Friday, November 22, 2024
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Rajat Sharma's Blog | क्या इस्लाम में वंदे मातरम् का गायन वर्जित है ?

देवेन्द्र फणनवीस ने ऐतराज़ जताया और कहा, वंदेमातरम् तो मातृभूमि के सामने सिर झुकाना है, कोई मजहब ऐसा नहीं है जो मां के सामने सिर झुकाने की इजाज़त न देता हो. यह एक धार्मिक गीत नहीं, राष्ट्र गान है।

Written By: Rajat Sharma
Updated on: July 21, 2023 6:18 IST
इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ रजत शर्मा।- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ रजत शर्मा।

वंदे मातरम् को लेकर एक बार फिर सियासत हुई. बुधवार को महाराष्ट्र विधानसभा में जमकर हंगामा हुआ. समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अबू आजमी ने कहा कि मुसलमानों को जबरन वंदे मातरम् गाने पर मजबूर किया जा रहा है, बीजेपी के लोग नारे लगाते हैं कि भारत में यदि रहना होगा तो वंदे मातरम् कहना होगा. अबू आजमी ने कहा कि वो किसी कीमत पर वंदे मातरम् नहीं कह सकते क्योंकि इस्लाम इसकी इजाज़त नहीं देता, मुसलमान किसी की वंदना नहीं कर सकते. इस पर उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फणनवीस ने ऐतराज़ जताया. कहा, वंदे मातरम् तो मातृभूमि के सामने सिर झुकाना है, कोई मजहब ऐसा नहीं है जो मां के सामने सिर झुकाने की इजाज़त न देता हो. यह एक धार्मिक गीत नहीं, राष्ट्र गान है.  इस मुद्दे पर उद्धव ठाकरे की शिवसेना, कांग्रेस और NCP के नेता बिल्कुल खामोश रहे. महाराष्ट्र सरकार के मंत्री सुधीर मुनगंटीवार ने कहा कि अबू आजमी को समझ लेना चाहिए कि अगर हिन्दुस्तान में रहना है, तो वंदे मातरम् कहना होगा. असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM के विधायक मुफ्ती इस्माइल ने कहा कि संविधान सबको अपने अपने मजहब के हिसाब से जीने की आजादी देता है, इस्लाम में अल्लाह के सिवाय किसी के सामने सिर झुकाने की इजाजत नहीं है, तो फिर कोई किसी मुसलमान को वंदे मातरम कहने पर मजबूर कैसे कर सकता है. बीजेपी विधायक नीतेश राणे ने अबू आजमी को ज़हरीला सांप बता दिया और यहां तक कह दिया कि जो वंदे मातरम नहीं बोल सकता, संविधान को नहीं मानता, ऐसे सांप को कुचल देना चाहिए. मुझे लगता है कि नीतीश राणे की बात को, उनकी भाषा को, उनके लहज़े  का कोई समर्थन नहीं कर सकता. न ये भाषा ठीक है, न अंदाज़ ठीक है, किसी को सांप कहना, कुचल देना, जीभ काट देना, ये लोकतन्त्र की भाषा नहीं है, न ये सियासी मर्यादा के दायरे में आता है. इसलिए नीतेश राणे को संभल कर बोलना चाहिए. जहां तक अबू आजमी के बयान का सवाल है, वो चाहते थे कि बीजेपी उनकी बात को पकड़ कर बड़ा मुद्दा बनाए. वरना औरंगाबाद में जो घटना हुई थी, उसकी खबर और तस्वीरें मैंने आपको आज की बात में दिखाई थी. उस वक्त मैंने ओवैसी की पार्टी AIMIM के सांसद इम्तियाज़ जलील के रोल की तारीफ की थी, क्योंकि इम्तियाज खुद उस मंदिर में तीन घंटे तक बैठे रहे, जिसे भीड़ ने घेर रखा था. उस वक्त हालात खराब थे, इम्तियाज जलील ने मामले को ठंडा करवाया. पूरे देश ने तस्वीरें देखी थी. अब उस मुद्दे को उठाना,  फिर उसे वंदे मातरम् से जोड़ना बिल्कुल गलत था. इसीलिए देवेन्द्र फडणनवीस ने अच्छा किया कि विधानसभा मे पूरे तथ्यों के साथ अबू आजमी को जबाव दे दिया लेकिन चूंकि अबू आजमी ने वंदे मातरम् का जिक्र सियासी मकसद से किया था, इसीलिए बीजेपी को जबावी हमला करने का मौका मिला गया. अब अबू आजमी के बयान को लेकर बीजेपी के नेता राहुल गांधी,  अखिलेश यादव, शरद पवार, उद्धव ठाकरे, नीतीश कुमार से पूछ रहे हैं कि क्या वो अबू आजमी के बयान का समर्थन करते हैं. विरोध दलों के गठबंधन का नाम तो इंडिया रख लिया, क्या उनका 'इंडिया' वंदे मातरम् कहने से इंकार करने वालों के साथ खड़ा रहेगा?

इंडिया गठबंधन में दरारें

बैंगलुरू में 26 विपक्षी दलों के नेताओं ने एकता के जो दावे किए थे, उनमें समस्या दिखाई पड़ने लगी है. जैसे ही नेता अपने अपने राज्यों में पहुंचे तो एकता पर सवाल उठे. कल जो सारे नेता एक दूसरे को लोकतन्त्र का पहरेदार बता रहे थे, आज एक दूसरे को लोकतन्त्र का हत्यारा कहने लगे. पहला केस आया बंगाल से. सीपीएम नेता वृंदा करात ने कहा कि ममता बनर्जी हिंसा की राजनीति करती हैं, आम आदमी की आवाज़ को दबाती हैं, बंगाल में लोकतंत्र की हत्या कर रही हैं,  इसलिए उनके साथ तो गठबंधन हो ही नहीं सकता. वृंदा करात ने कहा कि ममता बनर्जी ने पंचायत चुनाव में जिस तरह हिंसा की, उसके बाद वाम मोर्चे का ममता के साथ खड़े होना मुमकिन नहीं है. कल सीताराम येचुरी ने कहा और आज बृंदा करात ने कह दिया कि बंगाल में ममता के साथ समझौता मुश्किल है. लेफ्ट की बंगाल में ममता के साथ पुरानी अदावत है, और केरल में कांग्रेस के साथ. इसलिए दो राज्यों में तो विपक्षी एकता कायम नहीं रह पाएगी, ये बात लेफ्ट के नेता मान रहे हैं. इसी तरह दिल्ली और पंजाब में केजरीवाल के साथ कांग्रेस की सीधी टक्कर है, हालांकि बैंगलुरू में केजरीवाल ने दावा किया किया लोकतन्त्र की रक्षा के लिए वो कांग्रेस और दूसरे दलों के साथ मज़बूती से खड़े रहेंगे. कांग्रेस ने भी केजरीवाल से दोस्ती का वादा किया.  लेकिन पंजाब के कांग्रेस नेताओं ने केजरीवाल के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वडिंग ने नशे की समस्या, बाढ़ और किसानों को मुआवजे के मुद्दे पर भगंवत मान की सरकार को घेरा. जब उनसे पूछा गया कि अब तो केजरीवाल कांग्रेस के इंडिया अलायंस के मेंबर हैं, अब इस तरह के हमले क्यों तो राजा वडिंग ने कहा कि आम आदमी के साथ एलायंस सेंटर में होगा, पंजाब में तो कांग्रेस भगवंत मान से जनता के सवाल पूछती रहेगी. बंगाल, केरल, दिल्ली और पंजाब में तो दरारें साफ दिख रही है. लेकिन इसी तरह का हाल यूपी, बिहार और झारखंड में भी होगा. बात जब सीटों के बंटवारे पर पहुंचेगी तो कांग्रेस की मुश्किल शुरू होगी. बिहार में नीतीश और लालू कांग्रेस को कितनी सीटें देंगे? झारखंड में भी हेमंत सोरेन से नीतीश और लालू अपनी-अपनी पार्टी के लिए सीट मांगेंगे, तो कांग्रेस के लिए क्या बचेगा? यूपी में अखिलेश यादव जयन्त चौधरी के लिए दो-तीन सीटें छोड़ देंगे, लेकिन क्या कांग्रेस को पांच से ज्यादा सीटें देने पर राजी होंगे? मुझे लगता है कि अभी विरोधी दल एकता के कितने भी दावे करें लेकिन जब सीटों के बंटवारे की बात आएगी तो अलायंस उड़ीसा, कर्नाटक, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और आन्ध्र प्रदेश जैसे उन्हीं राज्यों में चलेगा, जहां कांग्रेस के अलावा गठबंधन में शामिल दूसरी पार्टियों का वजूद नहीं हैं. बाकी राज्यों में सीताराम येचुरी की बात लागू होगी. विरोधी पार्टियां एक दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार उतारेंगी, लेकिन गठबंधन में मसला सिर्फ सीटों के बंटवारे का नहीं हैं, मसला अलायंस के नेता के नाम पर भी है. गठबंधन की तरफ से प्रधानमंत्री पद का दावेदार कौन होगा, इस पर भी मतभेद होंगे. बुधवार को इसके संकेत भी मिले. तृणमूल कांग्रेस सांसद शताब्दी रॉय ने कहा कि ममता बनर्जी में प्रधानमंत्री बनने की सारी खूबियां हैं, वो ममता को देश का नेतृत्व करते हुए देखना चाहती हैं. केजरीवाल की हरसत भी प्रधानमंत्री बनने की है. आम आदमी पार्टी के सांसद राघव चड्ढा ने कहा कि केजरीवाल प्रधानमंत्री बनें, ये उनका सपना है. इसमें तो कई शक नहीं है कि ममता बनर्जी बंगाल को अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी के हवाले करके खुद केंद्र की राजनीति में आना चाहती हैं. वो इसी रणनीति पर काम कर रही हैं. ये कांग्रेस की मदद के बगैर संभव नहीं हैं इसीलिए उन्होंने बंगाल में अपनी धुर विरोधी और कांग्रेस के साथ बेंगलुरु में मंच साझा किया. जहां तक केजरीवाल का सवाल है तो केजरीवाल, प्रधानमंत्री तो बनना चाहते हैं  लेकिन उन्हें मालूम है कि फिलहाल लोकसभा में उनकी पार्टी का सिर्फ एक सांसद है. जब तक उनकी पार्टी के सांसदों की संख्या चालीस तक नहीं होगी तब तक वो दावेदारी नहीं कर पाएंगे और इस आंकड़े तक अगले चुनाव में पहुंचना संभव नहीं हैं, इसलिए वो फिलहाल इंतजार करेंगे और विपक्षी गठबंधन में शामिल होकर अपनी पार्टी की ताकत को बढ़ाने की कोशिश करेंगे. जहां तक नीतीश का सवाल है तो नीतीश जरूर प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी की दौड़ में हैं, वो दिल्ली आना चाहते हैं, कई मौकों पर ये बात जाहिर कर चुके हैं, लालू के साथ समझौता इसी शर्त पर हुआ है, इसीलिए नीतीश ने 11 महीने पहले विपक्ष को एकजुट करने की मुहिम शुरू की थी. उन्हें उम्मीद थी कि बैंगलुरु में गठबंधन के नाम के अलावा उसके संयोजक के तौर पर उनके नाम का एलान हो जाएगा. कांग्रेस ने ये होने नहीं दिया. इसीलिए नीतीश नाराज होकर पटना लौट गए.

बैंगलुरु से नीतीश, लालू क्यों जल्दी चले आये?

बीजेपी नेता सुशील मोदी और जीतनराम मांझी की पार्टी के नेताओं का कहना है कि नीतीश कुमार गठबंधन का संयोजक नहीं बनाए जाने से नाराज हैं. लेकिन बुधवार को नीतीश कुमार ने राजगीर में कुछ और बात कही. सफाई देते हुए नीतीश ने कहा, बैंगलुरु में सभी मुद्दों पर बात हुई, उनकी राय को तवज्जो दी गई. चूंकि सारी बातें तय हो गई थीं, इसलिए प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए रुकने के बजाय वो जल्दी लौट आए.  इससे पहले नीतीश ने राजगीर की पब्लिक मीटिंग में भी सफाई दी. नीतीश बुधवार को राजगीर में मलमास के मेले में पहुंचे थे.  नीतीश ने कहा कि वो तो मेले के पहले दिन यानी मंगलवार को ही आना चाहते थे, इसी चक्कर में वो बैंगलुरु से जल्दी लौटे  लेकिन इसे मुद्दा बना दिया गया, फालतू की बातें फैलाई गईं.  नीतीश अब सफाई दे रहे हैं. ये उनकी मजबूरी है. लेकिन उनके तर्कों में दम नहीं हैं. मंगलवार को जब वो बैंगलुरु से जल्दी लौटे थे, उस वक्त मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा था कि कुछ नेताओं की फ्लाइट का टाइम हो रहा था, इसलिए जल्दी निकल गए. लेकिन हकीकत ये थी नीतीश, तेजस्वी और लालू अपनी पार्टी के नेताओं के साथ चार्टर्ड विमान से गए थे, वो दो घंटे बाद भी  उड़ान भर सकता था. कोई फ्लाइट छूटने वाली नहीं थी. अब नीतीश कह रहे हैं कि उन्हें राजगीर के प्रोग्राम में शामिल होना था, इसलिए बैंगलुरु से जल्दी जल्दी भागे. लेकिन हकीकत ये है कि राजगीर में नीतीश के जाने का प्रोग्राम मंगलवार का नहीं , बुधवार का तय था, और ये दो हफ्ते से सबको पता था. बुधवार को ही उनको मलमास मेले का उद्घाटन करना था.  इसके लिए बिहार सरकार की तरफ़ से विज्ञापन भी दिया गया था.  प्रोग्राम में तेजस्वी यादव को भी आना था क्योंकि बिहार का जो राजस्व और भूमि सुधार विभाग ये मेला लगवाता है, वो RJD के ही पास है. RJD के नेता आलोक मेहता उसके मंत्री हैं,  लेकिन बुधवार के प्रोग्राम में न तेजस्वी पहुंचे, न उनके मंत्री आलोक मेहता.  ख़ुद नीतीश कुमार भी दोपहर दो बजे वहां पहुंचे. इसलिए ये कहना गलत है कि वो राजगीर के प्रोग्राम में शामिल होने के चक्कर में बैंगलुरु से भागे. अब एक नई बात सामने आई है. पता चला है कि  तेजस्वी और लालू बैंगलुरु में विपक्ष की प्रेस कांफ्रेंस में शामिल होना चाहते थे लेकिन नीतीश की ज़िद के कारण  उन्हें भी आना पड़ा. अब तेजस्वी और लालू नीतीश से नाराज हैं. इसलिए तेजस्वी राजगीर में नीतीश के साथ प्रोग्राम में शामिल नहीं हुए. कुल मिलाकर ये कहना गलत नहीं होगा कि अब नीतीश कितनी भी छुपाने की कोशिश करें लेकिन बिना आग के धुंआ नहीं उठता. (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 19 जुलाई, 2023 का पूरा एपिसोड

 

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