बिहार पुलिस ने शनिवार को ऐलान किया कि आररिया में पत्रकार विमल कुमार यादव की हत्या के सिलसिले में चार आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है, तथा दो अन्य आरोपियों से पूछताछ करने के लिए रिमांड आवेदन दिया गया है। ये दोनों अभी अररिया जेल में हैं। प्रमुख हिंदी दैनिक जागरण के पत्रकार विमल कुमार यादव शुक्रवार सुबह अपने घर पर सो रहे थे, जब चार नक़ाबपोश हत्यारे आये और दरवाजा खोलते ही उनके सीने पर गोलियां दाग दीं। विमल कुमार 2019 में अपने सरपंच भाई शशिभूषण की हत्या के एकमात्र गवाह थे और वह अदालत में गवाही देने वाले थे। विमल कुमार के परिवार वालों का आरोप है कि बदमाशों ने अदालत में उन्हें गवाही न देने का धमकी दी थी, पर विमल कुमार नहीं माने। पत्रकार के परिवारजनों ने आरोप लगाया कि उन्होने विमल की सुरक्षा के लिए पुलिस से गुहार लगाई थी, लेकिन उन्हें सुरक्षा नहीं दी गई। विमल के पिता की शिकायत के आधार पर दर्ज़ एफआईआर में 8 लोगों को नामजद किया गया है। सुशासन बाबू के राज में अपराधियों के हौसले बुलंद है। दो दिन पहले पशु तस्करों ने समस्तीपुर में एक पुलिस दरोगा की सरेआम हत्या कर दी थी। पत्रकार विमल कुमार यादव अपने घर में इकलौते कमाने वाले थे। उनके दो बच्चे हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि ये बहुत गंभीर घटना है।, बहुत दुखद है, ऐसा नहीं होना चाहिए। नीतीश का जवाब सुनकर लगा कि किसी राज्य का मुखिया एक नौजवान की सरेआम हत्या पर इस तरह बड़े सपाट और संवेदनशून्य तरीके के कैसे रिएक्ट कर सकता है। बिहार बीजेपी अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने कहा कि मुख्यमंत्री को दिल्ली, मुंबई घूमने से फुरसत नहीं, उनको पता ही नहीं होता कि बिहार में क्या हो रहा है, इसीलिए बिहार में अपराधी नियंत्रण से बाहर हो गए हैं। सम्राट चौधरी ने कहा कि नीतीश और तेजस्वी के राज में अपराधी इतने बेख़ौफ़ हैं कि वो पुलिसवालों को भी गोली मारने से नहीं डरते। उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने बीजेपी के नेताओं को अलग अंदाज में जवाब दिया। तेजस्वी ने कहा कि बीजेपी के नेता तो बिहार को बदनाम करने में लगे रहते हैं जबकि बिहार से ज़्यादा क्राइम रेट तो दिल्ली का है और दिल्ली पुलिस सीधे अमित शाह के तहत काम करती है। उन्होंने कहा कि जब बीजेपी दिल्ली में अपराध नहीं रोक पा रही, तो बिहार पर किस मुंह से जंगलराज का इल्ज़ाम लगाती है। सवाल ये है कि बिहार में एक पत्रकार की दिनदहाड़े हत्या हुई। पत्रकार अपने भाई की हत्या का चश्मदीद गवाह था, तो हत्या का मकसद तो साफ है। हत्यारे कौन हैं, इसका भी अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। तो फिर पुलिस के सामने क्या समस्या है। दूसरी बात ये कि हत्या की आशंका पहले से थी तो भी पुलिस ने सतर्कता पहले क्यों नहीं बरती। सवाल ये है कि अपराधियों की हिम्मत इतनी क्यों बढ़ गई। पत्रकार की हत्या हो गई, दारोगा को सरेआम गोली मार दी गई और मुख्यमंत्री का रुख ये है कि देखेंगे, सोचेंगे, बात करेंगे, पता लगाएंगे। मुझे लगता है कि प्रॉब्लम इस तरह की सोच से है। अगर इस तरह से सरेआम हत्याएं होंगी तो लोग सवाल तो उठाएंगे। विरोधी दलों को भी आलोचना करने का मौका मिलेगा। लेकिन इस बात को ये कहकर नहीं दबाना चाहिए कि बीजेपी बिहार को बदनाम करना चाहती है, न ही ये कहकर अपराधों को कम आंकना चाहिए कि अपराध तो दिल्ली में भी होते हैं और आग तो मणिपुर में भी लगी हुई है। सवाल दिल्ली पर भी पूछे जाएंगे, सवाल मणिपुर पर भी पूछे जाएंगे लेकिन ये घटनाएं बिहार की हैं। अगर मीडिया और पुलिस सुरक्षित नहीं हैं, तो फिर आम जनता अपने आप को कैसे सुरक्षित महसूस करेगी।
मध्य प्रदेश में कांग्रेस का कर्नाटक फॉर्मूला
मध्य प्रदेश में बीजेपी और कांग्रेस अब पूरी तरह से चुनावी मोड में आ गई हैं। कांग्रेस ने बीजेपी के खिलाफ आरोपों की बौछार कर दी। मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ ने शिवराज सिंह की सरकार के खिलाफ घोटालों का आरोप पत्र जारी किया। इसकी टैग लाइन है- घोटाले ही घोटाले, घोटाला सेठ, 50 परसेंट कमीशन रेट। कमलनाथ ने इल्जाम लगाया कि शिवराज के पचास परसेंट कमीशन राज ने मध्य प्रदेश को घोटाला प्रदेश बना दिया है। अब कांग्रेस शिवराज सरकार के घोटालों की लिस्ट को घर घर पहुंचाएगी, क्योंकि बीजेपी की सरकार ने मध्य प्रदेश को सिर्फ भ्रष्टाचार और अत्याचार ही दिए हैं। जवाब देने में शिवराज सिंह चौहान ने भी देर नहीं की। शिवराज सिंह ने कहा कि कमलनाथ इधर उधर की बातें न करें, ये बताएं कि कांग्रेस के उम्मीदवारों की लिस्ट कहां है क्योंकि वो तो दावा कर रहे थे कि चुनाव से एक साल पहले लिस्ट जारी कर देंगे। शिवराज ने कहा कि जहां तक आरोपों का सवाल है तो कांग्रेस समझ रही है कि उसकी हार तय है, इसलिए बौखलाहट में इस तरह के आरोप लगाए जा रहे हैं। बीजेपी के नेताओं ने कहा कि कमलनाथ वो दिन भूल गए जब उनकी सरकार के वक्त मध्य प्रदेश का सचिवालय कमीशनखोरों का अड्डा बन गया था, हर काम के बदले पैसे लिए जाते थे। इसके जवाब में कमलनाथ ने कहा कि वल्लभ भवन से लेकर सीएम हाउस तक हर जगह कैमरे हैं। कैमरों की रिकॉर्डिंग सरकार के पास है, अगर उनके जमाने में करप्शन हुआ तो बीजेपी CCTV फुटेज निकालकर जांच क्यों नहीं करवाती। कमलनाथ की का जवाब दिया शिवराज की सरकार में मंत्री विश्वास सारंग ने। उन्होंने कहा कि अगर कैमरे के सबूत खंगाले जाएंगे तो कांग्रेस को भारी मुश्किल होगी क्योंकि फिर तो कमलनाथ का नाम वाकई में करप्टनाथ ही करना पड़ेगा। मध्य प्रदेश में कांग्रेस कर्नाटक वाला फॉर्मूला पूरी तरह अपना रही है। उसे लगता है यहां भी एंटी इनकम्बेंसी का फायदा मिल सकता है। वहां 40 परसेंट कमीशन का नारा लगाया था। यहां 50 परसेंट का नारा दे दिया। वहां जनता के लिए मुफ्त गारंटी का ऐलान किया था। यहां भी कर दिया। वहां भी बजरंगबली का नाम लिया था। यहां भी हनुमान जी को याद किया। वहां भी कांग्रेस ने बीजेपी की लोकल लीडरशिप में नाराजगी का फायदा उठाया था, यहां भी बीजेपी में गुटबाजी और गुना ग्वालियर संभाग में ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर स्थानीय नाराजगी का फायदा उठाने की कोशिश है। कर्नाटक में भी रणदीप सुरजेवाला ने कमान संभाली थी, मध्य प्रदेश में भी सुरजेवाला आ गए हैं। लेकिन ये कर्नाटक नहीं है, यहां मुकाबला शिवराज से है। शिवराज सिंह चौहान बराबर की चोट करते हैं। बीजेपी का नेतृत्व शिवराज के साथ खड़ा है। नरेन्द्र मोदी ने मध्य प्रदेश की जिम्मेदारी अमित शाह को सौंपी है और उन्होंने ने काम शुरू कर दिया है। चार बार मध्य प्रदेश का दौरा कर चुके हैं, सारी समितियां बना दी हैं, सबकी जिम्मेदारी तय कर दी है। उम्मीदवारों की पहली लिस्ट भी जारी कर दी है, और अमित शाह दो दिन बाद फिर भोपाल जाएंगे। पहले शिवराज सिंह की सरकार का रिपोर्ट कार्ड जनता के सामने रखेंगे, इसके बाद ग्वालियर जाकर ज्यातिरादित्य सिंधिया के इलाके के नेताओं के साथ मीटिंग करेंगे। उसके बाद बीजेपी का चुनावी अभियान पूरे रंग में होगा। इसलिए अभी भले ही कांग्रेस के नेताओं को लग रहा हो कि मध्य प्रदेश में लड़ाई आसान होगी, लेकिन अगले हफ्ते से जब बीजेपी नेताओं की रैलियों की कॉरपेट बॉम्बिंग करेगी, तब पता लगेगा कि कौन कितने पानी में है।
अमेठी से राहुल? वाराणसी से प्रियंका?
उत्तर प्रदेश कांग्रेस के नए अध्यक्ष अजय राय ने ऐलान कर दिया कि राहुल गांधी अमेठी से ही अगले साल लोकसभा चुनाव लड़ेंगे और जीतेंगे क्योंकि अमेठी की जनता ने स्मृति ईरानी का काम देख लिया, अब अमेठी की जनता फिर राहुल गांधी की राह देख रही है। अजय राय ने कहा कि अगर प्रियंका गांधी चाहें तो वाराणसी से लड़ सकती हैं, कांग्रेस के कार्यकर्ता उनके लिए जान लगा देंगें। अजय राय को एक दिन पहले ही राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया है और अजय राय ने राहुल गांधी के बारे में एलान कर दिया। अजय राय 2014 और 2019 में वाराणसी से नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं, दोनों बार बुरी तरह हार चुके हैं। बीजेपी के नेताओं ने अजय राय को इसी इतिहास की याद दिलायी। सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि एक दौर था जब यूपी में कांग्रेस अस्सी सीटें जीतती थी, अब सिर्फ दो-तीन सीटें जीतने पर जोर है, कांग्रेस की अब ये हालत हो गई है। राहुल गांधी को इस वक्त लेह में हैं, वहां फुटबॉल का मैच देख रहे हैं, इसलिए ये कहना तो मुश्किल है कि अजय राय ने राहुल गांधी से पूछ कर उनकी अमेठी की उम्मीदवारी का एलान किया है या नहीं। लेकिन अच्छा ये हुआ कि कम से उन्होंने ये नहीं कहा कि राहुल सिर्फ अमेठी से ही चुनाव लड़ेंगे। कम से कम राहुल के पास थोड़ा स्कोप तो रहेगा लेकिन अजय राय ने प्रियंका गांधी के सामने मुसीबत खड़ी कर दी। अब अगर कांग्रेस को प्रियंका चुनाव मैदान में उतारेगी तो उसके लिए सीट का फैसला करना मुश्किल होगा क्योंकि अगर वाराणसी से प्रियंका को नहीं उतारा तो कहा जाएगा कि कांग्रेस ने पहले ही मोदी से हार मान ली और अगर मजबूरी में प्रियंका को वाराणसी से उतारा तो नुकसान प्रियंका का होगा क्योंकि 1991 के बाद से वाराणसी की सीट पर हमेशा बीजेपी ही जीती है और नरेन्द्र मोदी ने पिछले दो चुनाव रिकॉर्ड वोटों से जीते। इसलिए लगता है कि अजय राय अति उत्साह में कुछ ज्यादा ही बोल गए। उन्होंने राहुल और प्रियंका दोनों के लिए मुसीबत खड़ी कर दी। (रजत शर्मा)
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