बजरंग दल ने ऐलान कर दिया है कि अगर लव जिहाद के मामले न रुके, अगर पुलिस ने इन पर रोक न लगाई, हिन्दू बेटियों के साथ ज्यादती न रूकी तो बजरंग दल एंटी रोमियो फोर्स गठित करेगा. बजरंग दल खुद पुलिसिंग का काम करेगा. विश्व हिंदू परिषद के संयुक्त महासचिव सुरेन्द्र जैन ने मंगलवार को कहा कि हम हिन्दू बेटियों को इस तरह से चाकुओं से गोदते हुए नहीं देख सकते. बागेश्वर धाम वाले धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने कहा कि अब वक्त आ गया है हिन्दुओं को एकजुट होकर बेटियों की सुरक्षा के लिए कदम उठाने होंगे. ये बात सुनने में साधारण लग सकती हैं, लेकिन ये देश में सुलग रही चिंगारी की तरफ इशारा करती है, इसलिए इस पर बात पर गौर करना जरूरी है.
असल में, दिल्ली में साक्षी की सरेआम चाकुओं से गोदकर हत्या करने वाले साहिल ने पुलिस के सामने गुनाह कबूल कर लिया है और ये कहा है कि उसे साक्षी का कत्ल करने का कोई अफसोस नहीं है. उसकी कलाई पर कलावा मिला था और गले में रुद्राक्ष मिला, इसलिए बात और बड़ी हो गई. दिल्ली के अलावा लखनऊ, शाहजहांपुर, उत्तरकाशी, बरेली, पटना, कानपुर, मेरठ, और बीकानेर समेत कई शहरों से लव जिहाद की खबरें आईं हैं.कहीं जबरन हिन्दू लड़की का धर्मपरिवर्तन करवाकर निकाह करने और जुल्म करने का इल्जाम है, तो कहीं बहला फुसला कर नाबालिग हिन्दू लड़की को अगवा करने का आरोप है. कहीं धर्म परिवर्तन और निकाह से इंकार करने पर हमला करने और जान से मारने की धमकी का मामला है. हर जगह एक बात समान है.. लड़का मुस्लिम है, लड़की हिन्दू है, पहचान छुपाकर दोस्ती की कोशिश की गई, जब असलियत सामने आई तो मारपीट, धमकी और अपहरण की कोशिश हुई. जब अचानक इस तरह के बहुत से मामले सामने आए तो हिन्दू संगठन मैदान में आ गए. ये चिंता की बात है.
मुझे लगता है कि ये मुद्दा सियासत का नहीं, संजीदगी से सोचने का है. जब ऐसी कोई घटना होती है, जिसमें कोई मुस्लिम लड़का, किसी हिंदू लड़की से संबंध बनाता है, फिर उस पर ज़ुल्म करता है, उसकी हत्या कर देता है, तो लव जिहाद का सवाल उठना स्वाभाविक है.आफ़ताब हो या साहिल, जब लोग देखते हैं कि किस बेरहमी से लड़की की हत्या की गई, तो इसका समाज के दिलो दिमाग़ पर गंभीर प्रभाव पड़ता है. पिछले कुछ साल की घटनाएं देखें, तो केरल में ईसाई लड़कियों के साथ जब इसी तरह की घटनाएं हुईं, तो पादरियों ने आवाज़ उठाई. कुछ दिन पहले जैन समाज के लोगों ने लव जिहाद को लेकर प्रोटेस्ट किया. इसमें दो चीज़ें समझने की हैं. एक, हो सकता है कि सारी घटनाएं लव जिहाद से जुड़ी न हों, हर केस में लड़के ने पहचान छुपाकर, लड़की से दोस्ती की हो, इसके सबूत नहीं मिलते, लेकिन ऐसी एक भी वारदात होती है, तो बात बहुत दूर तक जाती है. फिर बाक़ी घटनाओं को भी इसी नज़र से देखा जाता है. इसलिए समस्या गंभीर और पेचीदा है.
अगर दिल्ली वाली घटना को देखें, यदि साहिल के हाथ पर कलावा न होता, उसके गले में रुद्राक्ष न मिलता, तो बात इतनी न बढ़ती. इसे एक जघन्य अपराध मानकर इसकी जांच होती लेकिन, अब इस केस का दायरा बड़ा हो गया है. बजरंग दल समेत कई संगठन इसमें कूद पड़े हैं. हालांकि ये बात सही है कि इस समस्या का इलाज हिन्दू सेना, एंटी रोमियो फोर्स या मुस्लिम फोर्स बनाने से नहीं होगा. इसका एक ही इलाज है. माता-पिता अपने बच्चों को अच्छे- बुरे, सही-गलत का फर्क बताएं, उनसे बात करें. बच्चों में इतना भरोसा पैदा करें कि वो हर बात अपने मां-बाप से शेयर कर सकें. और इसके साथ-साथ उलेमा और मौलाना भी मुस्लिम लड़कों को समझाएं कि पहचान छुपाकर, किसी को धोखा देकर उससे रिश्ता बनाना ठीक नहीं है, तभी इस तरह की समस्या से बचा सकता है. वरना इस तरह के मामले समाज में दूरियां बढ़ाएंगे.
सरकार पहलवानों से बातचीत शुरू करे
जिस तरह पहलवान मंगलवार को अपने मेडल लेकर गंगा में बहाने हरिद्वार पहुंचे, जिस तरह मेडल गोद में रखकर वो रोते दिखाई दिए, ये दृश्य दु:खी करने वाला था. ये सोच कर ही तकलीफ़ हो रही थी कि देश की शान बढ़ाने वाले ये मेडल अगर वाक़ई में पानी में बहा दिए गए, तो कितना बड़ा नुक़सान हो जाएगा. मैं तो नरेश टिकैत की तारीफ़ करूंगा, जिन्होंने हमारे चैंपियंस को समझाया और उन्हें मेडल गंगा में बहाने से रोका. असल में पहलवानों को लगता है कि सरकार में कोई उनकी बात सुनने को तैयार नहीं है. उन्हें लगता है कि सारी सरकार बृजभूषण शरण सिंह को बचाने में लगी है. पहलवानों को लगता है कि पुलिस के बल पर उनकी आवाज़ को दबाया जा रहा है, इसलिए उन्हें जहां से भी सहारा मिलता है, जहां से भी उम्मीद की किरण दिखाई देती है, वो उसके पास पहुंच जाते हैं, जो भी उनकी आवाज़ उठाने को तैयार होता है, वो उसी से बात करने को तैयार हो जाते हैं. इस चक्कर में, बहुत सारे ऐसे लोग पहलवानों के इस आंदोलन में घुस गए हैं, जो उनकी तकलीफ़, उनके ग़ुस्से का फ़ायदा उठाना चाहते हैं. इन सारी बातों का एक ही हल है. खेल मंत्रालय में सर्वोच्च स्तर पर पहल की जाए. इन पहलवानों से बात हो, उन्हें भरोसा दिलाया जाए कि सरकार उनके ख़िलाफ़ नहीं है, उनके मान-सम्मान की रक्षा की जाएगी. मुझे लगता है जब तक पहलवानों के साथ कम्युनिकेशन गैप बना रहेगा, ये बात और बिगड़ती रहेगी.
मणिपुर : आपसी बातचीत ही एकमात्र हल
पिछले एक महीने से हिंसा के शिकार मणिपुर में हालात धीरे-धीरे बेहतर हो रहे हैं. मंगलवार को मणिपुर के 11 ज़िलों में कर्फ्यू में छह घंटे की ढील देनी शुरू की गई. जब राजधानी इम्फाल में कर्फ्यू में ढील दी गई, तो लोग ज़रूरी सामान ख़रीदने बाहर निकले. बाज़ारों में हालात सामान्य दिखे. मणिपुर में तीन मई से शुरू हुई हिंसा में अब तक 80 लोगों की मौत हो चुकी है, हिंसा, लूट-पाट और आग़ज़नी के आरोप में नौ हज़ार से ज़्यादा लोगों को गिरफ़्तार किया गया है. हिंसा में बेघर हुए 10 हज़ार से ज़्यादा लोगों को आर्मी कैम्प्स में रखा गया है. गृह मंत्री अमित शाह मणिपुर में लगातार अलग-अलग गुटों और नेताओं से बातचीत कर रहे हैं. उन्होंने सभी से अपील की कि वे कम से कम दो हफ्ते के लिए शांति बनाये रखें, सरकार उनकी मांगों पर ज़रूर गौर करेगी. मणिपुर में हिंसा की वजह बहुत पुरानी है. यहां मैतेई समुदाय का कुकी समुदाय के साथ दशकों से झगड़ा चल रहा है. अब बात इसलिए बढ़ गई क्योंकि कोर्ट ने सरकार को मैतई समुदाय को जनजाति या ट्राइबल दर्जा दिए जाने की मांग पर विचार करने का आदेश दे दिया. इसका कुकी समुदाय विरोध करता रहा है.
दूसरा कारण राज्य सरकार का वो आदेश है जिसमें एन बीरेंद्र सिंह की सरकार ने जंगलों पर हो रहे अतिक्रमण के खिलाफ अभियान शुरू करने की बात कही. चूंकि जंगली इलाक़ों में कुकी-नगा समुदाय के लोग रहते हैं, इसलिए इसका विरोध शुरू हुआ और धीरे-धीरे ये मामला मैतेई समुदाय और कुकी समुदाय के आपसी संघर्ष में तब्दील हो गया. हालात ऐसे हो गए कि स्थिति को संभालने के लिए अर्धसैनिक बलों के साथ-साथ सेना और असम राइफल्स के जवान तैनात किए गए.चीफ ऑफ डिफेन्स स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने कहा कि मणिपुर की हिंसा दो समुदायों के झगड़े का नतीजा है और इसका हल बातचीत से ही होगा. मुझे लगता है कि CDS जनरल अनिल चौहान की बात सही है कि मैतेई समुदाय और कुकी समुदाय दोनों हमारे ही भाई हैं, इसलिए दोनों पक्षों की बात सुनकर कोई हल निकालना चाहिए. (रजत शर्मा)
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