भारत ने गुरुवार को दिल्ली में गणतंत्र दिवस परेड में अपनी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया। 21 तोपों द्वारा दी जाने वाली परंपरागत सलामी पहली बार 105 एमएम वाली भारतीय फील्ड तोपों से दी गयी। इन तोपों ने कर्तव्य पथ पर अंग्रेजों के जमाने की 25-पाउंडर तोपों की जगह ली। इसके तुरंत बाद एक विशाल जनसमूह की मौजूदगी में, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फत्ताह अल-सिसी और कई विदेशी राजनयिक एवं अन्य गणमान्य लोग शामिल थे, 'स्वदेशी' सैन्य शक्ति नजर आई।
परेड में शामिल मेड इन इंडिया सैन्य साजो-सामान में हाल ही में तैनात लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर प्रचंड भी शामिल था। इसने तीर शैली में अमेरिका में बने अपाचे हेलिकॉप्टरों और 2 स्वदेशी ALH MK-IV हेलिकॉप्टरों के फॉर्मेशन को लीड किया। परेड में पहला स्वदेशी एयर डिफेंस सिस्टम आकाश और मेन बैटल टैंक अर्जुन भी नजर आए। अर्जुन की स्पीड 70 किमी प्रति घंटा है और यह 120 मिमी की मेन राइफल, 7.62 मिमी की मशीन गन एवं एक स्वदेशी एंटी-एयरक्राफ्ट गन से लैस है।
5 किमी के रेंज वाली ‘फायर एंड फॉरगेट’ नाग एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल भी इस परेड में नजर आई। दक्षिण कोरियाई तकनीक से भारत की लार्सन एंड टुब्रो कंपनी द्वारा निर्मित के-9 वज्र-टी सेल्फ-प्रोपेल्ड होवित्जर भी परेड के प्रमुख आकर्षणों में से एक था।
ब्रह्मोस सुपरसोनिक हाई-प्रिसिजन क्रूज मिसाइल को 861 मिसाइल रेजिमेंट ने प्रदर्शित किया, जबकि 27 वायु रक्षा मिसाइल रेजिमेंट ने परेड में पहले स्वदेशी एयर डिफेंस सिस्टम आकाश का दीदार कराया। आकाश वेपन सिस्टम हवा में 150 किमी से भी ज्यादा दूरी तक निगरानी रख सकता है और 25 किमी की सीमा के भीतर दुश्मन के किसी भी विमान को धूल चटा सकता है। परेड में मेड इन इंडिया 8x8 एम्फिबियस इंफैन्ट्री आर्मर्ड वीइकल को भी प्रदर्शित किया गया।
वे दिन गए जब भारत की फौज अपने हथियारों के लिए विदेशों पर निर्भर रहा करती थी। नरेंद्र मोदी की सरकार ने स्वदेशी रक्षा क्षेत्र के विकास पर पूरा जोर दिया है और ये उपकरण उसी पहल का सबूत हैं।
अतीत में, हमारी सीमाओं की सुरक्षा को मजबूत रखने के लिए हथियारों का आयात जरूरी समझा जाता था। इसके बाद सरकार ने धीरे-धीरे सैन्य उपकरणों के आयात को कम करने और उन्हें देश में ही निर्मित करने का निर्णय लिया। इससे भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा की बचत हुई है।
दूसरी बात यह कि हर रक्षा सौदे को लेकर भ्रष्टाचार के आरोप लगते थे। उस समय किसी ने नहीं सोचा कि ये हथियार हम भारत में क्यों नहीं बना सकते। नरेंद्र मोदी ने इस बारे में सोचा और नतीजा सबके सामने है। यह तो सिर्फ एक शुरुआत है। उत्तर प्रदेश के झांसी में डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरिडोर जल्द ही बनकर तैयार हो जाएगा।
भारत अभी भी दुनिया में हथियारों का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार है। हमारा 60 फीसदी से ज्यादा मिलिटरी हार्डवेयर रूस से मंगाया गया है और बाकी इजरायल, अमेरिका और फ्रांस से लिया गया है। मौजूदा समय में हमारी फौज के पास रूसी टैंक, फ्रांसीसी लड़ाकू विमान और अमेरिका से आए ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट और हेलिकॉप्टर हैं। लेकिन चीजें तेजी से बदल रही हैं और स्वदेशी निर्माण पर जोर दिया जा रहा है। के-9 वज्र-टी हॉवित्जर और प्रचंड हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टर इसकी बड़ी मिसालें हैं।
मोदी सरकार ने 2025 के लिए पहला माइलस्टोन तय किया है, तब तक 1.75 लाख करोड़ रुपये के सैन्य उपकरण तैयार हो जाएंगे और भारतीय कंपनियां 35,000 करोड़ रुपये के हथियारों का निर्यात करेंगी। मौजूदा वित्तीय वर्ष में, भारतीय हथियारों का निर्यात 16-17,000 करोड़ रुपये के दायरे में रहने की उम्मीद है।
यहां हमें एक बात का ध्यान रखना चाहिए। ऐसे कई देश हैं जिनकी अर्थव्यवस्था भारत जैसे देशों को सैन्य उपकरणों, जंगी जहाजों और विमानों के निर्यात पर बहुत ज्यादा निर्भर करती है। ये देश कभी नहीं चाहेंगे कि भारत इन सैन्य उपकरणों का बड़े पैमाने पर खुद ही निर्माण करे। आगे चुनौतियां भी हैं लेकिन हमें भरोसा रखना चाहिए कि वह दिन जल्दी ही आएगा जब भारत न सिर्फ पूरी तरह आत्मनिर्भर होगा बल्कि दूसरे देशों को हथियार, गोला-बारूद, फाइटर विमान और युद्धपोत भी बेचेगा। (रजत शर्मा)
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