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Rajat Sharma’s Blog: जहांगीरपुरी में बुलडोज़र चलाने से पहले सही प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ

जब तक सुप्रीम कोर्ट का यथास्थिति बनाए रखने का आदेश नगर निगम के अधिकारियों तक पहुंचता, तब तक कई दुकानों पर बुलडोजर चल चुके थे।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published on: April 21, 2022 19:04 IST
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Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में अवैध अतिक्रमण को हटाने के मुद्दे पर अगले आदेश तक यथास्थिति कायम रखने का निर्देश दिया। कोर्ट ने सभी पक्षों को नोटिस जारी किया और अगली सुनवाई 2 हफ्ते बाद होगी। जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस बी.आर. गवई ने कहा, 'अगले आदेश तक यथास्थिति बना कर रखी जाए.. मामले को दो हफ्ते के बाद सूचीबद्ध किया जाए और तब तक दलीलों को पूरा किया जाए।'

बेंच ने कहा कि 'हम सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी, यहां तक के एनडीएमसी महापौर को सूचित किए जाने के बाद भी किए गए विध्वंस पर गंभीरता से विचार करेगी। हम इसे बाद में उठाएंगे।' याचिकाकर्ता जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से पेश हुए वकील दुष्यंत दवे ने अदालत से कहा कि 'यह मामला संवैधानिक और राष्ट्रीय महत्व के दूरगामी सवाल उठाता है', जिस पर पीठ ने पूछा: 'इस मामले में राष्ट्रीय महत्व क्या है? यह केवल एक इलाके से जुड़ा मसला है।' दवे ने जवाब दिया कि जहां कहीं भी दंगे हो रहे हैं, वहां हर जगह बुलडोजर का इस्तेमाल हो रहा है।

अब जबकि अवैध अतिक्रमणों को गिराने का मुद्दा थम गया है, आइए जानते हैं कि बुधवार की सुबह क्या हुआ था जब उत्तरी दिल्ली नगर निगम के नौ बुलडोजर जहांगीरपुरी पहुंचे थे। यह वही इलाका है जहां शनिवार की शाम हनुमान जयंती की शोभायात्रा के दौरान पथराव और आगजनी हुई थी।

जब तक सुप्रीम कोर्ट का यथास्थिति बनाए रखने का आदेश नगर निगम के अधिकारियों तक पहुंचता, तब तक कई दुकानों पर बुलडोजर चल चुके थे और अवैध कब्जे हटा दिए गए थे। इल्जाम लगाया गया कि सिर्फ मुसलमानों की प्रॉपर्टी को निशाना बनाया गया, जबकि हिंदुओं की प्रॉपर्टी को अछूता छोड़ दिया गया, लेकिन तथ्य कुछ और ही साबित करते हैं। अवैध रूप से कब्जा की गई जमीन पर बनी सभी दुकानों पर बुलडोजर चला, चाहे वे हिंदुओं की थी या मुसलमानों की।

आरोप लगाए गए कि मस्जिद पर भी बुलडोजर चलाया गया, जो कि सफेद झूठ था। मस्जिद के सामने के सिर्फ उस हिस्से को तोड़ा गया जो अतिक्रमित जमीन पर बनाया गया था। यह भी कहा गया कि इसी रोड पर आगे मौजूद मंदिर को छुआ तक नहीं गया। सच तो यह है कि बुलडोजर अतिक्रमण हटाने के लिए मंदिर भी पहुंचा था, लेकिन तब तक मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की नेता वृंदा करात आईं और जेसीबी के सामने खड़ी हो गईं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का आदेश दिखाया जिसके बाद तोड़फोड़ अभियान रोक दिया गया। देर शाम तक मंदिर प्रबंधन ने खुद ही पहल करके अतिक्रमण हटा दिया।

इस घटना को लेकर राजनीतिक दल मैदान में कूद पड़े और एक-दूसरे पर इल्जाम लगाने लगे। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि ‘यह भारत के संवैधानिक मूल्यों को ध्वस्त किया गया है। गरीबों और अल्पसंख्यकों को सरकार प्रायोजित निशाना बनाया गया है। बीजेपी को इन सबकी बजाय अपने दिल की नफरत को मिटाना चाहिए।’

समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव ने ट्वीट किया, ‘भाजपा ने बुलडोज़र को अपनी ग़ैरक़ानूनी ताक़त दिखाने का प्रतीक बना लिया है। मुसलमान व अन्य अल्पसंख्यक, पिछड़े व दलित इनके निशाने पर हैं। अब तो इनके उन्माद का शिकार हिंदू भी हो रहे हैं। भाजपा दरअसल संविधान पर ही ये बुलडोज़र चला रही है। भाजपा बुलडोजर को ही अपना प्रतीक चिन्ह बना ले।’

आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने आरोप लगाया, ‘अब यह अवैध कब्जा हटाने का ड्रामा किया जा रहा है। पिछले 15 सालों से बीजेपी शासित एमसीडी ने ये अतिक्रमण होने ही क्यों दिए? बीजेपी के किस नेता ने पैसा लिया और इन अवैध कब्जों की इजाजत दी?’

ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने बुधवार रात जहांगीरपुरी का दौरा किया, और अतिक्रमण विरोधी अभियान को ‘फौरी न्याय’ और ‘चुनिंदा विध्वंस’ करार दिया। उन्होंने कहा, ‘मुसलमानों को सामूहिक सजा का सामना करना पड़ रहा है। हुक्मरानों को गरीबों की आह से डरना चाहिए। आपने मस्जिद के सामने की दुकानें तोड़ी, मंदिर के सामने की क्यों नहीं? मैं इस चुनिंदा विध्वंस की निंदा करता हूं।’

सोशल मीडिया पर #StopBulldozingMuslimHouses जैसे हैशटैग और ट्रेंड्स छाए हुए थे। सच्चाई यह है कि एक भी मुसलमान के घर को नहीं गिराया गया और बुलडोजर मुसलमानों के साथ-साथ हिंदुओं की दुकानों पर भी चला। बुलडोजर ने रमन झा, गुप्ता जूस कॉर्नर, सुमित सक्सेना और अन्य हिंदुओं की दुकानों को भी जमींदोज कर दिया।

अगर सरकारी जमीन पर कब्जा करके वहां मकान और दुकान बना दिए जाएं तो उन्हें जरूर तोड़ा जाना चाहिए, और धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। अगर पार्क, सड़क और नाले पर कब्जा करके अवैध निर्माण कर दिया जाए, तो उसे हटाना जरूरी है। इसमें कोई दो राय नहीं है। सवाल यह है कि पिछले दो-तीन दशकों में इस तरह के अवैध कब्जों को होने क्यों दिया गया? MCD के जिन अफसरों की जिम्मेदारी गैरकानूनी कब्जे को रोकना है, वे क्या कर रहे थे? उन अफसरों पर भी सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।

इसके अलावा अवैध निर्माणों को तोड़ने की कार्रवाई अचानक नहीं की जाती। अवैध कब्जे तोड़ने से पहले एमसीडी को नोटिस भेजना चाहिए था, ताकि जिन्होंने अवैध कब्जा किया हुआ है, वे खुद ही उसे हटा लें। जहांगीरपुरी में रात में नोटिस चस्पां किया गया, तड़के दिल्ली पुलिस से फोर्स मांगी गई और बुलडोजर का दस्ता तोड़फोड़ करने पहुंच गया। यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है। यही वजह है कि जैसे ही मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा, अदालत ने बिना देर किए बुलडोजर पर ब्रेक लगाने का आदेश दे दिया। मेरे ख्याल से ऐसा करना सही था और इसे सही समय पर रोक दिया गया। सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण हिंदू-मुसलमान का मुद्दा नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने उन लोगों को राहत दी है, जिनकी आंखों के सामने उनकी दुकानों और मकानों पर बुलडोजर चला था। वैसे तो सरकारी जमीन पर कब्जा करना गैरकानूनी है, लेकिन निम्न मध्यम वर्ग और गरीबों द्वारा बनाए गए घरों को यूं टूटते हुए देखने पर तकलीफ होती है।

एक रिटायर्ड जज ने बुधवार को मुझे बताया कि सुप्रीम कोर्ट के कम से कम 30 फैसले हैं, जिनमें सार्वजनिक सड़कों, गलियों, पार्कों और फुटपाथों के अतिक्रमण को अवैध बताया गया है।

मुंबई में फुटपाथ पर रहने वाले लोगों के मामले में (Bombay Pavement Dwellers Case) सुप्रीम कोर्ट का फैसला एक ऐतिहासिक निर्णय है। कानून के जानकारों का कहना है कि यदि सार्वजनिक जमीन पर कब्जा करके दुकानें बनाई गई हैं तो स्थानीय अधिकारियों को ऐसे ढांचों को तोड़ने का पूरा हक है। लेकिन ऐसा करने के लिए अधिकारियों को एक उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन करना चाहिए। रिटायर्ड जज ने मुझे लखनऊ के निशातगंज केस के बारे में बताया जिसमें हाई कोर्ट की एक बेंच ने अतिक्रमण हटाने के अभियान की निगरानी की थी। अतिक्रमण हटाने के लिए बुलडोजर का इस्तेमाल करना अवैध नहीं है, लेकिन स्थानीय अधिकारियों को उचित प्रक्रिया का पालन करना चाहिए।

जहां तक नेताओं की बात है, तो मैं केवल इतना कह सकता हूं कि इन सबके अपने अपने सियासी मकसद हैं, इसलिए ये एक-दूसरे पर इल्जाम लगा रहे हैं। दिल्ली में चल रहे बुलडोजर की तस्वीरों की चर्चा इसलिए ज्यादा हुई क्योंकि जिनकी दुकानें टूटीं, वे हिन्दू हों या मुसलमान, गरीब और लोअर मिडिल क्लास के लोग थे। रोज कमाने वाले, खाने वाले लोग थे। यही वजह है कि आम लोगों की संवेदनाएं इन गरीबों के साथ हैं।

वहीं दूसरी तरफ, बुलडोजर तो उत्तर प्रदेश में भी कई महीनों से चल रहे हैं और अब तक 1700 करोड़ रुपये की सरकारी जमीन को कब्जा मुक्त कराया जा चुका है। योगी ने बुलडोजर का इस्तेमाल अतीक अहमद, मुख्तार अंसारी और विजय सिंह जैसे उन लोगों के खिलाफ किया जो गैंगस्टर हैं, अपराधी हैं, माफिया हैं। जब बुलडोजर इन गैंगस्टरों की अवैध संपत्ति पर चलता है, तो आम आदमी का कानून के प्रति भरोसा और मजबूत होता है। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 20 अप्रैल, 2022 का पूरा एपिसोड

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