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Rajat Sharma’s Blog: उद्धव ठाकरे अपनी राजनीतिक पराजय के लिए खुद ज़िम्मेदार हैं

सुप्रीम कोर्ट में अपनी हार के कुछ ही मिनट बाद उद्धव ठाकरे ने रात को सोशल मीडिया के जरिए अपने इस्तीफे का ऐलान कर दिया।

Written By: Rajat Sharma
Published on: June 30, 2022 18:55 IST
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Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

बुधवार की रात को महाराष्ट्र में नौ दिन से चल रहे सियासी सस्पेंस पर पटाक्षेप हो गया जब मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप दिया । गुरुवार को एक नई गठबंधन सरकार बनेगी और बीजेपी ने शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे को सत्ता की बागडोर सौंपी है। एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। अन्य मंत्रियों का शपथ ग्रहण बाद में होगा।

सुप्रीम कोर्ट में अपनी हार के कुछ ही मिनट बाद उद्धव ठाकरे ने रात को सोशल मीडिया के जरिए अपने इस्तीफे का ऐलान कर दिया। सुप्रीम कोर्ट की वैकेशन बेंच ने चार घंटे तक चली सुनवाई के बाद विधानसभा में शक्ति परीक्षण को लेकर दिए गए राज्यपाल के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा , ‘हम राज्यपाल के कल सुबह 11 बजे शक्ति परीक्षण के निर्देश पर रोक नहीं लगा रहे हैं, हालांकि फ्लोर टेस्ट का नतीजा (शिवसेना के चीफ व्हिप सुनील प्रभु की) याचिका के अंतिम परिणाम पर निर्भर करेगा।’

इसके कुछ ही मिनट बाद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे फेसबुक लाइव पर आए और 15 मिनट के संबोधन में अपने इस्तीफे का ऐलान कर दिया। इस्तीफे के ऐलान से पहले उन्होंने कहा, ‘मैं संख्या बल के खेल में शामिल नहीं होना चाहता हूं। जिन लोगों को सेना प्रमुख (बालासाहेब ठाकरे) लेकर आए थे, वे इस बात की खुशी मना रहे हैं कि उन्होंने उनके बेटे को नीचे गिरा दिया। यह मेरी गलती है कि मैंने उन पर भरोसा किया । मैं नहीं चाहता कि मेरे शिवसैनिकों का खून सड़कों पर बहाया जाए । इसलिए मैं मुख्यमंत्री पद और विधान परिषद की सदस्यता से भी इस्तीफा दे रहा हूं ।’

उद्धव ठाकरे ने पार्टी कार्यकर्ताओं से अपील की कि जब बागी विधायक महाराष्ट्र लौटें तो उनके खिलाफ प्रदर्शन न करें। उन्होंने कहा, ‘जिन लोगों को खाई में धकेले जाने की शंका थी, वे ही आखिरी वक्त तक मेरे साथ खड़े रहे, जबकि मेरे अपने मेरा साथ छोड़कर चले गए । मैं कांग्रेस और NCP के नेताओं को उनके सहयोग और समर्थन के लिए धन्यवाद देता हूं। कल लोकतंत्र के इतिहास का एक नया अध्याय लिखा जाएगा। उन्हें सरकार बनाने और शपथ लेने दें । मैं अपने शिवसैनिकों से अपील करता हूं कि वे उनके रास्ते में रुकावट न बनें ।’

उद्धव ठाकरे को पता था कि फ्लोर टेस्ट में उनकी हार निश्चित है क्योंकि उनके पास बहुमत साबित करने के लिए आवश्यक संख्या बल नहीं था। बुधवार को हुई कैबिनेट की अंतिम बैठक में उनके विश्वासपात्रों ने उन्हें दो विकल्प सुझाए थे। पहला, वह पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नक्शेकदम पर चलकर विधानसभा में जाएं, विश्वास मत पर बहस में हिस्सा लें और फिर वोटिंग से पहले अपने इस्तीफे का ऐलान कर दें।

दूसरा विकल्प यह था कि वह फ्लोर टेस्ट का सामना करने से पहले ही इस्तीफा दे दें क्योंकि बहस के दौरान शिवसेना के बागी विधायक उद्धव और उनके बेटे आदित्य ठाकरे के बारे में कड़वी बातें बोलते, और बीजेपी के विधायक उस पर तालियां बजाते। इसलिए चर्चा से पहले ही इस्तीफा देकर वह इस फजीहत से बचें । उद्धव ने दूसरा विकल्प चुना। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आदेश आने का इंतजार किया और फिर सोशल मीडिया पर अपने इस्तीफे का ऐलान कर दिया।

उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा तो दे दिया, लेकिन उनके सामने अब इससे भी बड़ी चुनौती है,  उन्हें शिवसेना पार्टी को बिखरने से बचाना की । महाराष्ट्र के ज्यादातर जिलों में शिवसेना के अधिकांश दिग्गजों ने उद्धव का साथ छोड़ दिया है और व्यावहारिक तौर पर देखें तो उनकी पार्टी सिर्फ मुंबई का संगठन बनकर रह गई है।

नौ दिनों तक चली इस खींचतान के दौरान उद्धव ने पहले तो बागी विधायकों को धमकाया, फिर  घरवापसी के लिए उनसे मिन्नतें की और अंत में अपने इस्तीफे का ऐलान करते हुए कहा, ‘मेरे अपनों ने ही मेरी पीठ में छुरा घोंपा है।’ ये भावनात्मक शब्द हैं, लेकिन उद्धव इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि शिवसेना के 56 में से बमुश्किल 16 विधायक अब उनके साथ हैं। शिवसेना के 40 बागी विधायक और 10 निर्दलीय विधायक अब बीजेपी का समर्थन कर रहे हैं। ऐसे में बीजेपी के पास सदन में अब 166 विधायकों का समर्थन है, जबकि बहुमत के लिए सिर्फ 144 का आंकड़ा चाहिए।

फेसबुक लाइव पर इस्तीफे का ऐलान करते वक्त उद्धव के चेहरे पर निराशा थी। वहीं दूसरी तरफ, जैसे ही इस्तीफे का ऐलान हुआ, बीजेपी के खेमे में जश्न हुआ और पार्टी के नेता देवेंद्र फडणवीस का मुंह मीठा कराने लगे। गुवाहाटी से लौटकर गोवा आए शिवसेना के बागी खेमे में भी खुशी का माहौल था।

उद्धव ठाकरे को अब सोचना पड़ेगा कि आज यह नौबत क्यों आई कि उनके हाथ से सरकार फिसल गई। इस्तीफे से पहले अपने संबोधन में उद्धव ने कहा कि जिन बागियों को मैंने टिकट दिया, जिन्हें मैंने चुनाव जिताया, उन्होंने मुझे धोखा दिया।

ऐसे में सवाल पूछा जाएगा कि बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाले उद्धव ठाकरे ने तीन साल पहले चुनाव के तुरंत बाद गठबंधन क्यों छोड़ दिया? उद्धव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़ा था, लेकिन गठबंधन के सत्ता में आने के बाद उन्होंने इससे किनारा कर लिया। क्या यह विश्वासघात नहीं था? क्या उन्होंने ऐसा सिर्फ मुख्यमंत्री बनने की अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए किया था? उद्धव ठाकरे की NCP सुप्रीमो शरद पवार या कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से कोई पुरानी दोस्ती नहीं थी, फिर उन्होंने उनसे हाथ क्यों मिलाया? सिर्फ इसलिए कि वह मुख्यमंत्री बनना चाहते थे?

मुख्यमंत्री बनने के लिए उद्धव ने अपने उन भरोसेमंद साथियों को भी हाशिए पर छोड़ दिया जिनके साथ उनके कई दशकों से संबंध थे। इस चक्कर में वह ये बात भी भूल गए कि शिवसेना के विधायकों ने एनसीपी और कांग्रेस उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव लड़कर जीत दर्ज की थी। हैरानी तो इस बात पर होनी चाहिए कि शिवसेना के विधायकों को अपने पार्टी अध्यक्ष के खिलाफ बगावत करने में ढाई साल क्यों लग गए।

दो हफ्ते  पहले तक उद्धव ठाकरे के पास अपने नाराज विधायकों को मनाने का मौका था। वह उनसे कह सकते थे कि मैं ढाई साल मुख्यमंत्री रह चुका, अब बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाते हैं। ऐसा करने पर उद्धव की इज्जत भी रह जाती और 56 साल पुरानी उनकी पार्टी भी बच जाती, लेकिन उन्होंने वह सुनहरा मौका गंवा दिया। हिंदी में एक कहावत है: ‘दुविधा में दोऊ गए, माया मिली ना राम।’ (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 29 जून, 2022 का पूरा एपिसोड

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