अभी किसी को समझ में नहीं आ रहा कि अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफा क्यों दिया? क्या मजबूरी थी? अगर वो जेल में बंद रहकर सरकार चला सकते हैं तो खुली हवा में उन्हें किसने रोका? केजरीवाल राजनीति के चतुर खिलाड़ी हैं। परसेप्शन के खेल को वो अच्छी तरह समझते हैं। वो देश के बड़े-बड़े नेताओं पर भ्रष्टाचार के इल्जाम लगाकर चुनाव जीते थे। अब उनपर शराब घोटाले का इल्जाम है। ये उनकी राजनीति को जरा भी सूट नहीं करता। केजरीवाल कांग्रेस और बीजेपी को बुरी तरह हराकर दिल्ली के मुख्यमंत्री बने थे। उसके बाद विधानसभा के चुनाव जीतते चले गए। कांग्रेस को zero कर दिया और बीजेपी को बुरी तरह हाशिए पर डाल दिया। अब वो एक बार फिर कांग्रेस और बीजेपी के खिलाफ जंग छेड़ेंगे। एक नई रेस शुरू करेंगे और इस रेस में अगर केजरीवाल को तेज़ दौड़ना है, तो वो शराब घोटाले का बोझ उठाकर रेस नहीं जीत सकते। केजरीवाल के लिए सबसे ज़रूरी है कि वो भ्रष्टाचार के इल्जाम का बोझ अपने कंधों से हटाएं। शराब घोटाले के आरोपी का दाग अपनी शर्ट से साफ करवाएं। और इसका तरीका उन्होंने ढूंढ लिया है।
केजरीवाल जानते हैं कोर्ट का ट्रायल लंबा चलेगा। फैसला आने में कई साल लगेंगे। अगले चुनाव में विरोधी आरोप लगाएंगे और वो डिफेंसिव पर होंगे। ये उनकी राजनीति को सूट नहीं करता। इसीलिए पहला कदम उन्होंने इस्तीफा देकर उठाया। अपने को सत्ता से दूर कर लिया। दूसरा कदम होगा दिल्ली का चुनाव जीतना। और फिर वो ये कहेंगे कि जनता ने मुझे क्लीन चिट दे दी। मेरा दामन पाक साफ है। इस खेल का एक दूसरा पहलू ये है कि केजरीवाल ने बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं को चक्कर में डाल दिया। वो इस बात में उलझे हुए हैं कि आतिशी को क्यों बनाया? आतिशी के माता-पिता ने अफज़ल गुरू के लिए मर्सी पिटीशन लगाई थी, या उन्होंने आतिशी के नाम के आगे मार्लेना क्यों जोड़ा? अब इल्जाम आतिशी पर लगेंगे। विपक्ष के नेता उनके जो टेम्पररी चीफ मिनिस्टर हैं, उनके पीछे पड़ेंगे और जो परमानेंट चीफ मिनिस्टर हैं, वो चुनाव की जंग लड़ेंगे। केजरीवाल के पास खुला मैदान है। जबतक दिल्ली में कांग्रेस और बीजेपी वाले उनका खेल समझ पाएंगे, तब तक वो काफी आगे निकल चुके होंगे। (रजत शर्मा)
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