कश्मीर घाटी में 32 साल बाद मंगलवार को पहला मल्टीप्लेक्स श्रीनगर में खुला। इसका शुभारम्भ जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने किया। घाटी में हाल के वर्षों में आये बड़े बदलाव की तरफ यह एक स्पष्ट संकेत है। मुझे इस समारोह में जाने का मौका मिला। मैंने अपनी आंखों से कश्मीरी युवाओं की सोच में आए बदलाव को महसूस किया। पिछले तीन दशकों में कश्मीरी नौजवानों की कम से कम तीन पीढ़ियों को घाटी के सिनामाघरों में फिल्म देखने का मौका नहीं मिला था। 1990 में जिहादी आतंकवादियों ने बंदूक का खौफ दिखा कर घाटी के सभी सिनेमाघरों को जबरन बंद करवा दिया था।
दिल्ली, मुंबई, कोलकाता या चेन्नई जैसे महानगरों की तो बात ही छोड़ दीजिए, मुरादाबाद, सहारनपुर, बठिंडा, रोहतक, भिवानी और भरूच जैसे टियर-II शहरों में भी आजकल मल्टीप्लेक्स हैं। श्रीनगर के लोगों के लिए मंगलवार को पहला मल्टीप्लेक्स का खुलना किसी सपने के सच होने जैसा था। टिकट खरीदने के लिए लाइन में लगे कश्मीरी युवाओं के चेहरे पर जो खुशी मैंने देखी, उसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है।
जरा सोचिए, सलमान खान की 1989 की सुपरहिट फिल्म 'मैंने प्यार किया' कश्मीर के सिनेमाघरों में कभी लग ही नहीं पाई। 2014 में जब सलमान खान ‘बजरंगी भाईजान’ की शूटिंग के लिए कश्मीर गए थे, तो उन्हें शूटिंग करते हुए देखने के लिए नौजवानों की भीड़ उमड़ पड़ी थी, लेकिन वही नौजवान घाटी में उनकी फिल्म नहीं देख सके। मैं पहलगाम में फिल्म की शूटिंग के दौरान तीन दिनों तक सलमान के साथ था। सलमान की बातें आज भी मेरे कानों में गूंजती हैं। उस वक्त उन्होंने मुझसे कहा था, ‘ सोचिए, जिस फिल्म में इतने सारे कश्मीरी काम कर रहे हैं, उस फिल्म को देखने के लिए कश्मीर में एक भी थियेटर नहीं है। इससे ज्यादा दुख की बात और क्या हो सकती है।’
कश्मीरियों को अब 'बजरंगी भाईजान' या शाहरुख की फिल्म 'जब तक है जान' देखने के लिए जम्मू नहीं जाना पड़ेगा। दिलचस्प बात यह है कि श्रीनगर में बने आईनॉक्स मल्टीप्लेक्स के मालिक एक प्रतिष्ठित कश्मीरी पंडित व्यवसायी विजय धर हैं। मैं विजय धर को पिछले 40 सालों से जानता हूं। वह एक जमाने में पूर्व पीएम राजीव गांधी के सलाहकार हुआ करते थे। विजय धर के पिता डी. पी. धर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के वरिष्ठ सलाहकार थे। विजय धर ने कश्मीर घाटी में शिक्षा के क्षेत्र में बहुत काम किया है।
विजय धर के दिल में कश्मीर और ‘कश्मीरियत’ सबसे ऊपर है। विजय धर ने मुझे बताया कि उन्होंने नफे-नुकसान के लिए, बिजनेस के लिए, मल्टीप्लेक्स नहीं बनाया । उन्होंने कहा, ‘मैं कश्मीर को फिर से जन्नत में तब्दील होते हुए देखना चाहता हूं। मुझे वह दिन याद है जब 1990 में मेरा थियेटर बंद हुआ था। सनी देओल की ‘यतीम’ फिल्म लगी हुई थी। आतंकवाद ने कश्मीर को यतीम बना दिया। अब कश्मीर को फिर आबाद करना है, अपनी जन्मभूमि का कर्ज चुकाना है।’
बादामी बाग छावनी के पास स्थित हाई सिक्यॉरिटी जोन शिवपोरा में इस मल्टीप्लेक्स को पूरा होने में 5 साल लगे। इसमें 520 लोगों के बैठने की क्षमता है और तीनों मूवी थिएटर हाई-टेक साउंड सिस्टम और अत्याधुनिक तकनीक से लैस हैं। मल्टीप्लेक्स में फूड कोर्ट भी है। मल्टीप्लेक्स का शुभारम्भ करते हुए लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा ने कहा, ‘इसी जगह पर एक ज़माने में ब्रॉडवे सिनेमा हुआ करता था, यहां सबसे पहले शम्मी कपूर की फिल्म 'जानवर' की स्क्रीनिंग हुई थी। फिल्म की शूटिंग भी डल झील के आसपास हुई थी। मुझे खुशी है कि सिनेमा प्रेमी आज फिर यहां लौट आये हैं।’
इंडिया टीवी के रिपोर्टर मंज़ूर मीर ने मल्टीप्लेक्स में फिल्म देखने आए स्थानीय युवाओं से बात की। पिछले तीन दशकों से सिनेमा हॉल से महरूम रहने वाले ये नौजवान खुश नजर आ रहे थे। उनमें से कइयों ने कहा कि वे फिल्में देखने के लिए जम्मू जाते थे। वहीं कुछ ने कहा कि सिनेमा हॉल फिर से खुलने से रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। मंगलवार को आमिर खान की फिल्म 'लाल सिंह चड्ढा' दिखाई गई। 30 सितंबर से सिनेप्रेमी ऋतिक रोशन और सैफ अली खान की फिल्म 'विक्रम वेधा' देख सकते हैं। देश के बाकी हिस्सों की तरह इस मल्टीप्लेक्स में भी 30 सितंबर को ही फर्स्ट डे, फर्स्ट शो होगा।
1990 से पहले कश्मीर घाटी में सिर्फ 15 सिनेमा हॉल थे, जिनमें से 9 श्रीनगर में और 6 दूसरे जिलों में थे। श्रीनगर में ब्रॉडवे, रीगल, नीलम, फिरदौस, शिराज़, खय्याम, नाज़, और शाह जैसे सिनेमा हॉल थे। 1989 में जब कश्मीर घाटी में पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद शुरू हुआ तो सिनेमा को गैर-इस्लामी बताकर ‘अल्लाह टाइगर्स’ नाम के आतंकी संगठन ने सिनेमा हॉल बंद करने या फिर अंजाम भुगतने की चेतावनी दी। 1 जनवरी, 1990 से घाटी में सभी थियेटर बंद कर दिए गए।
1999 में श्रीनगर में तीन सिनेमा हॉल रीगल, नीलम और ब्रॉडवे खोले गए, लेकिन आतंकियों ने रीगल में पहले ही शो के दौरान हमला किया, जिसमें एक शख्स की मौत हो गई जबकि 12 लोग घायल हो गए। हमले के बाद रीगल सिनेमा हॉल को बंद कर दिया गया, और खौफ के कारण ब्रॉडवे और नीलम थियेटर भी बंद हो गए। कई सिनेमा हॉल सुरक्षा बलों के कैंप में तब्दील हो गए जबकि कुछ सिनेमा हॉल में होटल और अस्पताल खुल गए।
मल्टीप्लेक्स सिर्फ फिल्में देखने की जगह भर नहीं होती, यह लोगों की आज़ाद ज़िन्दगी जीने की निशानी है, दुनिया से जुड़ने का एक माध्यम है। मल्टीप्लेक्स मनोरंजन के अलावा लोगों के रोजगार का जरिया भी है। मुझे ‘बजरंगी भाईजान’ की शूटिंग के दौरान सलमान खान के कहे गए शब्द याद आते हैं। उस वक्त सलमान ने मुझसे कहा था, ‘कश्मीर की वादियां स्विट्जरलैंड से भी ज़्यादा खूबसूरत हैं। यहां शूटिंग करने में मज़ा आता है। बस अगर सरकार बेहतर इंटरनेट कनेक्टिविटी, बढ़िया होटल और अच्छी गाड़ियों जैसी कुछ सुविधाओं का इन्तज़ाम करा दे, तो फिर कश्मीर को दुनिया का सबसे बेहतरीन शूटिंग डेस्टिनेशन बनने से कोई नहीं रोक सकता।’ मैं सलमान खान को उनका वादा याद दिलाना चाहूंगा। मैं उनसे और फिल्म इंडस्ट्री के अन्य लोगों से गुज़ारिश करूंगा कि वे कश्मीर में फिल्मों की शूटिंग शुरू करें।
श्रीनगर में मल्टीप्लेक्स तो मंगलवार को खुला लेकिन पुलावामा और शोपियां में इसके 2 दिन पहले ही सिनेमा हॉल शुरू हो चुके थे। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा खुद इन दोनों जगहों पर गए थे और दर्शकों के साथ फिल्म देखी थी। उन्होंने कहा कि जल्द ही जम्मू-कश्मीर के हर जिले में ऐसे सिनेमा हॉल बनाए जाएंगे। सिन्हा ने कहा कि अनंतनाग, श्रीनगर, बांदीपुरा, गांदेरबल, डोडा, राजौरी, पुंछ और किश्तवाड़ में भी इस तरह के सिनेमा हॉल खोला जाएगा। पुलवामा के सिनेमा हॉल में तो हिजाब पहनी कई स्कूलीं छात्राएं भी इस साल की सुपरहिट मूवी RRR देखने आई।
शम्मी कपूर से लेकर यश चोपड़ा तक, ऐसे तमाम ऐक्टर और डायरेक्टरों की हमेशा कोशिश रही कि उनकी हर फिल्म में कम से कम एक गाना कश्मीर की वादियों में शूट किया जाए। उनकी फिल्मों के जरिए पूरी दुनिया में लोग कश्मीर की खूबसूरती को बड़े पर्दे पर देखते थे। कश्मीर के लोगों को भी इस पर नाज़ होता था। कश्मीर में आतंकवाद का दौर शुरू होने के बाद थिएटर बंद हो गए, लेकिन फिल्मों की शूटिंग जारी रही। अब 32 साल के लंबे इंतजार के बाद कश्मीर की जनता का सिनेमा हॉल में फिल्म देखने का सपना पूरा होगा।
कश्मीर की वादियों में ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’, ‘जब तक है जान’, ‘ये जवानी है दीवानी’, ‘हैदर’, ‘हाइवे’, ‘फैंटम’ , ‘बजरंगी भाईजान’, ‘फितूर’ और ‘राज़ी’ जैसी तमाम फिल्मों की शूटिंग हुई, लेकिन इनमें से एक भी फिल्म कश्मीर में रहने वाले आम कश्मीरियों ने अपने यहां के थिएटर में नहीं देखी। वे इन फिल्मों को या तो टीवी पर देखते थे या जम्मू या किसी दूसरे राज्य में देखने जाते थे। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने मुझे बताया कि वह जल्दी ही जम्मू कश्मीर के लिए एक नई फिल्म नीति ला रहे हैं, जिसके तहत बड़े फिल्म निर्माताओं को कश्मीर में शूटिंग के लिए सहूलियतें दी जाएंगी। साथ ही कश्मीरी नौजवानों को फिल्म बनाने की दिशा में प्रोत्साहित करने के लिए विशेष रियायतें मिलेंगी। मनोज सिन्हा का संकल्प है कि वह कश्मीर में जन्नत के दिनों को ज़रूर वापस लाएंगे। (रजत शर्मा)
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