कर्नाटक के स्कूल-कॉलेजों में मुस्लिम छात्राओं द्वारा हिजाब पहनने के संवेदनशील मुद्दे पर अब सुप्रीम कोर्ट की एक बड़ी बेंच सुनवाई करेगी, जिसमें कम से कम तीन जज होंगे। शीर्ष अदालत की दो जजों वाली बेंच ने गुरुवार को एक खंडित फैसला दिया था, जिसके बाद ये तय हुआ है। बेंच ने यह भी कहा कि कर्नाटक हाई कोर्ट का 5 फरवरी का वह आदेश बरकरार रहेगा जिसके तहत राज्य सरकार के स्कूल-कॉलेजों में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगाया गया है।
जस्टिस हेमंत गुप्ता ने हिजाब पर प्रतिबंध को बरकरार रखा, जबकि जस्टिस सुधांशु धूलिया ने राज्य सरकार के प्रतिबंध को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि हिजाब विशुद्ध रूप से मुस्लिम छात्राओं द्वारा 'धार्मिक पसंद' का मुद्दा है, जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती।
खंडित फैसला देने के बाद बेंच ने कहा, 'बेंच की अलग-अलग राय के मद्देनजर इस मामले को एक उचित बेंच के गठन के लिए भारत के चीफ जस्टिस के समक्ष रखा जाए।'
जस्टिस हेमंत गुप्ता ने 140 पन्नों के अपने फैसले में 11 सवाल तैयार किए थे और इन पर दोनों पक्षों की दलीलों का विस्तृत विश्लेषण किया था। उन्होने हिजाब के समर्थन में दिए गए मुस्लिम पक्ष के तर्कों को नकार दिया था। दूसरी ओर जस्टिस धूलिया ने अपने 76-पृष्ठ के फैसले में कहा, ‘यहां मुद्दा ‘आवश्यक धार्मिक प्रथाओं की अवधारणा’ नहीं है। यह अंतत: पसंद (choice) का मामला है, इससे कम या ज्यादा कुछ और नहीं।’ उन्होंने कहा कि लड़कियों को स्कूल के गेट पर हिजाब उतारने के लिए कहना, उनकी निजता पर आक्रमण है।
जस्टिस हेमंत गुप्ता ने अपने फैसले में कहा कि उनके द्वारा तैयार किए गए सभी 11 सवालों के जवाब अपीलकर्ताओं के खिलाफ हैं। इनमें समानता का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, निजता और गरिमा, और धार्मिक प्रथाओं के अधिकार के संबंधित दायरे और परस्पर क्रिया शामिल हैं। जस्टिस गुप्ता ने कहा, ‘यूनिफॉर्म लागू होने से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन नहीं होता है। बल्कि यह समानता के अधिकार को मजबूत करता है।’
अपने फैसले में उन्होंने कहा, ‘इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि सभी छात्र एक जैसा यूनिफॉर्म पहनें। इससे न केवल स्कूलों में एकरूपता को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि धर्मनिरपेक्ष वातावरण को भी प्रोत्साहन मिलेगा । यह संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत दिए गए अधिकार के अनुरूप है। इसलिए, धर्म और अंतःकरण की स्वतंत्रता पर प्रतिबंधों को भाग III (मौलिक अधिकार) के अन्य प्रावधानों के साथ-साथ अनुच्छेद 25 (1) के प्रतिबंधों के तहत पढ़ा जाना चाहिए।’
जस्टिस गुप्ता ने कहा, कोई भी छात्र स्कूल में धार्मिक कार्य के लिए नहीं जाता, इसलिए राज्य के पास एक धर्मनिरपेक्ष स्कूल परिसर के भीतर हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार है। उन्होंने कहा, ‘धार्मिक आस्था को सरकारी पैसे से बनाए गए किसी धर्मनिरपेक्ष स्कूल में नहीं ले जाया जा सकता । यूनिफॉर्म को लागू करना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है, बल्कि यह अनुच्छेद 1 के तहत समानता के अधिकार को मजबूत करता है।’
मुस्लिम अपीलकर्ताओं के इस तर्क पर कि मुस्लिम लड़कियों को हिजाब पहनने की अनुमति देने से बंधुत्व को बढावा देने का संवैधानिक लक्ष्य प्राप्त होगा, जस्टिस गुप्ता ने कहा: ‘बंधुत्व एक महान लक्ष्य है, लेकिन इसे केवल एक समुदाय के चश्मे से नहीं देखा जा सकता। यह लक्ष्य बिना जाति, पंथ, लिंग और धर्म के देश के सभी नागरिकों के लिए है।’
इससे बिल्कुल विपरीत फैसले में जस्टिस धूलिया ने कहा: ‘सभी याचिकाकर्ता चाहते हैं कि हिजाब पहनने की छूट मिले! क्या लोकतंत्र में इतनी सी मांग करना कोई बड़ी बात है? यह कैसे कानून और व्यवस्था, नैतिकता या स्वास्थ्य के खिलाफ है? या शालीनता अथवा संविधान के भाग III के किसी प्रावधान के खिलाफ है?... मुझे यह बिल्कुल तर्कसंगत नहीं लगता कि कैसे किसी कक्षा में हिजाब पहन कर बैठने वाली छात्रा सार्वजनिक व्यवस्था अथवा कानून और व्यवस्था के लिए समस्या पैदा करेगी।’
अपने फैसले में जस्टिस धूलिया ने कहा, कि अदालत धार्मिक प्रश्नों को हल करने का मंच नहीं है, न ही अदालत ये तय करेंगे कि हिजाब एक जरूरी धार्मिक प्रथा है अथवा नहीं। उन्होंने कहा, ‘लड़कियों को स्कूल के गेट से प्रवेश करने से पहले हिजाब उतारने के लिए कहना, पहले उनकी निजता पर आक्रमण है, फिर यह उनकी गरिमा पर हमला है, और फिर अंततः यह उनकी धर्मनिरपेक्ष शिक्षा को नकारना है। ये स्पष्ट रूप से भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए), अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 25(1) का उल्लंघन हैं।’
जस्टिस धूलिया ने कहा कि कर्नाटक हाई कोर्ट फैसला करते समय खुद गलत दिशा में चली गई और अनावश्यक रूप से यह तय करने के पचड़े में पड़ गई कि कुरान की आयतों के आधार पर हिजाब इस्लाम में अनिवार्य है या नहीं। हाई कोर्ट को चाहिए था कि वह संविधान में प्रदत्त व्यक्तिगत पसंद की आज़ादी के अधिकार की कसौटी पर सरकारी सर्कुलर की वैधता को परखती।
कर्नाटक के सरकारी स्कूल- कॉलेजों में हिजाब पहनने पर रोक लगाने वाले राज्य सरकार के सर्कुलर को कर्नाटक हाई कोर्ट ने 15 मार्च के अपने फैसले में बरकरार रखा था, इस फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में 26 याचिकाएं दायर की गई थीं।
सुप्रीम कोर्ट का यह खंडित फैसला जैसे ही सामने आया, AIMIM सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी सहित मुस्लिम नेताओं ने जस्टिस धूलिया के फैसले का स्वागत किया और कहा कि कर्नाटक हाई कोर्ट ने कुरान और हदीस की गलत व्याख्या करके गलत फैसला सुनाया था।
ये सारा विवाद पिछले साल जुलाई में शुरू हुआ था जब उडुपी जिले के एक सरकारी प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज ने छात्राओं के हिजाब पहनकर आने पर रोक लगा दी थी। इसके बाद 6 छात्राओं ने हिजाब पहनने की इजाज़त न मिलने पर कॉलेज का बायकॉट कर दिया। फिर जिले के कई इलाकों में प्रदर्शन होने लगे।
विवाद बढ़ा तो कर्नाटक सरकार ने 5 फरवरी को राज्य के सभी सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में ड्रेस कोड अनिवार्य कर दिया। इसके तहत हिजाब या की अन्य धार्मिक ड्रेस पहनकर स्कूल आने पर रोक लगा दी गई। मामला हाईकोर्ट में तो गया तो 15 मार्च को कर्नाटक हाई कोर्ट ने भी हिजाब पर बैन को सही ठहराया। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट का खंडित फैसला आने के बाद कर्नाटक के शिक्षा मंत्री बी. सी. नागेश ने कहा कि कक्षाओं में हिजाब पर प्रतिबंध जारी रहेगा।
समाजवादी पार्टी के बुजुर्ग सांसद शफीक़ुर्रहमान बर्क ने कहा कि अगर हिजाब पर पाबंदी लगी तो आवारगी बढ़ जाएगी। उन्होंने कहा, ‘एक जज तो हमारे फेवर में हैं ही। हम तो चाहते हैं कि हिजाब रहना चाहिए। हिजाब नहीं रहा तो समाज पर बुरा असर पड़ेगा।’ सही मायनों में बर्क का यह बयान मुस्लिम लड़कियों और महिलाओं के लिए अपमानजनक है।
कांग्रेस के नेता आरिफ मसूद ने जस्टिस हेमंत गुप्ता पर सवालिया निशान लगाते हुए कहा, ‘जस्टिस गुप्ता ने हमारी बात नहीं मानी। यह मामला स्कूल-कॉलेज के स्तर पर ही सुलझना चाहिए था। सियासी दखलअंदाजी से हिजाब का विवाद इतना बड़ा हो गया।’ NCP नेता माजिद मेमन, जो कि खुद एक वकील हैं, ने कहा, ‘कोई भी अधिकार असीमित नहीं होता। उसकी सीमाएं होती हैं। पहनने के अधिकार के मामले में भी यही बात लागू होती है।’
लखनऊ के मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने कहा, ‘बात इस्लाम की नहीं है। बात संविधान की है। मुस्लिम महिलाओं को हिजाब पहनने का हक संविधान ने दिया है और इस पर कोई रोक नहीं लगाई जानी चाहिए। किसी को हिजाब पहनना है तो यह उसकी च्वाइस है। इसे किसी को रोकने का अधिकार नहीं है।’ मुंबई के मौलाना सिराज खान ने कहा, ‘स्कूल जाने के बाद मुस्लिम लड़कियां कॉमन रूम में हिजाब उतार देती हैं, फिर भी लोगों को दिक्कत है। सरकार हर मुद्दे पर हिंदू-मुसलमान करने लगती है।’
मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर ने कहा, ‘क़ुरान में हिजाब पर जोर नहीं है। क़ुरान में कलम दवात को ज्यादा अहमियत दी गई है। मुसलमानों को चाहिए कि वे हिजाब की बात छोड़ें औरर पढ़ने-लिखने पर ज्यादा ध्यान दें।’
इंडिया टीवी के पत्रकारों ने दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, लखनऊ, भोपाल, जयपुर और अलीगढ़ में मुस्लिम लड़कियों से बात की। ज्यादातर लड़कियों ने कहा कि हिजाब जरूरी नहीं है, यह व्यक्तिगत पसंद का मामला है। उन्होंने कहा कि इस्लाम लड़कियों को पूरी आजादी देता है और इस्लाम के नाम पर इस तरह की पाबंदी गलत है। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में मुस्लिम छात्राओं ने कहा कि हिजाब को शिक्षा के आड़े नहीं आना चाहिए। यूनिवर्सिटी कैंपस में बुर्का और हिजाब पहने लड़कियों ने कहा, ‘यह हमारी अपनी मर्जी है। जो नहीं पहनना चाहता, उसके साथ जबर्दस्ती नहीं की जानी चाहिए।’
सुप्रीम कोर्ट के जज हिजाब के बारे में एक राय नहीं बना पाए तो इसमें हैरानी की कोई बात नहीं है। बड़े-बड़े मौलाना-मौलवी, इस्लामिक स्कॉलर तक इस मसले पर मुख्तलिफ राय रखते हैं। हिजाब को लेकर इस वक्त पूरी दुनिया में लोग बंटे हुए हैं। इस्लामिक मुल्क ईरान में लड़कियां हिजाब के खिलाफ सड़कों पर उतर आई हैं। जहां तक हमारे मुल्क का सवाल है, यहां भी ज्यादातर लड़कियां कह रही हैं कि हिजाब अनिवार्य नहीं होना चाहिए, जिसे पहनना हो पहने, जिसे नहीं पहनना है न पहने। इसमें कुछ गलत नहीं है। लेकिन असदुद्दीन ओवैसी और शफीकुर्रहमान बर्क जैसे तमाम नेता हिजाब के मसले को इस तरह से पेश कर रहे हैं जैसे पूरे मुल्क में हिजाब पहनने पर पाबंदी लगा दी गई हो। ये बिल्कुल गलत है, सरासर झूठ है।
सिर्फ कर्नाटक में, वहां की सरकार ने स्कूल-कॉलेजों में ड्रेस कोड का पालन करने को कहा है। स्कूल-कॉलेज में किसी भी तरह के धर्मिक कपड़े पहनने पर पाबंदी लगाई है। यह फैसला सिर्फ स्कूल कॉलेज के कैंपस के अंदर ही लागू है। यानी लड़कियां अगर घर से कॉलेज तक हिजाब पहनकर आती हैं तो उस पर कोई पाबंदी नहीं हैं, कॉलेज के अंदर जाकर वे हिजाब उतार कर बैग में रख लें, जब बाहर निकलें तो फिर पहन लें, इसमें कोई दिक्कत नहीं है। हमारे मुल्क में हिजाब पर काई पाबंदी नहीं है। वैसे भी स्कूल में, कॉलेज में, पुलिस में या आर्मी में सबका एक ड्रेस कोड होता है। उस ड्रेस कोड का पालन सभी को करना पड़ता है। कैंपस के अंदर ड्रेस कोड अनिवार्य है, बाहर जाकर जिसको जो पहनना हो पहने, कोई पाबंदी नहीं है।
हमें महिलाओं द्वारा ईरान में चलाए जा रहे आंदोलन से सीखना चाहिए, जहां अब विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस की फायरिंग में कई महिलाओं की जान जा चुकी है। प्रदर्शनकारियों को जेल में डाला जा रहा है। यह सब 13 सितंबर को तब शुरू हुआ जब एक 22 साल की महिला महासा अमीनी को ईरान की मॉरल पुलिस ने उन सख्त नियमों का उल्लंघन करने के लिए पीट-पीट कर मार डाला, जिनके मुताबिक महिलाओं को अपना सिर हिजाब से ढकना अनिवार्य है। उसके सिर पर लाठी मारी गई जिसके बाद वह पुलिस स्टेशन में ही गिर पड़ीं।
ईरानी महिलाओं ने एकजुटता दिखाते हुए कई शहरों में सड़कों पर जमकर विरोध प्रदर्शन किया और सार्वजनिक रूप से अपने हिजाब के टुकड़े-टुकड़े किए। कई महिलाओं ने खुलेआम अपने बाल काटे और हिजाब को आग के हवाले कर दिया। उन्होंने ‘औरत, जिंदगी, आजादी’ और ‘तानाशाह मुर्दाबाद’ के नारे बुलंद किए। स्कूली छात्राओं ने भी खेल के मैदानों से लेकर सड़कों तक विरोध प्रदर्शन किया। हिजाब के खिलाफ इस विरोध में पुरूषों ने भी महिलाओं का भरपूर साथ दिया। नॉर्वे के एक ग्रुप, ईरान ह्यूमन राइट्स ने कहा है कि सुरक्षा बलों ने देश में 23 बच्चों सहित कम से कम 201 लोगों की जान ली है।
एक तरफ ईरान की बहादुर महिलाएं सार्वजनिक स्थानों पर हिजाब पहनने के कानून से मुक्ति के लिए संघर्ष कर रही हैं और दूसरी तरफ भारत में मुस्लिम नेता, मौलाना और मौलवी महिलाओं पर हिजाब थोपने की कोशिश कर रहे हैं। वे मांग कर रहे हैं कि स्कूल और कॉलेज में मुस्लिम लड़कियों को हिजाब पहनने दिया जाए। यह एक विसंगति है। अब वक्त आ गया है कि भारत के बुजुर्ग मुसलमान ये तय करें कि हिजाब पहनना व्यक्तिगत पसंद होगी या फिर धार्मिक अनिवार्यता। (रजत शर्मा)
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