मण हैं तो जाति का सवाल कहां आता है? यह पूरी तरह से छोटे स्तर पर अफसरों की मिलीभगत, घूसखोरी, अमानवीय व्यवहार और सरकारी पद और उसकी ताकत के दुरुपयोग का मामला है।
एक शख्स ने शिकायत की, लेखपाल ने उसके साथ मिलकर एक परिवार की झोपड़ी पर बुलडोजर चलवाया, उसमें आग लगाई। इसमें स्थानीय पुलिस की भी मिलीभगत है, क्योंकि वह तमाशा देखती रही। इसमें SDM भी जिम्मेदार हैं क्योंकि उन्होंने सिर्फ कागजी कार्रवाई की और मौके पर मौजूद रहकर भी तमाशा देखते रहे।
इस मामले में डीएम भी निर्दोष नहीं हैं। एक महीने पहले पीड़ित परिवार डीएम के पास फरियाद लेकर गया था, लेकिन उन्होंने उसे अपने यहां से भगा दिया। इसके बाद लेखपाल ने इसी परिवार के खिलाफ केस दर्ज करवा दिया, परिवार को भूमाफिया बता दिया। जिस परिवार के पास छत नहीं थी, जायदाद के नाम पर 22 बकरियां थी, उसे भूमाफिया बता दिया गया। बड़े-बड़े अफसर खामोश रहे। जाहिर है, इससे लेखपाल की हिम्मत बढ़ी और वह हैवान बन गया। इसलिए एक्शन तो सबके खिलाफ होना चाहिए। मुझे पूरा यकीन है कि योगी आदित्यनाथ इस मामले में जल्दी से जल्दी और सख्त से सख्त कार्रवाई जरूर करेंगे। (रजत शर्मा)
देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 14 फरवरी, 2022 का पूरा एपिसोड