वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर में वज़ूखाने से शिवलिंग मिलने के दावे के बाद उस स्थान पर सीआरपीएफ की टुकड़ी तैनात कर दी गई है। सीआरपीएफ के जवान चौबीसों घंटे इस जगह की चौकीदारी करेंगे। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सीआरपीएफ की तैनाती की गई है। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने वाराणसी के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को आदेश दिया था कि वह ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी परिसर में उस इलाके की सुरक्षा का प्रबंध करें, जहां स्थानीय अदालत द्वारा नियुक्त कमिश्नरों के सर्वे के दौरान शिवलिंग पाने का दावा किया गया था।
जस्टिस डी. वाई. चन्द्रचूड़ और जस्टिस पी. एस. नरसिंम्हा की पीठ ने वाराणसी के निचले कोर्ट में चल रही कार्यवाही पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद, जो कि ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करता है, ने अपनी अर्जी में यह आरोप लगाया था कि सिविल जज ने एक के बाद एक कई आदेश जारी किए, जो असंवैधानिक हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अजुनम इंतेजामिया की इस अर्जी को खारिज कर दया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मस्जिद में पहले की तरह नमाज अदा होती रहेगी। लेकिन वजूखाने के जिस इलाके को निचली अदालत ने सील करने का आदेश दिया है, वह सील रहेगा। सील किए गए इलाके में किसी के भी जाने पर पाबंदी रहेगी। अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हुज़ैफ़ा अहमदी ने कहा कि बिना वजू किए नमाज पढ़ने का इस्लाम में कोई मतलब नहीं रह जाता।
लेकिन यूपी सरकार की ओर से पैरवी कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि चूंकि जिस जगह पर शिवलिंग पाया गया है, उस जगह पर मुसलमान वजू करते हैं, ऐसे में शिवलिंग को कोई नुकसान भी पहुंचा सकता है। अगर ऐसा हुआ तो फिर कानून और व्यवस्था की समस्या खड़ी हो जाएगी। तुषार मेहता ने अदालत से कहा, 'अगर जरूरी हो तो वे कहीं और वजू कर सकते हैं, लेकिन जिस जगह पर शिवलिंग पाया गया है उसकी सुरक्षा जरूरी है।'
मुस्लिम पक्ष के वकील हुज़ैफ़ा अहमदी ने आरोप लगाया कि कोर्ट की कार्यवाही की आड़ में मस्जिद की यथास्थिति को बदलने की कोशिश हो रही है। उन्होंने कहा कि निचली अदालत के आदेशों पर रोक लगाई जाए, कमिश्नरों द्वारा किये गये सर्वे पर रोक लगाई जाए और यथास्थिति बहाल की जाए। उन्होंने पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 और इसकी धारा 4 का जिक्र किया जिसमें साफ कहा गया है कि 15 अगस्त 1947 को पूरे भारत में किसी भी पूजा स्थल की यथास्थिति को बदलने के लिए न तो कोई मुकदमा मान्य होगा और न ही कोई नयी कानूनी कार्यवाही मान्य होगी।
बहरहाल सुप्रीम कोर्ट ने अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद की याचिका को गुरुवार (19 मई) को सुनवाई के लिए मंजूर कर लिया और इस मामले में हिंदू पक्ष को नोटिस जारी कर दिया।
इस बीच मंगलवार को एक नए घटनाक्रम में सिविल जज रवि कुमार दिवाकर ने एडवोकेट कमिश्नर अजय मिश्रा को उनके पद से हटा दिया। उनपर अपने कर्तव्यों के निर्वहन के प्रति गैर जिम्मेदाराना व्यवहार का आरोप लगा। साथ ही अदालत ने ज्ञानवापी परिसर की सर्वे रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कमिश्नरों को दो दिनों की मोहलत दे दी। सिविल जज ने अपने आदेश में कहा, जब कोई अदालत एक वकील को कमिश्नर के तौर पर नियुक्त करती है तो उसकी स्थिति एक पब्लिक सर्वेंट जैसी होती है और उससे यह अपेक्षा की जाती है कि वह ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन करे और गैर-जिम्मेदाराना बयान न दे।
सिविल जज ने यह आदेश तब दिया जब स्पेशल एडवोकेट कमिश्नर विशाल सिंह ने कोर्ट को बताया कि अजय मिश्रा ने एक प्राइवेट कैमरामैन आरपी सिंह को तैनात किया था जो नियमित तौर पर मीडिया में गलत बयान दे रहा था। शाम तक अजय मिश्रा की प्रतिक्रिया आई। अजय मिश्रा ने कहा कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया और उनके साथी वकील विशाल सिंह ने उन्हें धोखा दिया है। मिश्रा ने कहा, ‘उन्होंने दूसरों पर भरोसा करने की मेरा आदत का बेजा फायदा उठाया।'
ज्ञानवापी विवाद में इस वक्त सबसे अहम मुद्दा ये है कि सोमवार को जो पत्थर पाया गया वो शिवलिंग है या फव्वारा। मुस्लिम पक्ष इसे फव्वारा बता रहा है। हिंदू पक्ष के वकीलों का दावा है कि यह सैकड़ों साल पुराना शिवलिंग है जो पहले से मौजूद नंदी की मूर्ति के ठीक सामने है। मुस्लिम पक्ष का दावा है कि जिस पत्थर के बारे में यह दावा किया जा रहा है कि यह 450 साल पुराना शिवलिंग है, वह वजूखाने के बीच में बना एक फव्वारा है। मंगलवार को हिंदू पक्ष ने अपने दावे के समर्थन में कई सबूत पेश किए।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगाने से इनकार के बाद पहली प्रतिक्रिया एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की ओर से आई। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने वजू पर रोक नहीं लगाई है। अदालत ने मुसलमानों को ज्ञानवापी मस्जिद में अपनी मजहबी रस्में अदा करने की इजाजत दी है और वजू एक महजबी रस्म है। लेकिन ओवैसी ने साफ-साफ कहा कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से निराशा हुई है। ओवैसी ने यह आरोप लगा दिया कि ज्ञानवापी मस्जिद के मामले में वाराणसी की निचली अदालत में जो हो रहा है वह कानून के साथ मजाक है। ओवैसी के मुताबिक जिस तरह मुस्लिम पक्ष को सुने बगैर निचली अदालत आदेश पर आदेश जारी कर रही है, उससे भानुमती का पिटारा खुल गया है । तमाम मस्जिदों को लेकर विवाद पैदा किए जा रहे हैं और ये ठीक नहीं है।
जबसे निचली अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे का आदेश दिया है तब से ओवैसी बेहद नाराज और खफा है। चूंकि सुप्रीम कोर्ट से कोई राहत नहीं मिली इसलिए उनकी नाराजगी और बढ़ गई। ओवैसी ने कहा कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो देश में एक बार फिर चालीस साल पहले जैसे हालात हो जाएंगे, जब सांप्रदायिक तनाव आम बात थी। ओवैसी ने यह भी साबित करने की कोशिश की कि ज्ञानवापी परिसर में जो रहा है वो सब साजिश का हिस्सा है और सबकुछ सोच समझ कर साजिश के तहत किया जा रहा है।
ओवैसी ने तीन सवाल उठाए। सबसे पहले उन्होंने निचली अदालत के फैसले को गलत, गैरकानूनी और न्याय के खिलाफ बताया। इसके बाद उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी का मुद्दा उठाकर प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 (पूजा स्थल अधिनियम 1991) का उल्लघंन हो रहा है। फिर उन्होंने सबसे बड़ा इल्जाम लगाया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब काशी विश्वनाथ कॉरीडोर का शिलान्यास किया था उसी वक्त ज्ञानवापी मस्जिद में एक नंदी को दफनाने की कोशिश हुई थी। इसका मतलब ओवैसी ये कह रहे हैं कि जो हो रहा है वो कानूनी तरीके से नहीं हो रहा है। निचली अदालत में कानूनी प्रक्रिया और न्यायिक निष्पक्षता का पालन नहीं किया जा रहा है। मैंने ओवैसी के इल्जामात के बारे में कई कानूनी विशेषज्ञों से बात की और जो जवाब मिले उसके बारे में आपको बताता हूं।
पहला इल्जाम, ज्ञानवापी के वजूखाने में जो शिवलिंग मिला क्या वो फव्वारा है ? असल में सर्वे करने वाली टीम के सदस्य जिसे शिवलिंग बता रहे हैं उसे मुस्लिम पक्ष फव्वारा साबित करने की कोशिश कर रहा है। सोमवार देर रात मोहम्मद असद हयात नाम के वकील ने एक वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट किया जिसे असद्दुदीन ओवैसी ने भी रीट्वीट किया। यह वीडियो कब का है ये तो कोई नहीं जानता लेकिन यह दावा किया गया है कि जिसे शिवलिंग बताया जा रहा है उसे पानी में नहीं छुपाया गया था। जब-जब वजूखाने की सफाई होती थी तब ये दिखता था।
मुस्लिम पक्ष का दावा है कि यह शिवलिंग नहीं फव्वारा है और इसके ऊपर फव्वारे जैसा सुऱाख भी है। इसलिए इसे शिवलिंग कहना गलत है। लेकिन तस्वीरों में यह साफ दिख रहा है कि शिवलिंग के ऊपर अलग से कुछ पत्थर लगाकर इसे फव्वारे की शक्ल देने की कोशिश की गई है। दूसरी बात यह कि वजू के छोटे से हौज में इतने चौड़े पत्थर के फव्वारे की क्या जरूरत ? तीसरी बात यह कि अगर फव्वारा था तो चलता क्यों नहीं ? चौथी बात, सर्वे टीम का दावा है कि इस वजूखाने के पास नीचे जाने के लिए एक रास्ता भी है जो बंद है। इसके नीचे शिवलिंग का बाकी हिस्सा है।
सवाल यह पूछा जा रहा है कि काले पत्थर का चार फुट चौड़ा फव्वारा क्या दुनिया के किसी औऱ मस्जिद के वजूखाने में भी लगा है ? इसके बारे में किसी के पास कोई जानकारी नहीं है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि फव्वारे के लिए एक छोटा पाइप काफी होता है। उसके चारों तरफ डिजाइन हो सकता है। लेकिन अगर ये डिजाइन था तो उसे ईंट की 9 ईंच चौड़ी दीवार से छुपाने की क्या जरूरत थी ? लेकिन फिर भी अगर दावा ये है कि ये शिवलिंग नहीं फव्वारा है तो जांच का इंतजार करना चाहिए। जब वजूखाने के नीचे बने तहखाने में कैमरा जाएगा तो इसकी सच्चाई भी सामने आ जाएगी।
ओवैसी ने एक औऱ बात कही। उन्होंने कहा कि जब मोदी काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की नींव रखने आए तो उसी वक्त ज्ञानवापी परिसर में नंदी की मूर्ति को दफनाने की कोशिश की गई। उनका इल्जाम है कि ये सब साजिश है। पूरी तैयारी और प्लानिंग के साथ किया जा रहा है। इसका हिंदुओं की आस्था से कोई लेना-देना नहीं है। ओवैसी बैरिस्टर हैं लेकिन साथ-साथ वो एक चतुर राजनेता भी हैं। ओवैसी जानते हैं कि कहां कब क्या कहना है। नंदी की मूर्ति को दफननाने का इल्जाम ओवैसी एक मैगजीन में छपी रिपोर्ट के आधार पर लगा रहे हैं । लेकिन ओवैसी ने उन रिपोर्टस को नजरअंदाज कर दिया जो लाइव कैमरे दिखा रहे हैं।
वाराणसी में इस जगह आनेवाले किसी भी शख्स को यह साफ दिखता है कि काशी में ज्ञानवापी मस्जिद के पश्चिमी गेट के सामने नंदी की विशाल प्रतिमा है जिसका मुंह ज्ञानवापी के वजूखाने की तरफ है। इसी नंदी की प्रतिमा की सीध में 83 फीट की दूरी पर वजूखाने में शिवलिंग मिला है। जब इतनी भारीभरकम नंदी की प्रतिमा सैकड़ों साल से सामने खड़ी हो तो फिर जमीन में नंदी की छोटी सी मूर्ति दफनाने का क्या फायदा और क्या मतलब ?
ऐसा नहीं है कि नंदी की ये मूर्ति नई है। सोशल मीडिया पर बहुत सारे लोगों ने ज्ञानवापी परिसर के सामने नंदी की पुरानी तस्वीरें भी पोस्ट की हैं। इनमें से एक तस्वीर कम से कम 140 साल पहले 1880 में ली गई थी। इस फोटो को इस्कॉन के वाइस प्रेसीडेंट और प्रवक्ता राधारमण दास ने शेयर किया। इस तस्वीर के साथ उन्होंने मुगल बादशाह औरंगजेब के उस फरमान की फोटो भी डाली जिसमें उसने काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने का हुक्म जारी किया था।
नंदी की मूर्ति की एक और तस्वीर है जिसे सुप्रीम कोर्ट के वकील शशांक शेखर झा ने ट्विटर पर शेयर किया है। इसके साथ कैप्शन लगाया है कि नंदी महाराज 400 साल से इंतजार कर रहे हैं । ज्ञानवापी विवाद में नंदी महाराज को भी अहम सबूत माना जा रहा है। इस तस्वीर को वर्ष 1890 में लिया गया था। इस तस्वीर में भी नंदी महाराज उसी जगह पर हैं। आसपास की चीजें वक्त के हिसाब से बदली हैं। पहले नंदी के ऊपर कोई छत नहीं थी फिर बाद में घासफूस की छत दिखी और उसके बाद एक स्ट्रक्चर भी बन गया था।
ओवैसी ने जोर देकर कहा था, हमेशा से ज्ञानवापी मस्जिद थी.. है..और कयामत तक रहेगी। यानि ओवैसी ये कह रहे हैं कि मंदिर को तोड़कर मस्जिद नहीं बनाई गई। लेकिन पुराने ऐतिहासिक आंकड़े ब्रिटिश शासकों द्वारा तैयार किए गए सरकारी गजट में दर्ज हैं। ओवैसी को इसे पढ़ना चाहिए। पेज नंबर 25 से पेज नंबर 75 तक काशी का प्रमाणिक इतिहास इसमें दर्ज है। गजेटियर में कहा गया है कि 9 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने काशी के फौजदार को काशी के दो मंदिरों विश्वनाथ और बिंदु माधव मंदिर को तोड़ने का फरमान जारी किया था। अब ये गजेटियर तो अभी नहीं लिखा गया।
वैसे इस बात पर तो विवाद ही बेकार है कि काशी विश्वनाथ का मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई या नहीं। कुछ मुस्लिम नेता यह तर्क दे रहे हैं कि अगर औरंगजेब इतना विशाल मंदिर तोड़ सकता था तो उसने शिवलिंग क्यों छोड़ दिया ? उसे क्यों नहीं तोड़ा ? हिन्दुओं का जबाव है कि ज्ञानवापी मस्जिद के गुंबद मंदिर की दीवारों पर बने हैं। नंदी की मूर्ति मस्जिद के सामने है। शिवलिंग वजूखाने में है। ये सब उस वक्त के आक्रांताओं ने हिन्दुओं को अपमानित करने के लिए किया।
हालांकि इन बातों का कानूनी विवाद से कोई लेना देना नहीं है। ये भावना और आस्था की बात है। जहां तक तथ्यों की बात है तो इतिहास की किताबें और दस्तावेज तो ये कहते हैं कि औरंगजेब ने 1645 में अहमदाबाद के चिंतामणि पार्शवनाथ मंदिर को तोड़ा। इसके बाद 1664 में ग्वालियर के सिद्धग्वाली मंदिर को तोड़ा। 1665 में उसने सोमनाथ मंदिर पर बुरी नजर डाली। 1666 में हरियाणा के पिजर में भीमादेवी मंदिर को तोड़ा फिर 1669 में काशी विश्वनाथ का ध्वंस किया। औरंगजेब ने 1670 में बृंदावन का गोविन्द देव मंदिर और मथुरा के केशव राज मंदिर को तोड़ा। 1685 में मध्य प्रदेश के मुरैना में चौसठ योगिनी मंदिर को भी औरंगजेब के द्वारा तोड़ने की बात इतिहास में दर्ज है। यह बहुत लंबी फेहरिस्त है।
चूंकि ओवैसी कह रहे हैं कि ऐसे अगर लिस्ट निकालने बैठें तो आरएसएस तो तीस हजार मस्जिदों की लिस्ट लिए बैठा है। कहां तक मस्जिदों को खोएंगे। इसीलिए आगे की रणनीति बनाने के लिए अब ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने इमरजेंसी मीटिंग बुलाई है। हालांकि ज्ञानवापी के मामले में मुस्लिम पक्ष का दावा कमजोर है।
जो लोग ये कह रहे हैं कि पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के तहत यह विवाद कानूनी तौर पर नहीं टिकेगा क्योंकि इस कानून के मुताबिक 1947 के वक्त जो धार्मिक स्थल जिस स्थिति में था, वैसा ही रहेगा.. उसका स्ट्रक्चर और नेचर नहीं बदला जा सकता। इन लोगों को पांचों हिंदू महिलाओं द्वारा दाखिल की गई याचिका को पढ़ना चाहिए। वाराणसी कोर्ट में इन महिलाओं द्वारा जो अपील की गई है उसमें यही कहा गया कि 1947 से 1991 तक ज्ञानवापी परिसर में श्रृंगार-गौरी की पूजा होती थी। अब फिर से रोज पूजा की इजाजत दी जाए। यह मांग कानून के हिसाब से गलत नहीं है। मुश्किल यह है कि एक विवाद खत्म नहीं होता कि दूसरा शुरू हो जाता है। मथुरा में भी श्रीकृष्ण जन्मभूमि स्थान और ईदगाह मस्जिद का विवाद है तो मध्यप्रदेश के धार में भोजशाला विवाद है। ऐसे विवादों की श्रृंखला काफी लंबी है। (रजत शर्मा)
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