पाकिस्तान में फौज और हुकूमत ने मिल कर इमरान खान के खिलाफ जबरदस्त एक्शन शुरू कर दिया है. लाहौर में इमरान खान के घर को चारों तरफ से घेर लिया गया है, ज़मान पार्क की तरफ जाने वाले सभी रास्ते बंद कर दिए गए हैं, इमरान खान की गिरफ्तारी किसी भी वक्त हो सकती है. इमरान खान के घर के आस-पास से उनके आठ समर्थकों को पुलिस ने गिरफ्तार किया. पूरे पाकिस्तान में इमरान खान के समर्थकों की गिरफ्तारी चल रही है. पता ये लगा है कि शहबाज शरीफ ने समझौते की आखिरी कोशिश के तौर पर इमरान खान के सामने दो विकल्प रखे थे, इमरान खान को संदेश भेजा गया था कि या तो वो देश छोड़कर चले जाएं, उन्हें सेफ पैसेज दिया जाएगा, और अगर इमरान पाकिस्तान से बाहर नहीं जाते तो फिर उनका कोर्ट मार्शल भी हो सकता है. वो एक्शन के लिए तैयार रहें. इमरान खान ने पाकिस्तान से बाहर जाने से इंकार कर दिया. इसके बाद पंजाब पुलिस और फौज हरकत में आ गई.
इमरान खान के साथ दूसरी मुसीबत ये है कि अब एक-एक करके उनकी पार्टी के नेता उनका साथ छोड़ रहे हैं. इमरान खान इस वक्त अपने ही घर में खुद को कैद करके बैठे हैं. पाकिस्तान में जो हालात है उसे देखकर लगता है कि अब पाकिस्तान की फौज और सरकार ने ये तय कर लिया है कि इमरान खान को और मौका नहीं देंगे, या तो इमरान खान पाकिस्तान से बाहर जाएं या फिर जेल जाएं. पाकिस्तान में ये पहले भी होता रहा है. सबसे पहले जनरल अयूब खान ने पाकिस्तान के प्रथम राष्ट्रपति इसकन्दर अली मिर्जा को देश निकाला दिया था. 1958 में मिर्जा को देशनिकाला दिया गया, वो ब्रिटेन जा कर बस गए और 1969 में ईरान में उन्हें दफनाया गया. फिर बेनजीर भुट्टो, आसिफ अली जरदारी , नवाज शरीफ और परवेज़ मुशर्रफ को भी वतन से बाहर भेजा गया. नवाज शरीफ तो इस वक्त भी लंदन में हैं , इसलिए अगर इमरान खान को पाकिस्तान छोड़ने के लिए कहा जा रहा है, तो ये कोई नई बात नहीं हैं. लेकिन इमरान बार बार अपनी तकरीरों में कहते रहे हैं कि वो भागने वाले नहीं हैं, किसी भी कीमत पर मुल्क छोड़कर नहीं जाएंगे, इसलिए अब इमरान खान के लिए इधर कुंआ, उधऱ खाई वाली स्थिति है.
शहबाज शरीफ का फॉर्मूला साफ है, फौज के ठिकानों पर हमले के केस का हवाला देकर इमरान खान के समर्थकों को डराया जाए ताकि लोग घरों से बाहर न निकलें, फिर इमरान की पार्टी के बड़े बड़े नेताओं को पकड़ा जाए, जिससे सेंकेड लाइन लीडरशिप घबरा जाए, लोग इमरान का साथ छोड़ दें, इसके बाद इमरान खान जब अलग थलग पड़ जाएं, तो उन्हें कोर्ट मार्शल का डर दिखाकर विदेश भेज दिया जाय, और न मानें तो PTI पर पाबंदी लगाकर इमरान को जेल भेजा जाए. इसी लाइन पर काम हो रहा है. जो काम इमरान खान ने फौज की मदद से नवाज शरीफ के साथ किया था , अब वही सलूक शहबाज शरीफ फौज के साथ मिल कर इमरान खान के साथ कर रहे हैं. पाकिस्तान में स्क्रिप्ट वही रहती है, सिर्फ किरदार बदलते हैं.
कर्नाटक : सरकार गठन की चुनौती
कर्नाटक में कुर्सी का मामला तो सुलझ गया, लेकिन अब मंत्रियों की कुर्सियों के मामले को लेकर सघन चिन्तन जारी है. सिद्धरामैया और डी के शिवकुमार शुक्रवार को दिल्ली पहुंचे और मंत्रिमंडल की सूची पर केन्द्रीय नेताओं से बात की. कल शनिवार को श्री कांतिरवा स्टेडियम, बैंगलुरु में मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री और अन्य मंत्री शपथ लेंगे. कांग्रेस को 1989 के बाद पहली बार कर्नाटक में इतनी बड़ी जीत मिली है, लोगों ने पूर्ण बहुमत दिया है, इसलिए सरकार स्थिर होगी, लेकिन ज्यादा वोट मिला, ज्यादा सीटें मिलीं, इसलिए लोगों की और कांग्रेस के नेताओ की अपेक्षाएं भी ज्यादा है. कांग्रेस को हर समुदाय ने दिल खोलकर वोट दिया है, इसलिए सभी वर्गों के नेताओं को उम्मीद है कि उन्हें भी कुछ न कुछ मिलेगा. इसी चक्कर में कलह शुरू होगी. जी. परमेश्वर दलित हैं, वो दलितों का प्रतिनिधित्व मांग रहे हैं, M B पाटिल लिंगायत है, वो कह रहे हैं कि लिंगायतों का सम्मान होना चाहिए. मुस्लिमों ने एकमुश्त वोट कांग्रेस को दिया वो भी सरकार में हिस्सेदारी चाहते हैं. अ
गले साल लोकसभा चुनाव हैं. कांग्रेस पूरी कोशिश करेगी कि सभी वर्गों को खुश किया जाए. लेकिन ये काम सिद्धरामैया के लिए आसान नहीं होगा. इसके बाद उन्हें वो पांच गारंटीज भी पूरी करनी है जो उन्होंने चुनाव से पहले दी थीं. इसलिए मुझे लगता है कि खरगे ने चीफ मिनिस्टर की कुर्सी का झगड़ा सुलझाकर एक चुनौती को तो पार कर लिया लेकिन अब कांग्रेस की असली अग्नि परीक्षा सरकार के गठन के बाद शुरू होगी.
दूसरी बात, कर्नाटक की जीत और सरकार के गठन के मौके का इस्तेमाल 2024 में मोदी विरोधी मोर्चे की एकजुटता दिखाने के लिए किया जाएगा. मुझे याद है जब पिछली बार कर्नाटक में कांग्रेस के समर्थन से एच.डी. कुमारस्वामी की सरकार बनी थी, उस वक्त मंच पर सोनिया गांधी, ममता बनर्जी और मायावती के अलावा अखिलेश यादव, चन्द्रबाबू नायडू, केसीआर, अरविन्द केजरीवाल और फारूक़ अब्दुल्ला जैसे तमाम नेता एक मंच पर आए थे. इस बार भी वे सारे होंगे. कर्नाटक में कांग्रेस को इस बात की सावधानी बरतनी है कि यहां राजस्थान जैसा हाल ना हो जाए.
गहलोत, पायलट के समर्थकों के बीच मुक्केबाज़ी
अब राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट की सियासी जंग सड़क पर आ गई है. अजमेर में गुरुवार को गहलोत और पायलट के समर्थक आपस में भिड़ गए, नारेबाजी हुई, हाथापाई हुई और उसके बाद मारपीट की नौबत आ गई. दोनों तरफ के लोगों ने एक दूसरे पर मुक्के बरसाए. अजमेर में कांग्रेस पार्टी की मीटिंग थी, जिसमें राजस्थान की सह-प्रभारी अमृता धवन पार्टी के जिला स्तरीय नेताओं से फीडबैक लेने पहुंची थीं. गहलोत के करीबी रामचंद्र चौधरी और धर्मेंद्र राठौड़ के समर्थक पहले से ही वहां पहुंच गए और आगे की सीटों पर कब्जा कर लिया, इसके बाद जब सचिन पायलट के करीबी महेंद्र सिंह रलावता के समर्थक वहां पहुंचे, तो उन्हें अंदर घुसने से रोका गया. इसी बात पर विवाद हो गया, नारेबाजी हुई,मारपीट हुई, लात-घूंसे चलने लगे.
असल में, राजस्थान में अब गहलोत और पायलट, दोनों गुटों के लोग अपनी-अपनी ताकत दिखाने की कोशिश कर रहे हैं, इसीलिए कभी नारेबाजी की जा रही है, तो कभी एक दूसरे पर आरोप लगाए जा रहे हैं. कांग्रेस इस बात को अच्छी तरह समझती है कि राजस्थान में अगर गहलोत और पायलट इसी तरह टकराते रहे, सड़कों पर तमाशा बनता रहा, तो अगला चुनाव जीतना मुश्किल बन जाएगा. पिछली बार ये दोनों मिलकर लड़े थे, पूरी ताकत लगाई थी तो भी राजस्थान में कम अन्तर से जीत हासिल हुई थी. लेकिन अब दोनों नेताओं के अहं का सवाल है, गहलोत कुर्सी छोड़ना नहीं चाहते और पायलट अब और इंतजार करना नहीं चाहते. यहां भी कर्नाटक जैसा सुलह का कोई फॉर्मूला निकलता, तो कांग्रेस के लिए अच्छा होता. लेकिन अब कोई रास्ता निकलना मुश्किल लगता है. (रजत शर्मा)
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